बाल कहानी- भईया – कहानियां पढनी या सुननी हम सभी को अच्छी लगती हैं कुछ कहानियां मनोरंजन करती हैं तो कुछ कहानियां बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं तो कुछ कहानियां रिश्तों की नींव को मजबूत बनाती हैं … मेरी ये कहानी भईया दो भाईयों के प्यारे से रिश्ते की कहानी है …
बाल कहानी- भईया
दोपहर का एक बजा है। मैं चिलचलाती धूप में स्कूल से लौट रहा हूं। मेरा नाम मनन है और आठवीं क्लास में पढ़ता हूं। मेरा परिवार मध्यवर्गीय परिवारों में गिना जाता है। हमारे पास अपनी कार, घर और सुविधा का सामान है। मम्मी-पापा दोनों काम पर जाते हैं। एक भार्इ है जो कुछ दिनों पहले होस्टल चला गया है और अब उसे वहीं रह कर पढ़ार्इ करनी होगी…
अचानक साइकिल चलते-चलते भारी हो गर्इ। मैंने रूक कर देखा तो पिछला टायर पंक्चर हो गया था। पैदल ही साइकिल को लेकर चलने लगा। कुछ ही दूरी पर साइकिल की दुकान थी. पहले पहल तो मैं साईकिल पर भईया के पीछे बैठकर स्कूल जाया करता था। भर्इया साइकिल चलाते थे। लेकिन जबसे मेरे दोस्तों ने मुझे चिढ़ाना शुरू किया तो मैंने साईकिल छोड कर स्कूल बस लगवा ली थी।
भर्इया साइकिल पर जाते और मैं बस से। दोनों अलग-अलग आते और अलग-अलग जाते। आपस में कामिपीटिशन करते कि कौन पहले घर पहुंचता है। घर पहुंचकर रिमोट हथियाना होता था। फिर शुरू होता था लड़ार्इ का दौर। मम्मी-पापा समझा-समझाकर हार जाते।
हमारे लड़ने-मनाने-रूठने का क्रम जारी रहता। भर्इया के होस्टल जाने के बाद मैंने बस छोड़कर साइकिल से जाना शुरू कर दिया था। अचानक ध्यान टूटा तो देखा सामने साइकिल वाले की दुकान आ गर्इ थी। मैंने उसे पंक्चर देखने को कहा और हैंडिल से पानी की बोतल निकालकर उसे पीने लगा।
अब कितने आराम से पानी पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था और पीते-पीते सोचने लगा कि अब कितने आराम से पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था तो घर में तूफान खड़ा हो जाता। लेकिन अब लड़ने वाला कोर्इ नहीं है। न चाहते हुए भी मेरी आंखें गीली हो गर्इं। जल्दी से आंखें पोंछी। स्कूल से बच्चे घर जा रहे थे। कुछ के भार्इ उन्हें लेकर जा रहे थे, तो किसी की मम्मी स्कूटी पर, वहीं कुछ भार्इ-बहिन पैदल बातें करते जा रहे थे। मैं इस भीड़ में स्वयं को अकेला महसूस कर रहा था।
भर्इया जब होस्टल जा रहे थे तो मैं कितना खुश था कि अब तो पूरे कमरे, कम्प्यूटर रिमोट, कुर्सी-मेज, अलमारी और साइकिल पर सिर्फ मेरा अधिकार होगा। कोर्इ रोकने-टोकने वाला नहीं होगा। तभी साइकिल वाले ने टोका, कोर्इ पंक्चर नही है। हवा भर दी है। सच पूछो तो अगर भर्इया घर पर होता तो सारा इल्जाम मैं उसी पर लगाता कि भर्इया ने ही साइकिल की हवा निकाली होगी।
खैर, मैं दुबारा साइकिल पर सवार होकर घर चल पड़ा। मम्मी दरवाजे पर खडी इंतजार कर रही थी। मैंने मम्मी को बताया कि साइकिल की हवा निकल गर्इ थी, इसलिए देर हो गर्इ। कमरे में आकर मैं कपड़े बदलने लगा। कमरा साफ-सुथरा था। सब कुछ व्यवसिथत। मम्मी ने खाना लगा दिया। टीवी चलाते हुए मम्मी ने कहा, तुम्हारा मनपसंद कार्टून चैनल लगा दूं। मैंने कहा, कुछ भी लगा दो मेरा मन नहीं है। मम्मी हैरान थी कि कहां मैं सारा दिन लड़ार्इ करके अपनी पसंद का चैनल लगा लेता था और अब देखने का मन नहीं है।
होस्टल से भर्इया जब पहली बार घर आया तो मैंने महसूस किया कि वो कुछ कमजोर सा हो गया है। पर उसे कुछ नहीं कहा। उसे तो मैं वैसे ही चिढ़ाता रहा और महसूस नहीं होने दिया कि मैं बोर भी होता हूं और मुझे उसकी याद आती है। घर पहले की तरह लड़ार्इ से गूंज उठा। वही सुबह बाथरूम पहले जाने की होड़, फिर नाश्ते में पहला परांठा किसका होगा, इस बात पर तकरार……। दो-तीन दिन रहकर भर्इया चला गया। मैं उसे बाय कहने के लिए भी नहीं उठा। हां, अपनी घड़ी में अलार्म जरूर लगा दिया था ताकि वो समय से उठ जाए और उसकी बस न छूटे।
मैं जानता हूं कि भर्इया पढ़ार्इ के मामले में बहुत सनकी हैं। अभी तक सभी कक्षाओं में वह प्रथम रहता आया है। आधा नम्बर भी कट जाता था तो भर्इया घर आकर खाना नहीं खाता था। भर्इया के होस्टल पहुंच जाने पर फोन आया तो मैंने बात नहीं की। मम्मी ने सोचा होगा कि अपने भर्इया से आखिर मैं बात क्यों नहीं कर रहा पर सच पूछो तो मुझे भी नही पता कि भर्इया के जाने से मैं खुश हूं या उदास। कभी-कभी भर्इया का फोन मैं उठाता हूं तो रिसीवर मम्मी या पापा को पकड़ा देता हूं। भर्इया होस्टल में बीमार भी हो गया था, पर मैंने उसकी तबियत नहीं पूछी। मुझे याद है पहले जब मुझे बुखार होता था तो रात को भर्इया मेरा माथा टटोलता कि बुखार ज्यादा तो नहीं हो गया।
खाना खाकर मैं पढ़ने बैठ गया। बहुत देर से एक सवाल हल नहीं हो पा रहा था। अब किसी पर गुस्सा भी नहीं कर सकता कि भर्इया पढ़ने नहीं दे रहा। हालांकि भर्इया चुटकियों में सवाल हल कर देता था। मैं किताब बंद करके लेट गया। मम्मी भी मेरे पास आकर लेट गर्इ। मम्मी की आंखों में मैंने बहुत बार आंसू देखे हैं, पर कभी कुछ नहीं बोला…….।
मम्मी ने अब काम पर जाना कम कर दिया है। शायद मेरी वजह से कि कहीं मुझे अकेलापन खलने न लग जाए। पापा हमेशा की तरह काम में व्यस्त रहतें हैं। हां, मेरे लिए खाना खाते समय मुझसे बातें करते रहते हैं। पर मेरा ध्यान उस समय टेलीविज़न में ही होता है।
भर्इया की पांच साल की होस्टल की पढ़ार्इ है। चाहे मैं बाहर से लड़ाका या गुस्सैल या जैसा भी हूं, पर मेरा ध्यान हरदम मेरे भर्इया में रहता है। शायद मम्मी-पापा इस बात को नहीं समझेंगे। मेरे दिल से सारी शुभकामनाएं मेरे भर्इया को हैं। वो अब भी हर साल प्रथम आए और जो बनना चाहता है वो बने। लेकिन मुझे भर्इया की याद आ रही है, भर्इया घर कब आएंगे……..। मैं आज भी अपने मुंह से कुछ नहीं कहूंगा…..। और मैं दुबारा उठकर सवाल हल करने में जुट गया कि भर्इया हल कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं………….।
बाल कहानी- भईया
ये कहानी बाल कहानी- भईया दिल के बहुत नजदीक है पता नही लिखते हुए कितनी बार आंंखे भर आई और इसे जब भी पढती हूं तो भी आखें नम हो जाती है … !!! सच बताना कि आपको कैसी लगी???
बाल कहानी- भईया
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