Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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July 3, 2015 By Monica Gupta

सैलरी डबल

cartoon sansad by monica guptaसैलरी डबल- एक बार फिर सांसदों की सैलरी का मुद्दा गरमा  गया है इससे पहले 2010 में वेतन दुगुना हुआ था. आम लोगों के अच्छे दिन आएं न आएं, लगता है सांसदों के तो आ ही जाएंगे। प्रस्ताव कहता है कि सांसदों की स्वास्थ्य सुविधाओं में उनके बच्चों के अलावा पोते-पोतियों को भी शामिल कर लिया जाए।

MPs’ salaries – Navbharat Times

फोटो शेयर करें जैसे-जैसे हमारे अधिकांश सांसदों के संसदीय बर्ताव और काम करने के तौर-तरीकों में गिरावट आ रही है, वैसे-वैसे सुविधाओं की उनकी मांगें बढ़ती जा रही हैं। बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली संसद की संयुक्त समिति ने कहा है कि सांसदों के वेतन को दोगुना कर दिया जाए। इस समय सांसदों को मासिक वेतन 50,000 रुपये मिलता है। बात यहीं तक सीमित नहीं है।

सांसदों का दैनिक भत्ता 2000 रुपए से अधिक करने और पूर्व सांसदों का पेंशन भी 75 फीसदी बढ़ाने का प्रस्ताव है। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व सांसदों के वेतन में बढ़ोतरी सन 2010 में की गई थी। बहरहाल, समिति ने कहा है कि सांसदों के लिए ऑटोमैटिक पे रिविजन की व्यवस्था हो ताकि समय-समय पर बढोतरी स्वयं होती रहे। 34 हवाई यात्राओं में 25 फीसदी किराए के प्रावधान से भी सांसद संतुष्ट नहीं हैं। समिति ने 20 से 25 फ्री हवाई यात्राओं सहित करीब 60 सिफारिशें की हैं। इनमें निजी सचिव के लिए प्रथम श्रेणी के एसी रेल-पास की मांग भी शामिल है।

सांसद ग्राम योजना के तहत कुछ भले न हुआ हो, आम लोगों के अच्छे दिन आएं न आएं, लगता है सांसदों के तो आ ही जाएंगे। प्रस्ताव कहता है कि सांसदों की स्वास्थ्य सुविधाओं में उनके बच्चों के अलावा पोते-पोतियों को भी शामिल कर लिया जाए। गौरतलब है कि अपने क्षेत्र में काम कराने के लिए प्रत्येक सांसद 45,000 रुपए का भत्ता हर महीने पाने का हकदार है। ऑफिस के खर्च के लिए भी माहवार इतनी ही रकम मिलती है।

कपड़े और परदे धुलवाने के लिए हर तीसरे महीने 50,000 रुपए मिलते हैं। सड़क मार्ग का इस्तेमाल करने वाले सांसदों को 16 रुपए प्रति किलोमीटर के हिसाब से यात्रा भत्ता मिलता है। लेकिन यह सब इन्हें कम लगता है। ऐसा लगना स्वाभाविक इसलिए है कि हमारे ज्यादातर सांसदों की नजरें उन लोगों पर रही ही नहीं जिनका प्रतिनिधित्व वे करते हैं।

अगर अपने आम वोटरों की जिंदगी पर, उनके जीवन की तकलीफों-चुनौतियों पर नजर डालने का वक्त इन्हें मिले तो शायद इनकी भी प्राथमिकता कुछ बदले। मगर, राजनीति का जो चरित्र बनता जा रहा है, उसमें इसकी संभावना तलाशना आकाश कुसुम तोड़ने जैसा ही हो गया है। ऐसे में यह उम्मीद भर जताई जा सकती है कि वेतन के साथ वे अपनी गरिमा बढ़ाने पर भी ध्यान दें तो बेहतर होगा। See more…

July 2, 2015 By Monica Gupta

Really handicapped

Really handicapped

ladies talking photo

Photo by Katie Tegtmeyer

आज एक महिला बता रही थी कि वो handicapped हो गई है… अरे !!!  फिर  मैने ध्यान उसे देखते हुए पूछा अरे   कहां से, कब और कैसे. तुमने तो बताया भी नही …  इस पर उसने मुझे ही पागल करार देते हुए कहा कि अरी पगली वो वाला handicapped नही बल्कि दूसरे वाला !!!दूसरे वाला मतलब ??? तब उसने बताया कि जहाँ उसने नया घर बनाया है वहां मोबाईल नेट वर्क नही है इसलिए बिना नेट के handicap बराबर ही है. हे भगवान !!

Really handicapped….. वही कुछ दिन पहले एक जानकार भी नई कालोनी मे शिफ्ट हुए हैं. वहां जाने के लिए अभी सडक नही बनी है. एक दिन वो हमारे घर आए और बोले कि भई हम तो  handicapped हो गए है. हमने सोचा कि पता नही कैसे हो गए वो handicapped क्योकि देखने से तो लग नही रहे थे.. तब उन्होने हंसते हुए बताया कि असल में, सडक नही बनी है ना दस मिनट के रास्ते में आधा घंटा लग जाता है इसलिए … हे भगवान !!

मैं उसकी  मानसिकता पर मुस्कुरा दी.  ऐसे शब्दों का लोग किस  सहजता से इस्तेमाल कर लेते हैं ..वैसे सच ही है हम Really handicapped यानि बहुत अपाहिज हो चले है. आखों के सामने अन्याय होते हुए देख कर भी अंधे बन जाते हैं. कही से सच्चाई का स्वर उठे तो हम बहरे बन जाते हैं . अक्सर ईमानदारी का साथ देने के मामलो मे हमारी बोलती बंद हो जाती है. ओफ्फ.. नेट न चले और सडक न बनी हो तो भी  handicapped बहुत ही handicapped   Really  handicapped

 

July 2, 2015 By Monica Gupta

भविष्यकर्ता

cartoon kaam wali bai by monica gupta

भविष्यकर्ता -ये हैं हमारी भविष्यकर्ता !!इनका नाम है मिस टेक … भविष्यवाणी में साढे सात साल का लम्बा अनुभव है … ना जाने कितनी तरह की अलग अलग किताबें इन्होने पढ रखी हैं पर एक बात से ये भी सहमत है कि बेशक हम कितने भी बडे ज्योतिष क्यो न बन जाए पर एक बात आज भी पता नही लग असकते कि काम वाले बाई आज काम पर आऐगी या नही

July 2, 2015 By Monica Gupta

बाल कहानी-मणि

story by monica gupta

बाल कहानी-मणि

मणि छ्ठी क्लास में पढने वाली बेहद चुलबुली और शरारती लडकी है. वो भी बडे होकर कुछ बनना चाह्ती है. कभी सोचती है पत्रकार बन जाऊ कभी सोच में आता है कि टीचर बन जाऊ तो कभी पुलिस अधिकारी पर आखिर में क्या होता है और क्या बनने की सोचती है …

इसी का ताना बाना है बाल कहानी-मणि में …

कहानी का अंत और भी ज्यादा रोचक है कि मणि का फैसला क्या रहता है …

बाल कहानी-मणि

 

ये कहानी नेशनल बुक ट्रस्ट की पत्रिका पाठक मंच बुलेटिन में प्रकाशित हुई थी …

July 2, 2015 By Monica Gupta

लेखों का संसार

Article in champak by Monica guptaPhotograph (131)champak story  monica guptaलेखों का संसार

बेशक आज नेट का जमाना है हर एक चीज क्लिक करके सोशल मीडिया पर डाली जा सकती है जिस करोडों लोग एक ही पल में देख सकते हैं पर आज से 20- 25  साल पहले ऐसा नही था.

एक कहानी या लेख लिखने के बाद पत्र के माध्यम से सम्पर्क करना पडता था. कुछ जाने माने हाउस अकसर जवाब भी देते थे पर कई बार भेजा गया पत्र कही गुम होकर रह जाता था न ही वापिस आता था और न ही प्रकाशित होता था.

जानी मानी बाल पत्रिका जैसे “चंपक” में लेख या अन्य कोई भी सामग्री छपना बेहद गर्व की बात होती थी.

July 2, 2015 By Monica Gupta

कहानी का जन्म

story by monica gupta (2) story monica gupta

कहानी का जन्म

बात सन 92 की यूपी गाजियाबाद की  है . अचाक एक विचार दिमाग में कौंधा और कहानी डाली और  उसे  सांध्य टाईम्स  के दफ्तर जाकर   दे आई . वैसे तो लिखने का बचपन से ही शौक रहा और अपने हिसाब से कहानी भेजती भी रहती थी . पर शायद जानकारी का अभाव था शायद  कभी मौका नही मिला और रचना प्रकाशित नही हुई पर अच्छी बात ये भी रही कि उत्साह कभी कम नही हुआ.

ये बात 92 की है .उन दिनों नेट नही हुआ करता था और लेखकों का पूरा फोकस सांध्य दैनिक और राष्ट्रीय समाचार पत्र पत्रिकाओं पर ही होता था क्योकि भारी तादात में उसे ही पढा जाता था. हां , तो मैं बता रही थी कि कहानी लिखी और सांध्य टाईम्स के दफ्तर में दे आई.  उसी शाम वो कहानी प्रकाशित भी हो गई. इससे लेखनी को बेहद बल मिला और लेखनी लगातार चलती रही.

बहुत लोग चाह्ते हैं कि आज कुछ लिखा और वो राष्ट्रीय पत्र पत्रिका में छप जाए. बेशल सोशल मीडिया बहुत बलवान हो गया है और लेखन को दिखाने का बहुत अच्छा माध्यम भी है पर मेरा मानना है कि  अगर शुरुआत लोकल स्तर पर हो और धीरे धीरे अपनी कमियों को देख कर उपर उठते जाए तो बहुत अच्छा होगा …

और अब तो जबसे नेट की सुविधा हुई है कोई भी अपना ब्लाग बना कर लेखन आरम्भ कर सकता है.

 

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