रवीश कुमार और प्राईम टाईम – मैं अक्सर रात नौ बजे NDTV का प्राईम टाईम देखती हूं दूसरे चैनलों की चिलम चिल्ली से अलग अक्सर रवीश जी का प्राईम टाईम कार्यक्रम एक सुकून सा देता है… उनका लगातार बोलने का तरीका अन्य एंकर्स से अलग कैटागिरी में खडा करता है. कल रात भी कुछ ऐसा ही हुआ. चैनल लगाया तो स्क्रीन काली थी और रवीश जी बोल रहे थे… बोल क्या रहे थे सच्चाई बया कर रहे थे. जिसे हम लोग लगभग हर रोज बेहद खिन्न और दुखी मन से अपने फेसबुक , Google , Twitter पर लिखते हैं ऐसे में इतने बडे चैंनल के एक सीनियर जर्नलिस्ट का इस तरह से बोलना वाकई हिम्मत का काम है… यकीन मानिए कार्यक्रम खत्म होते होते तक मैं खुद भी इमोशनल हो गई क्योकि जिस तरह से उन्होनें अपनी बात रखी काबिले तारीफ थी.
रवीश कुमार और प्राईम टाईम
बहुत सोचने की बात है कि क्या बोलने की आजादी में कुछ भी दिखाना क्या सही है ?? क्या जरुरी नही है कि खबर दिखाने से पहले पडताल की जाए और जब तक नतीजा न निकले खबर होल्ड पर रख दी जाए… मैं खुद भी दस साल न्यूज चैनल की रिपोर्टर रही हूं और जानती हूं कि खबर किस तरह से सनसनीखेज बना कर परोसी जाती है…
Prime Time के रवीश कुमार …
बेशक उन दिनों (2003 -4 ) में, जब मैने इस क्षेत्र मे कदम रखा था तब इतना बुरा हाल नही था शायद नेट इतना सक्रिय नही था इसलिए खबरे टेप से बस में भिजवाते और अगर कोई ब्रेकिंग न्यूज होती तब उसका हम फोनो दिया करते थे…. पर जब छोटे छोटे चैनल उभर आए और चैनल भी राजनेताओ के … फिर खबरें राजनैतिक होती चली गई… खबरों के भी खेमें बन गए कि खबर फलां खबर देखनी है तो फलां चैनल देखो … खबरें बटंती चली गई और ना सिर्फ चैनल वालो पर ब्लैक मेल के इल्जाम लगे बल्कि उंगलिया भी उठने लगी..
मुझे याद है जब मैं ज़ी न्यूज में थी तब एक बार कुछ गांव वाले किसी खबर के सिलसिले मुझसे मिले और 1500 रुपए देने लगे..मेरे पूछ्ने पर कि किस बात के तो उन्होने बताया कि खबर चलाने का ये रेट है इसलिए… मैं हैरान रह गई… उन्हें पैसे वापिस करते हुए मैने बताया कि खबरों का कोई रेट नही है… यह फ्री है हमें बस आपकी खबर अपने डेस्क तक पहुंचानी हैं अगर उन्हें ठीक लगी approve हो गई तो हम खुद आपके गांव में ही खबर कवर करने आएगें… और वो खुश होकर चले गए…
इसके बाद मुझे पता चला कि लोकल स्तर के बहुत से पत्रकार बडे चैनल में होने का फायदा उठाते हैं. चैनल पर न होने के बावजूद भी या तो कार पर चैनल का स्टीकर लगा लेंगें या फिर खबर बनाने के पैसे मांगेगें… इस तरह से छोटी पत्रकारिता का बाजार गर्म था.
और अगर आज के सन्दर्भ की बात करुं तो आज खबरों का हाल ही बुरा है… छांट छांट कर खबरें एक से बड कर एक धटिया खबर लाते हैं.. फलां नेता ने क्या बयान दिया. टवीटर पर क्या रिएक्शन आया और फिर उसी को बहस का मुद्दा बना लेते हैं और बेसिर पैर के अर्थहीन मुद्दे अधर में ही लटके रह जाते हैं.
हैरानी इस बात की भी होती है कि 24 घंटे चलने वाले चैनलों के पास विज्ञापन दिखाने का बहुत समय होता पर जब कोई गम्भीर मुद्दे पर हो रही बहस किसी निर्णायक मोड तक पहुंचती हैं तो उनके पास समय खत्म हो जाता है यानि कुल मिलाकर मुद्दा टीआरपी बटोरना होता है
पर वाकई जिससे देश को सरोकार है उन खबरों से उनका कोई सरोकार नही, लोगो के प्रति, देश के प्रति कोई हमदर्दी नही बस टीआरपी के चक्कर में कुछ भी अंट शंट, बेकार, सिरदर्द !!
जहां तक मेरा विचार है चिल्मचिल्ली की परम्परा को अरनव गोस्वामी ने शुरु किया उससे पहले चैन से सोना है तो जाग जाओ वाले सनसनी के एंकर श्रीवर्धन त्रिवेदी भी ऐसे ही खबरे पेश करते थे पर क्योकि उनकी खबरें सनसनी वाली होती थी इसलिए ज्यादा फर्क नही पडा पर अरनव की राह पर अपनी अलग पहचान बनाने बहुत पत्रकार चल पडे और फिर सभी चैनल में चिल्लाने की होड सी लग गई कि कौन ज्यादा और कितनी देर तक चिल्लाएगा और आज रवीश जी ने जब प्राईम टाईम के माध्यम से मुद्दा उठाया तो अच्छा लगा… आखिर तक पहुंचते पहुंचते पता नही पर मैं भी भावुक हो गई … शायद प्रस्तुति ही ऐसी होगी..
निसंदेह खबरे हमारी विचार धारा में जबरदस्त बदलाव लाती हैं इसलिए अगर ये चैनल वाले, वाकई, देश की दिशा को बदलना चाहते हैं तो निष्पक्ष खबरें, सच्ची खबरें, प्रमाणित खबरें दिखानी होगी.. अन्यथा जिस गर्त में हम गिरते जा रहे हैं क्या परिणाम होगा सोचा भी नही जा सकता …
रवीश कुमार जी आपको शुभकामनाएं !!
BBC
हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी के प्राइम टाइम एंकर रवीश कुमार ने शुक्रवार को प्रसारित अपने शो में टीवी स्क्रीन काली कर दी और भारतीय मीडिया में होने वाली बहसों पर सवाल खड़े किए.
उन्होंने तर्क दिया की टीवी दर्शकों को अंधेरे में ले जा रहा है और बहसों के शोरगुल में असल मुद्दे गुम हो रहे हैं.
कार्यक्रम शुरू होने के कुछ मिनट बाद ही रवीश कुमार ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फ़ेसबुक पर लिखा, “मुझे रवीश कुमार पर गर्व है.”
आप कार्यकर्ता अतीशी मारलीन ने लिखा, “रवीश कुमार को इतिहास हमारे मुश्क़िल दौर के एक साहस और स्पष्टता वाले पत्रकार के रूप में याद रखेगा.” Read more…
रवीश कुमार और प्राईम टाईम per वैसे आप क्या कहना चाहेंगें … आप की प्रतिक्रियाओं का स्वागत है…
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