अभी तक मेरी लिखी सात पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं. जिसमें से दो नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित है. किताबों मे व्यंग्य, नाटक, बाल कहानियां, स्वच्छता, प्रेरक जीवनी पढने को मिलेगीं
बच्चे और कार्टून चैनल
बच्चे और कार्टून चैनल
बहुत सारे बच्चे पार्क में खेलते हुए बतिया रहे थे कुछ स्कूल की तो कुछ होम वर्क की बाते कर रहे थे और एक बच्चों का समूह शायद थक हार कर बैठ गया था और उनके बीच शुरु हो गया कार्टून का वार्तालाप. सभी अपनी अपनी पसंद के कार्टून बता रहे थे. किसी को डेक्स्टर किसी को पावर पफ गर्ल तो किसी क शिन चैन पसंद है…
शिन चैन का नाम लेते ही मुझे याद आया कि कुछ दिनों पहले जब शिन चैन देख अतो उसकी शब्दावली ऐसी थी कि अगर बच्चे बोले तो …. अच्छा नही लगेगा. वैसे एक ये भी महसूस की कि अगर कोई मूवी डब हो हिंदी में या कार्टून हिंदी मे डब हो तो भाषा बहुत गंदी इस्तेमाल करते हैं जबकि आम बोल चाल मॆं ऐसा नही होता.
इसी की कुछ और बाते सर्च करने के लिए मैनें पर देखा.
आजकल कार्टून की दुनिया भी अपनी सोच और हास्य में बॉलीवुड फ़िल्मों की तरह हो गई है. फ़िल्मों पर ‘क़ैंची’ चलनी तो आम बात थी ही अब बच्चों के कार्टूनों पर भी क़ैंची लगने लगी है.
BBC
आजकल कार्टून की दुनिया भी अपनी सोच और हास्य में बॉलीवुड फ़िल्मों की तरह हो गई है. फ़िल्मों पर ‘क़ैंची’ चलनी तो आम बात थी ही अब बच्चों के कार्टूनों पर भी क़ैंची लगने लगी है.
जिन कार्टूनों को देखकर बच्चे हँसते हैं, ख़ुश होते हैं उन पर भी ‘कैंची’ चलने का दौर शुरू हो गया है.
भारत में पिछले एक दशक में ‘जापानी’ कार्टूनों ने अपना दबदबा बनाया है. जो बच्चे ‘टॉम एंड जेरी’ और ‘टेलस्पिन’ जैसे कार्टून देखा करते थे. वहीँ आज ‘डोरेमोन’, ‘शिनचैन’ जैसे कार्टून चरित्रों के दीवाने हैं.
बी.सी.सी.सी, यानि ‘ब्राडकास्टिंग कंटेंट कम्प्लेंट्स काउंसिल’ एक संस्था है. यहां टेलीविज़न पर दिखाए जा रहे कार्यक्रम के ‘आपत्तिजनक’ दृश्यों के विरोध में कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.
हाल ही में बी.सी.सी.सी में बहुत से माता पिता ने शिकायतें दर्ज कीं. इन शिकायतों में कहा गया कि कार्टून चैनल ‘अनुचित’ दृश्य दिखा रहे हैं. बी.सी.सी.सी ने तुरंत इन कार्टून चैनलों को हिदायत दी की वे ऐसा कोई दृश्य न दिखाए जो बच्चों के लिए ठीक न हों.
अब कार्टून चैनल आपत्तिजनक दृश्यों को हटा कर उन्हें बिलकुल ही नए रूप में ढाल रहे हैं.
डबिंग इंडस्ट्री के निर्देशक या क्रिएटिव एक्सपर्ट ऐसे कार्टूनों पर अपनी पैनी नज़रें जमाए रखते हैं. उन्हें बदल कर वे ऐसे कार्टून तैयार करते हैं जिसके चाहने वाले देश भर के बच्चे होते हैं.
कार्टून किरदारों को डब करते वक़्त छोटी मोटी तब्दीलियाँ अक्सर हर विदेशी कार्टून और प्रोग्राम में करनी पड़ती है. क्योंकि उनके विचार स्थानीय दर्शकों के विचारों से मेल नहीं खाते.
पर कई बार कार्टून की तब्दीलियाँ काफ़ी अजीब और मज़ेदार होती हैं.
अलका शर्मा अरसे से शिनचैन की आवाज़ रही. ‘शिनचैन’ जापानी कार्टून है. वह एक पांच साल का बच्चा है और अपने माता पिता और बहन के साथ रहता है.
शिनचैन बेहद नटखट किरदार है और बच्चों में ख़ासा लोकप्रिय है.See more…
amitabh bachchan to play superhero cartoon in tv series: :
एक सूत्र ने कहा कि 72 साल के महानायक ने ‘एस्ट्रा फोर्स’ कार्टून के लिए एंटरटेनमेंट कंपनी ग्राफिक इंडिया और डिजनी से हाथ मिलाया है. इस सुपरहीरो की रचना अमिताभ और ग्राफिक इंडिया के सीईओ और सहसंस्थापक शरद देवराजन को करनी है. अमिताभ बच्चन के सुपरहीरो अवतार वाली इस काटूर्न सीरीज को डिजनी चैनल लॉन्च करेगा. यह कार्टून हंसी-मजाक, मारधाड़ , रोमांच और रहस्य से भरपूर बताया गया है.
अमिताभ छोटे पर्दे पर इससे पहले रियलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सूत्रधार के रूप में और धारावाहिक ‘युद्ध’ में मुख्य भूमिका में नजर आ चुके हैं. Read more…
कार्टून साफ सुथरी हों प्रेरक हों तो बहुत कुछ हम इनसे सीख सकते हैं जैसाकि बचपन में हम अमर चित्र कथा पढ कर सीखते थे. अगर सुधार नही होगा हर बच्चा बहुत शान से शीन चैन जैसे किरदार बोलता नजर आएगा और हमारी आखॆ शर्म से झुकती चली जाएगी …
वैसे आपके क्या विचार हैं इस बारे में …
बाल कहानी- सबक
बाल कहानी- सबक
बाल कहानी- सबक
लोटपोट में प्रकाशित बाल कहानी- सबक
बच्चों की कहानियाँ हमेशा रोचक होती है. जिसमे कुछ न कुछ नया और सीखने को मिलता है. मेरी ये कहानी लोटपोट मे प्रकाशित हुई थी.
सबक मनु का आज चौथी कक्षा का नतीजा निकला। उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। घर पर तथा विधालय में उसे खूब शाबाशी मिली। पर मनु को पता था कि उसके प्रथम आने के पीछे, उसकी मम्मी की सबसे ज्यादा मेहनत रही। जिसे वो पहले कभी नहीं समझ पाया था लेकिन एक दिन जो उसे सबक मिला वह शायद उसे कभी भुला नहीं पाएगा।
अपना रिपोर्ट कार्ड देखते-देखते, वह अतीत में खो गया बात पिछले साल से शुरू हुर्इ थी, लेकिन लगता है मानों कल की ही बात हो। बात तीसरी कक्षा की थी। इकलौता और नासमझ मनु बहुत ही शरारती था। उसके पापा दिन रात काम में लगे रहते। मम्मी घर का ख्याल रखती और मनु का भी बेहद ख्याल रखती। चाहे वो कितना भी जरूरी काम कर रही होती लेकिन मनु की आवाज सुनते ही वो सारा काम छोड़ कर आ जाती। मनु पर, ज्यादा ध्यान देने के कारण उन्हें मनु के पापा भी कितनी बार डांट देते कि तुम बिगाड़ रही हो। देखो, कितना मुंह फट होता जा रहा है, लेकिन मम्मी की तो मानो मनु जान ही था। हां, लेकिन एक बात अवश्य थी कि वो मनु की पढ़ार्इ पर जोर देती थी।
मनु चाहता था कि जैसे और बच्चों ने टयूशन रखी है उसकी भी रख दो। लेकिन ना जाने वो टयूशन के बहुत खिलाफ थी। वो अक्सर मनु को पढ़ाती-पढ़ाती खुद तो विधार्थी बन जाती और मनु शिक्षक। मनु एक-एक बात मम्मी को समझाता। इससे दोनों का फायदा होता। मनु को पाठ पूरी तरह से समझ आ जाता था। मम्मी तब हंस कर कहती कि अगर तुम्हारे जैसा शिक्षक मुझे मेरे बचपन में मिला होता तो मैं भी हमेशा अच्छे नम्बर लेती। मनु को अपनी मम्मी के अनुभव सुनने में रूचि होती। मम्मी बताती कि अपने स्कूल टार्इम में तो वह बहुत नालायक थी और हमेशा पोर्इंट पर ही पास होती। और जब रिपोर्ट सार्इन करवानी होती तो ना जाने कितने तरले और खुशामद वह अपनी मम्मी की करती। हिसाब में सवाल समझाने के लिए तो मनु को बहुत ही मेहनत करनी पड़ती क्योंकि उसकी मम्मी को सवाल समझ ही नहीं आता था।
अक्सर मनु के पापा घर पर स्कूल का खेल देखकर मुस्कुरा कर ही रह जाते। धीरे-धीरे मनु की पढ़ार्इ में सुधार होना शुरू हुआ। वह अक्सर अपने दोस्तों को अपनी मम्मी की पढ़ार्इ के बारे में बताता और कर्इ बार तो मजाक भी उड़ाने लगा। मम्मी आप तो बिल्कुल ही नालायक हो, पता नहीं स्कूल जाकर क्या करती थी। पर मम्मी सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती और बोलती, मैंने तो अपने सारे साल व्यर्थ ही गवाएं पर तुम तो अव्वल आओ।
पहले जब मनु के क्लास टेस्ट में कम नम्बर आते तो वह अपनी मम्मी को ही दोष देता। कम तो आऐंगें ही, नालायक मम्मी का बेटा भी नालायक ही होगा। पर सहनशीलता की मूर्ति मम्मी चुपचाप हल्की सी मुस्कुराहट देकर काम में लग जाती। एक बार तो मनु का दोस्त स्कूल से घर आया तो उस दिन हुए क्लास टैस्ट के नम्बर मम्मी ने दोनों से पूछे तो दोनों ने मजाक उड़ाते हुए कहा, आप से तो अच्छे ही आए हैं। कम से कम हम पास तो हो गए।
समय बीतता रहा। मनु की पढ़ाई में फर्क आने लगा। लेकिन मम्मी का मज़ाक बहुत उड़ाने लगा। एक दिन मनु के सिर में बहुत दर्द उठा तो मैड़म ने उसे आया जी के साथ घर भिजवा दिया। पापा दफ्तर जा चुके थे। मम्मी अलमारी की सफाई कर रही थी और सारा सामान फैला पड़ा था।
अचानक उसे देख मम्मी सारा काम छोड़ कर उसकी देखभाल में जुट गई… उसे दवाई देकर आंखे बंद करके लेटने को कहा और चुपचाप उसका सिर सहलाने लगी।
तभी पड़ोस की आंटी ने आवाज दी और मम्मी बाहर उठ कर चली गई। मनु ने चुपचाप करवट बदली तो देखा एक लिफाफे से कुछ तस्वीरें बाहर झांक रही हैं। वह उत्सुकता वश उठा तो उन तस्वीरों को देखने लगा।
तस्वीरों के नीचे एक लिफाफा और बंधा हुआ था, तस्वीरें देखते-देखते उसकी हैरानी की सीमा ही ना रही। वह सभी तस्वीरें उसकी मम्मी की बचपन की ईनाम लेते हुए थी और जब उसने दूसरा लिफाफा खोला तो उसमे उसकी मम्मी की सारी रिपोर्ट कार्ड थी।
वह हैरान रह गया कि वह हर विषय में पूरी क्लास में हमेशा प्रथम आती रही। तो क्या सिर्फ मनु को पढ़ाने के लिए, अच्छे अंक लेने के लिए उन्होंने यह झूठ बोला। मनु सोचने लगा कि उसने अपनी मम्मी को क्या-क्या नहीं कहा। उसे बहुत ही शर्म आ रही थी।
मम्मी के कदमों की आहट सुनते ही उसने तुरन्त सब फोटो और कागज थैली में ड़ाल दिए और सोने का उपक्रम करने लगा। मम्मी उसके तकिए के सिरहाने बैठ कर उसका माथा दबाने लगी। किन्तु इस बार मनु अपना रोना रोक नहीं पाया और वह मम्मी से लिपट कर रोने लगा।
मम्मी ने सोचा कि शायद इसके बहुत दर्द है। वह, डाक्टर को फोन करने के लिए उठने लगी पर, मनु ने मना कर दिया।
उधर मम्मी लिफाफे से झांकती तस्वीरें देख कर समझ गई थी कि मनु को उनके बारे में पता चल गया है। वह मनु की पीठ थपथपाने लगी और बोली कि अपने बच्चों को उन्नति के पथ पर बढ़ाने के लिए ऐसे छोटे-छोटे झूठ तो बोलने ही पड़ते हैं।
पर उस दिन मनु ने मन ही मन कसम ले ली थी कि वो भी अपनी मम्मी की तरह ही प्रथम आया करेगा और आज वही Report Card हाथ में थी।
बाल कहानी- सबक
कैसी लगी आपको ये कहानी … जरुर बताना 🙂
बाल कहानी- नानी मां
बाल कहानी- नानी मां
नानी के घर से मैं अपना सारा सामान समेट रही हूं। मैं आज पापा-मम्मी के साथ दिल्ली लौट रही हूं। अरे ∙∙∙! मैंने अपना परिचय तो दिया ही नहीं………। मैं हूं मणि। मेरा आठ साल पहले मसूरी के स्कूल में दाखिला हो गया था। नानी के मसूरी में रहने के कारण मैं छात्रावास में नहीं रही। अब मेरी दसवीं कक्षा की पढ़ार्इ खत्म हो गर्इ है और उससे भी बड़ी बात यह है कि नानी भी हमेशा के लिए अपने छोटे बेटे यानि मेरे मामा के पास अमरीका रहने के लिए जा रही हैं, विदेश जाने का उनका एक ही कारण है, वह है अकेलापन। वैसे वो भारत भी आएंगी, लेकिन कब……. इसका पता नहीं।
नानी पहले ही दिल्ली जा चुकी थीं। मैं मम्मी-पापा के साथ अपना सामान समेट रही हूं। चुपचाप आंसू भी छिपाने की कोशिश में हूं। मैं लगभग आठ साल से नानी के साथ रह रही हूं। मुझे वो इतनी…….इतनी प्यारी लगती हैं कि मैं सोच भी नहीं पा रहीं हूं कि मैं उनके बिना कैसे रहूंगी। इस बडे़ से घर के कमरे-कमरे में मेरी यादें बसी हैं। रजार्इ में बैठे-बैठे नानी का भीगे बादाम खिलाना, खांसी होने पर अदरक-शहद चटवाना और हर रविवार को इलायची चाय पिलाना।
सच, मेरी नानी हर काम में एकदम होशियार थीं। मम्मी भी बहुत अच्छी हैं, लेकिन जब से उन्होंने पापा के साथ व्यापार में हाथ बंटाना शुरू किया है, तब से वह बदल सी गर्इ हैं। सच पूछो तो मुझे छात्रावास भेजने का भी यही कारण रहा होगा ताकि वे बिना रूकावट व्यापार कर सकें। वो तो मैं नानी की वजह से आठ साल मजे से निकाल गर्इ। लेकिन अब मेरा दिल्ली जाने को बिल्कुल मन नहीं है।
बाहर पापा जल्दी करो की आवाज लगा रहे थे। उधर मम्मी मुख्य द्वार पर ताला लगा ही रही थीं कि मैंने प्यास का झूठा बहाना बनाया और रसोर्इ में भागी। असल में, मैं अपने आंसू मम्मी-पापा को दिखाना नहीं चाह रही थी। पानी पीते-पीते मैं रसोर्इघर की दीवारें, बर्तन सभी ध्यान से देख रही थी। नानी ने बोल दिया था कि मैं भारत लौट के नहीं आ पाऊंगी तो यह घर मेरी बेटी और उसके पति के हवाले है, चाहे वो इसे रखें या बेचें। उन्होंने सारे कागज मम्मी को थमा दिए थे। पापा, मम्मी की तो योजना बननी और उस पर लड़ार्इ होनी शुरू हो गर्इ थी। मकान बेचने में दोनों को बहुत फायदा दिख रहा था।
अचानक मम्मी की आवाज सुनकर मैंने अपने पर्स में जल्दी से कुछ रखा और बाहर आ गर्इ। पापा गुस्सा कर रहे थे कि यहां से देर से चलेंगे तो दिल्ली देर से पहुंचेंगे और अगर हम समय से नहीं पहुंचे तो नानी की फ्लाइट गर्इ तो हमें उन्हें बिना मिले ही वापस आना पड़ेगा। नानी से मिलने के शौक में मैं जल्दी से कार में बैठ गर्इ और मम्मी भी ताला लगाकर कार में बैठ गर्इ। मसूरी की गोल-गोल बनी सड़कों से गाड़ी नीचे उतर रही थी। मेरा दिल बैठा जा रहा था। बार-बार मैं अपने पर्स में झांक लेती। पर्स अपनी गोदी में ही रखा था और मैं उसे सहला रही थी। उधर, मम्मी-पापा की बहस जारी थी। पापा चाह रहे थे कि घर की लिपार्इ-पुतार्इ करके ही घर बेचा जाए, जबकि मम्मी कह रही थी कि जैसे है वैसा ही बेच देते हैं क्योंकि लिपार्इ…. आदि करवाने में खर्चा बहुत आएगा। खर्चा क्यों करें। सच, पैसा कितना दिमाग घुमा देता है, मैं आज देख रही थी। मुझे याद है कि नानी किस तरह घर का ख्याल रखती। पुराने समय का पत्थर, लकड़ी से बना इतना सुन्दर घर था कि लोग घर के सामने खड़े होकर तस्वीरें खिंचवाते थे।
नानी खुद भी बहुत हंसमुख व मिलनसार थीं। मेरी मम्मी…… बिल्कुल अलग थीं। नानी पुराने सामान को कितना सहेज कर रखती थीं। खासकर मेज, कुर्सी, रसोर्इ के पुराने बर्तन। तभी गाड़ी के ब्रेक लगे और मैं अतीत की यादों से निकल कर धरातल पर लौट आर्इ।
मैंने पुन: पर्स खोला, उसमें देखा और फिर उसे सहलाने लगी। मम्मी को कुछ शक-सा हो चला था।
उन्होंने पापा को कुछ इशारे से बताया, फिर मेरे हाथ से पर्स लेते हुर्इ मम्मी बोली, चलो, तुम सो जाओ, थक गर्इ हो। लेकिन वो पर्स मैंने उनके हाथों से खींच लिया। मम्मी भी गुस्से में आ गर्इं। मैं इतनी देर से देख रही हूं तू पर्स में बार-बार क्या देखे जा रही है। ला, दिखा तो सही, इसी छीना-झपटी में पर्स हाथों से खुल कर छूट गया। मम्मी जल्दी-जल्दी देखने लगी कि आखिर है क्या इस पर्स में……..। आखिर मैं ऐसी क्या अनमोल वस्तु लेकर जा रही हूं अपने पर्स में……। पापा गाड़ी चलाते-चलाते पूछ रहे थे कुछ मिला, मम्मी टटोल रही थी……. अचानक मम्मी का हाथ किसी से टकराया उन्होंने उसे बाहर निकाला ये क्या….. चम्मच, तू चम्मच ले जा रही थी। पापा हंसने लगे।
मेरी आंखों में आंसू डबडबा आए। मां, आपको चम्मच देखकर कुछ याद नहीं आता, अपनी मम्मी का प्यार, दुलार। यह वही चम्मच है जब नानी आपको खाना देने में जरा भी देर करतीं तो आप इसी चम्मच को मेज से ठक-ठक करके कितना शोर मचाती थीं। इस चम्मच से ही मम्मी की प्लेट से राजमा उठाती थीं। मां हैरान-सी बोली, लेकिन तुझे यह सब किसने…..? नानी ने, और किसने बताया। हम हर समय आपके बचपन की ही तो बातें करते रहते थे।
मां एकदम चुप हो गर्इ थीं। मेरा गला भी नानी का नाम लेते ही रूंध गया था। मां, नानी बहुत दूर जा रही हैं, पता नहीं, फिर कभी मिलने आए या ना…..यह चम्मच मैं नानी का हाथ समझकर ले रही हूं। इस चम्मच से अगर मैं खाना खाऊंगी तो समझूंगी कि नानी खाना खिला रही हैं। मां……..मुझे नानी की बहुत याद आएंगी।
और मैं खुल कर रो पड़ी। मम्मी की आंखें भी गीली हो चली थीं।
पापा ने गाड़ी को एक किनारे पर लगा कर रोक दिया था। वह पापा से बोलीं, हम घर को बेचेंगे नहीं, वो हमारा ही रहेगा। आज मणि ने मेरी आंखें खोल दीं। मैं तो पैसे की दौड़ में मां की ममता को ही भूल चुकी थी। शायद इन आठ सालों में मुशिकल से दो या तीन बार ही उनसे मिली थी और शायद यही कारण है कि वो भारत छोड़ कर जा रहीं हैं।
पापा बोले, अभी भी देर नहीं हुर्इ है…… अगर हम समय पर पहुंच गए तो शायद हम मम्मी जी को रोक ही लें। मेरा दिल खुशी से नाच उठा। अब मुझे हवार्इ अड्डे पहुंचने की जल्दी थी। हम थोड़ा देर से पहुंचे थे। दूर नानी जाती हुर्इ दिख रही थी। उनके नाम को बार-बार पुकारा जा रहा था। शायद वो हमारे इन्तजार में ही थीं।
मैं दूर तक उन्हें देख कर हाथ हिलाती रही किन्तु आंखों में इतना पानी भर रहा था कि वह कब ओझल हो गर्इं पता ही नहीं चला। उधर मम्मी भी बहुत उदास थीं।
पापा समझा रहे थे कि एक बार बस अम्मा को जाने दो, मैं बहुत जल्दी उन्हें वापिस लिवा आऊंगा। मैं बहुत खुश थी कि मेरी ममतामयी मां का स्नेह मुझे मिलेगा।
मम्मी मुझसे लिपट कर बच्चों की तरह रोने लगीं और मैं मम्मी की मम्मी बनी प्यार से उनके सिर को सहला रही थी।
बाल कहानी- नानी मां

Photo by vinodbahal
बच्चों की छोटी कहानी – जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग
बच्चों की छोटी कहानी – जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग – क्या होता है जब पौधे को हो जाती है फूड पॉयजनिंग .., एक छोटे से बच्चे की मासूम गलती की वजह से पौधे को हो जाती है फूड पॉयजनिंग.. आखिर कैसे होती है … क्या पौधा बच जाता है या मर जाता है बच्चों की प्यारी और मजेदार मेरी लिखी कहानी सुनिए … ये कहानी बहुत साल पहले बाल भारती पत्रिका में भी प्रकाशित हुई थी…
बच्चों की छोटी कहानी – जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग
मैं हूं नोनू। चौथी क्लास में पढ़ता हूं। पिछले कुछ दिनों से मैं उदास हूं। असल में, बात यह हुर्इ कि दस दिन पहले मेरा जन्मदिन था। पापा ने बहुत सुंदर-सा पौधा उपहार में दिया और मुझसे कहा कि इस पौधे की जिम्मेदारी मेरी है; अगर यह पौधा पूरे साल बढ़ता रहा तो वो मेरे अगले जन्मदिन पर मुझे दो पहियों वाली साइकिल दिलवाएंगे।
( Published in Bal Bharti) बाल भारती में प्रकाशित कहानी
मैं बहुत खुश था। हमारे घर में पहले से ही ढ़ेर सारे पौधे हैं। मम्मी उनकी देखभाल करती रहती है। मैं मम्मी को देखता हूं। बस, पानी ही तो देना होता है। इसमें क्या मुशिकल काम है। मेरी साइकिल तो पक्की ही समझो। पौधा आने के बाद मैं बार-बार उसमें पानी देता ताकि जल्दी-जल्दी बड़ा हो। मेरे दोस्त विक्रम, सन्नी, मीशू और सामी भी पौधा देखने आए और उन्होंने अपने सुझाव दिए कि पौधे को जल्दी से बड़ा कैसे किया जाता सकता है।
इस बात को लगभग दस दिन हो गए हैं लेकिन आज पता नहीं क्यों मुझे मेरा पौधा चुप-चुप सा लग रहा था। मैंने मम्मी को आवाज देकर बुलाया और पौधा देखने को कहा। मम्मी ने प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरा और गमले के पास बैठकर उसे ध्यान से देखने लगीं- ठीक वैसे ही जैसे डाक्टर मरीज को देखता है। मम्मी ने मुझसे पूछा कि पौधे को पानी कब-कब दिया। मैंने बताया कि दिन में चार-पांच बार पानी दिया और दो दिन पहले ही सर्फ के पानी से धोया था और उसी दिन से बार-बार फिनाइल भी ड़ाल रहा हूं ताकि आस-पास मच्छर ना आएं।
मम्मी मेरी बात सुनकर घबरा गर्इ और बोली, अरे! तुम्हारे पौधे को तो फूड पायज़निंग हो गर्इ है। मुझे समझ में तो कुछ नहीं आया पर इतना पता था कि कुछ बहुत बुरा हुआ है। मैं बहुत उदास हो गया। मम्मी ने बताया कि इसे बचाने के लिए इसका तुरन्त आप्रेशन करना पड़ेगा। मम्मी फटाफट खुरपी और घर के बाहर से ताजी मिट्टी ले आर्इं। उन्होंने एक खाली गमले में भरी और उस पौधे को गमले से बहुत ध्यान से निकालकर नए गमले में आराम से खड़ा करके दबा दिया।
अब मेरा पौधा नई मिट्टी और नए गमले में खड़ा था पर वह अब भी चुप था। नए गमले में धीरे-धीरे पानी डालते हुए मम्मी ने कहा कि तुम्हारे पौधे का आप्रेशन तो हो गया है पर अभी भी कुछ नही कहा जा सकता है। अगले तीन दिन में ही पता लग पाएगा कि पौधा ठीक है या मर गया है। मैं बुरी तरह से डर गया। मम्मी मुझे गोद में उठाकर रसोई में ले गई और मुझे ब्रैड देते हुए बोली कि पौधे को फिनाइल क्यों दी?
मैंने बताया कि मेरे दोस्त विक्रम ने बताया था कि अगर पौधे को सर्फ के पानी से नहलाओगे तो वह साफ-सुथरा हो जाएगा और फिनाइल डालेंगे तो कभी कीड़ा नहीं लगेगा, आसपास मच्छर भी नहीं आएगा। इससे पौधा जल्दी-जल्दी बड़ा होगा।
मैंने मम्मी से डरते-डरते पूछा कि यह फूड पॉयजनिंग…… क्या होती है?? मम्मी ने बताया कि फूड मतलब खाना और पायज़न मतलब जहर…..। यानि खाने में जहर। पौधे को खाने में फिनाइल, सर्फ देकर जहर देने का ही काम किया है। पौधे की जड़ों में अगर यह जहर चला गया तो पौधा मर जाएगा और जड़ों में ज्यादा जहर नहीं फैला है तो शायद पौधा बच जाए। अब तो बस भगवान जी की दया चाहिए।
मैं भागकर मंदिर में गया और वहां से अगरबत्ती और माचिस ले आया। मम्मी ने गमले के पास अगरबत्ती जला दी। अब मैंने मम्मी को ध्यान से देखना शुरू किया कि वो पौधों की देखभाल कैसे करती हैं। कितनी बार पानी देती हूं। इन दो-तीन दिनों में मैंने भीगी हुई दाल और पानी ही पौधे को दिया ताकि उसमे जल्दी-जल्दी ताकत आए। मेरे वाले पौधे के नीचे के तीन-चार पत्ते बिल्कुल सूख चुके थे। उधर विक्रम से मैंने कुट्टी कर ली थी क्योंकि उसकी वजह से ही मेरे पौधे का ये हाल हुआ था।
मुझे कल सुबह का इंतजार है क्योंकि जब मैं सोकर उठूंगा तो पूरे 72 घंटे हो जाएंगे। हे भगवान, मेरा पौधा ठीक हो जाए।
अगली सुबह, मैं जब उठा और गमले के पास भागा तो मम्मी जड़ से पौधे को निकाल रही थी और मुझे देखकर कहने लगीं कि वो पौधे को बचा नहीं पाई। मैं रोने लगा। मुझे साइकिल न आने का इतना दुख नहीं था जितना कि पौधे का इस तरह मर जाना था। मैं जोर-जोर से रोने लगा।
तभी मम्मी की आवाज मेरे कानों में पड़ी। अरे…….मैं तो सपना देख रहा था। मम्मी मुझे खुशी-खुशी बता रही थी कि आपरेशन सफल हुआ। उस पौधे में एक नया पत्ता आ गया है। यानि अब पौधा बिल्कुल ठीक है। वह खतरे से बाहर है। मैं भागकर पौधे के पास गया और बहुत ध्यान से देखने पर एक छोटा-सा पत्ता दिखाई दिया।
सुबह – सुबह की सूरज की रोशनी पौधे पर पड़ रही थी। वह हवा में आगे-पीछे झूल रहा था। ऐसा लग रहा था मानो खुशी में झूलता हुआ वह कह रहा हो कि मैं बिल्कुल ठीक हूं…
अब मेरा ख्याल रखना। मैं भागकर मंदिर से अगरबत्ती और माचिस ले आया।
मम्मी ने मुझे प्यार किया और भगवान का नाम लेकर अगरबत्ती जला दी। मेरी डाक्टर मम्मी ने पौधे की बीमारी ठीक कर दी। अब मैं जान गया था कि पौधे की देखभाल कैसे की जाती है। मैं खुशी-खुशी स्कूल जाने के लिए तैयार हो गया क्योंकि दोस्तों को भी तो बताना था।
जब पौधे को हुई फूड पॉयजनिंग – बताना कि ये कहानी कैसी लगी….
बच्चों की मनोरंजक कहानी – कहानी घर घर की – Monica Gupta
बच्चों की मनोरंजक कहानी – कहानी घर घर की – हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से 2015 का “बाल साहित्य पुरस्कार” मेरी लिखी किताब “वो तीस दिन” को मिला. बाल साहित्य बच्चों की मनोरंजक कहानी – कहानी घर घर की – Monica Gupta
बाल कहानी- भईया
बाल कहानी- भईया – कहानियां पढनी या सुननी हम सभी को अच्छी लगती हैं कुछ कहानियां मनोरंजन करती हैं तो कुछ कहानियां बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं तो कुछ कहानियां रिश्तों की नींव को मजबूत बनाती हैं … मेरी ये कहानी भईया दो भाईयों के प्यारे से रिश्ते की कहानी है …
बाल कहानी- भईया
दोपहर का एक बजा है। मैं चिलचलाती धूप में स्कूल से लौट रहा हूं। मेरा नाम मनन है और आठवीं क्लास में पढ़ता हूं। मेरा परिवार मध्यवर्गीय परिवारों में गिना जाता है। हमारे पास अपनी कार, घर और सुविधा का सामान है। मम्मी-पापा दोनों काम पर जाते हैं। एक भार्इ है जो कुछ दिनों पहले होस्टल चला गया है और अब उसे वहीं रह कर पढ़ार्इ करनी होगी…

बाल कहानी- भईया
अचानक साइकिल चलते-चलते भारी हो गर्इ। मैंने रूक कर देखा तो पिछला टायर पंक्चर हो गया था। पैदल ही साइकिल को लेकर चलने लगा। कुछ ही दूरी पर साइकिल की दुकान थी. पहले पहल तो मैं साईकिल पर भईया के पीछे बैठकर स्कूल जाया करता था। भर्इया साइकिल चलाते थे। लेकिन जबसे मेरे दोस्तों ने मुझे चिढ़ाना शुरू किया तो मैंने साईकिल छोड कर स्कूल बस लगवा ली थी।
भर्इया साइकिल पर जाते और मैं बस से। दोनों अलग-अलग आते और अलग-अलग जाते। आपस में कामिपीटिशन करते कि कौन पहले घर पहुंचता है। घर पहुंचकर रिमोट हथियाना होता था। फिर शुरू होता था लड़ार्इ का दौर। मम्मी-पापा समझा-समझाकर हार जाते।
हमारे लड़ने-मनाने-रूठने का क्रम जारी रहता। भर्इया के होस्टल जाने के बाद मैंने बस छोड़कर साइकिल से जाना शुरू कर दिया था। अचानक ध्यान टूटा तो देखा सामने साइकिल वाले की दुकान आ गर्इ थी। मैंने उसे पंक्चर देखने को कहा और हैंडिल से पानी की बोतल निकालकर उसे पीने लगा।
अब कितने आराम से पानी पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था और पीते-पीते सोचने लगा कि अब कितने आराम से पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था तो घर में तूफान खड़ा हो जाता। लेकिन अब लड़ने वाला कोर्इ नहीं है। न चाहते हुए भी मेरी आंखें गीली हो गर्इं। जल्दी से आंखें पोंछी। स्कूल से बच्चे घर जा रहे थे। कुछ के भार्इ उन्हें लेकर जा रहे थे, तो किसी की मम्मी स्कूटी पर, वहीं कुछ भार्इ-बहिन पैदल बातें करते जा रहे थे। मैं इस भीड़ में स्वयं को अकेला महसूस कर रहा था।
भर्इया जब होस्टल जा रहे थे तो मैं कितना खुश था कि अब तो पूरे कमरे, कम्प्यूटर रिमोट, कुर्सी-मेज, अलमारी और साइकिल पर सिर्फ मेरा अधिकार होगा। कोर्इ रोकने-टोकने वाला नहीं होगा। तभी साइकिल वाले ने टोका, कोर्इ पंक्चर नही है। हवा भर दी है। सच पूछो तो अगर भर्इया घर पर होता तो सारा इल्जाम मैं उसी पर लगाता कि भर्इया ने ही साइकिल की हवा निकाली होगी।
खैर, मैं दुबारा साइकिल पर सवार होकर घर चल पड़ा। मम्मी दरवाजे पर खडी इंतजार कर रही थी। मैंने मम्मी को बताया कि साइकिल की हवा निकल गर्इ थी, इसलिए देर हो गर्इ। कमरे में आकर मैं कपड़े बदलने लगा। कमरा साफ-सुथरा था। सब कुछ व्यवसिथत। मम्मी ने खाना लगा दिया। टीवी चलाते हुए मम्मी ने कहा, तुम्हारा मनपसंद कार्टून चैनल लगा दूं। मैंने कहा, कुछ भी लगा दो मेरा मन नहीं है। मम्मी हैरान थी कि कहां मैं सारा दिन लड़ार्इ करके अपनी पसंद का चैनल लगा लेता था और अब देखने का मन नहीं है।
होस्टल से भर्इया जब पहली बार घर आया तो मैंने महसूस किया कि वो कुछ कमजोर सा हो गया है। पर उसे कुछ नहीं कहा। उसे तो मैं वैसे ही चिढ़ाता रहा और महसूस नहीं होने दिया कि मैं बोर भी होता हूं और मुझे उसकी याद आती है। घर पहले की तरह लड़ार्इ से गूंज उठा। वही सुबह बाथरूम पहले जाने की होड़, फिर नाश्ते में पहला परांठा किसका होगा, इस बात पर तकरार……। दो-तीन दिन रहकर भर्इया चला गया। मैं उसे बाय कहने के लिए भी नहीं उठा। हां, अपनी घड़ी में अलार्म जरूर लगा दिया था ताकि वो समय से उठ जाए और उसकी बस न छूटे।
मैं जानता हूं कि भर्इया पढ़ार्इ के मामले में बहुत सनकी हैं। अभी तक सभी कक्षाओं में वह प्रथम रहता आया है। आधा नम्बर भी कट जाता था तो भर्इया घर आकर खाना नहीं खाता था। भर्इया के होस्टल पहुंच जाने पर फोन आया तो मैंने बात नहीं की। मम्मी ने सोचा होगा कि अपने भर्इया से आखिर मैं बात क्यों नहीं कर रहा पर सच पूछो तो मुझे भी नही पता कि भर्इया के जाने से मैं खुश हूं या उदास। कभी-कभी भर्इया का फोन मैं उठाता हूं तो रिसीवर मम्मी या पापा को पकड़ा देता हूं। भर्इया होस्टल में बीमार भी हो गया था, पर मैंने उसकी तबियत नहीं पूछी। मुझे याद है पहले जब मुझे बुखार होता था तो रात को भर्इया मेरा माथा टटोलता कि बुखार ज्यादा तो नहीं हो गया।
खाना खाकर मैं पढ़ने बैठ गया। बहुत देर से एक सवाल हल नहीं हो पा रहा था। अब किसी पर गुस्सा भी नहीं कर सकता कि भर्इया पढ़ने नहीं दे रहा। हालांकि भर्इया चुटकियों में सवाल हल कर देता था। मैं किताब बंद करके लेट गया। मम्मी भी मेरे पास आकर लेट गर्इ। मम्मी की आंखों में मैंने बहुत बार आंसू देखे हैं, पर कभी कुछ नहीं बोला…….।
मम्मी ने अब काम पर जाना कम कर दिया है। शायद मेरी वजह से कि कहीं मुझे अकेलापन खलने न लग जाए। पापा हमेशा की तरह काम में व्यस्त रहतें हैं। हां, मेरे लिए खाना खाते समय मुझसे बातें करते रहते हैं। पर मेरा ध्यान उस समय टेलीविज़न में ही होता है।
भर्इया की पांच साल की होस्टल की पढ़ार्इ है। चाहे मैं बाहर से लड़ाका या गुस्सैल या जैसा भी हूं, पर मेरा ध्यान हरदम मेरे भर्इया में रहता है। शायद मम्मी-पापा इस बात को नहीं समझेंगे। मेरे दिल से सारी शुभकामनाएं मेरे भर्इया को हैं। वो अब भी हर साल प्रथम आए और जो बनना चाहता है वो बने। लेकिन मुझे भर्इया की याद आ रही है, भर्इया घर कब आएंगे……..। मैं आज भी अपने मुंह से कुछ नहीं कहूंगा…..। और मैं दुबारा उठकर सवाल हल करने में जुट गया कि भर्इया हल कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं………….।
बाल कहानी- भईया
ये कहानी बाल कहानी- भईया दिल के बहुत नजदीक है पता नही लिखते हुए कितनी बार आंंखे भर आई और इसे जब भी पढती हूं तो भी आखें नम हो जाती है … !!! सच बताना कि आपको कैसी लगी???
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