बरसात का एक दिन – बरसात का मौसम – आहा से आह तक – अपनी बात कहने के लिए हम कहानी लिखते हैं कविता लिखते हैं या लेख भी लिखते है. कई बार हममें किसी बात को लेकर बहुत गुस्सा या नाराजगी होती है यह बात सीधे लिखे दें तो किसी को बुरा लग सकता है …
बरसात का एक दिन – आहा से आह तक
तो ऐसा क्या करें कि अपनी बात भी कही जाएं गुस्सा भी निकल जाए और किसी को बुरी भी न लगे.. ये तरीका होता है व्यंग्य लिखने का यानि स्टायर … कहा नी के साथ साथ मैंए बहुत व्यंग्य भी लिखें जो दैनिक भास्कर के राग दरबारी कॉलम में भी बहुत बार प्रकाशित हुए … चलिए आज आपको व्यंग्य ही सुनाती हूं .. ये लिखा था बरसात के मौसम पर …
आई बरसात तो … हुआ ये कि हर जगह बारिश हो रही थी पर हमारे शहर में नही हो रही थी … ऐसी बात नही थी कि बादल आते नही थी बादल भी आते ठंडी हवा भी चलती पर बादल भी उड जाते
बहुत मन था कि बरसात आए तो आनंद लें. गर्मा गर्म अदरक और इलाइची की चाय के साथ हलवा और पकौडे बनाए. बच्चो के साथ बारिश मे भीगे और कागज की नाव चलाए. पर खुशी से आहा करने का मौका ही नही मिल रहा था. यही सोचते सोचते मैं अखबार के पन्ने पलटने लगी.
अचानक आखो मे आगे अंधेरा सा छा गया. अरे! चिंता मत करे. कोई चक्कर वक्कर नही आया मुझे पर ऐसा लग रहा था कि जो सूर्य महाराज पूरी तेजी से भरी दोपहरी मे चमक रहे थे अचानक उनकी चमक हलकी पड गई.बाहर देखा तो आसमान मे बहुत काला बादल था. आज तो यकीनन बरसना ही चाहिए. मै सोच ही रही थी कि अचानक बूदाबांदी शुरु हो गई और मन मयूर नाच उठा.
इतने मे बच्चे भी वापिस लौट आए और कपडे बदल कर हाथ मे छतरी और बरसाती पहन कर कागज की नाव बना कर बरसात का आनंद उठाने को तैयार हो गए. उधर मेरी भी सहेलियाँ आ गई और हमने बरसात का खूब मजा उठाया. प्रकृति एक दम साफ साफ धुली धुली लग रही थी.
गमलो मे लगे पौधे हवा के साथ हिलते हुए ऐसे लग रहे थे मानो अपनी खुशी का इजहार कर रहे हों. फेसबुक पर भी बरसात की सूचना दे दी गई और लाईक और कमेंट का अम्बार लग गया और तो और दो तीन निकट दोस्तो का तो बधाई के लिए फोन भी आ गया कि आखिरकार भगवान ने आपकी सुन ली.
सारे चेहरे खिले खिले थे.ऐसा लग रहा था मानो खुशी बरस रही थी. माहौल खुशनुमा हो चला था. अचानक तापमान इतना कम हो गया कि पंखा भी एक नम्बर पर करना पडा. काफी देर तक भीगने के बाद कपडे बदल कर बच्चे नेट पर काम करने लगे और सहेलियो ने भी विदा ली.
तभी अचानक बहुत तेज बिजली चमकी और मेरी आखं खुली. अरे! ये सपना था. बाहर आकर देखा तो सचमुच मूसलाधार बरसात हो रही थी. बेशक मन खुश हुआ.पर इतनी तेज बरसात देख कर चिंता भी हो गई. तभी बिजली चली गई. चिंता इस बात की थी कि अभी बच्चे भी नही वापिस आए थे. फोन करने लगी तो वो भी डेड हो गया था.
मोबाईल का नेटवर्क तो वैसे ही दुखी कर रहा था. रेंज ही नही होती कभी इसकी. खैर! सोचा कि चलो इतने पकौडो की तैयारी कर लूं रसोई मे गई तो देखा कि रसोई की नाली मे पानी जाने की बजाय बाहर आ रहा था यानि सीवर ओवरफ्लो कर रहा था. बाहर सडक पर देखा तो वो पूरी भर गई थी और ऐसा लग रहा था कि पानी किसी भी क्षण घर मे आ सकता है और देखते ही देखते पानी अंदर आना शुरु हो गया. असल मेंं, बाहर सडक को ऊंचा बनाया जा रहा है शायद इसी लिए .. !!!
वो क्षण किसी भंयकर सपने से कम नही था. मैने तीन चार पर अपने को चिकोटी काटी कि यह सब सपना ही हो.पर आह! अफसोस यह सपना नही हकीकत था. ना बिजली ना फोन ना मोबाईल और ऊपर से घर मे आता पानी. मेरा सारा शौक हवा हो गया.
बस भगवान से सच्चे दिल से एक ही प्रार्थना कर रही हूं कि बरसात को तुरंत रोक दो मै 11 रुपए का प्रशाद चढाऊगी.पर भगवान तक मेरी अर्जी जब तक लगी तब तक काफी देर हो चुकी थी. बरसात के लिए खुशी की आहा अब तक दुख भरी आह मे बदल चुकी थी.
सरकार, प्रशासन और अडोस- पडोस को कोसते हुए नम हुई आखों से सारे काम भूल कर झाडू, कटका लिए बरसात के रुकने की इंतजार कर रही हूं !!!
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आई बरसात तो … बरसात ने दिल तोड दिया…