चलो स्कीम बनाए
ये व्यंग्य दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ. बाजार में त्योहार आते नही कि स्कीमें शुरु हो जाती है. फलां के साथ फलां फ्री आदि अब शापिंग की शौकीन महिलाओ को स्कीम के तहत कुछ भी फ्री का मिले तो खुश होना स्वाभाविक ही है पर स्कीम का अंत होता क्या है बेशक स्कीम का स्कैम स्मैक की तरफ फैलता है पर अंत मे रह जाता है सिर्फ स्मोक ही स्मोक …
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