Package आमतौर पर जब भी किसी को नई नौकरी मिलती है तो लोगों का यही सवाल होता है कि Package क्या है .. कितना है … पर हमारी ये मैडम जी भी महान है … इन्होनें शादी की है बेटे की और खुशी खुशी बता रही है कि बहुत सारा कैश, प्लैट , गहने और कार के साथ पैकेज में बहू आई है फ्री… फ्री … फ्री … क्या कहेंगें ऐसी मानसिकता को.. दहेज का लालच हमारे देश से खत्म क्यों नही हो रहा … या हम लोग ही इसे खत्म नही करना चाह्ते … कोई भी शादी हो या सगाई का समारोह… हम शादी मे मिली चीजों की नुमाईश करते नजर आते हैं … बहुत शर्म आती है लोगों की मानसिकता पर
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अक्सर लोग कहते हैं कि जिनकी शादी नहीं हुई, वे खुशनसीब और खुशहाल हैं। उन्हें तनाव कम है। जिनकी शादी हो गई है, वे तनाव में रहते हैं, कई तरह की पारिवारिक परेशानियों में रहते हैं, उन्हें पैसे की ज्यादा जरूरत रहती है, वगैरह! जिनकी शादी नहीं हुई है, उन्हें भी पैसे की कम जरूरत नहीं होती। हमारा समाज अविवाहित लड़कों की पूरी योग्यता उनकी कमाई से नापता है। उनकी कमाई की ऊंचाई के दायरे में ही समाज उनका मान-सम्मान करता है। परिवार का प्यार भी उनकी कमाई की लंबाई-चौड़ाई के अनुपात में घटता-बढ़ता रहता है। उनके लिए दहेज भी उनकी कमाई के ग्राफ के हिसाब से तय होता है। इसलिए आज माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता बेटे की नौकरी हो गई है।
अगर कोई योग्य और समझदार लड़का किसी कारणवश पैसा नहीं कमा पाता है या कम कमाता है, तो उसकी शादी में कई तरह की बाधाएं आती हैं। जबकि एक कम पढ़ा-लिखा और पोंगापंथी लड़का ज्यादा पैसा कमा रहा है, तो उसकी शादी उससे ज्यादा योग्य लड़की से हो जाती है। हमारे समाज के लिए यह सब सामान्य है। लेकिन इस प्रवृत्ति के कारण और परिणाम पर विचार करें तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आएंगे। पैसे की किल्लत और उसके चलते जलालत कई युवाओं को आत्महत्या तक के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर देती है। बेरोजगारी का आलम यह है कि योग्यता के अनुरूप काम की क्या कहें, काम के अनुरूप पैसे भी नहीं मिलते हैं। कुंवारे ही अभी सबसे ज्यादा भटकाव और टकराव झेल रहे हैं- पद, पैसा और प्यार के मोर्चे पर।
पद पाने के लिए वे किसी भी तरह का समझौता कर लेते हैं। कहीं भी, कैसे भी और कैसी भी, बस एक नौकरी मिल जाए! एक नौकरी एक युवा की पूरी जिंदगी की दशा-दिशा नियंत्रित करने लगी है। इसी के लिए वे आसानी से भ्रष्टाचार के शिकार भी हो जाते हैं। इसके बाद भ्रष्टाचार का यह घुन उन्हें ऐसे खाता जाता है कि प्रथम श्रेणी का अधिकारी बनने के बाद भी एक अच्छे-खासे पढ़े-लिखे युवा को जेल जाने की नौबत तक आ जाती है, क्योंकि पद के साथ-साथ पैसे का खुमार युवाओं को अंधा कर देता है। वे जायज-नाजायज में फर्क नहीं कर पाते। रातों-रात अमीर बनने और ऐशो-आराम की जिंदगी जीने की ललक उन्हें एक ऐसे अंधे कुएं में ले जाती है, जहां से निकलने का शायद ही कोई रास्ता हो। Read more…
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