Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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October 2, 2015 By Monica Gupta

रक्तदाता और सफलता की कहानी

 

r saini kuk

r saini kuk

 

रक्तदाता और सफलता की कहानी

अगर बात हो निस्वार्थ स्वैच्छिक रक्तदान की तो हरियाणा के राजेन्द्र सैनी का नाम आगे आता है.

हरियाणा के जिला  कुरुक्षेत्र में रक्तदान से सम्बंधित एक कार्यक्रम चल रहा था. स्टेज पर जो भी वक्ता आ रहे थे सभी राजेंद्र सैनी का धन्यवाद और आभार प्रकट कर रहे थे कि आज रक्तदान के क्षेत्र मे रक्तदाता या कैम्प आयोजक या प्रेरक वो जो भी कुछ  है  सब राजेंद सैनी जी  की वजह से हैं.सभी के मुंह से यह बात सुनकर एक उत्सुकता सी बनी हुई थी कि आखिर सैनी जी है कौन  क़िस तरह का काम कर रहे हैं. खैर मीटिंग खत्म हुई और मुझे मौका मिला. सैनी साहब से बात करने का.

न्यू पिंच ने बदल दी दुनिया

1 जून 1962 को पुंडरी मे जन्मे राजेंद्र सैनी आज पूरी तरह से रक्तदान केप्रति समर्पित है. इतना ही नही इनके  परिवार  परिवार म्रे बेटा और बेटी भी रक्तदाता है. मेरे पूछ्ने पर कि रक्तदान के प्रति ऐसी प्रेरणा कब आई तो उन्होने बताया सन 1998 मे रक्तदान मे मीटिंग के दौरान  एक बार उन्होने श्री युद्दबीर सिह ख्यालिया को सुना और रक्तदान के बारे मे उनकी बाते सुनकर उनकी सोच बदली और उन्होने मन ही मन प्रण किया कि वो भी रक्तदान करेंगें. बाकि तो सब ठीक था बस एक ही जरा सी अडचन थी कि उन्हे सूई से डर लगता था. हालाकिं वो बच्चो या बडो को रक्तदान के प्रति जागरुक करते रहते थे कि सूई से जरा भी डर नही लगता पर खुद सूई फोबिया से बाहर नही निकल पा रहे थे.

एक दिन एक कैम्प के दौरान मन बना पर फिर डर गए और सोचा कि किसी लैब मे ही जाकर चुपचाप रक्तदान करके आंऊगा क्योकि अगर यहां  रक्तदान कैम्प मे वो रक्तदान करते समय डर के मारे चिल्ला पडे तो दूसरे लोग उनके बारे मे क्या सोचेगें पर शायद उस दिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. डाक्टर ने उनकी भावनाओ को समझा और उन्हे बातो मे लगा कर उन्हे लिटाया और  सूई लगा दी. जब रक्तदान करके वो उठे  तो नई स्फूर्ति का उनके अंदर संचार हो रहा था, उस समय का अनुभव बताया कि दर्द तो महज इतना ही हुआ जितना  कोई नई कमीज पहनता है और उसके दोस्त उसे न्यू पिंच बोलते. 

दूसरे शब्दो मे यह न्यू पिंच ही था जिसने एक नई दिशा दी और वो और भी ज्यादा विश्वास से भर कर लोगो को रक्तदान के प्रति जागरुक करने मे जुट गए. तब का दिन है और आज का दिन है. आज सैनी जी 49 बार रक्तदान कर चुके हैं और न्यू पिंच से प्यार हो गया है. उन्होने बताया कि रक्तदान मे अर्धशतक तो लग चुका है पर  बस अब वो  शतक लगना चाहते हैं. उन्होने बताया कि लोगो को प्रेरित करना और वो प्रेरित हुए  लोग  आगे लोगो को प्रेरित करके मुहिम जारी रखे तो एक सकून सा मिलता है. बहुत अच्छा लगता है. जब  एक दीए से दूसरा दीया जगमग करता है तो दिल को खुशी मिलती है जिसका बयान शब्दो मे नही किया जा सकता.

अपनी बिटिया श्वेता के बारे मे उन्होने बताया कि जब उनकी बिटिया पहली बार रक्तदान के लिए गई तो डाक्टर ने बोला कि वजन कम है  वो रक्तदान कर  नही पाएगी. इस पर वो काफी मायूस हो गए पर आधे धटे बाद जब देखा तो वो रक्तदान करके बाहर आ रही थी इस पर जब उन्होने हैरानी जाहिर की तो श्वेता ने बताया कि उसने 5-6 केले खा लिए थे और रक्तदान कर के आई है. उसके चेहरे से जो खुशी झलक  रही थी वो आज भी भुलाए नही भूलती.

मैने जब उनसे पूछा कि कार्यक्रम के दौरान जब सभी उनका नाम ले कर सम्बोधितकर रहे थे तो वो कैसा महसूस कर रहे थे इस पर वो बोले कि खुशी तो हो रही थी एक नया संचार सा शरीर मे भर  रहा था पर दूसरी तरफ अच्छा भी नही लग रहा था. कारण पूछ्ने पर उन्होने बताया कि कही दर्शक यह ना सोचे कि मैंने  ही उन्हे कहा है कि  मेरे बारे मे भी जरुर कहना. उनकी बात सुनकर मै मंद मंदमुस्कुरा उठी क्योकि मैने खुद सुना कि लोग पीठ पीछे भी उनकी तारीफ कर रहेथे. आखिर नेक काम की अच्छाई तो छुपाए नही छिप सकती.

आज रक्तदान के क्षेत्र मे हरियाणा के  राजेंद् सैनी अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. पीजीआई रोहतक से उन्हे कैम्प आयोजक रुप मे दो बार सम्मान मिल चुका है और फस्ट एड ट्रैनर यानि प्राथमिक चिकित्सक ट्रैनर  व रक्तदाता के रुप मे वो महा महिम बाबू परमानंद, डाक्टर किदवई और श्री धनिक लाल मंडल से सम्मानित हो चुके है. राजेंद्र सैनी  दिन रात इसी उधेड बुन मे रहते है  कि किस तरहलोगो को जागरुक करे और उन्हे मोटिवेटर बनाए ताकि वो इसका संदेश आगे औरआगे फैलाते रहें. भले ही राजेंद्र सैनी आज 52 साल के हो चुके हैं पर खुद को वो नौजवान ही मानते है उनका कहना है कि रक्तदाता कभी बूढा नही होता वो हमेशा जवान ही बना रहता है.उनकी भाषा मे ‘ तो आप न्यू पिंच कब करवा रहे हैं”  !!!!

हमारी ढेर सारी शुभकामनाएं !!! 

रक्तदाता और सफलता की कहानी

 

October 2, 2015 By Monica Gupta

रक्तदान और महिलाए

रक्तदान और महिलाए

रक्तदान और महिलाए – बेशक जागरुकता का अभाव है पर फिर भी बहुत महिलाएं हैं जो रक्तदान  के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही हैं…

आज  जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी वो ठेठ गांव की अनपढ महिला है.उम्र 50 से भी उपर हो चुकी है पर अगर रक्तदान की बात करें तो उसमे वो हमेशा ना सिर्फ सबसे आगे रहती है बल्कि लोगो को रक्तदान के प्रति अपने ठेठ मारवाडी अंदाज मे  प्रेरित भी करती हैं. अभी तक वो 21 बार  से ज्यादा बार रक्तदान कर चुकी हैं.

रक्तदान और महिलाए

इस जागरुक महिला का नाम है श्रीमति बिमला कासंवा. इनका जन्म राजस्थान के गांव खारा खेडा मे हुआ. अपने 6 भाई बहनो मे ये सबसे बडी थी. अपनी मां के साथ घर का सारा काम करवाना फिर अपने छोटे छोटे भाई बहनो की भी देखभाल करना. बस इन्ही सब कामो मे बचपन कैसे निकल गया पता ही नही चला.

blood donor

blood donor

 

उन्होने बताया उस समय लडकियो को पढाने पर जोर नही दिया जाता था. घर के काम काज मे ही लगा दिया जाता था. वो भी इसी कामकाज मे व्यस्त हो गई.  पर ऐसा  भी नही था कि उनका मन पढने का या स्कूल जाने का नही करता था. जब बच्चे सुबह सुबह स्कूल मे प्रार्थना करते तो उनका मन भी करता कि वो भी जाए पर यह सम्भव ही नही हो पाया और वो अनपढ ही रह गई.

 

समय बीता और उनकी शादी हो गई. अपने नए जीवन का स्वागत उन्होने बहुत खुशी खुशी किया. ईश्वर ने उन्हे प्यारी सी बेटी और एक बेटा दिया. यहां भी वो अपने घरेलू कामो मे ही व्यस्त रही. तभी अचानक एक दिन उनकी जिंदगी मे एक यादगार दिन बन गया.

 

10 जनवरी 1997 को हरियाणा के सिरसा में  एक रक्तदान मेला लगा. उनके पति श्री भगीरथ जी ने बस एक बार कहा कि रक्तदान मेला लगा है .यहां रक्तदान करके आते हैं. उन्हे रक्तदान की जरा भी समझ नही थी पर वो अपने पति के साथ चली गई. वहां इन्होने रक्तदान किया और रक्तदान करके बेहद खुशी मिली. बस उस दिन के बाद से इसके बारे मे सारी जानकारी ले कर इन्होने मन बना लिया कि ये हर तीन महीने बाद  रक्तदान करेगीं.

 

रक्तदान के दौरान इन्हे यह भी पता चला कि इनका ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव है . डाक्टर ने बताया कि इसकी मांग बहुत है इसलिए जब भी जरुरत होगी वो उन्हे बुला लिया करेगें. उसके बाद काफी बार इन्होने इमरजैंसी मे भी रक्तदान दिया.

 

एक वाक्या याद करते हुए उन्होने बताया कि एक बार रात को एक बजे  फोन आया कि रक्तदान के लिए उनकी जरुरत है और डाक्टर ने उनके लिए  एबूलैस भेज दी.इतनी देर रात गाडी आई तो पडोसी भी जाग गए. पर तब जल्दी थी इसलिए वो फटाफट उसमे सवार होकर चली गई. सुबह आकर वो अपने रोजमर्रा के कामो मे जुट गई. वही पडोसी आकर पूछ्ने लगे कि रात को क्या हुआ. इस पर उन्होने हंसते हुए बताया कि कुछ नही हुआ बस रक्तदान करने गई थी.

 

बिमला जी  हो इस बात का दुख जरुर है कि उन्हे पहले इसकी जानकारी नही थी पर अब जब उन्हे इसकी अहमियत का पता चला तो उन्होने अपने दोनो बच्चो को भी रक्तदान का पाठ पढाया. आज इनका सारा परिवार नियमित रुप से रक्तदान करता है. बिमला जी समय समय पर रक्तदान से सम्बंधित वर्कशाप मे जाकर रक्तदान के प्रति जनता को जागरुक भी करती रहती है.

 

यकीनन आज बिमला कांसवा  सभी लोगो के लिए एक प्रेरणा से कम नही है.

रक्तदान और अमिताभ बच्चन

रक्तदान और महिलाए

 

October 2, 2015 By Monica Gupta

राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस

आईएसबीटीआई ( मोनिका गुप्ता)

 

 

राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस

राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎं…

 खुशी का विषय यह है कि आईएसबीटीआई यानि इंडियन सोसाईटी आफ ब्लड ट्रांसफ्यूजनएंड इमयोनोहीमेटोलोजी  ने ही इस दिवस की शुरुआत सन 1976 में की थी.  आईएसबीटीआई पिछ्ले चालीस सालों से रक्तदान से जुडी गैर सरकारी संस्था है और स्वैच्छिक रक्तदान के क्षेत्र  मे अभूतपूर्व कार्य कर रही है. स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति पूरी तरह समर्पित आईएसबीटीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. युद्द्बीर सिह खयालिया एक ही दृष्टि कोण  लेकर चल रहें  हैं  कि जनता में स्वैच्छिक  रक्तदान के प्रति इतनी जागरुकता आ जाए कि सुरक्षित रक्त मरीज की इंतजार करे  ना मरीज रक्त की. डाक्टर ख्यालिया का  मानना है कि इसके लिए शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान की भावना का होना बेहद जरुरी है और ऐसी जागरुकता जन जन मे कैसे लाई जाए. अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए आईएसबीटीआई दिन रात कार्यरत है. इन्ही सब बातों को ध्यान मे रखते हुए  जगह जगह ट्रैंनिग करवाई जाती है. स्कूल कालिजो मे क्विज, पोस्टर बनाना तथा अन्य माध्यमों से जागरुकता लाई जाती  है. भिन्न भिन्न रक्तदान के  खास अवसरो पर जैसाकि विश्व रक्तदान दिवस, स्वैच्छिक रक्तदान दिवस आदि कुछ  खास दिनों में प्रतियोगिताए भी आयोजित करवाई जाती  है.

 रक्तदान से जुडे होने के कारण अक्सर मेरे पास भी रक्त की जरुरत के लिए फोन आते रहते हैं.यथा सम्भव मदद करने की कोशिश तो करती हूं पर जहां तक हमारी पहुंच ही नही है वहां मदद करना या किसी को कहना बहुत मुश्किल हो जाता है. दिल्ली में डाक्टर संगीता पाठक Sangeeta Pathak, सोनू सिह  Sonu Singh Bais , राजेंद्र माहेश्वरी (भीलवाडा, राजस्थान) मंजुल पालीवाल, रोहतक हरियाणा से , मुम्बई से दीपक शुक्ला जी,  ब्लड कनेक्ट की पूरी टीम नई दिल्ली से और चंडीगढ में डाक्टर रवनीत कौर को जब भी मैंने वक्त बेवक्त फोन किया  और रक्त  की जरुरत के बारे मे बताया तो उन्होनें तुरंत एक्शन लिया और एक ही बात कही कि चिंता नही करो आप उन्हे मेरा नम्बर दे दो. कोई फिक्र नही. परेशानी मे पडे एक अंजान के लिए ऐसी बात कहना बहुत बडी बात है. मैं उनका अक्सर खुले लफ्जों में और कई बार दिल ही दिल मॆ बहुत धन्यवाद करती हूं और फिर विचार आता है कि क्यों ना ऐसे शानदार और समर्पित व्यक्तित्व पूरे देश भर में हो. हमारे पास देश भर में कही से भी फोन आए. हम किसी को रक्त की कमी से न मरने दे.

अगर डाक्टर या ब्लड बैंक से जुडे लोग हों तो बहुत बेहतर है या फिर कोई ऐसे जो स्वैच्छिक रक्तदान से जुडे हों और समाज के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ करना चाहते हों. उनका स्वागत है. यह बात पक्की है कि आपके सहयोग के बिना यह कार्य सम्भव नही है और यह बात भी पक्की है कि इस लक्ष्य को हम जीत सकते हैं. अगर आप ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते हैं या आप खुद ही हैं तो नेक काम मे आगें आए. अपना नाम और पता monica.isbti [at]gmail.com पर भेज दीजिए….. !!!!

आईएसबीटीआई ( मोनिका गुप्ता)

ISBTI monica gupta 1

September 30, 2015 By Monica Gupta

Rotary Blood Bank

Rotary Blood Bank

 

आईएसबीटीआई की दिल्ली में कांफ्रेस के दौरान बहुत से ऐसे लोगों से मिलना हुआ जो रक्तदान पर बहुत जबरदस्त कार्य कर रहे थे. किसी की संस्था है तो कोई संस्था के साथ मिलकर रक्तदान जैसे सामाजिक कार्य में निस्वार्थ भावना से कार्य कर रहें हैं. लक्ष्य और उद्देश्य सभी का एक है कि देश में शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान हो.

इसी कार्यक्रम में आई रोट्ररी ब्लड बैंक दिल्ली की सीएमओ अंजू वर्मा  और चीफ टैक्निकल आफिसर आशा बजाज जी से मिलना हुआ. बेहद मिलनसार और सबसे अच्छी बात ये कि रक्तदान के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं. आशा जी ने बताया कि  वो और अंजू वर्मा जी जब से रोट्ररी ब्लड बैंक शुरु हुआ वो तभी से यानि 2001 से इसके साथ जुडी हैं.

रोट्ररी ब्लड बैंक का मिशन यही है कि दिल्ली और दिल्ली के आसपास रहने वालों की रक्त की कमी से कभी जान न जाए. इसलिए उनकी संस्था कभी कालिज, कभी स्कूल कभी किसी संस्थान में तो कभी कैम्प के माध्यम से रक्त एकत्र करने के साथ साथ जागरुक भी करते हैं. स्कूल में पेरेंटस टीचर मीटिंग के दौरान कैम्प लगाते हैं क्योकि अगर टीचर या माता पिता रक्तदान करेंगें तो निसंदेह  बडे होने पर बच्चे भी आगे आएंगें.

उन्होने बताया कि ब्लड बैंक में किसी भी तरह से रिप्लेसमैंट नही है और 24 घंटे खुला रहता है. जिसे जब भी जरुरत हो वो फोन करके या मिलकर विस्तार से  जानकारी ले सकता है. दिल्ली मे तुगलकाबाद में उनका रोट्ररी ब्लड बैंक है और  टेलिफोन नम्बर 01129054066- 69 तक नम्बर हैं.

आशा जी ने यह भी बताया कि थैलीसिमिया  का टेस्ट भी यहां होता है. इस बारे में भी वो लगातार जागरुक करते रहतें हैं कि शादी से पहले थैलीसीमिया टेस्ट जरुरी होता है ताकि शादी के बाद किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पडे.

आजकल बहुत ज्यादा व्यस्तता है क्योंकि डेंग़ू की वजह से प्लेटलेटस  और रैड ब्लड सैल की बहुत मांग है. उन्होनें बताया कि ब्लड बैंक का सारा स्टाफ स्वैच्छिक रक्तदाता है और हर तीन महीने बाद रक्तदान करता है.

मेरे पूछने पर कि एक महिला होने के नाते महिलाओं की खून की कमी के बारे में क्या कहना चाहेंगी इस पर वो मुस्कुरा कर बोली कि एनीमिया प्रोजेक़्ट पर भी उनका  ब्लड बैंक जुटा हुआ है और समय समय पर चैकअप कैम्प लगाए जाते हैं और जागरुक किया जाता है.

रही बात आज के समय कि तो उन्होनें बताया कि बहुत बदलाव आया है और आ भी रहा है. बहुत अच्छा लगता है जब स्वैच्छिक रक्तदान के लिए ना सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाए भी आगे आती हैं. हालाकि यूरोपिय देशों की तुलना में तो बहुत कम है पर फिर भी ऐसी जागरुकता होना एक शुभ संकेत है.

आशा जी ने बताया कि वो लगभग 30 सालों से इस क्षेत्र से जुडी है. जब भी कोई परेशान, दुखी व्यक्ति रक्त के लिए आता है और उसे वो मिल जाता है तो उसके चेहरे की खुशी देख कर एक ऐसी आत्मसंतुष्टि मिलती है जिसे शब्दों मे व्यक्त नही किया जा सकता.

मीटिंग का अगला सैशन शुरु हो गया था इसलिए मुझे अपनी बात को यही रोकना पडा. जिस सच्चे मन से उनकी संस्था कार्य कर रही है उसके लिए पूरी टीम बधाई की पात्र है… शुभकामनाएं !!!

यकीनन देश में अगर हम शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान देखना चाह्ते हैं तो हम सभी को मिल कर सांझा प्रयास करना होगा.

Rotary Blood Bank

Rotary Blood Bank

 

 

Rotary Blood Bank

 

September 28, 2015 By Monica Gupta

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा
रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा – रक्तदान पर मैनें दिल्ली रोहिणी  क्राऊन प्लाजा में ट्रास्कान 2015 के दौरान अपने विचार कुछ ऐसे व्यक्त किए. विषय था….सोशल मीडिया के मद्देनजर युवा रक्तदाताओं को कैसे जोडे …

monica gupta 3 speech

रक्तदान और युवा

Recruiting Young Donors- Focus on Social Media

“वसुधैव कुटुम्बकम” बहुत समय पहले सुना करते थे  अर्थात पूरी धरती एक परिवार है मैं अक्सर सोचती थी कि सारी धरती एक परिवार कैसे हो सकती है दुनिया इतनी बडी है कोई कहां तो कोई कहां ऐसे में  एक ही परिवार कैसे हो सकता है  पर जब से  सोशल मीडिया फेसबुक, टवीटर, गूगल सक्रिय हुआ और देश क्या विदेश की भी सभी जानकारी मिलने लगी. विचार सांझा होने लगे. तब लगा कि अरे वाह, जो हमारे पूर्वजो ने  उस समय कहा था वो तो आज साकार हो रहा है.

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा

 सोशल मीडिया से हमारा जुडे रहना और भी सार्थक हो जाता है अगर हम नोबल cause के लिए जुडे … और रक्तदान जैसा कोई नोबल cause और हो ही नही सकता.

ये सच है कि रक्तदान पुण्य का कार्य है पर सोचने वाली बात ये है कि युवाओं को इससे कैसे जोडे. यूथ इसलिए भी क्योकि वो सोशल नेट वर्क पर बेहद सक्रिय है और दूसरी वजह ये भी है कि वो समाज के लिए कुछ करना चाहता है.

अब जरुरत इस बात की है कि हम कुछ हट कर करें जिससे युवाओं में एक नया जोश पैदा हो… वैसे हट करने से याद आया आपने सैल्फी विद डोटर तो सुना ही होगा. बेटी बचाओ, बेटी पढाओ के अंतर्गत एक और अभियान चला कि गांव की जो बेटी सबसे ज्यादा पढी लिखी होगी वो 15 अगस्त को झंडा फहराएगी और मुख्यातिथि भी होगी उसके साथ आए माता पिता के लिए अलग बैठने की व्यवस्था की जाएगी.

इस अभियान को इतना पसंद किया गया कि अब तो गांव के वो लोग भी जो लडकियों को पढाना सही नही समझते थे उनकी मानसिकता भी बदल गई है. वो ज्यादा से ज्यादा लडकियों को पढाने के लिए आगे आ रहे हैं.

नेट के माध्यम से रक्तदान से जुडी  खबर हट कर हों  उनका उदाहरण सामने रखे तो भी जागृति आ सकती है… जैसा कि एक खबर पढी कि अहमदाबाद के रोहित उपाध्याय  ने 100 बार रक्तदान किया.. शायद आपको इस खबर में कोई नयापन न लगे पर अगर मैं आपको कहूं कि वो रिक्शा चलातें है तो शायद कुछ हट कर  लगे लेकिन अगर मैं आपको ये बताऊ कि वो मरना चाहते थे इसलिए रक्तदान करने गया था तो शायद आप भी चौंक़ जाएगें.

असल में, अहमदाबाद के राहुल उपाध्याय रिक्शा चलाते हैं वो अपनी जिंदगी से बहुत परेशान  हो गए थे और सुसाईड करना चाहते थे उन्हें लगता था कि रक्तदान करने पर आदमी मर जाता है इसलिए रक्तदान करने गए थे पर रक्तदान करके जब यह पता चला कि  उन्हें तो कुछ हुआ नही और उन्होनें किसी की जिंदगी बचाई है तो उनकी सोच बदल गई और लगातार रक्तदान करने लगे…

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा

एक अन्य उदाहरण है इंदौर के निवासी अशोक नायक का. पेशे से दर्जी हैं लोगो के कपडे सिलते हैं. रक्त के क्षेत्र मे नायक बनकर उभरे हैं. जब इनका अपना एक दोस्त खून न मिलने की वजह से दुनिया छोड गया तो इन्होने ये बात दिल से लगा ली और अपने छोटे से घर में, छोटा सा ब्लड काल सेंटर खोल लिया और  नेट वर्क तैयार किया और उसी के माध्यम से लोगो को खन उपलब्ध करवाने लगे  .

मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता जैसे महानगरों में इनकी अपनी रक्तदाताओं की सूची है और जैसे ही जरुरतमंद का फोन आता है रक्तदाता वहां हाजिर हो जाता है. अब इन्होने प्रशासन की मदद से रक्तदाता वाहिनी सेवा भी शुरु की है जो की खास तौर पर महिलाओ के लिए है. तो है ना ये मिसाल.

देश में ननद भाभी का झगडे अक्सर हम सुनते हैं पर भाभी की जान बचाने के लिए ननद ने किया रक्तदान भी एक मिसाल बन सकता है राजस्थान के बासवाडा के हमीरपुर गांव में ये मिसाल देखने को मिली जब गर्भवती भाभी की जान बचाने के लिए ननद ने रक्तदान किया.

शादी जैसे पावन दिन पर भी दुल्हे का रक्तदान करना युवाओ के लिए मिसाल बन सकती है. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर निवासी अमर सिह ने शादी वाले दिन कुछ हट कर करने की ठानी और शादी के दिन  कुछ मीठा हो जाए सोच कर शादी वाले दिन ही रक्तदान किया और  मिसाल कायम की.

युवा हीरो को बहुत फोलो करते हैं आमिर खान, अमिताभ बच्चन साहब या जान एब्राहिम आदि अगर इनकी फोटो या खबर दिखा कर उन्हें मोटिवेट किया जाए तो यकीनन सकारात्मक असर पडेगा.

विभिन्न धर्मों के लोग जब रक्तदान करते हैं तो प्रेरणा बन जाते हैं. श्वेताम्बर जैन साध्वी का रक्तदान करना अपने आप में एक मिसाल है.11901637_10203274005931532_876266951_o

युवा शक्ति को तरह तरह के इवेंट के माध्यम से भी प्रोत्साहित किया जा सकता है जिसमें एक है युवाओ को लेकर विशाल रक्त बूंद यानि ब्लड ड्राप बनाना  जैसाकि आईएसबीटीआई द्वारा किया गया विशाल आयोजन था.

 

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युवाओं को खास दिन पर रक्तदान के लिए प्रेरित किया जा सकता है जैसाकि होली, 15 अगस्त, कुछ लोग दिन खोजते है तो कई लोग कोई न कोई दिन खोज निकालते हैं रक्तदान करने के लिए अब जैसाकि आदिवासी दिवस शायद हमने कभी सुना भी नही होगा पर देखिए बढ चढ कर रक्तदान हुआ इस दिन भी…

एक अन्य मिसाल अपना खून नेगेटिव होते हुए सोच पोजेटिव रखी और नेगेटिव ब्लड ग्रुप की लिस्ट तैयार कर ली जोकि हरदम रक्तदान के लिए तैयार रहते हैं .. जज्बा हो तो ऐसा

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जिन मरीजों को लगातार रक्त की जरुरत पडती है अगर वो ही अपना संदेश दें कि रक्तदान कितना अमूल्य है तो भी युवा प्रभावित हो सकते हैं. जैसाकि जम्मू में रहने वाले हीमोफीलिया से पीडित जगदीश कुमार जिन्हे अभी तक लगभग 200बार खूब चढ चुका है या थैलीसीमिया की मरीज संगीता वधवा ,मुम्बई में रहती है

अभी तक  800 बार खूब चढ चुका है और ना सिर्फ थैलीसीमिया पर काम कर रही है पर खुद भी जीने की इच्छा छोड चुकी  संगीता उन लोगो की कांऊसलिंग करती है जिन्होनें जिंदगी से हार मान ली है. संगीता आजकल थैलीसिमिया को खत्म करने के लिए Face , Fight और  Finish पर जबरदस्त काम कर रही है.

सोशल मीडिया पर  भी सोशल मीडिया के माध्यम से भी प्रेरित किया जा सकता है एक मेरी युवा जानकार थी. फेसबुक पर ज्यादा समय रहती थी पर कमेंट कम मिलते थे. बहुत मायूस थी और बातों बातों में उसने अपनी प्रोब्लम बताई.

मैने उससे पूछा कि  रक्तदान कराते हुए की फोटो डालो बहुत कमेंटस मिलेगें उसने बोला कि रक्तदान तो कभी किया नही तो मैने कहा कि कर के देख लो … दो दिन बाद जब मैने उसका प्रोफाईल देखा तो 100 लाईक्स थे और पचास से ज्यादा कमेंटस थे और तो और फैंड रिक्वेस्ट भी आनी शुरु हो गई थी. अब उसने ये अभियान नियमित करने की ठान ली है.

युवाओ को बैट्ररी का उदाहरण देकर भी समझाया जा सकता है कि जिस तरह मोबाईल की बैट्टरी डाऊन हो जाती है और हमे चार्ज करना पडता है ठीक वैसे ही इंसानो की बैट्री भी कभी कभी डाऊन हो जाती है और चार्जर रुपी खून से उसमे जान डालनी पडती है..

प्रधान मंत्री मोदी जी ने भी युवा शक्ति को रक्तदान के लिए प्रेरित किया और विश्व रक्तदाता दिवस पर टवीट किया कि रक्तदान समाज की बडी सेवा है आज हम रक्तदान के महत्व के बारे में अपने संकल्प को दोहराते हैं मेरे युवा मित्रों को इस सम्बंध में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए.

W H O जैसी बडी संस्थाए भी प्रेरणा बन सकती हैं जैसाकि हाल ही में विश्व रक्तदाता दिवस पर कैम्पेन लांच किया गया जिसका थीम था

( मेरे जीवन को बचाने के लिए धन्यवाद )Thank you for a saving my life.

thanks for saving my life

जो इस क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहे हैं उनकी सराहना होनी भी बहुत जरुरी है ताकि उनका मनोबल बना रहे. जैसाकि डाक्टर संगीता पाठक, डाक्टर रवनीत कौर, सोनू सिह, ब्लड  कनेक्ट की पूरी टीम, श्री राजेंद्र माहेश्वरी, श्री दीपक शुक्ला, श्री मंजुल पालीवाल जब मैने इनको रक्त की जरुरत के लिए फोन किया समझिए टेंशन खत्म हो गई और मरीज को नया जीवन मिल गया.

जनता को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए और यह डर निकाल देना चाहिए कि अकेले हम से नही हो पाएगा…. और फिर भी  हिम्मत हार जाए तो दशरथ मांझी को याद करिएगा जिन्होने अकेले अपने दम पर पूरा पहाड तोड  कर रास्ता बना लिया था. उनके किए कार्य की तुलना आज ताजमहल से हो रही है.

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तो जैसे मैने आरम्भ मे ही कहा था वसधैव कुटुम्बकम सारी धरती एक परिवार है और हमे हमें अपने परिवार की रक्षा करनी है मिलजुल कर कदम बढाने होंगें और उनके लिए एक ही बात कहना चाहूंगी कि “

“मंजिल मिले या न मिले  ये तो अलग बात है

पर हम कोशिश भी न करें ये तो गलत बात है ”

जय रक्तदाता

मोनिका गुप्ता

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September 21, 2015 By Monica Gupta

रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें

रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें

रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें – “Exploring motivational factors for altruistic blood donation” – निस्वार्थ भावना से रक्तदान के लिए प्रेरित करने वाले कारण – *रक्तदान है तो गंभीर विषय पर मनोरंजक ढंग से या कुछ इस ढंग से  अपनी  बात रखी जाए कि लोगो के दिल को छू जाए तब भी जनता में रक्तदान के प्रति जनता में जागरुकता आ सकती है.महिलाओ को रक्तदान की महत्ता समझा कर उन्हें प्रेरित करना… 

रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें

जब मुझे यह विषय  डाक्टर कंचन की ओर  से मिला तो मैने तुरंत नॆट चला लिया और सोशल नेट वर्किंग साईट, फेसबुक और ब्लाग में खोजने लगी कि क्या क्या लिया जा सकता है

तभी मेरी नजर एक बात पर जाकर अटक गई. मै आपको जरुर बताना चाहूगीं. वैसे  ये बात रक्तदान से सम्बंधित नही है. मैनें पढा कि घर पर कूडा  कचरा  वाला आया तो बच्चे ने मम्मी को आवाज देकर कहा कि मम्मी कूडे वाला आया है तब पता है मम्मी ने क्या कहा  ? मम्मी ने कहा … नही बेटा ये तो सफाई वाला है कूडे वाले तो हम हैं जो हर रोज इसे कूडा देते हैं .बात मे बहुत दम था. मैं प्रभावित हो गई. उस महिला ने बहुत सही और समझदारी वाली बात कही. सच मानिए मुझे पहला पोईंट भी मिल गया.

 जी हां, मेरा पहला पोईंट है कि ज्यादा से ज्यादा  महिलाओ को रक्तदान की महत्ता समझा कर उन्हें प्रेरित करना.

Monica Gupta

रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें  – Monica Gupta

 रक्तदान के लिए प्रेरित कैसे करें 

हम सब जानते हैं कि खून की कमी में हम महिलाए अव्वल नम्बर है अपने शरीर का ख्याल न रखने में महिलाए अव्वल है वही दूसरी ओर अपने परिवार में सभी का ख्याल रखने मे भी अव्वल नम्बर पर हैं और तो और अक्सर जब रक्तदान की बारी आती है तो अपने पति और बच्चों को लेकर बहुत संजीदा हो जाती है.

इसी बात पर मुझे एक उदाहरण याद आ रहा है जोकि एक साक्षात्कार के दौरान रक्त दानी हजारी लाल बंसल जी के बेटे ने बताया. उन्होनें बताया कि एक महिला के पति जोकि प्रोफेसर थे उनके पास रक्तदान के लिए फोन आया. प्रो साहब  ने पत्नी को बताया तो पत्नी का  चेहरा उतर गया खैर पत्नी को नाराज करके वो घर से निकल गए.रक्तदान केंद्र  गए तो एक व्यक्ति पहले ही वहां लेटा रक्तदान कर रहा था तो पति महाशय कुछ देर वहां बैठ कर बतिया कर चाय बिस्कुट खाकर आधे घंटे में घर लौट आए.

पत्नी जी बाहर ही खडी थी पति को देखते ही बोली ओह आप कितने कमजोर लग रहे हो चेहरा भी उतर गया है. आराम से आईए भीतर. पति ने जब समझाया कि ऐसी कोई बात नही उन्होने रक्त दिया ही नही सारी बात बताने पर पत्नी को बहुत झेप आई. यह किस्सा बताने का मतलब यही है कि  महिलाओ के मन से वहम निकाल कर रक्तदान के लिए  उन्हे प्रेरित करना होगा और अगर वो प्रेरित हो गई तो एक बात की गारंटी है कि किसी को भी जागरुक करने में अव्वल होंगीं अगर वो जागरुक हो गईं तो यकीनन देश से रक्त  की कमी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.

*इसके साथ साथ हमेशा नए विचारो को महत्ता देनी चाहिए. युवा वर्ग  को सुनना चाहिए. खासकर बच्चे भी स्मार्ट फोन की तरह बहुत स्मार्ट हो गए है. वैसे इसी स्मार्टनेस पर फिर एक  छोटी सी कहानी याद आ रही है कि एक आदमी नाई से अपने बाल कटवा रहा होता है एक बच्चे को आता देख नाई आदमी से कहता है कि आपको कुछ दिखलाता हूं फिर नाई ने बच्चे को अपने पास बुलाया और अपने एक हाथ में 10 रूपए का नोट रखा और दूसरे में 2रूपए का सिक्का, तब उस लड़के को बोला “बेटा तुम्हें कौन सा चाहिए?” बच्चे ने 2 रूपए का सिक्का उठाया और बाहर चला गया।
नाई ने कहा, “मैंने तुमसे क्या कहा था ये लड़का कुछ भी नही जानता, बुद्दू है अगर समझदार होता तो दस रुपए ही उठाता. बाल कटवाने के  बाद  जब वो बाहर निकला तो उसे वही बच्चा दिखा जो आइसक्रीम की दुकान के पास खड़ा आइसक्रीम खा रहा था।“ उस आदमी ने बच्चे से पूछा कि  उसे दस और दो रुपए मे फर्क नही मालूम बच्चे ने अपनी आइसक्रीम चाटते हुए जवाब दिया, “अंकल जिस दिन मैंने 10 रूपए का नोट ले लिया उस दिन खेल खत्म। अगर मै 10 रुपए ले लूंगा तो आगे से वो मुझे आगे से कभी नही देंगें. बहुत समझदारी थी उसकी बात में.  तो पोईंट  यही है कि युवाओ के नए नए  विचारो को अपनाना चाहिए. इसी कडी स्कूलों  मे काम्पीटिशन और क्विज शो करवाए जाए या आन अलईन प्रतियोगिताए करवाई जाएं  ताकि बच्चे रक्तदान की महत्ता को जाने.

*इसी संदर्भ में अलग अलग जगह जाकर रक्तदान प्रदर्शिनी का आयोजन किया जाए ताकि अन्य राज्यो क्या हो रहा है हमॆं जानकारी मिलती रहे  और हम उससे बेहतर क्या अलग और नया कर सकें.

*जनता और ब्लड बैंक के बीच सीधा संवाद हो तो ना सिर्फ जनता जागरुक बनेगी बल्कि उसके ब्लड बैंक या रक्तदान से सम्बंधित जो भ्रंतियां हैं वो भी दूर होंगी जोकि बेहद जरुरी है और रक्तदान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है.

*रक्तदान है तो गंभीर विषय पर मनोरंजक ढंग से या कुछ इस ढंग से  अपनी  बात रखी जाए कि लोगो के दिल को छू जाए तब भी जनता में रक्तदान के प्रति जनता में जागरुकता आ सकती है.

*इस क्षेत्र मे सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि हमें स्वैच्छिक रुप से रक्तदान  और जनता को भी प्रेरित करते रहना चाहिए भले की कोई सराहे या न सराहे. बस अपने कार्य मे निस्वार्थ सेवा से जुटे रहना चाहिए. सेवा से याद आया कि क्या आप जानते हैं कि “मैन आफ द मिलेनियम” कौन हैं. नही जानते !!! अच्छा रजनीकांत के बारे मे कितने लोग जानते हैं ह हा वो शायद सभी जानते हैं

मै आपको बताना चाहूगी कि रजनीकांत भी उन्हे अपना पिता मानते हैं. अब सोचिए कितने दमदार होंगें वो व्यक्ति. उनका नाम है पी. कल्याण सुंदरम. लाईबरेरी सांईस में गोल्ड मेडलिस्ट सुंदरम दक्षिण भारत के तमिलनाडू मे रहते हैं और पिछ्ले 30 सालो से अपनी सारी कमाई सामाजिक कार्यो मे लगा रहे हैं और रिटायर्मेंट के बाद जब पेंशन के दस लाख मिले तो वो भी समाज सेवा मे लगा दिए. अमेरिका सरकार ने उन्हे मैन आफ द मिलेनियम से नवाजा और 30 करोड रुपए भी दिए. वो भी इन्होने सेवा मे लगा दिए. आपके मन मे यह प्रशन भी आ रहा होगा कि खुद कैसे जीवन यापन करते तो एकाकी जीवन जीने वाले सुंदरम  पार्ट टाईम वेटर का काम करके अपना खर्चा चलाते हैं. ऐसे व्यक्तित्व प्रेरणा का स्रोत्र बनते हैं इसलिए हमे ऐसे लोगो से कुछ सीखना चाहिए और बस  निस्वार्थ भाव से सेवा करते रहनी  चाहिए.

 *कुछ ऐसे मरीज जिन्हें रक्त की जरुरत समय समय पर पडती रहती है ऐसे मरीजो के संदेश जनता तक पहुंचाने से भी लोगो में रक्तदान की भावना बढती है. जम्मू निवासी हीमोफीलिया के मरीज जगदीश जी हैं वो शिक्षक है और अपनी आधी तन्खाह हीमोफीलिया के मरीजो पर खर्च करते हैं वहीं मुम्बई से संगीता हैं जो थैलीसीमिया का सामना बेहद बहादुरी से कर रही हैं उन्होने थैलीसेमिया की वजह से अपनी बहन को खोने के बाद फेस, फाईट और फिनीश के नाम से इस बीमारी को जड से ही खत्म करने पर सराहनीय कार्य कर रही है यकीनन ऐसे लोगो के उदाहरण उनकी अपील भी नई दिशा दिखा सकती है.

*जो लोग इस क्षेत्र मे अभूतपूर्व काम कर रहे हैं उनसे जुडे रहना चाहिए और दूसरो को भी उनके बारे मे बताते रहना चाहिए. चाहे कोई व्यक्ति विशेष हो या पूरी टीम. व्यक्ति विशॆष की अगर मैं बात करु तो मैं कुछ ऐसे नाम जरुर लेना चाहूगी जोकि रक्तदान के क्षेत्र मे एक मिसाल है. दिल्ली डाक्टर संगीता पाठक, चंडीगढ से डाक्टर रवनीत कौर, श्री राकेश सांगर (पंचकुला) , ब्लड कनेक्ट टीम (नई दिल्ली) ,  श्री राजेंद्र महेश्वरी (भीलवाडा), श्री दीपक शुक्ला(जलगांव) , डाक्टर सोनू सिह (दिल्ली),  जगदीश कुमार (जम्मू) संगीता वधवा(मुम्बई) और बेहद सराहनीय कार्य कर रहें हैं. ये वो नाम हैं जब भी विभिन्न राज्यों से मेरे पास जब भी रक्त की जरुरत के लिए फोन आए और मैने इन लोगों को सम्पर्क किया तो इन्होने तुरंत अरेंज करवा दिया और मरीज को नया जीवन मिल गया . ना जाने कितने परिवारो के लिए ये हीरो और हीरोईन हैं और इन सबसे उपर  मेरे जीवन साथी संजय जी जिन्होनें मुझे हमेशा प्रेरित किया कि अगर रक्तदान नही कर सकती तो कोई बात नही लोगो को जागरुक और मदद तो कर ही सकती हो.ऐसे व्यक्तित्व का हमेशा हमे धन्यवादी होना चाहिए.

*और जैसाकि मैने शुरु में बताया था कि डाक्टर कंचन का फोन आते ही मैने नेट देखना शुरु किया. असल में, नेट के माध्यम से भी हमे रक्तदान के क्षेत्र मे ना सिर्फ देश की बल्कि विदेशो की भी नई नई जानकारी  मिलती रहती है इसलिए सोशल नेट वर्किंग साईटस भी देखना बहुत जरुरी है.

*अपना या अपनी संस्था का अच्छा सा प्रोफाईल बना कर भी लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है. ताकि जनता को लगे कि सही मायनो मे कौन किस तरह से और कितना काम कर रहा है और अगर वो भी इस कार्य का हिस्सा बनना चाहे तो बन सकें. उसमे अपनी उपलब्धियां और विस्तार से जानकारी होनी चाहिए.

*होली, जन्मदिन, सालगिरह इत्यादि कुछ खास दिनो पर रक्तदान करके लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है.

*अखबार या अन्य पत्र पत्रिकाओं में  रक्तदान से सम्बंधित अच्छे रंगीन लेखों के माध्यम से जागरुक किया जा सकता है.

* रक्तदान से सम्बंधित कार्टून बना कर भी समाज  मे जागरुकता लाई जा सकती है.

*जागरुक करने के लिए कोई ईवेंट किया जा सकता  हैं , कुछ हट कर कर दिखा सकते हैं ताकि जनता के मन मे जिज्ञासा बनी रहे. जैसाकि सूरत के अखिल भारतीय तेरापंथी युवक परिषद ने रक्तदान कैम्प लगाया था. जो कि अपने आप में ही एक रिकार्ड है. आईएसबीटीआई ने भी पिछ्ले साल 12 अगस्त को एक विशाल ब्लड ड्राप बना कर एक कीर्तिमान कायम किया. और इस तरह जैसे हर साल आईएसबीटीआई कांफ्रेस आयोजित करती है ऐसे की करती रहे ताकि नई नई बाते पढने सुनने और जानने का अवसर  मिलें

और सबसे जरुरी बात यह कि हमें खुद को टटोलना है लोगों की बातों मे आए बिना खुद को जागरुक बनाना हैं क्योकि

मसला ये भी है इस बेमिसाल दुनिया का
कोई अगर अच्छा भी है
तो वो अच्छा क्यूँ है !!!

Transcon 2014 पटियाला  के दौरान मेरे लेक्कचर के कुछ अंश ….

ISBTI

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