मेरी पहली दिवाली – पापा के बिना … पहली दिवाली पापा के बिना.. जबसे मैंने जन्म लिया पापा के बिना ये मेरी पहली दिवाली है.. बेशक, मेरी शादी होने के बाद से हम साथ नही थे पर एक अहसास था कि पापा हैं और हर त्योहार पर पापा को फोन करना, कभी कभी त्योहार पर मिलने जाना , शरारत करना, रुठना , मनाना , चुहलबाजी करना …
पर इस बार ऐसा कुछ नही .. कुछ भी नही … कोई फोन नही.. अगर है तो बस एक शून्य …
मेरी पहली दिवाली
पापा अचानक 31 अगस्त की शाम को ऐसी जगह चले गए जहां अब बस दिल से, तस्वीर से या आखं बंद करके ही बात की जा सकती है,,, बहुत खाली खाली लग रहा है.. पापा के बिना पहली दिवाली जो है…
मम्मी से इस बारे में बात नही करना चाहती क्योकि जानती हूं वो खुद बहुत बहुत और बहुत उदास हैं… हां भाई से जरुर अपने दिल की बात कह कर मन हलका कर लिया पर इतना पता है उसके बाद उसका मन बहुत भारी कर दिया…
भाई हो, भाभी हों या उनके दोनो बच्चे बहुत ख्याल रखते थे पापा का, पापा को हर शाम को धुमाने ले जाना… हर सनडे सुबह कार में घूमने ले जाना और नाश्ता कहीं बाहर ही करना और मुझे तुरंत वटसप पर फोटो भेजना कि देखो आज हम कहां कहां गए… !!
पर आज सब शांत है… त्योहार आने पर मन और ज्यादा बैचेन हो गया है… क्योकि सबसे ज्यादा शौक पापा को ही था और खासकर खाने का तो बहुत ज्यादा शौक था
और आज…. !!
त्योहार है इसलिए सोशल मीडिया बहुत एक्टिव है और खूब शुभकामनाएं आ रही हैं पर मन कर रहा है कि सब से दूर भाग जाऊं.. बस अकेले बैठी रहूं कुछ पल और रोती रहूं … आसूं भी ऐसे लग रहे हैं कि मानो झरना बन गए हो.. थमने का नाम ही नही ले रहे.. काश इन दिनों बारिश होती तो मैं बारिश का नाम लेकर आसूं छिपा लेती या रसोई में प्याज छीलने का भी बहाना भी बना सकती थी पर वो तो न समय देख रहे हैं न जगह… आसूं रोकने की सारी कोशिश नाकाम … मन को पक्का करने की सारी कोशिश नाकाम.. फिर सोचा कि कुछ लिख लेती हूं शायद मन हल्का हो जाए.. और लिखने बैठ गई ..
ज्यादा कुछ नही लिखा जा रहा क्योकि आखें बार बार भर आ रही हैं और त्योहार भी है बार बार दरवाजे पर घंटी बज जाती है तो तोती आखें रोता चेहरा लेकर बाहर जाना वो भी अच्छा नही लगता…
बस यही कहना है कि पापा आपको बहुत मिस कर रहे हैं हम.. अब तो बस यही प्रार्थना है कि आप जहां हो अपना आशीर्वाद वैसे ही बनाएं रखे जैसा हमेशा बनाएं रखते थे…