Suicide of a News
एक खबर की खुदकुशी …
Suicide of a News जंतर मंतर पर किसान रैली चल रही थी और मैं अन्य दर्शकों की तरह टीवी पर खबर देख रही थी. बेशक, बीच बीच में चैनल भी बदल रही थी कि अचानक कुछ ऐसा दिखाया जाने लगा कि रिमोट एक तरफ रख कर मैं नाखून चबाते हुए रैली का प्रसारण लगातार देखने लगी. यकीनन नजरे मेरी थी पर मीडिया की आखों से देख रही थी जो दिखाया जा रहा था वही देख रही थी और देखते देखते मेरे मन मे सिर्फ एक ही बात आ रही थी प्लीज केजरीवाल जी, भाषण बंद कीजिए और उस किसान के साथ अस्तपाल जाईए… और फिर बार बार बार बार कुमार विश्वास का सीन दिखाना लटक गया के बाद उनका इशारा करना … दिमाग खराब हो चुका था कि यह सब आम आदमी पार्टी कर रही है फिर आशुतोष का यह कहना कि अगली बार ऐसा होगा तो … बार बार दिखाए जाने पर मेरा मन आम आदमी पार्टी के प्रति बिल्कुल बदल चुका था. खुद भी पत्रकार रही हूं इसलिए हर बात को गौण करते हुए एक ही बात बार बार मन मे आ रही थी कि केजरीवाल जी को उस समय पेड के पास चले जाना चाहिए था या भाषण रोक कर मंच से ही अपील करनी चाहिए थी जैसाकि मोदी जी ने एक रैली के दौरान दो युवको से की थी (ये भी मैने एक खबर में देखा था) पर पता नही उस समय मंच पर क्या चल रहा था क्या नही पर जो हुआ ठीक नही हुआ और मन में कडवाहट् भर गई.
Suicide of a News सारे चैनल आप पार्टी को दोष देने लगे और उनका लगातार इसी खबर पर फोकस रहा. फिर धीरे धीरे पता चला कि मृतक व्यक्ति आर्थैक रुप से कमजोर नही थे जो उनकी आत्महत्या की वजह बनता. जो पर्ची चैनल वाले को मिली उस पर यही लिखा था कि उनके पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया था. खेती उजड गई है. तीन बच्चे हैं अब वो घर वापिस कैसे जाए. अब यह बात भी सामने आ रही है कि वो लिखावट उनकी नही थी. तो पत्र किसने लिखा ??? एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक मरने से कुछ देर पहले तक उन्होने पेड पर से बहुत पोज दिए. पेड पर बैठे बैठे चिल्ला भी रहे थे अपना ध्यान लोगो की तरफ करने के लिए उन्होनें गले मे गमछा लपेट कर दूसरा सिरा टहनी से कस दिया ताकि वो फोकस मे आ जाए पर इस बीच उनका दाया पैर फिसल गया. और जो हुआ हमारे सामने है. निसंदेह जो हुआ बहुत दुखद था.
घटना से कुछ देर पहले उन्होनें फोन करके अपने घर यह भी सूचना दी थी कि वो रैली वाली खबर पर टीवी पर आएगें. अब बात आती है मंच पर बैठे लोगो की. जिनके अनुसार पेड पर क्या हो रहा है दिखाई नही दे रहा था पर हलचल जरुर हो रही थी. लगातार मृतक व्यक्ति पोज दे देकर फोटो भी खिंचवा रहा था जोकि हम सभी ने टीवी पर देखा. मेरा प्रश्न आप सभी से ये है कि जो लोग उस समय उस व्यक्ति के पास खडे थे जो उसे देख रहे थे चाहे पब्लिक हो, पुलिस हो क्या उनका कुछ फर्ज नही था. क्या मीडिया वाले उसे नीचे लाने की अपील नही कर सकते थे … कि सभी को चटपटी खबर मिल रही थी इसलिए मजा ले रहे थे. मेरे विचार से ,मंच पर बैठे लोगो से पहले गुनहगार वो लोग हैं जो उस व्यक्ति को देख कर फोटो ले रहे थे, देख रहे थे और मसालेदार खबर बना कर पेश करे जा रहे थे.
जाने माने पत्रकार राहुल कंवल ने टवीट किया कि जो पत्रकार नेताओ पर आरोप लगा रहे हैं वो जरा देर रुके और खुद से पूछे कि हममें से कोई उस वक्त कोई मदद के लिए आगे क्यों नही आया.
मात्र एक पार्टी को निशाना बना कर राजनीति करना सही नही है आप पार्टी अपनी गलती मान रही है और रो भी रही है पर इससे भी चैनल वाले संतुष्ट नही. कल फिर एक चैनल वाला साईट पर खडा होकर बता रहा था कि मंच से ये पेड बहुत दूर था. कुछ दिखाई देन असम्भव नही था. क्या ये बात वो पहले दर्शको तक नही पंहुंचा सकते थे इतना ही नही एक चैनल वाले ने बताया कि वो वसुंधरा राजे , भाजपा के खिलाफ नारे बाजी कर रहा था. जिस बात को उछाला नही गया पर वही आज तक पर आशुतोष फफक कर रो पडे और अंजना संवेदनहीन होकर प्रश्न पूछती रही. बार बार बार बार यही दिखाया गया. वही कांग्रेस और भाजपा की प्रसन्नता मन ही मन छिपाए नही छिप रही क्योकि अब खुले आम उन्हें आप पर ऊंगली उठाने का मौका मिल गया.
कुछ देर पहले एक बहुत छोटी से खबर दिखाई कि मृतक के परिवार वाले कह रहे थे हमे जबसे ये खबर दिखाई है कि आप पार्टी बार बार पेड पर चढे व्यक्ति कि उतारने की अपील कर रही थी. पुलिस को बोल रही थी. अब हमे लग रहा है कि उनका कसूर नही है…बताईए … क्या कहेंगें… क्या न्यूज चैनल को दोनो तरफ के पक्ष रख कर खबर नही दिखानी चाहिए क्या खुद ही वकील और जज बन कर सारे फैसले सुनाएगी. एक खबर की असलियत कही दफन हो गई और राजनीति जबरद्स्त रुप से हावी हो गई. एक बार फिर एक खबर की आत्महत्या हो गई .. Suicide of a News
वही चिडिया किसानों की भावना समझ कर फसल न खाने की बात कर रही है …