Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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August 3, 2015 By Monica Gupta

जब कार चलाना सीखा

car drive photo

 

जब कार चलाना सीखा

मुसीबत मोल ली मैने ..

जी हां … आजकल समय ही ऐसा चल रहा है.चारो तरफ टेंशन,परेशानी ही दिखाई देती रहती है. आमतौर पर हम इन तनाव या मुसीबत से छुटकारा पाना चाह्ते है पर दूसरी तरफ एक उदाहरण मै हू जोकि मुसीबत को खुद ही न्यौता दे आई और वो भी पूरे जोश के साथ पर अब कहने को कुछ नही बचा. बस चारो तरफ गहन अंधकार ही अंधकार है. खैर, इससे पहले आप माथे पर बल डाल कर ज्यादा सोचने पर मजबूर हो जाए मै आपको दुख भरी दास्तान सुनाती हूं.

बात ज्यादा पुरानी नही है बस पिछ्ले महीने ही ही है.एक दिन बाजार जाते समय मुझे एक सहेली मिली वैसे स्कूल टाईम मे वो नालायक नम्बर वन थी.पर पता नही आजकल उसे क्या हो गया है इतनी स्मार्ट इतनी स्मार्ट हो गई है कि बस पूछो ही मत.बाल कटवा लिए है धूप का चश्मा पहनने लगी है और सबसे बडी बात की कार चलाती है. बस यही मेरी दुखती रग है.

असल मे, मुझे कार चलानी नही आती. आज के समय मे कार ना चलाना आना हैरानी का विषय ना बने इसलिए मैने उसी समय घर आकर घोषणा कर दी कि कल से मै गाडी चलाना सीख रही  हूं. जो चाहे सो हो. छोटे बेटे ने तुरंत अग़ूंठा दिखा कर मेरा समर्थन किया जबकि 90% परिवार जनो की राय थी कि रहने दो क्या फायदा.

पर मै एक बार जिद कर जाती हू तो फिर अपने आप की भी नही सुनती बडे स्टाईल से डायलाग बोल कर इतराने लगी और कहा कि ठान लिया तो बस ठान लिया और अगले ही दिन ब्यूटी पार्लर मे जाकर छोटे छोटे बाल कटवा लिए और गोगल भी खरीद लिए. अब  भई स्टाईल भी तो मारना जरुरी होता है .जल्दी ही खोज शुरु हुई कार सीखाने वाले की और 15 दिन मे मै फराटे से  कार चलाना सीख गई हालाकि दो चार बार बहुत बुरी तरह बची भी हूं.अब सारी बाते क्या बतानी. आप खुद भी समझदार है….  है ना.

अब आप सोच रहे होंगे कि भई इसमे दुख भरी बात कहा है तो वही बताने तो जा रही हू.कि मुसीबत मोल ली मैने. छोटे छोटे कामो के लिए अब सब मेरा ही मुंह देखते है कि ग़ाडी भी है और ड्राईवर भी.चाहे बाजार से आधा  किलो आलू लाने हो कपडे प्रैस करवाने हो या राशन का सामान हो लाना हो .सब मेरे सिर पर ही आ गया कि कार है ना . पहले दुकान वाले  सामान  आदमी के हाथो भिजवा देते थे पर अब उनका एक ही जवाब होता है कि कार है ना आप ही आ जाओ. आदमी नही ना है. दुकान बंद करके आना पडेगा.वगैरहा वगैरहा.

घर पर किसी के जूते मे मोची से जरा सी कील ही ठुकवानी हो तो भी कार है ना. और तो और जो मेहमान सालों से हमारे यहां नही आए थे जबसे उन्हे पता चला कि मैने कार सीख ली है वो आने को तैयार है.हफ्ते दस दिन का कार्यक्रम बना कर आ रहे है. पहले उन्हे रेलवे स्टेशन लेने जाओ फिर आवभगत,जायकेदार व्यंजन बनाओ,सेवा करो और  फिर अलग अलग जगह सुबह से शाम तक  दिल्ली दर्शन  करवाओ शापिंग करवाओ और फिर रात को लजीज व्यंजन से स्वागत करो ताकि वो नाराज ना हो जाए.

पहले तो मात्र घर ही सम्भालती थी पर अब जबसे कार चलाना सीखा है बस मानो मुसीबत ही मोल ले ली है मैने.अब तो दोहरी भूमिका हो गई है.घर पर सब निश्चिंत होकर बैठे है और सभी खुश है कि अब तो दिक्कत की कोई बात ही नही है.पर मै सिर पकड कर बैठी हूं कि क्यो मैने कार चलाना सीखा और अपने पैरो पर खुद कुल्हाडी मार ली.बेटे ने जो उस दिन अगूंठा दिखा कर मेरी बात का समर्थन किया था  मुझे वो थम्स अप की बजाय  ठेंगा लग रहा है. कुछ भी कहो  इसमे अब कोई मेरी मदद नही कर सकता क्योकि यह मुसीबत खुशी खुशी मैने ही मोल ली थी… अब तो इसे भुगतना तो पडेगा ही पडेगा….

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य … जरुर बताईएगा 🙂

जब कार चलाना सीखा

August 3, 2015 By Monica Gupta

आई बरसात तो

rain photo

Photo by VinothChandar

आई बरसात तो

आहा से आह तक का सफर

इन दिनो बरसात की खबर पढ कर या सुनकर मन मायूस हो जाता क्योकि हमारे शहर मे बरसात हो ही नही रही थी. ऐसी बात नही है कि यहां बादल नही आते. बादल गरजने के साथ साथ् बिजली भी खूब चमकाते  पर वो कहते है ना जो गरजते है वो बरसते नही बस …. ऐसा ही कुछ हो रहा था. बहुत मन था कि बरसात आए तो आनंद लें. गर्मा गर्म अदरक और इलाइची की चाय के साथ हलवा और पकौडे बनाए. बच्चो के साथ बारिश मे भीगे और कागज की नाव चलाए. पर खुशी से  आहा करने का मौका ही नही मिल रहा था. यही सोचते सोचते मैं अखबार के पन्ने पलटने लगी. तभी अचानक आखो मे आगे अंधेरा सा छा गया. अरे! चिंता मत करे. कोई चक्कर वक्कर नही आया मुझे पर ऐसा लग रहा था कि जो सूर्य महाराज पूरी तेजी से भरी दोपहरी मे चमक रहे थे अचानक उनकी चमक हलकी पड  गई.बाहर देखा तो  आसमान मे बहुत काला बादल  था. आज तो यकीनन बरसना ही चाहिए. मै सोच ही रही थी कि अचानक बूदाबांदी शुरु हो गई और मन मयूर नाच उठा.

इतने मे बच्चे भी वापिस लौट आए और कपडे बदल कर हाथ मे छतरी और बरसाती पहन कर कागज की नाव बना कर  बरसात  का आनंद उठाने को तैयार हो गए. उधर मेरी भी सहेलियाँ आ गई और हमने बरसात का खूब  मजा उठाया. प्रकृति एक दम साफ साफ धुली धुली लग रही थी.गमलो मे लगे पौधे हवा के साथ हिलते हुए ऐसे लग रहे थे मानो अपनी खुशी का इजहार कर रहे हों.  फेसबुक पर भी बरसात की सूचना दे दी गई और लाईक और कमेंट का अम्बार लग गया.. और तो और दो तीन निकट  दोस्तो का तो बधाई के लिए फोन भी आ गया कि आखिरकार भगवान ने आपकी सुन ली. सारे चेहरे खिले खिले थे.ऐसा लग रहा था मानो खुशी बरस रही थी.  माहौल खुशनुमा हो चला था. अचानक तापमान इतना कम हो गया कि पंखा भी एक नम्बर पर करना पडा. काफी देर तक भीगने के बाद कपडे बदल कर् बच्चे नेट पर काम करने लगे और सहेलियो ने भी विदा ली.

तभी अचानक बहुत तेज बिजली चमकी और मेरी आखं खुली. अरे! ये सपना था. बाहर आकर देखा तो सचमुच मूसलाधार  बरसात हो रही थी. बेशक मन खुश हुआ.पर इतनी तेज बरसात देख कर चिंता भी हो गई. तभी बिजली चली गई. चिंता इस बात की थी कि अभी बच्चे भी नही वापिस आए थे. फोन करने लगी तो वो भी डेड हो गया था. मोबाईल का नेटवर्क तो वैसे ही दुखी कर रहा था. रेंज ही नही होती कभी इसकी. खैर! सोचा कि चलो इतने पकौडो की तैयारी कर लूं रसोई मे गई तो देखा कि रसोई की नाली मे पानी जाने की बजाय बाहर आ रहा था यानि सीवर ओवरफ्लो कर रहा था. बाहर सडक पर देखा तो वो पूरी भर गई थी और ऐसा लग रहा था कि पानी किसी भी क्षण घर मे आ सकता  है  और देखते ही देखते पानी अंदर आना शुरु हो गया. असल मे बाहर सडक को ऊंचा  बनाया जा रहा है शायद इसी लिए .. !!!

वो क्षण किसी भंयकर सपने से कम नही था. मैने तीन चार पर अपने को चिकोटी काटी कि यह सब सपना ही हो.पर आह! अफसोस यह सपना नही हकीकत था. ना बिजली ना फोन ना मोबाईल और ऊपर से घर मे आता पानी. मेरा सारा शौक हवा हो गया.

बस भगवान से  सच्चे दिल से एक ही प्रार्थना कर रही हूं  कि बरसात  को तुरंत रोक दो मै 11 रुपए का प्रशाद चढाऊगी.पर भगवान तक  मेरी अर्जी जब तक  लगी  तब तक काफी देर हो चुकी थी. बरसात के लिए खुशी की आहा अब तक दुख भरी  आह  मे बदल चुकी थी. सरकार, प्रशासन और अडोस- पडोस को कोसते हुए नम हुई आखों से सारे काम भूल कर झाडू, कटका लिए बरसात के रुकने की इंतजार कर रही हूं !!!

आई बरसात तो … बरसात ने दिल तोड दिया

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य जरुर बताईएगा 🙂

August 2, 2015 By Monica Gupta

नया साल और संकल्प

satire by monica gupta

satire by monica gupta

 

( व्यंग्य )

नया साल और संकल्प

 

उफ्फ …!!! आखिरकार नए साल मे मैने क्या संकल्प लेना है सोच ही लिया .अब आपसे क्या छिपाना …हर साल जब भी नवम्बर समाप्त होने लगता और दिसम्बर जी का आगमन होता. मन मे अजीब सी बैचेनी करवट लेने लगती कि नए साल मे नया क्या क्या करना है और क्या क्या नही करना है.बस इसी उधेड बुन मे पूरा समय निकल जाता पर भगवान का लाख लाख शुक्र है कि इस साल यह नौबत ही नही आई और समय से पहले ही डिसाईड हो गया.

पता है, पिछ्ले साल मैने यह सोचा था कि सच बोलना शुरु कर दूगी. अरे नही.. नही … आप गलत समझ गए.असल मै, वैसे मै, झूठ नही बोलती पर ना जाने क्यू टीवी पर सच का सामना देख कर डर सी गई थी इसलिए बोल्ड होकर यह निर्णय लिया कि यह आईडिया ड्राप.फिर सोचा था कि कुछ भी हो जाए पतली हो कर दिखाऊगी पर पर पर .. सर्दियो के महीने मे ऐसा विचार मन मे लाना जरा मुश्किल हो जाता है.सरदी की गुनगुनी धूप हो,रजाई हो और गर्मा गर्म पराठे हो और उस तैरता और पिधलता मखन्न.मन भी पिधलना शुरु हो जाता अब ऐसे मे भला खाने पर कैसे ब्रेक लग सकती है.चलो इसे भी सिरे से नकार कर यह सोचा कि सुबह शाम की सैर ही शुरु कर दी जाए. इस पर तुरत अमल करना भी शुरु कर दिया था पर दो ही दिन मे यह मिशन फेल होता सा प्रतीत हुआ. असल मे , ऊबड खाबड सडके, सडको पर मस्ती मे धूमते आवारा बैल,और गंदगी के ढेर के साथ साथ सीवर के ढक्कन गायब.अब बताईए ऐसे मे हाथ पैर तुडवाने से अच्छा है कि कुछ और सोचा जाए.

वैसे सोचा तो मैने यह भी था कि नए साल मे किसी पर गुस्सा नही करुगी.चेहरे पर स्माईल रखूगीं. पिछ्ले साल 31 की रात सबसे यही कह कर सोई कि सभी 1 जनवरी को सुबह सुबह मंदिर चलेगे .मै तो सुबह सुबह तैयार हो गई पर कोई सुबह उठने को तैयार ही नही था. मुस्कुराते मुस्कुराते उठाती रही पर रात को देर से सोने के चक्कर मे सभी गहरी नींद मे थे. इतने मे काम वाली बाई आ गई. उसे पता नही क्या हुआ. बर्तनो को जोर जोर से शोर करते हुए धोने लगी .एक तो देर से आई ऊपर से मुहं बना रखा था इसने. मैने खुद को संयत किया कि मोनिका स्माईल … कंट्रोल कर… कहती हुई ताजा हवा लेने के लिए खिडकी पर जा खडी हुई कि अचानक मेरी नजर पडोसियो की नई चमचमाती कार पर पडी शायद कल ही के लर आए थे.बस आगे आपको बताने की जरुर नही कि ….. !!!!

इस साल भी यही विचार चल रहा था कि नए साल मे क्या संकल्प लिया जाए कि पूरा भी किया जा सके. घर के एक बडे बुजुर्ग ने सुझाया कि हम लोगो को तीर्थ यात्रा करवा दिया करो हर चार महीने मे एक बार. पुण्य मिलेगा.बात जमी नही और मै बच्चो के कमरे मे गई तो बच्चे कहते कि छोडो मम्मी… हर महीने हमे पिक्चर और पिकनिक पर ले जाया करो.काम वाली बाई भी कहा पीछे रहने वाली थी बोली कि मेरी पगार बढा दो और छुट्टी भी बढा दो. बाहर निकली तो ये बोले कि तुम फुलके पतले नही बनाती जरा श्रीमति ऋतु से सीख लो इतने पतले,मुलायम और गोल गोल चपाती बनाती है और कृष्णामूति से डोसा बनाना भी सीख लो … खश्बू से ही मुहं मे पानी आ जाता है.वो बात कर ही रहे थे कि इतने मे मेरी सहेली मणि का फोन आ गया उसने राय दी कि दो चार किट्टी पार्टी ज्वायन कर ले. थोडी सी चालाक बन बहुत भोली है तू.!!! अगले साल ही तुझे सोसाईटी की सैकट्ररी ना बनवा दिया तो मेरा नाम मणि नही!! मैने कोई बहाना कर के तुरंत फोन रख दिया.उफ्फ !!!किस की सुनू किस की ना सुनूं… देखा कितना टेंशन था.

 

अब आपको भी टेंशन हो रही होगी कि आखिर इस साल मैने क्या सकंल्प लिया है. तो सुनिए … पिछ्ले दो तीन सालो के अनुभव को देखते हुए… बहुत सोच विचार के मै इस नतीजे पर पहुंची हूँ कि चाहे कुछ भी जाए बस बहुत हुआ. अब और नही इसलिए इस साल … इस साल … इस साल … नए साल के लिए कोई सकंल्प ही नही लूगी.इसलिए मै खुश हू और बहुत ही खुश हूं ..

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य     नया साल और संकल्प   जरुर बताईगा 🙂

दैनिक भास्कर की मधुरिमा मे प्रकाशित

August 2, 2015 By Monica Gupta

उफ ये मुस्कुराहट

satire-monicagupta-bhasker

(व्यंग्य)

                                           उफ ये मुस्कुराहट        

इस तनाव भरे माहौल मे अगर कोई कहे कि मुस्कुराओ तो बहुत ही अजीब सा लगता है वैसे ऐसा मेरा मानना है पर पिछ्ले दो चार दिन से कुछ ऐसा हुआ कि मुझे अपने विचार बदलने पडे और मै भी हंसने मुस्कुराने के मैदान मे कूद पडी. वैसे आपको एक सच बात बताऊ कि हँसने खिलखिलाने का शौक तो मुझे बचपन से ही था पर बडे होते होते कुछ ऐसा होता चला गया कि हँसी भी कही दब कर रह गई. दो दिन पहले मेरी सहेली मणि आई उसने बताया कि मुस्कुराहट तो अनमोल गहना है इसे हमेशा धारण करना  चाहिए. वही बाजार मे खरीददारी करते एक अन्य दोस्त ने बताया कि जब 2 सैंकिंड की मुस्कान से फोटो अच्छी आ सकती है तो मुस्कुराने से जिंदगी भी तो अच्छी हो सकती है कि नही. पता नही क्यो पर मुझे बात जम गई. और बस सोच लिया कि अब जो हो सो हो. हमेशा हसंना और मुस्कुराना ही है और अपनी अलग पहचान बनानी है.

अगली सुबह मे बहुत अच्छे मूड मे सो कर उठी और सैर को निकल पडी. एक दम शांत माहौल मे मैने एक पेड चुना और वहाँ हाथ ऊपर करके ठहाका लगा कर जोर जोर से हंसने लगी. इतना ही नही बीच बीच मे ताली भी बजा रही थी इस बात से बिलकुल बेखबर कि सामने ही एक मोटी लडकी व्यायाम करने के लिए रस्सी कूद रही थी और वो गिर गई थी. पता तब चला जब शायद उसकी मम्मी आग्नेय नेत्रो से मुझे धूरने लगी और उसके पास खडा आज्ञाकारी कुत्ता भी मुझ पर बेहिसाब भौकने लगा. इससे पहले मै अपनी सफाई मे कुछ कहती उनकी लडकी और जोर जोर से रोने लगी और मैने चुपचाप खिसकने मे ही भलाई समझी. उफ!! मैने ठंडी सासं ली और धडकते दिल के साथ  घर लौट आई.

घ्रर लौटी तो हमारी पडोसन मिक्सी मांगने आई हुई थी. पर पता नही क्यो आज उसे देखकर मुझे हसीं आ गई. असल मे, वो क्या है ना कि वो डकारे बहुत लेती है. पहले तो मै कुछ नही कहती थी पर जब से हंसना अनमोल गहना है और जिंदगी हंसने से बेहतर बनती है तो सोचा कि आज हंस ही लूं इतने  दिनो बाद खिलखिलाकर हँसी तो शायद उसे बुरा लगा. उसने हसंने का कारण पूछा  तो मैने भी हंसते हुए बता दिया कि उसकी डकार सुनकर मुझे बहुत हंसी आती है. इस पर वो बहुत नाराज हुई और बाहर चली गई. मै एकदम चुप हो गई. इतने मे वो फिर आई और गुस्से मे वहाँ रखी मिक्सी ले गई.मै चुपचाप उसे देखती रह गई.उफ ये मुस्कुराहट!!!

अगले दिन किसी कवि सम्मेलन मे जाना था. वहां एक महोदय बहुत देर से कविता पे कविता सुनाए चले जा रहे थे. मेरे साथ बैठी महिला मुहं पर रुमाल रख कर धीरे धीरे  हसें जा रही थी. मैनें इधर उधर नजरे घुमा कर देखा तो कोई उबासी ले रहा था तो कोई सिर खुजला रहा था तो कोई मोबाईल पर मैसेज भेजने मे जुटा था यानि कुल मिलाकर माहौल मे सन्नाटा था. मैने कनखियो से एक दो बार उस महिला को  देखा तो  भीतर ही भीतर वो इतनी हंस रही थी इतनी हंस रही थी कि उसके आंसू निकल रहे थे.बस फिर क्या था. बोर तो मै भी हो रही थी पर उसे देख कर हंसने वाली बात याद आ गई और उसे देख कर मै जोर से खिलखिला कर हंस पडी. उसके बाद आपको ज्यादा बताने की जरुरत नही क्योकि आप सभी बहुत समझदार है. मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और मै चुपचाप बाहर आ गई.उफ!! बहुत महंगी पडी ये मुस्कुराहट.

समझ नही आ रहा था कि आखिर गलती हो कहाँ रही है.खैर रुआसी होकर घर लौट आई. शाम को बेटा हंसता मुस्कुराता घर आया और उसने मुझे उसका नया पासपोर्ट दिखाया. मै खुशी खुशी देखने लगी पर पासपोर्ट की फोटू मे उसकी मुस्कान ही गायब थी. मेरे पूछ्ने पर उसने बताया कि आजकल पासपोर्ट पर फोटो खिचवाते समय  चेहरे पर कोई भाव नही आना चाहिए…!! यही नियम है.

मुझे लगा कि मेरे लिए भी यही ठीक होगा और फिर मैनें अपने को पहले की तरह बनाने मे ही भलाई समझी और चुपचाप बिना मुस्कुराए काम मे जुट गई….

कैसा लगा ??? जरुर बताईगा??

ये व्यंग्य दैनिक भास्कर की मधुरिमा पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.

 

August 1, 2015 By Monica Gupta

दौरा बनाम दौरा

दौरा बनाम दौरा  ….

cartoon- result monica gupta

 

दौरा बनाम दौरा

आज अचानक सुबह सुबह  नेता जी ने घोषणा कर दी कि अभी विदेश दौरे पर जाने की बजाय वो सीधा  तिहाड के दौरे पर जाएगे क्योकि भारी अव्यवस्थाओ के चलते वहां देखना भी बहुत जरुरी है. आनन फानन में सायरन बजाती हुई गाडियो का काफिला अगले ही पल तिहाड के भीतर था.

काजू और बादाम खाते हुए नेता जी ने बहुत ध्यान से सभी बातो का मुआयना करना शुरु किया.सबसे पहले गेट पर खडे  संतरी को बहुत प्यार से देखा और उसकी पीठ पर थपकी दी. फिर पूरा  मुआयना किया कि कैसे कैदी सुबह उठ कर दिनचर्या अपनाते है और उन्हे किन किन बातो की कमी लगती होगी. सबसे पहले तो सैर करने के लिए जगह तैयार करवाने के आदेश दिए.ताकि ताजी  हवा का आनंद ले सकें. कुछ कमरो को वीआईपी सैल बनाने की धोषणा की कि जब कोई बडा नामी गिरामी बीमार नेता आए तो उसे किसी प्रकार की दिक्कत का सामना ना करना पडे.

खाने मे भी अच्छे कुक रखने के आदेश दिए ताकि कोई कैदी खाकर बीमार ना पडे क्योकि मीडिया मे एक बार खबर आ जाए तो बहुत किरकिरी हो जाती है. फिर बात आई शौचालयो की. अच्छे स्वास्थ्य के लिए साफ सुथरे बाथरुम निंतांत आवश्यक हैं इसलिए ज्यादा शौचालय बनाने के भी आदेश दे दिए गए औरयह हिदायत भी दी गई कि सभी सफाई  कर्मचारी  24 घंटे डयूटी पर ही तैनात रहें.

हर रोज कुछ ना कुछ क्रियात्मक होता रहे इसलिए मनोरंजन के लिए भी आदेश दिए गए ताकि दुखी कैदियो  का ध्यान सुसाईड करने पर ना जाए और उसमे जीने की नई आशा का संचार होता रहे.छोटा फ्रिज,गद्दा और छोटा रेडियो या छोटा टीवी भी सभी कमरो मे लगे इसका भी ध्यान रखना बहुत जरुरी है और और नेता जी बोलते जा रहे थे और उनका सैक्रेटरी लिखे जा रहा था. तभी किसी ने पीछे आकर कहां कि आपके जाने का समय हो गया है. उन्होने तुरंत गाडी निकालने के आदेश दिए ताकि कही विदेश जाने वाली  फ्लाईट मिस ना हो जाए. और अगले दौरे का भी दिन तथा समय  निश्चित कर लिया ताकि जिन कामो के आदेश दे दिए है वो लागू हुए है या नही.

तभी उन्हे ऐसा लगा कि कोई उन्हे झंकोर रहा है. अचानक वो उचक कर उठ बैठे. हवलदार उन्हे उठा रहा था कि इतनी देर से  क्या बडबडाए जा रहे हो… वो नींद से जागे… अरे!!! वो तो खुद कैदी हैं.छोटा सा कोठरीनुमा कमरा, पुराना सा मटका,थाली कटोरी,चम्मच, और मटमैली सी चादर मानो उन्हे चिढाती हुई हंस  रही थी.उफ!!! कहां तो  नेता जी दौरा करने आए थे और ये क्या …!!!  अचानक नेता जी को एक बार फिर  दौरा पडा और एक लंबी सांस लेते हुए वो एक तरफ लुढक गए…..पीछे संगीत चल रहा था …ए मालिक तेरे बंदे हम …ऐसे हैं हमारे कर्म …!!!!!

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य… जरुर बताईएगा 🙂

 

 

July 15, 2015 By Monica Gupta

शौक, शोक, शेक और शक

dog photo

 

शौक, शोक, शेक और शक

Satire –  व्यंग्य

असल मे, वो क्या है ना हम चाहे कुछ भी हो पर स्टेट्स सिंबल बन चुका है कुत्ता पालना.. जिसे हम सभ्य भाषा मे पप्पी,डागी या मेरा बच्चा के नाम से पुकारते हैं.

अभी परसो ही जब मुझे प्रमोशन मिली और मैने सखी को यह खुशखबरी दी कि अब तो मुझे गाडी भी मिल जाएगी तो लम्बू जी यानि अमिताभ जी के स्टाईल मे कमर पर हाथ रख कर वो बोली वो सब तो ठीक है हंय….   पर क्या कुत्ता है तुम्हारे पास. बस इतना अपमान मै सहन नही कर सकी और ठान ली कि चाहे कुछ भी हो जाए कुत्ते ( ओ क्षमा करे) डागी को तो खरीद कर ही रहूगी.चाहे जो हो सो हो ..भई आखिर स्टेट्स सिंबल का सवाल जो ठहरा. आखिर वो अपने को समझती क्या है . हम भी कुत्ते वाले क्यो नही बन सकते.

यही सब विचारते भुनभुनाते घर पहुंच कर सोचा था कि किसी ना किसी पर गुस्सा जरुर निकालूगी और अगर कोई नही मिला तो कांच वगैरहा का गिलास ही पटक कर तोड दूगी पर पर पर तभी काम वाली बाई का मोबाईल पर मैसेज आया कि आज वो नही आएगी इसलिए ये प्रोग्राम भी कैंसिल करना पडा क्योकि झाडू जो खुद लगानी पडती. खैर खाली मुहं फूलाने से ही काम चलाना पडा.

उसी शाम को किट्टी पार्टी मे जाना था वहां सभी शायद किसी अंग्रेजी फिल्म या किसी हीरो की बात कर रहे थे. जैसे बाक्सर, हासा, एप्सो, ग्रेट्डेन, सेट्बर्नार्ड, जर्मन शेफर्ड् आदि .अब मै भी कहां  चुप रहने वाली थी.  मैं भी बोल पडी कि मैने भी देखा है बहुत खूब हीरो हैं और वाह वाह क्या पिक्चर है. मेरा बोलना ही था कि सभी चुप होकर मेरा मुहं देखने लगी और मिसेज शर्मा हंसती हुई बोली कि भई, कोई कुछ भी कहे आपका सैंस आफ हयूमर बहुत ही शानदार है. मै भी मंद मंद मुस्कुराने लगी वो तो बाद मे पता चला कि वो सभी कुत्तो की नस्ल के नाम थे.

खैर उसी समय मैने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए  कल तक एक कुत्ता मेरे भी घर की शोभा बढाएगा ही बढाएगा. दिखावे का शौक ऐसा चढा कि अगले दिन स्पेशल  दिल्ली गए  और अलग अलग नस्लो से दो चार हुए. ग्रेटडेन की खूंखार बाडी देखकर, उनका खाना पीना  और उसका रेट सुनकर पसीना ही छूट  गया यानि चक्कर खाकर गिरते गिरते बची. बहुतों को देखने के बाद यही फैसला किया गया कि हल्का सा पामेरियन ही ले चलते हैं पर बात पक्की होते होते यही फाईनल हुआ कि अल्सेशियन ही ले कर जाएगे.

हालांकि इसके खाने पीने, रहन सहन के बारे मे जानकर बार बार श्वास अटकने लगी पर शौक था इसलिए चेहरे पर मुस्कान लिए सब समझती रही. अगले कुछ ही पलों में चैक से भुगतान करने के बाद उसे गाडी मे लेकर हम घर लौट आए.

शाम को आते ही अपने फ्रैड सर्किल को न्यौता दे आई. वो अलग बात है कि  भारी भरकम आवाज मे उसके भौकने की आवाज सुन सुन कर सिर दर्द हो चला था. फिर इसका वो सब साफ करना जिसकी आदत ही नही थी और उसे वो सब खिलाना जो मैने कभी सपने मे भी नही सोचा था… लग रहा था बहुत जल्दी मेरा शौक शोक मे बदल रहा है.शाम को सभी सहेलियां अपने अपने पप्पी के साथ उससे मुलाकात करने आई थी.

दोपहर बाद इसका ट्रैनर भी आ गया कि ताकि हमे इसकी आदतो केर बारे मे सीखा सके.पर सच पूछो तो इस कुत्ते के ऐशो आराम देख कर मेरा पूरा शरीर शेक करने लगा है. नाश्ता, दोपहर का भोजन फिर कभी उसे सैर करवाना तो कभी उसके नखरे देखना. मेरा पूरे घर का बजट चार दिन मे ही बिगड चुका है. ट्रैनर का खर्चा देखकर हमने उसे बहुत जल्दी विदा कर दिया पर … पर … पर … कोई शक नही कि शौक के चक्कर मे सारा शरीर शोक मे है और घबराहट और डर के मारे शेक कर रहा है. अब मै उसे निकालना चाह रही हूँ पर इतने रुपए खर्च करके खरीदा था इतने मे कोई खरीदने को तैयार ही नही है.

उसे घर मे लाए आज 10 दिन हो चुके हैं मुझे शक है कि मै उसकी वजह से बहुत जल्दी पागल होने वाली हूं. रात के 12 बजे है और वो फिर भौंक रहा है पता नही उसे भूख लगी है या धूमने जाना है. बस अब तो जैसे भी हो…  इसे बाहर का रास्ता दिखाना ही पडेगा चाहे जो हो सो हो.!!!

Satire …   व्यंग्य

शौक, शोक, शेक और शक  ….कैसा लगा आपको ये व्यंग्य जरुर बताईएगा …

 

 

 

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