दैनिक जागरण में कार्टून … दैनिक जागरण में मुद्दा के अंतर्गत कुछ कार्टून … समाज में फैले अलग अलग गम्भीर मुद्दों पर चर्चा करके उनका हल निकाला जाता था … उसी मे प्रकाशित कुछ कार्टून
स्वच्छता के नारे
स्वच्छता के नारे / स्वच्छता पर नारे
स्वच्छता हम सभी के लिए बेहद जरुरी है जानते हैं हम सब पर फिर भी मानते नही है और गंदगी फैलाए चले जाते हैं. ये कहना भी सही नही है कि गंदगी गांव के असभ्य और अनपढ लोग फैलाते हैं.
गंदगी पढे लिखे लोग भी बराबर की ही फैलाते हैं. हैरानी की बात तो तब हुई जब गांव के लोगों मे स्वच्छता की अलख जगाई गई उन्हें खुले मे शौच जाने से होने वाली बीमारियों के बारे मॆं बताया गया तो ना सिर्फ उन्होने घर में शौचालय बनवाया बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करने के लिए नारे भी बना दिए.
ये स्वच्छता के नारे बनाए हैं हरियाणा में जिला सिरसा के गांव वालो ने … जिला प्रशासन के समझाने पर एक नई चेतना जागी और स्वच्छता को एक नया आयाम दिया …
नारे स्वच्छता अभियान के
गाँव वालों ने तो स्वच्छता अभियान को नर्इ दिशा देने के लिए ढ़ेरों नारे बना दिए।
• मूँगफली में गोटा, छोड़ दो लोटा।
• ना जिलें में, न स्टेट में, सफार्इ सारे देश में
• 1-2-3-4, कुर्इ खुदवा लो मेरे यार
• सफार्इ करना मेरा काम, स्वच्छ रहें हमारा गाँव।
• सुन ले सरपंच, सुन ले मैम्बर, कुर्इ खुदवा लें घर के अंदर
• बच्चें, बूढ़े और जवान, सफार्इ का रखो ध्यान
• आँखों से हटाओ पटटी, खुले में न जाओ टटटी
• खुले में शौच, जल्दी मौत
• नक्क तै मक्खी बैन नी देनी, खुल्ले में टट्टी रहन नी देनी
• लोटा बोतल बंद करो, शौचालय का प्रबन्ध करों।
• मेरी बहना मेरी माँ, खुले में जाना ना ना ना….
• ताऊ बोला तार्इ से, सबसे बड़ी सफार्इ सै
• खुले में शौच, पिछड़ी हुर्इ सोच
इस अभियान से लम्बे समय तक जुडे रहने के कारण बहुत नारे पढे सुने और देखे … वाकई नारों में एक अलग ही शक्ति है जागरुक करने की… इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैने भी कुछ नारे लिखे , कुछ गांव वालो के लिए और कुछ नारे नेट से सकलिंत किए और उस ई बुक को
” 101 स्वच्छता के नारे” का नाम दिया… लिंक नीचे दिया है …
महात्मा गांधी भी स्वच्छता पर जोर देते रहे और पंडित नेहरु भी स्वच्छता की अहमियत जनता को समझाते रहे.
महात्मा गाँधी
स्वच्छता स्वतंत्रता से भी महत्वपूर्ण है
स्वच्छता में ही र्इश्वर का वास होता है
पं0 जवाहर लाल नेहरू
जिस दिन हम सबके पास अपने प्रयोग के लिए एक शौचालय होगा मुझे पूर्ण विश्वास है कि उस दिन देश अपनी प्रगति की चरम सीमा पर पहुँच चुका होगा।
जय स्वच्छता
Cover Pages of Books
बच्चे और कार्टून चैनल
बच्चे और कार्टून चैनल
बहुत सारे बच्चे पार्क में खेलते हुए बतिया रहे थे कुछ स्कूल की तो कुछ होम वर्क की बाते कर रहे थे और एक बच्चों का समूह शायद थक हार कर बैठ गया था और उनके बीच शुरु हो गया कार्टून का वार्तालाप. सभी अपनी अपनी पसंद के कार्टून बता रहे थे. किसी को डेक्स्टर किसी को पावर पफ गर्ल तो किसी क शिन चैन पसंद है…
शिन चैन का नाम लेते ही मुझे याद आया कि कुछ दिनों पहले जब शिन चैन देख अतो उसकी शब्दावली ऐसी थी कि अगर बच्चे बोले तो …. अच्छा नही लगेगा. वैसे एक ये भी महसूस की कि अगर कोई मूवी डब हो हिंदी में या कार्टून हिंदी मे डब हो तो भाषा बहुत गंदी इस्तेमाल करते हैं जबकि आम बोल चाल मॆं ऐसा नही होता.
इसी की कुछ और बाते सर्च करने के लिए मैनें पर देखा.
आजकल कार्टून की दुनिया भी अपनी सोच और हास्य में बॉलीवुड फ़िल्मों की तरह हो गई है. फ़िल्मों पर ‘क़ैंची’ चलनी तो आम बात थी ही अब बच्चों के कार्टूनों पर भी क़ैंची लगने लगी है.
BBC
आजकल कार्टून की दुनिया भी अपनी सोच और हास्य में बॉलीवुड फ़िल्मों की तरह हो गई है. फ़िल्मों पर ‘क़ैंची’ चलनी तो आम बात थी ही अब बच्चों के कार्टूनों पर भी क़ैंची लगने लगी है.
जिन कार्टूनों को देखकर बच्चे हँसते हैं, ख़ुश होते हैं उन पर भी ‘कैंची’ चलने का दौर शुरू हो गया है.
भारत में पिछले एक दशक में ‘जापानी’ कार्टूनों ने अपना दबदबा बनाया है. जो बच्चे ‘टॉम एंड जेरी’ और ‘टेलस्पिन’ जैसे कार्टून देखा करते थे. वहीँ आज ‘डोरेमोन’, ‘शिनचैन’ जैसे कार्टून चरित्रों के दीवाने हैं.
बी.सी.सी.सी, यानि ‘ब्राडकास्टिंग कंटेंट कम्प्लेंट्स काउंसिल’ एक संस्था है. यहां टेलीविज़न पर दिखाए जा रहे कार्यक्रम के ‘आपत्तिजनक’ दृश्यों के विरोध में कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.
हाल ही में बी.सी.सी.सी में बहुत से माता पिता ने शिकायतें दर्ज कीं. इन शिकायतों में कहा गया कि कार्टून चैनल ‘अनुचित’ दृश्य दिखा रहे हैं. बी.सी.सी.सी ने तुरंत इन कार्टून चैनलों को हिदायत दी की वे ऐसा कोई दृश्य न दिखाए जो बच्चों के लिए ठीक न हों.
अब कार्टून चैनल आपत्तिजनक दृश्यों को हटा कर उन्हें बिलकुल ही नए रूप में ढाल रहे हैं.
डबिंग इंडस्ट्री के निर्देशक या क्रिएटिव एक्सपर्ट ऐसे कार्टूनों पर अपनी पैनी नज़रें जमाए रखते हैं. उन्हें बदल कर वे ऐसे कार्टून तैयार करते हैं जिसके चाहने वाले देश भर के बच्चे होते हैं.
कार्टून किरदारों को डब करते वक़्त छोटी मोटी तब्दीलियाँ अक्सर हर विदेशी कार्टून और प्रोग्राम में करनी पड़ती है. क्योंकि उनके विचार स्थानीय दर्शकों के विचारों से मेल नहीं खाते.
पर कई बार कार्टून की तब्दीलियाँ काफ़ी अजीब और मज़ेदार होती हैं.
अलका शर्मा अरसे से शिनचैन की आवाज़ रही. ‘शिनचैन’ जापानी कार्टून है. वह एक पांच साल का बच्चा है और अपने माता पिता और बहन के साथ रहता है.
शिनचैन बेहद नटखट किरदार है और बच्चों में ख़ासा लोकप्रिय है.See more…
amitabh bachchan to play superhero cartoon in tv series: :
एक सूत्र ने कहा कि 72 साल के महानायक ने ‘एस्ट्रा फोर्स’ कार्टून के लिए एंटरटेनमेंट कंपनी ग्राफिक इंडिया और डिजनी से हाथ मिलाया है. इस सुपरहीरो की रचना अमिताभ और ग्राफिक इंडिया के सीईओ और सहसंस्थापक शरद देवराजन को करनी है. अमिताभ बच्चन के सुपरहीरो अवतार वाली इस काटूर्न सीरीज को डिजनी चैनल लॉन्च करेगा. यह कार्टून हंसी-मजाक, मारधाड़ , रोमांच और रहस्य से भरपूर बताया गया है.
अमिताभ छोटे पर्दे पर इससे पहले रियलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सूत्रधार के रूप में और धारावाहिक ‘युद्ध’ में मुख्य भूमिका में नजर आ चुके हैं. Read more…
कार्टून साफ सुथरी हों प्रेरक हों तो बहुत कुछ हम इनसे सीख सकते हैं जैसाकि बचपन में हम अमर चित्र कथा पढ कर सीखते थे. अगर सुधार नही होगा हर बच्चा बहुत शान से शीन चैन जैसे किरदार बोलता नजर आएगा और हमारी आखॆ शर्म से झुकती चली जाएगी …
वैसे आपके क्या विचार हैं इस बारे में …
ना खाऊगीं न खाने दूंगी
ना खाऊगीं न खाने दूंगी
मेरी सहेली का बेटा आफिस की ओर से कुछ दिनों के लिए विदेश गया हुआ है. जब उससे फोन पर बात हुई तो वो बेहद दुखी थी उसने बताया कि उसका बेटा वहां कुछ खा नही पा रहा. बचपन से ही उसे शुद्द शाकाहारी बनाया हुआ था. ना खाऊगी और न खाने दूंगी पर टिकी हुई थी. बहुत बार बच्चे का मन होने पर भी उसे डांट दिया जाता था. घर मॆं ही नही बाहर खाने के लिए भी सख्त कानूब बना रखा था. आज उसे गए दस दिन हो गए और वो खा नही पा रहा क्योकि ज्यादातर वहां नान वेज यानि मांसा हार चलता है और सादे खाने की महक ऐसी होती है कि खाना खा ही नही पा रहा.
वैसे आज समय डांट डपट और अपने विचार थोपने का नही है मुझे याद आया कि मेरे एक आंटी बहुत ही ज्यादा सख्त थे. फरमान जारी किया हुआ था कि घर में अंडा ,प्याज नही आएगा. हालाकि उनका बेटा होटल में चोरी चोरी खा आता था. कुछ दिनों पहले जब मैं उनके घर गई तो देखा आंटी खुद आमलेट बना रहे थे. मेरे हैरानी से पूछ्ने पर उन्होने बताया कि उनके पोते को डाक्टर ने अंडा खाने के लिए बोला है.एक बार तो उन्हें अच्छा नही लगा पर सेहत से कोई समझौता नही. इसलिए खाती वो आज भी नही हैं पर बना जरुर देती हैं वो भी खुशी खुशी.
सच , बहुत अच्छा लगा था. बदलते समय के साथ बदलने मॆ ही भलाई है. हमें हमारी बेडियों से हमें आजाद होना ही होगा अन्यथा दुख उठाने पडेगें जैसाकि मेरी सहेली उठा रही है.
आप भले ही न खाओ पर नाक मुंह बना कर बंदिश भी तो न लगाओ..
मैं हूँ आम आदमी
(व्यंग्य)
जी हाँ, मैं हूँ आम आदमी
जी हाँ, मैं आम आदमी हूँ। शत प्रतिशत आम आदमी। मेरी सेहत एकदम बढि़या रहती है क्योंकि आम आदमी हूँ ना घर में इन्वर्टर रखने की हैसियत ही नहीं है इसलिए बिजली जाने पर घर के बाहर ताजी हवा लेता हूँ इसीलिए मेरा श्वसन एवं फेफडे़ एकदम मस्त और दुरूस्त हैं।
तोंदनुमा पेट मेरा है नहीं क्योंकि फास्ट फूड़ तो अमीरों के चोचलें हैं हम तो भर्इ, प्याज रोटी खाते हैं और सुखी रहतें हैं। अरे हाँ….. मुझे चश्मा भी नहीं लगा हुआ। आम आदमी हूँ ना सारा दिन टेलिविज़न से चिपका नहीं रह सकता हूँ। इसलिए मेरी आंखें बिना चश्मे के सुचारू रूप से कार्य कर रही हैं।
आम आदमी हूँ ना इसलिए मेरा किसी से लेन-देन नहीं है ना ही बैंक से रूपया उधार लिया हुआ है इसलिए चैन से सोता हूँ और सुबह ही आँख खुलती है। अपने पड़ोसी को देखकर मैं जलता नहीं हूँ। वो अलग बात है कि मेरे पास सार्इकिल रूपी सवारी है जबकि मेरे पड़ोसी के पास कुछ भी नहीं है।
चुनावों में तो हम आम आदमियों के मजे ही मजे होते हैं क्योंकि उन दिनों नेता हम आम लोगों के घर ही तो दर्शन देते हैं और अपनी तस्वीरें हमारे साथ खिंचवा कर गर्व का अनुभव करतें हैं। अब भर्इ, चूंकि मैं आम आदमी हूँ, पहचान तो कोर्इ है नहीं……….। इसलिए अपने शहर की तीनों-चारों चुनावी पार्टियों के साथ हूँ। कभी किसी के साथ नाश्ता तो कभी दूसरी पार्टी में जा कर चाय पी आता हूँ।
हर सभा में मैं जाता हूँ……..अरे भर्इ……….भाषण सुनने के लिए नहीं……….. बलिक भाषण के बाद बढि़या बैनर फाड़ने के लिए ताकि घर में वो परदे का काम दे जाए। सब्जी की रेहड़ी वाले मुझसे सब्जी का रेट भी ठीक लगाते हैं क्योंकि हाथ में थैला होता है और सार्इकिल से उतरता हूँ वहीं दूसरी ओर जब बड़ी-बड़ी गाडि़यों वाले गाड़ी से उतरते हैं सब्जी लेने के लिए, तो अचानक सबिजयों के दाम एकदम चार गुणा तक पहुँच जाते हैं।
शहर में हर रोज जो हड़ताले होती रहती हैं मैं उसका अहम हिस्सा हूँ जब कहीं हड़ताल या ज्ञापन देना जाता हूँ या फिर भीड़ इकटठी करनी होती है तो मैं वहां मौजूद रहता हूँ क्योंकि भर्इ गाड़ी का आना जाना फ्री और …….. और पता है अपनी दिहाड़ी मिलते ही मैं वहां से खिसक लेता हूँ।
मेरा रिकार्ड रहा है कि मैंने कभी अखबार खरीद कर नहीं पढ़ा। अब भर्इ, मैं कोर्इ खास आदमी तो हूँ नहीं कि अखबार खरीदने पर पैसे खर्च करूं। भर्इ, हर सुबह कभी किसी के दफ्तर में या लाइब्रेरी में जाकर जमकर पढ़ता हूँ। भर्इ, आम आदमी जो ठहरा। इसीलिए मजे कर रहा हूँ।
हाँ, तो मैं कह रहा था कि आम आदमी हूँ ना इसलिए किसी की शादी ब्याह हो तो कर्इ बार भीड़ का हिस्सा बनकर भरपेट भोजन भी कर आता हूँ। अब भर्इ खास आदमी तो हूँ नहीं कि शगुन भी दूं वो भी अपनी हैसियत से बढ़-चढ़ कर। हां, खाने के बाद प्लेट को किनारे पर ही रख कर आता हूँ ना कि यूं ही रख आता हूँ कि जहां लोग खा भी रहें हैं, वहीं जूठन भी पड़ी है जैसा कि आमतौर पर होता है।
आम आदमी हूँ ना इसीलिए किसी काम में संकोच नहीं करता। घर की सफार्इ हो या सड़क के आस-पास कूड़ा-कचरा ना होने देना। अब भर्इ…………. ये तो खास आदमियों के ही चोंचलें हैं कि अगर चार-पांच दिन जमादार नहीं आया तो सड़क पर गन्दगी और घर में कूड़ादान गंदा ही रहेगा। मैं घर को एकदम चकाचक रखता हूँ। भर्इ………आम आदमी जो ठहरा। तो है ना आम आदमी होने के फायदे………..तो अब आप आम आदमी कब बन रहे हैं।
कैसा लगा व्यंग्य … जरुर बताईएगा 😆
वैसे तस्वीर वाला व्यंग्य अलग है … !!!
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