Online बनाम Off line करीब एक धंटा बाद बंद कमरे से बाहर निकली मेरी एक जानकार को मैने हिम्मत दी बुद्दू, पगली ऐसे रोते थोडे ही न है. हिम्मत रख, सब्र कर, हर हर किसी के पास सब कुछ तो नही होता ना… और तुम तो वैसे ही इतनी समझदार हो. यही जिंदगी है बजाय उदास होने के, रोने के, हर हाल में खुश रह. मुझे देखो मैं भी तो सह रही हूं न ये सब पर कभी महसूस होने नही दिया.
वो सहमति की गर्दन तो झटक रही थी पर बोल रही थी कि क्या करुं नही समझा पा रही खुद को.. हर रोज सोचती हूं आज मेरी जिंदगी में भी खुशी आएगी जब मैं भी खुद पर नाज कर पाऊंगी पर ना जाने किस की नजर लग गई.
आप रोज देख ही रही हो तिल तिल करके जी रही हूं. रोते रोते हिचकियां भी लग गई..जी क्या ??? आप जानना चाह रहे हैं कि क्या हुआ? ओह क्षमा करें जानकार से बात करने के चक्कर में, इसकी इस हालात की वजह तो मैं बताना ही भूल गई. ये बेचारी इस लिए रो रही है कि हर रोज फेसबुक पर कुछ न कुछ लिखती है पर इसकी पोस्ट पर एक कमेंट तो दूर की बात लाईक तक भी नही होते.
कल ही उसने कम से कम 50 सैल्फी ली और एक को बेहतरीन मान कर इस आशा और विश्वास के साथ फेसबुक पर डाला कि लाईक और कमेंट की बाढ क्या सुनामी आ जाएगी पर अन्य पोस्ट की तरह ये भी सूखी रह गई और वो डिप्रेशन में चली गई …. अब, कभी अपना उदाहरण देकर तो कभी किसी का उदाहरण देकर उसे समझा रही हूं वैसे आप भी किसी को ऐसी स्थिति में जाने से बचा सकते हैं.
आपका एक कमेंट और एक लाईक किसी की जिंदगी मे बहार ला सकता है. वैसे मैं इस विषय पर शोध करके किताब लिखने की भी सोच रही हूं क्योकि ये आज की सबसे बडी जरुरत जो है.
Online बनाम Off line कैसा लगा जरुर बताईगा 🙂