Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 1, 2015 By Monica Gupta

प्यारी बिटिया

प्यारी बिटिया

एक महिला अपनी लडकी को बहुत प्यार करती थी. आप सोच रहे होंगें तो क्या ??? वो तो सभी करती हैं. अरे !!

एक मिनट पूरी बात तो सुनिए. वो महिला इतना प्यार करती इतना प्यार करती कि शादी के बाद प्यारी बिटिया को हर धंटे फोन करती कि क्या हो रहा है. अब ये रुटीन बन गई . धीरे धीरे काम के बातो की बजाय बेमतलब की बाते ज्यादा होने लगी… बार बार फोन करके और क्या बात होगी… बुराईया करनी शुरु हो गई. सास ऐसी, ननद वैसी पति ऐसे …

कुल मिलाकर प्यारी बिटिया के घर भी तनाव का माहौल बनने लगा. पर ये बात न तो मां को समझ आई और न उसकी प्यारी बिटिया को. आज वो ही बेटी हमेशा के लिए अपनी मां घर आ गई है.और अब मां बेटी के बीच में तनाव चल रहा है. वैसे आप तो अपनी बेटी को” इतना” प्यार नही करती होंगीं अगर करती है तो जरा नही बहुत सोचने की दरकार है. शादी के बाद दखलअंदाजी सही नही.. बिल्कुल सही नही. रिश्ते टूटने में पल नही लगता और जोडने में सदियों बीत जाती हैं इसलिए जरा सम्भल कर प्यारी बिटिया से बात करिए

 

June 1, 2015 By Monica Gupta

Sportsmanship is important

Sportsmanship is important in reality shows …. रियलटी शो-इंडियन आइडल जूनियर शुरु हो गया है इस तरह के शो वाकई में बहुत अच्छे लगते है. जैसे लोग क्रिकेट मैच देखने के लिए चिप्स और ठंडा पेय अपने पास रख लेते हैं ऐसे ही अक्सर मैं भी करती हूं. पर शो के दौरान एक बच्चे की मासूमियत को देख कर उस पर तरस आया और उसके माता पिता पर  बेहद गुस्सा. हुआ ये कि एक 7 साल का  बच्चा अपना ओडिशन देने पिछले साल भी आया था पर डर या धबराहट में कुछ गा नही सका .पिछले साल का  वो सीन भी दिखलाया था.  क्या गाऊं क्या गाऊं कह कर बच्चा नर्वस हो गया था और बिना कुछ कर गाए वो चला गया  . इस साल वो फिर आया पूरा तैयार होकर और आते ही उसने गाना  सुनाना शुरु कर दिया. अच्छा था पर थोडा लय मे नही था.  तीनों जज उसे इशारा करके रुकने को कहा  पर वो रुका नही उल्टा उन्ही को इशारे मे मना करके गाता रहा.

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एक जज स्टेज पर आ गए और उसे समझाया लेकिन अब उसे एक ही जिद थी कि पास कर दो … उसने पास कर दो कि रट  लगा ली. बाहर खडे बच्चे के चाची बता रही थी  कि पिछ्ली बार जब ये गा नही पाया था तो इसे इसके पापा से बहुत डांट पडी थी और शायद उसी का डर होगा कि स्टेज पर आते ही उसने गाना शुरु कर दिया और रुका नही और दूसरी बात उसका बार बार कहना कि पास कर दो .. जब तक पास नही करोगें मैं जाऊगां  ही नही… मैं यही बैठा हूं.. मन में एक दर्द सा भर गया. इतना प्रैशर बच्चे पर …!!! फिर स्टेज पर उसके चाचा चाची , बुआ और मां को बुलाया गया और उन्हें भी समझाया गया वो भी अडे रहे कि बच्चे ने अच्छा गया वो जागरण मे भी गाता है. उसी के साथ साथ उन्होनें यह भी स्वीकारा  कि बच्चे पर  गाने का दवाब तो डाला ही है.  जज से हो रही बात चीत मे बच्चा घबरा गया और उसे लगा कि उसका सिलेक्श्न नही हो पाएगा और उसने रोना शुरु कर दिया. बच्चे को रोता देख मन उदास हो गया बस यही बात मन में आ रही थी कि बच्चों  को गायकी के साथ Sportsman spirit आनी भी सिखानी चाहिए और उससे भी ज्यादा जरुरी है कि माता पिता को यह भावना पहले सीखनी होगी

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एक बात होती है शौक और टेलेंट और एक होती है थोपना … अगर अपनी खुशी से गाया जाए तो वो गाने में साफ झलकती है .. पर मासूम पर दवाब डाला जाए कि इस बार सेलेक्ट होना ही है नही तो … बच्चे में डर सा बैठ जाता है और गानें मे उसका डर साफ झलकता है.

कोई शक नही हर माता पिता चाह्ते हैं कि उनके बच्चे  टीवी पर आए पर तनाव नही देना चाहिए बहुत ज्यादा उम्मीद नही बना लेनी चाहिए वो कहते हैं ना कि खेल भावना यानि  Sportsman spirit भी सिखानी चाहिए  और खुद भी आनी चाहिए कि चलो इस बार नही तो कोई नही अगली बार सही. पर बच्चे पर दबाव डालना  और जब बच्चे का सिलेक्श्न न हो तो जजों पर ही गलती निकलना ये भी सही नही है.

बच्चे मासूम और कोमल मन के होते हैं. बेशक, माता पिता को बहुत मेहनत करनी पडती है बच्चों के साथ …

क्या बच्चों का खेल है रिएलटी शो ?

भारत में टैलेंट से जुड़े रिएलटी शो की दिवानगी किसी से छुपी नहीं है. लगभग हर टीवी चैनल पर एक ऐसा शो दिखाई पड़ ही जाता है जिसे देखकर माता-पिता को लगे कि उनका बच्चा भी इसमें जा सकता है.
टेलैंट शो में आई हज़ारों की भीड़ में जहां बच्चे का चयनित होना खुशी की बात होती हैं, वहीं ना चुने जाने पर बच्चे के मनोबल पर क्या असर पड़ता है ? तनुजा कहती हैं “रिजेक्शन सहने की शक्ति कई बार बच्चों में नज़र नहीं आती. कई बार तो वो मानने को ही तैयार नहीं होते की उनमें वो टैलेंट नहीं है जिसे ढूंढा जा रहा है.” See more…

 इंडियन आयडल, जूनियर  में  विशाल डडलानी एवं सलीम मर्चेंट और गायिका शालमली खोलगाडे, शो के जज हैं
संगीत निर्देशक विशाल डडलानी ने बताया, ‘‘एक गायक के रूप में, यह देखना वाकई में अद्भुत लगता है कि पैरेंट्स अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने बच्चों को इस छोटी सी उम्र में किस तरह प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए प्रेरित करते हैं। माता-पिता आजकल अपने बच्चों पर डाॅक्टर, इंजीनियर अथवा वकील बनने का दबाव नहीं डालते, बल्कि उनके रचनात्मक पहलू को निखारते हैं और उनके सर्वश्रेष्ठ पहलू को सामने लाते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि जिन बच्चों का चयन किया गया है, वे सिंगिंग रियलटी शोज में नये मानदंड स्थापित करेंगे और संगीत उद्योग को वास्तव में कुछ बेहतरीन प्रतिभायें देंगे।‘‘
मशहूर गायिका शालमली खोलगाडे ने कहा, ‘‘इस सीजन में कुछ युवा उभरते गायक नजर आयेंगे। इनमें से कुछ निश्चित ही भारतीय संगीत उद्योग में नई लहर लेकर आयेंगे।‘‘
सलीम मर्चेंट ने बताया, ‘‘इंडियन आइडल ने भारत में सबसे बड़े सिंगिंग टैलेंट शो के रूप में अपनी अलग जगह बनाई है। इस साल की प्रतिभायें वाकई में बेहतरीन है। मैं अपने देश की प्रतिभा को देखकर बहुत दंग हूं।‘‘

बेशक इंडियन आइडल रियलटी  शो जैसे अन्य शो  प्रतिभावान  बच्चों के लिए एक शानदार  मंच साबित होते  है पर जरुरत इस बात की है कि  बच्चे को संगीत की शिक्षा के साथ साथ खेल भावना यानि Sportsman spirit भी सिखानी चाहिए और यही भावना पेरेंटस में  खुद भी  होनी चाहिए  ताकि बच्चा अगर पीछे रह जाए तो उस को डांट न लगाई जाए दवाब न बनाया जाए …

 

How to Be a Good Sport: 6 Steps

Sportsmanship is essential when playing a sport of any kind. No one wants to play with a sore loser. Want know how to be a good sport? Read on! Read more…

कुला मिला कर यही बात कहना चाह्ती हूं कि बेशक ऐसे शो बहुत बडा मंच देते हैं और बच्चा रातो रात फेमस हो जाता है पर अगर किसी वजह से बच्चा आगे नही आ पाता तो माता पिता को भी बच्चे के दिल को समझते हुए Sportsmanship  रखनी चाहिए यह खुस समझना और  समझना चाहिए कि मंजिल यही खत्म  नही हो गई है …

May 31, 2015 By Monica Gupta

असफलता एक चुनौती

‘मंजिल मिले ना मिले, ये तो मुकदर की बात है हम कोशिश भी ना करे ये तो गलत बात है.. 🙂 ”

असफलता एक चुनौती है. सहजता और  मजबूत इरादों से हमें इस चुनौती का  डट कर मुकाबला  करना चाहिए . पहले परीक्षा और अब नतीजों का महीना आया. बहुत छात्र पास हुए बहुत अच्छे अंक से पास हुए तो वही बहुत छात्र फेल भी हुए. सफलता और असफलता एक  ही सिक्के के दो पहलू हैं जहां सफलता हमें बहुत कुछ सीखा जाती हैं वही असफलता भी हमे उससे भी कही ज्यादा सीखा कर जाती है बशर्ते हम दिल छोटा न करे और अपनी सोच नकारात्मक न रखें. एकाग्रता बढाए और सबसे ज्यादा जरुरी समय के मह्त्व को समझना है. कार्य करते रहें और जी जान से करते रहें.

हाल ही मैं मैने अपनी बात आप तक रखने के लिए नेट पर बहुत सर्च किया और ऐसी ऐसी बाते पता चली जो आपका मनोबल बढाएगी आप खुद भी मान जाएगें कि फिर हम क्यो नही … कम भी किसी से कम नही

 

Akhand Jyoti

इतिहास ऐसे न जाने कितने कर्मवीरों की गौरव-गाथा से भरा पड़ा है, जो जीवन-संग्राम में अनेक बार हार के भी नहीं हारे, और ऐसे उदाहरणों की भी कमी नहीं कि विजयी होने पर भी जिनका नाम पराजितों की श्रेणी में ही लिखा गया। राणा प्रताप, पोरस तथा पृथ्वी चौहान ऐसे ही कर्मवीरों में से हैं जो स्थूल रूप से हार कर भी नैतिक रूप से पराजित नहीं हुए। शृंखलाओं के संकटों के बीच भी उन्होंने अपने को पराजित स्वीकार नहीं किया। जीवन का अन्तिम अणु-कण संघर्ष के क्षेत्र पर लगा देने के बाद भी विजय न पा सकने वाले वीर आज भी विजयी व्यक्तियों के साथ ही गिने जा सकते हैं। उनकी परिस्थितियां अवश्य हारी किन्तु उनके प्रयत्न पराजित न हुए। यही उनकी विजय है जिसे यशस्वी कर्मवीरों के अतिरिक्त साधन सम्पन्नता के बल पर संयोगिक विजय पाने वाले कर्महीन कायर कभी नहीं पा सकते।

अकबर, अशोक और उलाउद्दीन खिलजी जैसे विजयी उन व्यक्तियों में से हैं जिनकी जीत भी आज तक हार के साथ ही लिखी जाती है। कलिंग का श्मशान बन जाना एक विजय थी और अशोक का नगर पर अधिकार कर लेना एक पराजय। पद्मिनी का जल जाना, भीमसिंह और गोरा बादल का जौहर कर डालना एक विजय थी और चित्तौड़ पर खिलजी का अधिकार एक पराजय थी। वन-वन फिर कर घास की रोटी खाने वाले प्रताप की आपत्ति एक विजय और मेवाड़ पर अकबर का झंडा फहराना एक पराजय। ऐसी पराजय थी जिसे अकबर ने स्वयं स्वीकार किया था। जय-पराजय की इन गाथाओं में हार-जीत का मानदण्ड आदर्श पुरुषार्थ, पराक्रम, साहस, धैर्य एवं प्रयत्न ही रहा है। राज्य अथवा नगरों पर अधिकार नहीं। See more…

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लोग अकसर कहते हैं कि असफलता इंसान को तोड़ देती है लेकिन यह कथन गलत है। असफलता इंसान को नहीं तोड़ती बल्कि इंसान स्वयं ही हार मान लेता है। रिचर्ड हूकर कहते हैं कि ‘इंसान तब टूटता है, जब वो खुद से हार जाता है। अगर दुनिया की बात करें, तो वो तुम्हें तब तक नहीं हरा सकती, जब तक कि तुम खुद से न हार जाओ। इसलिए हमेशा अपनी हिम्मत बनाए रखो।’
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि, ‘जो व्यक्ति अपनी असफलताओं को स्वीकार कर जीवन में आगे बढ़ते हैं, उनका जीवन पहले से अधिक सुंदर हो जाता है। उनमें आत्मविश्वास और सद्गुणों का विकास होता है।’

महान व्यक्तित्व नेल्सन मंडेला ने 27 साल जेल में बिताने के बाद विश्वस्तर पर सफलता प्राप्त की। ऐसा वह इसलिए कर पाए क्योंकि वह असफलता से नहीं घबराए। यदि वह असफल नहीं होते तो कभी भी प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में सफल होकर हमारे प्रेरणास्रोत न बनते। महात्मा गांधी, प्रसिद्ध नेत्रहीन लेखिका हेलेन केलर, अपंग छात्रा से सफल धाविका बनने वाली विल्मा गोल्डीन रूडाल्फ, अब्राहम लिंकन, थॉमस एडीसन असफलता की सीढिय़ां चढ़कर ही सफलता के शीर्ष पर पहुंचे।
डिज्नीलैंड  को कौन नही जानता. बच्चों का प्रिय कार्टून कोना है। इसके संस्थापक वाल्ट डिज़्नी को बार-बार असफलता का सामना करना पड़ा। उन्हें बचपन से ही कार्टून बनाने का शौक था। उन्होंने अनेक समाचार-पत्रों को साक्षात्कार दिया लेकिन सभी ने उन्हें लौटा दिया। पर उन्होंने हार नहीं मानी। आखिर एक दिन उनकी मेहनत व लगन ने उन्हें एक विश्वविख्यात कार्टूनिस्ट बनाकर पूरे विश्व के सामने प्रस्तुत कर दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “मन की बात” में छात्रों को कहा …

10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा में सफल छात्रों को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि जिंदगी में सफलता-विफलता स्वाभाविक है और जो विफलता को एक अवसर मानते हैं, वे सफलता का शिलान्यास भी करते हैं तथा इससे भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।
मोदी ने कहा, ‘कुछ छात्र अच्छे अंक से पास हुए होंगे, कुछ के कम अंक आए होंगे। कुछ विफल भी हुए होंगे। जो फेल हुए हैं उनके लिए मेरा सुझाव है कि आप उस मोड़ पर हैं जहां से अब आपको तय करना है, आगे का रास्ता कौन सा होगा।’उन्होंने कहा, ‘जो विफल हुए हैं, उनसे मैं यही कहूंगा कि जिंदगी में सफलता-विफलता स्वाभाविक है। जो विफलता को एक अवसर मानता है, वह सफलता का शिलान्यास भी करता है। हम विफलता से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।’उन्होंने कहा कि आमतौर पर ज्यादातर स्टूडेंट्स को पता भी नहीं होता है, क्या पाना है, क्यों पाना है, लक्ष्य क्या है। विषयों और अवसरों की सीमाएं नहीं हैं। आप अपनी रूचि, प्रकृति, प्रवृत्ति के हिसाब से रास्ता चुनिए।प्रधानमंत्री ने कहा कि देश को उत्तम शिक्षकों, उत्तम सैनिकों, उत्तम वैज्ञानिकों, कलाकार और संगीतकारों की आवश्यकता है। खेल-कूद कितना बड़ा क्षेत्र है, खेल-कूद जगत के लिए कितने उत्तम मानव संसाधन की आवश्यकता होती है।यानि इतने सारे क्षेत्र हैं। विश्व में जितने म्यूजियम बनते हैं, उसकी तुलना में भारत में म्यूजियम बहुत कम बनते हैं। कभी-कभी इस म्यूजियम के लिए योग्य व्यक्तियों को ढूंढना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की किताब ‘माई जर्नी ट्रांसफॉर्मिंग ड्रीम्स इनटु ऐक्शन’ के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि इसमें उन्होंने कहा है कि उन्हें पायलट बनने की इच्छा थी। लेकिन जब वह पायलट बनने गए तो विफल हो गए।उन्होंने कहा कि उनका पास नहीं होना भी कितना बड़ा अवसर बन गया। वे देश के महान वैज्ञानिक बन गए। राष्ट्रपति बने। देश की परमाणु शक्ति के लिए उनका बहुत बड़ा योगदान रहा और इसलिए विफलता भी एक अवसर होती है।

 

हाल ही का एक उदाहरण यदि मैं आपको बताऊ अरुणिमा सिन्हा. आपकी हमारी तरह ही एक पतली दुबली सी लडकी थी. एक ट्रेन एक्सीडेंट में उसे  अपना  पैर गवाना पडा. वो नेशनल वालीवाल की खिलाडी थी. उसका कैरियर पूरी  तरह से चौपट हो गया. वो भी हार मान सकती थी. जिंदगी भर रोना रो सकती थी पर नही… उसने हार नही मानी और  पता है उसने क्या … आप हैरान हो जाएगें ये पढ कर कि उसने माऊंट एवेरेस्ट को फतह किया.  जी हां विशाल पर्वत … विकलांग होते हुए भी इतना बडा जोखिम उठाया.  हाल ही मे उसे पदमश्री से सम्मानित किया गया. किया \.

बच्चों को बचपन से ही यह बताया जाए कि जीवन में केवल सफलता प्राप्त करना ही बड़ी बात नहीं है बल्कि असफल होकर उससे शिक्षा प्राप्त करके आगे बढऩा भी बहुत हिम्मत का काम है तो असफलता व्यक्ति को निराश नहीं करेगी बल्कि उससे भी  बड़ी कामयाबी और सफलता की एक सीढ़ी बनेगी। तो पास या फेल हमें इससे धबराना नही है बल्कि खुद को मजबूत करके और पक्के इरादें से  जिंदगी के मैदान में उतरना है

cartoon -mahila diwasतो अब हैं तैयार आप …असफलता को चुनौती के रुप में लेने के लिए… मत भूलिए कि हमें  अपना रास्ता खुद ही बना है और हम बनाएगें जरुर बनाएगें … है ना !!!

May 31, 2015 By Monica Gupta

पर्यावरण हमारा मित्र

पर्यावरण हमारा मित्र

बरसात की बूंदें धरा पर पडते ही सौंधी सौंधी मिट्टी की महक शायद महंगें से महंगे इत्र  को मात देती है.

हाई वे पर जाते हुए बहुत वाहनों का आवगमन हो रहा था. एक वाहन गुजरा जिसमे फल( केला,किन्नू) भरे हुए थे. एक वाहन सामने से आता दिखा जिसमे बोरिया भरी हुई थी शायद उसमे चावल भरे हुए थे. वही छोटे छोटे ट्राली आ रहे थे जिसमे सब्जियां भरी हुई थी. देख कर मन मे अजीब सी खुशी हो रही थी कि धान्य से कितना समृध है हमारा भारत!!! पर तभी अचानक दनदनाते हुए पाचं ट्रक एक साथ ओवर टेक करते हुए निकल गए और उन्हे देखते ही मन मे भरी खुशी काफूर हो गई. असल में,  उन ट्रक, ट्राली मे लकडी काट कर ले जा रहे थे. ऐसा महसूस हुआ मानो कोई हमारी आक्सीजन ही छीन कर ले जा रहा हो !!! हे भगवान!!!  इतना ही नही जिस तरह से हाई वे चौडे होते जा रहे हैं  और सडक किनारे लगे पॆड कटते जा रहे हैं निसंदेह  दुखद है.

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चिंता का विषय है. इसे सहेज कर रखना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए पर अफसोस हम जागरुक नही हैं   … मुझे अच्छी तरह याद है हमसे स्कूल मे पौधे लगवाए गए. कोई बडा अधिकारी आ रहा था. हम सभी विधार्थियों ने मिल कर मैदान की सफाई की.  धूमधाम  से मुख्य अतिथि  का स्वागत किया गया और पौधे  लगवाए गए पर तीन दिन के बाद एक अन्य कल्चरल प्रोग्राम होना था तो वहां दरिया बिछा दी गई और पौधे वौधे सब … !!!!!

ऊंची इमारते बनवाए चले जा रहे हैं पर जब  बात पेड कटवाने या उखाडने की आती है तो हम नम्बर वन है. पर्यावरण शब्द का अर्थ है हमारे चारों ओर का आवरण। पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के आवरण को संरक्षित करें तथा उसे अनुकूल बनाएं। पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं  कृष्ण की गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरुआत का लौकिक पक्ष यही है कि जन सामान्य मिट्टी , पर्वत , वृक्ष एवं वनस्पति का आदर करना सीखें। श्रीकृष्ण ने स्वयं को ऋतुस्वरूप , वृक्ष स्वरूप , नदीस्वरूप एवं पर्वतस्वरूप कहकर इनके महत्व को रेखांकित किया है।

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बालू तुम्हारे उदरस्थ अर्धजीर्ण भोजन है , नदियां तुम्हारी नाडि़यां हैं , पर्वत-पहाड़ तुम्हारे हृदयखंड हैं , समग्र वनस्पतियां , वृक्ष एवं औषधियां तुम्हारे रोम सदृश हैं। ये सभी हमारे लिए शिव बनें। हम नदी , वृक्षादि को तुम्हारे अंग स्वरूप समझकर इनका सम्मान और संरक्षण करते हैं। भारतीय परम्परा में धार्मिक कृत्यों में वृक्ष पूजा का महत्व है। पीपल को पूज्य मानकर उसे अटल सुहाग से सम्बद्ध किया गया है , भोजन में तुलसी का भोग पवित्र माना गया है , जो कई रोगों की रामबाण औषधि है। विल्व वृक्ष को भगवान शंकर से जोड़ा गया और ढाक , पलाश , दूर्वा एवं कुश जैसी वनस्पतियों को नवग्रह पूजा आदि धार्मिक कृत्यों से जोड़ा गया। पूजा के कलश में सप्तनदियों का जल एवं सप्तभृत्तिका का पूजन करना व्यक्ति में नदी व भूमि को पवित्र बनाए रखने की भावना का संचार करता था। सिंधु सभ्यता की मोहरों पर पशुओं एवं वृक्षों का अंकन , सम्राटों द्वारा अपने राजचिन्ह के रूप में वृक्षों एवं पशुओं को स्थान देना , गुप्त सम्राटों द्वारा बाज को पूज्य मानना , मार्गों में वृक्ष लगवाना , कुएं खुदवाना , दूसरे प्रदेशों से वृक्ष मंगवाना आदि तात्कालिक प्रयास पर्यावरण प्रेम को ही प्रदर्शित करते हैं। वैदिक ऋषि प्रार्थना करता है- पृथ्वी , जल , औषधि एवं वनस्पतियां हमारे लिए शांतिप्रद हों। ये शांतिप्रद तभी हो सकते हैं जब हम इनका सभी स्तरों पर संरक्षण करें। तभी भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की इस विराट अवधारणा की सार्थकता है , जिसकी प्रासंगिकता आज इतनी बढ़ गई है। शेयर करें रेट करें Loading… See more…

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खूबसूरत लहलहाती प्रकृति अपनी ओर अनायास ही आकर्षित कर लेती है और हम है कि इसे समाप्त करने मे जुटे हुए है.

अगर हम कुछ उपाय करना ही चाह्ते हैं तो ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए ….. जन्मदिन पर पौधे उपहार स्वरुप दें और सबसे जरुरी प्लास्टिक को न कहें … say no to plastic और यही बात अपने बच्चों को भी सिखानी है ताकि वो भी पर्यावरण की मह्त्ता को समझे और अपना अमूल्य योगदान दे. पेड पौधे लगा कर न सिर्फ फोटो करवाए बल्कि उसे सहेज कर भी रखें.  पेड पौधे होगें तो तितली और पक्षी आएगें उनका कलरव . उनका चहकना हमारे दिलों में नई स्फूर्ति भर  देगा.

1471248_10206967437563747_3005690549378520457_n पर्यावरण  हमारा मित्र ही नही हमारा बेस्ट फ्रेंड होना चाहिए.  लीजिए मैने तो एक तुलसी का पौधा  लगा कर पर्यावरण दिन को मना लिया है और आपने ???

May 30, 2015 By Monica Gupta

हमारी धरोहर

हमारी धरोहर जोकि खंडहर होती जा रही हैं. आजकल ऐतिहासिक  धारावाहिको का बहुत बोलबाला है . अच्छा भी है इसी बहाने ही सही हमें अपने इतिहास की जानकारी मिलती है कि उस समय उनका रहन सहन, खान पान, आभूषण आदि पहनावा कैसा था और सबसे ज्यादा आकर्षित करती है उस जमाने की इमारते … बडे बडे ऊंचे महल जोकि आज खंडहर हो चुके  हैं . वैसे कम से कम हम उन खंडहरों को तो देख पा रहे हैं यही हालात रहे तो पर आगे आनी वाली पीढी तो ये भी नही देख पाएगी. अफसोस ये सिर्फ धारावाहिको तक में  ही सिमट कर रह जाएगा. कुछ समय पहले  दिल्ली में हुमायूं के मकबरे को देखने का मौका मिला. उसकी ना सिर्फ मरम्मत की गई है बल्कि मूल भवन निर्माण सामग्री और तकनीकों का इस्तेमाल कर उसके सौंदर्य की पुनर्प्रतिष्ठा भी कर दी गई पर दिल्ली और देश के बाकी धरोहरों का क्या?

 

विश्व धरोहर स्थल

मानवता के लिए अत्यंत महत्व की जगह, जो आगे आने वाली पीढि़यों के लिए बचाकर रखी जानी होती हैं, उन्हें विश्व धरोहर स्थल (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) के रूप में जाना जाता है। ऐसे महत्वपूर्ण स्थलों के संरक्षण की पहल यूनेस्को द्वारा की गई। इस आशय की एक अंतर्राष्ट्रीय संधि जो कि विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर संरक्षण की बात करती है के 1972 में लागू की गई।

विश्व धरोहर समिति इस संधि के तहत् निम्न तीन श्रेणियों में आने वाली संपत्तियों को शामिल करती है –

प्राकृतिक धरोहर स्थल – ऐसी धरोहर भौतिक या भौगोलिक प्राकृतिक निर्माण का परिणाम या भौतिक और भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर या वैज्ञानिक महत्व की जगह या भौतिक और भौगोलिक महत्व वाली यह जगह किसी विलुप्ति के कगार पर खड़े जीव या वनस्पति का प्राकृतिक आवास हो सकती है।
सांस्कृतिक धरोहर स्थल – इस श्रेणी की धरोहर में स्मारक, स्थापत्य की इमारतें, मूर्तिकारी, चित्रकारी, स्थापत्य की झलक वाले, शिलालेख, गुफा आवास और वैश्विक महत्व वाले स्थान; इमारतों का समूह, अकेली इमारतें या आपस में संबद्ध इमारतों का समूह; स्थापत्य में किया मानव का काम या प्रकृति और मानव के संयुक्त प्रयास का प्रतिफल, जो कि ऐतिहासिक, सौंदर्य, जातीय, मानवविज्ञान या वैश्विक दृष्टि से महत्व की हो, शामिल की जाती हैं।
मिश्रित धरोहर स्थल – इस श्रेणी के अंतर्गत् वह धरोहर स्थल आते हैं जो कि प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों ही रूपों में महत्वपूर्ण होती हैं।

भारत को विश्व धरोहर सूची में 14 नवंबर 1977 में स्थान मिला। तब से अब तक पांच भारतीय स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया जा चुका है। इसके अलावा फूलों की घाटी को नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के एक भाग रूप में इस सूची में शामिल कर लिया गया है।

भारतीय विश्व धरोहर स्थल –

काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क (1985)
केवलादेव राष्ट्रीय पार्क (1985)
मानस वन्यजीव सेंक्चुरी (1985)
नंदा देवी (1988) तथा फूलों की घाटी (2005), नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के विस्तार के रूप में
सुदरबन राष्ट्रीय पार्क (1987)

http://www.dw.de/धरोहर-संभालना-कब-सीखेगा-भारत/a-17181439बदहाल इमारते

पर क्या हमने इससे कोई सबक लिया? बिलकुल नहीं. आजादी के समय हमारे देश में ऐतिहासिक महत्व की जितनी इमारतें थीं, आज उनकी तादाद काफी हद तक घट चुकी है. अनेक इमारतों पर लोगों ने अवैध कब्जे कर लिए, तोड़ कर नई इमारतें खड़ी कर लीं और उनके इर्द-गिर्द इतना निर्माण कर लिया कि उन ऐतिहासिक इमारतों की पहचान ही खत्म हो गई. दूर क्यों जाएं,  See more…

कोई दो राय नही है कि खासियतें खींचती हैं दुनिया को हमारी और आने के लिए …

देश में  खान पान हो, रहन सहन या फिर तीज त्यौहार और रस्म अदावतें, सब धरोहर की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से समाज की ओर से आगे बढ़ रही है. लखनऊ की नफासत, बनारस की अदावत या दिल्ली की शान ओ शौकत से लबरेज तहजीब, सब का अंदाज ए बयां कुछ और ही है. ये इतिहास का अकाट्य सत्य है कि अपनी सभ्यता संस्कृति से बेइंतहा मोहब्बत करने वाले भारतीय लोगों में अतीत की विरासत से रूबरू कराती धरोहरों के लिए खास  लगाव होने के वाबजूद सरकार के ध्यान न दिए जाने पर   विरासत से जुड़ी धरोहरें खंडहर में तब्दील होती जा रही है. उए सबसे बडा दुर्भाग्य माना जा सकता है .

 

बोलते खंडहरों से संवाद

http://dainiktribuneonline.com/2015/03/बोलते-खंडहरों-से-संवाद/ विरासत की सैर का जिम्मा संभालने वाले इतिहासकार (वॉक लीडर) जैसे कथा-कहानियों के अद‍्भुत शिल्पी भी होते हैं। हमारे ही शहर के उन पक्षों को वो रोचक शैली में प्रस्तुत करते हैं जिनसे हम अकसर अनजान होते हैं या फिर जिनके बारे में बहुत थोड़ा जानते हैं। सप्ताहांत की शुरुआत का इससे बेहतर तरीका भला और क्या होगा कि आप अपने आपको जानने से दिन की शुरुआत करें। यकीन मानिए, हम भले ही खुद को जानने-समझने और पहचानने का कितना भी दावा क्यों न करते आए हों, । यहां तक कि एक समय था जब सिर्फ विदेशी सैलानी ही इनमें शिरकत इतिहास और ऐतिहासिक धरोहरों की वो समझ दी है कि आज अगर मेरे स्कूली टीचर मुझसे मिलें तो ‘स्टम्प’ हो जाएंगे। इतिहास की जानकारी न रखने वाले सामान्य लोगों को भी इस तरह की विरासत की सैर करने पर महसूस होता है कि पत्थर सचमुच बोलते हैं। खण्डहर खुद-ब-खुद अपनी दीवारों में कैद किस्से-कहानियां कहने लगते हैं और गुजरे जमाने के राजाओं-रानियों की प्रेम कहानियों से लेकर खूनी इतिहास की परतें खुलने लगती हैं। विरासत की सैर और कला के अन्य कार्यक्रमों की जानकारी देने वाली कई वेबसाइटें और फेसबुक पेज भी आजकल लोकप्रिय हो रहे हैं। तो अब आप सुबह-सवेरे उठने और अपना ट्रैक सूट पहनकर इतिहास को जानने के लिए निकलने को तैयार हो जाइये। See more…

कुछ भी हो हमें इन इमारतों को सहेजना ही होगा ताकि हम आने वाली पीढी के सामने गर्व से सिर उठा कर कह सके ये है मेरा भारत …

Images via www.dw.de, dainiktribuneonline.com

 

May 30, 2015 By Monica Gupta

गर्भावस्था के दौरान

मेरी पडोसन शीना गर्भवती थी. पडोस मे रहने की वजह से मेरी जिम्मेदारी बढ गई थी कि उसका ख्याल रखूं वैसे भी वो नव विवाहिता है शादी के बाद तीसरे महीने मे ही वो गर्भवती हो गई.  आज जब मैं उसके घर गई तो वो टीवी पर कोई हारर मूवी  देख रही थी. अरे !! … ये मत देखो बच्चे पर बुरा असर पड सकता है. उसने तुरंत टीवी बंद कर दिया. वाकई में, गर्भावस्था के दौरान  बहुत ध्यान देने की जरुरत होती है. बेशक टीवी चैनल ढेर सारे हैं और हमारा मंनोरंजन भी करते हैं पर इस बात का भी बहुत ध्यान रखना चाहिए कि क्या देखें और क्या नही. मुझे याद है गीता(मेरी सहेली)  ने अपने समय बहुत धार्मिक किताबें पढी थी और रोज सुबह पूजा करती थी आज उसका बेटा 10 साल का है और वो हमेशा अच्छी किताबे पढने में ही लगा रहता है. एक अन्य सहेली सविता को चाय अच्छी नही लगती थी उसने चाय पीना बिल्कुल छोड दिया और आज देखो उसका बेटा 20 साल का हो गया नौकरी भी करने लगा पर आज तक उसने चाय का स्वाद नही लिया  जबकि मेरी सहेली ने बेटे को जन्म देते ही चाय पी और उसे बहुत स्वादिष्ट लगी. अच्छा साहित्य, साफ मन( चुगली चपाटी  नही) , स्वच्छ हवा से मन प्रसन्न रहता है और बच्चे पर इसका बहुत अच्छा असर पडता है

dont forget nine rules in pregnancy

दुनिया के सभी धर्म ग्रंथों ने रिश्तों में मां का दर्जा सबसे ऊंचा माना है। संतान की पहली गुरु मां होती है। वही उसे पालती है। उसकी गोद में बच्चा जो भाषा सीखता है उसे मातृभाषा कहा जाता है। हमारी सनातन संस्कृति में गौरीशंकर, सीताराम, राधेश्याम जैसे नाम रखने की परंपरा भी यह साबित करती है कि मां का स्थान दुनिया के और दस्तूरों से बड़ा और सबसे पहले है। ऋषियों, दार्शनिकों ने ग्रंथों में ऐसी कई बातों का उल्लेख किया है जिनका ध्यान गर्भवती महिला को रखना चाहिए, क्योंकि उसका उल्लंघन न सिर्फ बच्चे के लिए, बल्कि उसके लिए भी हानिकारक हो सकता है।

जानिए  ऐसी ही कुछ बातें- 1- गर्भावस्था में मल-मूत्र, अपानवायु, छींक, प्यास, भूख, नींद, खांसी, जम्हाई जैसे आवेगों को रोकना नहीं चाहिए। साधारण अवस्था में भी इन्हें रोकने से हानि होती है, इसलिए गर्भावस्था में इन्हें कभी नहीं रोकना चाहिए।2-  क्रोध न करें, अप्रिय बातें न सुनें, न करें। वाद-विवाद में न पड़ें। भयानक दृश्य, टीवी-सिनेमा के ऐसे कार्यक्रम जो डरावने हों, न देखें। तीव्र व तीखी ध्वनि उत्पन्न करने वाले स्थानों से दूर रहें।3- रात्रि को देर तक न जागें। सुबह देर तक न सोएं। दोपहर को थोड़ा विश्राम करें लेकिन बहुत गहरी नींद न लें।4- सख्त, पथरीले, टेढे़ स्थानों पर न बैठें। पर्वत, ऊंचे घर, लंबी सीढ़ियां, रेत के टीले पर न चढ़ें।5- बहुत चुस्त और गहरे रंग के वस्त्र न पहनें। इस दौरान अधिक आभूषण पहनना भी हानिकारक होता है।6- हमेशा करवट लेकर ही सोएं। करवट को समय-समय पर बदलें। घुटने मोड़कर, सीधे या उल्टे सोने से नुकसान हो सकता है।7- दुर्गंध वाले स्थानों, खट्टे खाद्य पदार्थ वाले वृक्षों, अत्यधिक धूप और पानी के सरोवर से दूर रहें।8- अनुभवी वैद्य या चिकित्सक की सलाह के बिना कोई औषधि न लें। जोर-जोर से सांस न लें। सांस को रोकने की कोशिश न करें।9- अपने इष्ट देव का ध्यान करें लेकिन लंबे उपवास न करें। अत्यधिक वात कारक, मिर्च-मसालेदार, बासी पदार्थ तथा मादक पदार्थों का सेवन कभी नहीं करना चाहिए  Read more…

इसी के साथ साथ …

स्ट्रेच मार्क्स पर ध्यान न दें जैसे-जैसे पेट का आकार बढ़ता है, उस पर स्ट्रेच लाइंस आती ही हैं। इस बात को स्वीकार करें और इन लाइंस पर अधिक ध्यान न दें। संपूर्ण आहार और विटामिन ई युक्त मॉइस्चराइजिंग लोशन या तेल लगाकर आप इन्हें कम कर सकती हैं। प्रतिदिन स्नान के बाद इस लोशन को लगाएं, क्योंकि इस समय त्वचा तेजी से नमी सोख सकती है।

त्वचा का खास ख्याल रखें
नौ महीनों के दौरान त्वचा और बालों का विशेष ख्याल रखें। एक चम्मच दही और बादाम तेल की कुछ बूंदों को मिलाएं। इसमें थोड़ा गुलाब जल डालें। इसे त्वचा पर मलें और कुछ देर सूखने के बाद धो दें। इससे त्वचा कोमल होती है। इसके अलावा 4 चम्मच क्रीम, 1-1 चम्मच बादाम तेल, खीरे का रस, शहद, गुलाब जल और नीबू का रस मिला लें। इसे छोटे से डिब्बे में रखकर फ्रिज में रख दें। इसे हर रात लगाएं और सुबह धो दें। इससे त्वचा में चमक बढ़ेगी।

सन्स्क्रीन का प्रयोग:
गर्भावस्था के दौरान त्वचा का काला पड़ना एक आम समस्या है। आपके चेहरे की रंगत फीकी पड़ सकती है, साथ ही पेट के आसपास के हिस्से में भी कालापन बढ़ने लगता है। यह मुख्य रूप से शरीर में मेलानिन पिग्मेंट के बढ़ने के कारण होता है। इस पर नियंत्रण रखने के लिए आप सन्स्क्रीन लोशन और स्क्रब लगा सकती हैं …

खूब पानी पीना,  हरी सब्जी खाना और व्यायाम के साथ साथ तनाव नही रखना पूरा ध्यान इस बात पर रहना चाहिए कि आपका बच्चा तंदुरुस्त हो और हां सबसे जरुरी बार तो बताना ही भूल गई स्माईल रहनी चाहिए आपके चेहरे पर ताकि बच्चा भी हमेशा मुस्कुराता रहे …  बाकि समय समय पर अपनी डाक्टर से जानकारी लेते रहिए और … और … और अपना ख्याल रखिएगा होने वाली मम्मी 🙂

 

Image via patrika.com

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