Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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You are here: Home / Archives for कार्टूनिस्ट

August 24, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

काम वाली बाई और सीसीटीवी कैमरा

Cartoon maid by monica Gupta

Cartoon maid by monica Gupta

काम वाली बाई और सीसीटीवी कैमरा

Kaamwali bai aur CCTV Camera हमारे देश में काम वाली बाई, maid servant  की बहुत value  है  क्योकि इसके बिना हम बेजान हैं पर आजकल जिस तरह से काम वाली बाई और चोरी करने या फिर बच्चों की देखभाल सही न करने की खबरे सामने आ रही है एक तसल्ली है कि सीसीटीवी कैमरा है इसलिए कोई डर नही .. उसे अपना काम सही प्रकार से करना ही पडेगा पर काम वाली बाई ने एक condition यानि शर्त रख दी कि अगर घर पर सीसीटीवी कैमरा लगवाया तो वो काम छोड देगी …

अब चिंता इस बात की है कि क्या करें …

ऑडियो – काम वाली बाई – व्यंग्य – मोनिका गुप्ता – Monica Gupta

क्लिक करिए और सुनिए आप बीती मोनिका गुप्ता का नमस्कार आज मैं आपको व्यंग्य सुनाने जा रही हूं जिसका शीर्षक है काम वाली बाई है मेरे पास !!!! …सुनने  से पहले प्लीज ध्यान दें ….इस व्यंग्य की सारी बाते सच्ची धटना पर आधारित है और इसका किसी व्यक्ति,स्थान उम्र से अगर मेल हो तो इसे कोई हैरानी बात ना होनी चाहिए… जी.. read more at monicagupta.info

कामवाली बाई , छुट्टियां और तनाव – Monica Gupta

कामवाली बाई और मनोरंजक कार्टून कामवाली बाई , छुट्टियां और तनाव Weekend holiday package of Kaamwali bai बेशक , कामवाली बाईयों पर बने कार्टून हमेशा मनोरंजक लगते हैं पर असल जिंदगी में बहुत तनाव पैदा कर देते हैं.. अब देखिए ना हमारी कामवाली बाई internet पर holiday package सर्च करने की बात कर रही है…पर इसे कौन बताए कि इसके बिना कितनी दिक्कत हो जाएगी… कैसे बैठ पाऊंगी सारा सारा दिन में read more at monicagupta.info

 

अगर आपके पास कोई आईडिया है तो जरुर बताईए !!

August 12, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

एन. रघुरामन- मैनेजमेंट फंडा – एक शख्सियत

एन. रघुरामन- मैनेजमेंट फंडा – एक शख्सियत

Ab Muskil

एन. रघुरामन- मैनेजमेंट फंडा – एक शख्सियत

N Raghuraman Management Funda in Dainik Bhaskar

कुछ साल पहले मैनें बच्चों को प्रेरित करने के लिए एक किताब लिखी थी अब मुश्किल नही कुछ भी और सोच विचार उन नामों पर था जिन्होनें अपना बचपन  बेहद साधारण रुप में यापन किया और आज आसाधारण प्रतिभा बन कर हम सभी का मार्ग दर्शन कर रहे हैं अपनी किताब के लिए मैने जिन आसाधारण प्रतिभाओं का साक्षात्कार लिया उनमें से एक हैं  एन रघुरामन.. हम हमेशा उन का लिखा मैनेजमैंट फंडा पढते हैं पर आज पढिए रघु जी के बारे में…

एन रघुरामन
कहते है कि एक अच्छी किताब सौ दोस्तो के बराबर होती है पर एक अच्छा उत्साहित करने वाला दोस्त हो तो वो तो पूरी की पूरी लाइ्रब्रेरी ही होता है।
जी हॉ, अब जिस शख्सियत से आपकी मुलाकात होगी वो हजारो प्रेरक प्रंसगो और जागरूक करने वाले फंडो की चलती फिरती लाइब्रेरी से कम नही है। मैनेजमैंट फंडा के जनक श्री एन रघुरामन आज किसी परिचय के मोहताज नही है। लेखन के प्रति समर्पित नटराजन रघुरामन मध्य प्रदेश दैनिक भास्कर के स्टेट एडिटर है और समस्त सिटी भास्कर के मुखिया है।

मैनेजेमैंट फंडा के नाम से दैनिक भास्कर में नियमित रूप से कालॅम लिखने वाले रघु जी से जब मिलने का समय लिया तो उन्होने तुरन्त अपने व्यस्त कार्यक्रम से कुछ समय निकाल लिया और फिर शुरू हुआ बातो का सिलसिला। बाते शुरू करने से पहले एक बात मैने महसूस की कि रघु जी सादगी की जीती जागती मिसाल है जिससे भी मिलते है उसे अपना बना लेते है और ऐसा महसूस होने लगता है कि इन्हे तो हम बहुत पहले से ही जानते है।

N-Raghuraman1_f_400x400
13 मई 1960 को तमिलनाडू के तंजौर जिले के कुम्भाकोणम् मे इनका जन्म हुआ। इनकी मॉ जी श्रीमति जय लक्ष्मी गृहणी और पिता श्री वैकेटारामन नटराजन् वर्धा रेलवे स्टेशन जोकि गांधी आश्रम के पास था। उसी रेलवे में कार्यरत थे। रघुजी के दादाजी के भाई डा0 शंंकरन् महात्मा गांधी जी के तमिल टीचर थे।

वाह !!  हैरानी से सारी बात सुने जा रही थी। उन्होने बताया कि इस कारण उनको भी आश्रम मे जाने का और गांधी जी से सम्बधित चीजो को पास से देखने का सुअवसर मिला। बताते बताते उनकी आंखो मे एक अलग सी चमक आ गई। निश्चित तौर  पर यह बात किसी के लिए भी गर्व का विषय हो सकती है.

रघुजी ने बताया कि दिनचर्या मे अकसर वो स्कूल जाने से पहले गांधी आश्रम की झाड़पोछ करते और खुद को भाग्यशाली समझते। सैलानियो के लिए आश्रम आठ बजे खुलता था। तब तक उनके स्कूल जाने का समय हो जाता।
वो बता रहे थे कि बचपन में घर मे आर्थिक रूप से बहुत तंगी थी इसलिए उन्होने 14 साल की उम्र से ही अपने घर का खर्चा चलाने के लिए छोटा मोटा पढाने का काम करने लगे पर पढाई साथ में जारी रही। मैं हैरानी से उनकी बाते सुन रही थी। उन्होनें बताया कि समय ऐसे ही बीत रहा था। कुछ समय बाद गॉव में अच्छा स्कूल ना होने की वजह से उनका परिवार नागपुर जा कर बस गया और स्कूली शिक्षा नागपुर से हुई। मेरे मन मे प्रश्न् उठ रहा था कि कम उम्र में ही उन्होने घर का खर्चा चलाने के लिए काम भी करना शुरू किया पर आखिर लेखन की तरफ कैसे और कब आकर्षित हुए।
इस पर वो मुस्कुराते हुए बोले कि इसको भी अलग ही कहानी है असल में, 1978 में यानि जब वो 18 साल के थे तब उन्होने रोची प्रोडेक्ट में मशीन संचालक के रूप मे कार्यभार सम्भाला। जो सैरीडोन दवाई बनाते थे। मैने फिर बीच मे पूछा कि लेखनी…….। इस पर वो बोले कि वो उसी बात पर आ रहे है काम के दौरान एक बार सैरीडोन दवाई का पैकेट जल गया तो वहा के जी0एम0 श्री डा0 काशीनाथ कॉल ने कहा कि लिख कर सारी जानकारी दो कि ये जला कैसे। जब उन्होने लिख कर दिया तो सारी बाते भूल कर वो उनकी लेखनी से बहुत प्रभावित हुए और उसके बाद लेखन के क्षेत्र मे आगे हो बढ़ते गए।

फ्री प्री जनरल उनका पहला पेपर ग्रुप था जिसमे उन्होने काम करना शुरू किया। बचपन से एक ऐसा माहौल देखा था कि मन मे आता था कि कुछ ऐसा लिखूं की आमजन तक उनकी आवाज पहुचे। इसी बीच लेखन के साथ साथ पोस्ट ग्रेजूएशन की और एम0बी0ए0 की डिग्री  मुम्बई से प्राप्त की।
सन् 2000 में दैनिक भास्कर समाचार पत्र में मैनेजेमैंट गुरू के नाम से कालॅम लिखना शुरू किया और हर दिन लेखो की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिलती रही जिससे हर रोज कुछ नया कुछ अलग लिखने की भावना आती रही। उनके लेख ना सिर्फ पंसद किए जाते बल्कि पाठक उनसे प्रेरणा भी लेने लगे। इसके लिए उन्होने विशेष रूप से दैनिक भास्कर का धन्यवाद किया क्योकि उसके माध्यम से वो निरन्तर अपनी बात रख रहे है।
मै उनकी बाते बहुत ध्यान से सुन रही थी और मैं कुछ पूछने को ही हुई थी कि उनका फोन आ गया और वो दो मिनट का समय लेकर बात करने मे व्यस्त हो गए।
फोन रखने के बाद मेरा प्रश्न तैयार था कि बहुत लोग आपको अपना गुरू या आर्दश मानते है क्या आपके भी कोई प्रेरक है? इस पर वो मुस्कुराते हुए बोले कि जिससे भी चाहे वो बच्चा हो या बडा सीखने को मिले वो उनका गुरू है। वैसे वो श्री सी0के0 प्रहलाद जोकि जाने माने मैनेजेमैण्ट एक्सपर्ट है उन्हे बहुत पंसद करते है क्योकि जमीन से जुडे उनके लेख आम आदमी को बहुत प्रभावित करते है।

इसी बीच फिर से उनका फोन आ गया और वो किसी से बात करने लगे। मेरा अगला प्रश्न तैयार था। फोन रखते ही मैने पूछा कि आपके बचपन की कोई ऐसी धटना जिसे आप कभी ना भूल पाए। उस पर वो बोले कि बाते तो बहुत है पर एक धटना बहुत बड़ी सीख दे गई थी।
एक बार गॉव मे मेला लगा हुआ था। मॉ ने 5 पैसे दिए। मेरी गो राऊड (गोल घूमने वाला) झूले में तीन पैसे का एक चक्कर था। एक चक्कर लगाने के बाद झूले वाले ने कहा कि दो पैसे में वो एक चक्कर और लगवा देगा। वो खुश हो गए और एक चक्कर और लगा लिया। घर लौट कर जब मॉ जी की बताया कि झूले में 5 पैसे लगा दिए दो पैसे बेवजह खर्च करने पर तो बहुत नाराज हुई कि 2 पैसे खर्च करने का अधिकार किसने दिया इसके परिणाम स्वरूप उन्हे 6 धण्टे धूप मे खडे रहने की सजा मिली। बुखार भी हो गया और डाक्टर का खर्चा हुआ वो अलग। पर ये बात बहुत बडा सबक दे गई कि ऐसे ही फिजूल खर्च नही करने चाहिए और बात भी सही है जब तक हम कमाते नही है तब तक इसकी कीमत भी नही पता लगती।
उन्होने बताया कि आज के समय मे जहॉ बच्चे 100-200 रूपये तो ऐसे खर्च कर देते है वहा 2 पैसे की बात सुनकर उन्हे हॅसी ही आऐगी। पर ये भी एक सच है ऐसा लगा कि वो बाते बताते बताते कही खो गए मैने बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा कि बचपन की और क्या बात बहुत याद आती है उन्होने बताया कि मॉ जब अपने हाथ से खाना खिलाती थी तो वो समय बहुत याद आता है। काश वो समय दुबारा आ जाए कहते-कहते वो संजीदा हो गए।

मैने बात बदलते हुए पूछा कि चलिए खाने की बात चली है तो खाने मे क्या-क्या पंसद है । तो उन्होने बताया दही, चावल अचार बहुत पंसद है और अगर पूरे साल सिंर्फ यही मिले तो भी वो बहुत शौक से खा सकते है बताते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान दौड गई। मैने जानना चाहा कि उनकी दिनचर्या कैसी रहती है तो उन्होने बताया कि सुबह 5.30 बजे उठाना और 6 बजे से 8 बजे तक अखबार पढ़ना और सैर करना रहता है और इसी बीच विचारो की उथल पुथल होती रहती है और वही समय लेखन के लिए उपयुक्त होता है।
मैने मुस्कुराते हुए पूछा कि हम अपने मनोरंजन और ज्ञानवर्धन के लिए आपके लेख पढ़ते है पर आप इसके लिए क्या करते है कोई फिल्म वगैरहा या इस पर वो बोले कि फिल्मो मे तो ज्यादा रूचि है नही पर लेखन के लिए फिल्म देखनी पड़ती है और पसंदीदा गाना पूछने पर उन्होने बताया कि एम0एस0 सुब्बालक्ष्मी का भजन भज गोविंदम् प्रार्थना है। जब कभी भी सुनते हैं तो रोंगटे खडे हो जाते है और बार बार सुनने का मन करता रहता है।
मेरे पूछने पर कि आप दक्षिणी भारतीय है कौन सी जगह भारत की पसंद है उन्होने मुस्कुराते हुए कहा कि सभी जगह उन्हे बहुत पसंद है फिर मेरे एक प्रश्न पूछ्ने  पर कि जिंदगी में हमेशा  उतार-चढाव और टेंशन  आती रहती है। तनाव के वक्त खुद को कैसे कूल रखते है… उन्होने सहज होते हुए कहा कि टेंशन होने पर टेंंशन मे रहने से कोई नतीजा नही निकलता।

उन्होने बताया कि अब इस समय उनकी बेटी अस्पताल मे भर्ती है तबियत ठीक नही है और वो उसके पास नही है पर टेंशन लेने से ना तो वो ठीक हो जाऐगी और न ही वो ठीक रह पाऐगें। हां  इतना जरूर है कि उन्होने सभी अपने डाक्टर मित्रो को बोल दिया है और वो लगातार उनसे फोन पर सम्पर्क बनाए हुए है और उसकी तबियत की जानकारी दे रहे है।
सच पूछो, तो अब मैं थोड़ी असहज हो गई क्योकि मुझे लगा कि शायद ये सही समय नही है उनसे बात करने के लिए। तो उन्होने कहा कि कोई दिक्कत ही नही है आप अपना अगला प्रश्न पूछिए।

मैने मुस्कान लाते हुए पूछा कि बचपन मे आपने कोई सपना देखा था। उन्होने बताया कि बचपन में बहुत गरीबी देखी थी इसीलिए बस यही सपना देखता था कि बडे होकर आराम की जिंदगी जीउ, इसीलिए बचपन से ही दिन रात मेहनत शुरू कर दी। 14 साल की उम्र से काम मे लग गया। आज ईश्वर की कृपा है कि उन्होने मेरी प्रार्थना सुन ली और उनके बच्चे को वो सब नही देखना पडा जो उन्होने देखा।

अब बच्चे का भविष्य खुद बच्चो पर निर्भर है कि वो अपना आने वाला कल कैसे बनाते है। बिल्कुल सही बात है। मै उनकी बात से सहमत थी।
मै जानना चाह रही थी कि उनके परिवार में और कौन कौन है और परिवार को कितना वक्त दे पाते है इस पर वो बोले कि उनकी पत्नी प्रेमा है, प्यारी सी बिटिया है और पिक्सी नाम की डॉगी है पर जहॉ तब वक्त देने की बात है.

सच मे, व्यस्तताएॅ इतनी ज्यादा है कि वो ज्यादा समय परिवार को नही दे पाते। पर जब भी समय मिलता है तो उनका सारा समय परिवार के साथ ही बीतता है और कहते कहते मुस्कुराने लगे।
मेरा अगला प्रश्न भी तैयार था कि भविष्य को लेकर आपका क्या सपना है इस पर वो मुस्कराते हुए बोले कि अच्छा सवाल है वो अक्सर सोचते है कि उनके इस दुनिया से अलविदा कहने के बाद जब लोग आएगे तो क्या बात करेगे कि अच्छा हुआ एक बुरा आदमी दुनिया से चला गया । बहुत दुख हुआ। उन्होने बच्चो और बड़ो से बहुत ज्ञान बांंटा पर अब शून्य ही रह गया ।

फिर खुद ही मुस्कुराते हुए बोले कि वो जानते है कि अभी वो उस रास्ते से कोसो दूर है जब लोग उनके बारे मे अच्छा बोलेगे पर इतना यकीन है कि वो कम से कम सही रास्ते पर तो है।
इसमें कोई शक नही कि अपने लेखन से वो पाठको को हर रोज कुछ ना कुछ नया सन्देश दे रहे है। सन्देश से मुझे याद आया और मैं पूछ बैठी कि बच्चो को क्या संदेश देना चाहते है तो वो कुछ सोचने की मुद्रा मे बोले कि आज के बच्चे बहुत समझदार है उनके सपने वो जानते है कि उन्हे क्या करना है पहले साधन नही थे। आज उनके पास सभी साधन और सुविधाए है बस उसका इस्तेमाल सही ढ़ग से करना होगा। सीधे शब्दों  मे कहे तो चीनी, चावल उनके पास है खीर कैसे बनानी है यह उन्हे सोचना होगा।

नींव उनके पास उस पर महल कैसे खडा करना है उन्हे विचारना होगा ताकि आने वाली पीढी के लिए रास्ता खुला रहे। हम सभी को उन्हे प्रोत्साहित करना होगा, पीठ थपथपानी होगी ताकि वो मीलो आगे जा सकें। बस अपने से बडो का आदर मान कभी नही छोडना चाहिए। जो बच्चे अपने अभिभावको का आदर करते है देख कर बहुत खुशी होती है उन्होने सभी बच्चो को शुभकामनाए दी और कहा कि अपने माता पिता बडे बुर्जगो की सेवा करते, आशीर्वाद  लेते अपने लक्ष्य की ओर बढो फिर देखो सफलता आपके कदमो मे होगी।
फिर उनका फोन आ गया और वो फोन पर बात करने मे व्यस्त हो गए और मैं भी अपने कागजो को समेटने लगी क्योकि बहुत सारी जानकारी उनसे ले ली थी। बस एक आखिरी प्रश्न  पूछना रह गया था कि उनकी भविष्य मे क्या योजनाए है फोन पर बात करने के बाद वो समझ चुके थे कि मैं कुछ पूछना चाह रही हॅू प्रश्न  सुनने के बाद वो बोले कि वो दिन रात इसी प्रयास में जुटे है कि लेखन के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगो के बीच मे रह कर उन्हे जागरूक और प्रेरित करते रहे।

nraghu ji

 

चार किताबे भी लिखी है और दूसरी किताबो पर काम चल रहा है इसी सिलसिले ने ना सिर्फ देश के अन्य शहरो मे बल्कि विदेशो में भी दौरे लग रहे है और लोगो के स्नेह देखकर वो भी बहुत उत्साहित है मुझे जाने के लिए उठता देख उन्होनें कहा कि आपके बिना प्रश्न पूछे एक बात का मैं जवाब देना चाह्ता हूं कि  उनकी बिटिया अब ठीक है अभी फोन पर बात हुई है । उनकी बात सुनकर मै मुस्कुरा उठी।
मैने उन्हे सुनहरे भविष्य की ढेर सारी शुभकामनाए दी और वहा से रवाना हो गई ।जाते जाते मैं सोच रही थी कि सादा जीवन उच्च विचार रखते हुए रघु जी आज निसन्देह एक चमकते सूरज के समान अपनी किरणो रूपी बातो और लेखो से हम सभी में एक नई स्फूर्ति भर रहे है। यही सोचते सोचते मै आगे बढ़ गई।

कैसा लगा आपको उनका ये साक्षात्कार ?? जरुर बताईएगा !!

July 19, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

हिंदी ब्लॉगर- ब्लॉगिंग और मेरा Passion

हिंदी ब्लॉगर- ब्लॉगिंग और मेरा Passion

ब्लॉगर मोनिका गुप्ता. बात ज्यादा पुरानी भी नही जब मैंने इंटरनेट की दुनिया में सहमे सहमे प्रवेश किया. मन में जहां बहुत उत्साह था वही एक डर भी था कि न जाने ये दुनिया कैसी होगी ? गूगल प्लस, फेसबुक, टवीटर, आदि बहुत सी साईट्स ने आकर्षित किया पर सबसे ज्यादा मैं ब्लॉग शब्द से प्रभावित हुई.

एक मित्र फेसबुक पर खुद को  ब्लॉगर के नाम से खुद को सम्बोधित करते तब बहुत अच्छा लगता पर सोचती भी कि आखिर ये ब्लॉग होता क्या है जैसे जैसे जाना वैसे वैसे अंदर बैठा लेखक हिलोरे लेने लगा ,बेशक समाचार पत्रों, बाल साहित्य पत्रिकाओं में ढेरों लेख, कार्टून कहानियां छ्प चुके हैं पर फिर भी बहुत रचनाए ऐसी होती थीं जो सम्पादक महोदय के डेस्क से धन्यवाद सहित वापिस आ जाती थी…

बेशक, सम्पादक महोदय के ज्ञान पर मुझे कोई संशय नही होता पर पर्सनल तौर पर वापिस आई रचना इतनी बुरी भी नही होती थी.. मुझे ब्लॉग देख कर लगा कि अब मैं सब कुछ लिख कर प्रकाशित कर पाऊंगी… यकीनन, जिम्मेदारी भी बहुत है क्योकि हम लेखक भी हैं, सम्पादक भी हैं और प्रकाशक भी है … !!

 मोनिका गुप्ता

मोनिका गुप्ता

 

29. 11. 2012 की बात है जब मैनें अपना blog  बना कर लिखना शुरु किया  और आज की तारीख में 1,308 यानि एक हजार तीन सौ आठ पोस्ट हो चुकी हैं और अगर इंडिया में रैंकिंग देखी जाए तो Alexa Traffic Ranking IN में बीस हजार से कम है और पूरी दुनिया में 2, 56,667  है . मेरी पोस्ट में लेख, कहानियां, कार्टून, वीडियो, ऑडियो ब्लॉगिंग टिप्स आदि अन्य बहुत सारी रोचक और प्रेरणादायक साम्रग्री है…!!

इससे पूर्व नव भारत टाइम्स में  ब्लॉग  लेखन की शुरुआत की थी. बात 30 जून 2011 की है जब मैंने नव भारत टाइम्स में अपना रीडर्स ब्लाग लिखना शुरु किया  था उसमें भी मेरे बनाए कार्टूंस को बहुत प्रमुखता दी गई.  भी तब से आज तक 800 से ज्यादा लेख, विचार और कार्टून प्रकाशित हो चुके हैं और फिर अक्टूबर 2015 से  नव भारत टाईम्स ने मुझे रीडर्स ब्लॉग  से author blog में शामिल कर लिया गया है जिसमें मेरे अधिकतर कार्टून प्रकाशित होते हैं. निसंदेह बेहद  खुशी का विषय है … !शेष फिर….. नाम देकर  मैनें नए सिरे से  author blog की शुरुआत की है.

दायित्व और भी ज्यादा बढ गया है इसलिए मेरा सदा प्रयास रहेगा कि अपने लेख, कार्टून के माध्यम से अपने विचार और भी दमदार तरीके से व्यक्त कर पाऊ.. !!

Cartoon: Pokemon and ‘acche din’ are similar, they don’t exist – NavBharat Times Blog

लेखिका, कार्टूनिस्ट, पत्रकार और समाज सेविका मोनिका गुप्ता 27 साल से लेखन मे सक्रिय हैं। राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओ मे निरंतर लेख प्रकाशित। दूरदरर्शन में कार्यक्रम व आकाशवाणी में ऐंकरिंग तथा नाटक, झलकियां दीं। सिटी केबल के अनेक कार्यक्रमों की स्क्रिप्ट, जिंगल्स व वॉइस ओवर की। “सैमसन क्रिएशन “और “दोस्त “संस्था के माध्यम से बच्चों मे छिपी प्रतिभा को सामने लाने में भूमिका निभाई। ज़ी न्यूज़ की दस साल संवाददाता रहीं। अभी तक 7 पुस्तकें प्रकाशित। जिसमें से दो नैशनल बुक ट्र्स्ट से हैं। रक्तदान के लिए लोगों को जागरूक करती हैं। 2011 से कार्टून बनाने आरम्भ किए जोकि राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रहे हैं। पुस्तक लेखन के साथ-साथ आजकल अपने www.monicagupta.info ब्लॉग लेखन में जुटी हैं। read more at indiatimes.com

 

लेखिका से कार्टूनिस्ट तक का सफर

https://monicagupta.info/articles/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F-%E0%A4%A4%E0%A4%95/लेखिका से कार्टूनिस्ट तक का सफर-मोनिका गुप्ताFrom writer to cartoonist Monica GuptaLady Cartoonist Monica Gupta बात बचपन के उन दिनों की है जब घर पर या किसी सहेली या जन्मदिन होता तो मैं read more at monicagupta.info

 

निसदेंह, नेट की दुनिया में हर रोज कुछ नया और हर रोज ब हुत कुछ सीखने को है.. और हर रोज सीख भी रही हूं पर लेखन हो कार्टून बनाना वो निरतंर जारी है.. बहुत दोस्त ब्लॉगिंग के बारे में पूछ्ते भी है उन्हें मैं अपने अनुभव के हिसाब से पूरी जानकारी देती हूं और कहती हूं कि अगर आप  अपनी पहचान पूरी दुनिया में बनाना चाह्ते हैं तो नेट पर ब्लॉगिंग सबसे अच्छा और सशक्त माध्यम है …

इस ब्लॉग के बारे में आपके विचारों का स्वागत है मैं इसे बहुत आगे तक लेकर जाना चाह्ती हूं आपकी राय मेरे लिए महत्वपूर्ण हो सकती है…

July 4, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

विचार शून्यता

cartoon idea by monica

विचार शून्यता

अक्सर लेखकों, ब्लॉगर और कार्टूनिस्टों में विचार शून्य के  लक्षण पाए जातें हैं. जहां कई बार विचारो की सुनामी आ जाती है तो वही कई बार विचारों का सूखा या अकाल भी पड जाता है इतना ही नही कई बार अचानक इतने मुद्दे आ जाते हैं कि दिमाग ही घूम जाता है किस पर लिखे या बनाए और कौन सा मुद्दा छोड दें …

वैसे कई बार जब विचार शून्यता होती है तो अलग अलग तरीके से माननीय लोग सोचते हैं.. जैसा कि कोई बाहर घूमने निकल जाते हैं  कोई दीवार पर बस शून्य पर ही निहारता रहतें हैं , कोई टहलने लग जातें हैं , कोई टॉयलेट चला जातें हैं   कोई स्नान लेते हुए सोचते हैं या फिर कोई  कोई तो सो भी जाते हैं ताकि जब उठे तो विचार दिमाग में हो.

महिलाए भी अक्सर रसोई का काम करती, बर्तन साफ करती या आटा गूथती भी विचारों में खो जाती हैं और  तब तक जुटी रहती हैं जब तक किसी विचार को पकड न लें और उसके बाद शुरु होता है लेखन या कार्टून बनाना..

मेरी पात्रा भी आज विचार शून्य की प्रक्रिया से गुजर रही है और चाय पीते पीते कुछ सोच रही है… देखते हैं कि क्या नया विचार कब तक निकल कर आएगा ..

कार्टून मोनिका गुप्ता

कार्टून मोनिका गुप्ता

वैसे आपका सोचने का तरीका क्या है जरुर बताईएगा..

June 30, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

काला धन मामला , निर्धनता और मोदी जी के मन की बात

 poor cartoon by monica gupta

काला धन मामला , निर्धनता और मोदी जी के मन की बात

मामला काला धन का हो या नकली धन का हो मोदी जी अपनी बात तो देश विदेश में या रेडियों पर अक्सर रखते हैं पर काला धन , नकली धन के चक्कर में निर्धन को न भूल जाना मोदी जी

 नकली वोट, हमारी और देश की जेब पर चोट! | NewsFlicks

प्रधानमंत्री मोदी इन दिनों दुनिया भर में घूमकर मेक इन इंडिया कैम्पेन का प्रचार कर रहे हैं, लेकिन देश में हम फेक इन इंडिया (फर्ज़ी करेंसी नोट का कारोबार) को रोकने
में नाकाम साबित हो रहे हैं read more at newsflicks.com

 

हम और हमारे सामाजिक दायित्व भी जरुर सुनिए 

 

June 29, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

फेसबुक और हमारी बीमारी का इलाज

fb cartoon by monica gupta

फेसबुक और हमारी बीमारी का इलाज

जब भी फेसबुक करते हैं मैसेज आता है what’s on your mind ? अब क्या बताए कि हमारे मन में क्या है … कहना तो बहुत कुछ है पर डाक्टर ने मना  कर दिया कि No more facebook…

वैसे इस बात में कोई शक नही कि फेसबुक हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव डाल रहा है. फेसबुक पर अपनी पोस्ट पर लाईक या कमेंट को बार बार देखना कमेंट न मिलने पर दुखी हो जाना … नकारात्मक सोच रखना… और अपनी तबियत खराब कर लेना … अब ऐसे में डाक्टर से यही सलाह मिली है कि तबियत खुद ब खुद ठीक हो जाएगी अगर फेसबुक छोड दिया जाए … भले ही थोडे समय के लिए ही

फेसबुक लाईक

दोपहर के बाद शाम 3 बजे फेसुबक का पीक टाइम होता है. इस टाइम पर सबसे ज्‍यादा यूजर एक्टिव रहते हैं. यानी शाम 3 बजे के आसपास पोस्‍ट करने पर लोग ज्‍यादा रियेक्‍ट करते हैं.रोजाना दो बार अपडेटरोजाना एक या दो बार स्‍टेटस अपडेट करने पर आपको 40 फीसदी ज्‍यादा रिस्‍पांस मिल सकता है. वहीं यदि आप वीक में एक से चार बार स्‍टेटस अपडेट करते हैं तो आपको 71 फीसदी ज्‍यादा रिस्‍पांस देखने को मिल सकता है. यहां 40 फीसदी रिस्‍पांस प्रतिदिन और 71 फीसदी पर वीक है, इस डाटा से कंफ्यूज न हों. read more at monicagupta.info

फेसबुक पिछ्ले हफ्ते एक फेसबुक मित्र फेसबुक से गायब थी. असल मे, वो पूरे दिन आन लाईन रहती और अक्सर मेरे लिखे पर कमेंट या लाईक जरुर करती थी. अपनी न्यूज फीड

 

फेसबुक – Monica Gupta

read more at monicagupta.info

फेसबुक और हमारी बीमारी का इलाज  अब क्या बताए कि वट इज इन माई माईंड ….

 

 

 

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