Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 28, 2015 By Monica Gupta

बाल कहानी- सबक

बाल कहानी- सबक

monica gupta sabak

बाल कहानी- सबक

लोटपोट में प्रकाशित बाल कहानी- सबक

बच्चों की कहानियाँ हमेशा रोचक होती है. जिसमे कुछ न कुछ नया और सीखने को मिलता है. मेरी ये कहानी लोटपोट मे प्रकाशित हुई थी.

सबक मनु का आज चौथी कक्षा का नतीजा निकला। उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। घर पर तथा विधालय में उसे खूब शाबाशी मिली। पर मनु को पता था कि उसके प्रथम आने के पीछे, उसकी मम्मी की सबसे ज्यादा मेहनत रही। जिसे वो पहले कभी नहीं समझ पाया था लेकिन एक दिन जो उसे सबक मिला वह शायद उसे कभी भुला नहीं पाएगा।

अपना रिपोर्ट कार्ड देखते-देखते, वह अतीत में खो गया बात पिछले साल से शुरू हुर्इ थी, लेकिन लगता है मानों कल की ही बात हो। बात तीसरी कक्षा की थी। इकलौता और नासमझ मनु बहुत ही शरारती था। उसके पापा दिन रात काम में लगे रहते। मम्मी घर का ख्याल रखती और मनु का भी बेहद ख्याल रखती। चाहे वो कितना भी जरूरी काम कर रही होती लेकिन मनु की आवाज सुनते ही वो सारा काम छोड़ कर आ जाती। मनु पर, ज्यादा ध्यान देने के कारण उन्हें मनु के पापा भी कितनी बार डांट देते कि तुम बिगाड़ रही हो। देखो, कितना मुंह फट होता जा रहा है, लेकिन मम्मी की तो मानो मनु जान ही था। हां, लेकिन एक बात अवश्य थी कि वो मनु की पढ़ार्इ पर जोर देती थी।

मनु चाहता था कि जैसे और बच्चों ने टयूशन रखी है उसकी भी रख दो। लेकिन ना जाने वो टयूशन के बहुत खिलाफ थी। वो अक्सर मनु को पढ़ाती-पढ़ाती खुद तो विधार्थी बन जाती और मनु शिक्षक। मनु एक-एक बात मम्मी को समझाता। इससे दोनों का फायदा होता। मनु को पाठ पूरी तरह से समझ आ जाता था। मम्मी तब हंस कर कहती कि अगर तुम्हारे जैसा शिक्षक मुझे मेरे बचपन में मिला होता तो मैं भी हमेशा अच्छे नम्बर लेती। मनु को अपनी मम्मी के अनुभव सुनने में रूचि होती। मम्मी बताती कि अपने स्कूल टार्इम में तो वह बहुत नालायक थी और हमेशा पोर्इंट पर ही पास होती। और जब रिपोर्ट सार्इन करवानी होती तो ना जाने कितने तरले और खुशामद वह अपनी मम्मी की करती। हिसाब में सवाल समझाने के लिए तो मनु को बहुत ही मेहनत करनी पड़ती क्योंकि उसकी मम्मी को सवाल समझ ही नहीं आता था।

अक्सर मनु के पापा घर पर स्कूल का खेल देखकर मुस्कुरा कर ही रह जाते। धीरे-धीरे मनु की पढ़ार्इ में सुधार होना शुरू हुआ। वह अक्सर अपने दोस्तों को अपनी मम्मी की पढ़ार्इ के बारे में बताता और कर्इ बार तो मजाक भी उड़ाने लगा। मम्मी आप तो बिल्कुल ही नालायक हो, पता नहीं स्कूल जाकर क्या करती थी। पर मम्मी सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती और बोलती, मैंने तो अपने सारे साल व्यर्थ ही गवाएं पर तुम तो अव्वल आओ।

पहले जब मनु के क्लास टेस्ट में कम नम्बर आते तो वह अपनी मम्मी को ही दोष देता। कम तो आऐंगें ही, नालायक मम्मी का बेटा भी नालायक ही होगा। पर सहनशीलता की मूर्ति मम्मी चुपचाप हल्की सी मुस्कुराहट देकर काम में लग जाती। एक बार तो मनु का दोस्त स्कूल से घर आया तो उस दिन हुए क्लास टैस्ट के नम्बर मम्मी ने दोनों से पूछे तो दोनों ने मजाक उड़ाते हुए कहा, आप से तो अच्छे ही आए हैं। कम से कम हम पास तो हो गए।

समय बीतता रहा। मनु की पढ़ाई में फर्क आने लगा। लेकिन मम्मी का मज़ाक बहुत उड़ाने लगा। एक दिन मनु के सिर में बहुत दर्द उठा तो मैड़म ने उसे आया जी के साथ घर भिजवा दिया। पापा दफ्तर जा चुके थे। मम्मी अलमारी की सफाई कर रही थी और सारा सामान फैला पड़ा था।

अचानक उसे देख मम्मी सारा काम छोड़ कर उसकी देखभाल में जुट गई…  उसे दवाई देकर आंखे बंद करके लेटने को कहा और चुपचाप उसका सिर सहलाने लगी।

तभी पड़ोस की आंटी ने आवाज दी और मम्मी बाहर उठ कर चली गई। मनु ने चुपचाप करवट बदली तो देखा एक लिफाफे से कुछ तस्वीरें बाहर झांक रही हैं। वह उत्सुकता वश उठा तो उन तस्वीरों को देखने लगा।

तस्वीरों के नीचे एक लिफाफा और बंधा हुआ था, तस्वीरें देखते-देखते उसकी हैरानी की सीमा ही ना रही। वह सभी तस्वीरें उसकी मम्मी की बचपन की ईनाम लेते हुए थी और जब उसने दूसरा लिफाफा खोला तो उसमे उसकी मम्मी की सारी रिपोर्ट कार्ड थी।

वह हैरान रह गया कि वह हर विषय में पूरी क्लास में हमेशा प्रथम आती रही। तो क्या सिर्फ मनु को पढ़ाने के लिए, अच्छे अंक लेने के लिए उन्होंने यह झूठ बोला। मनु सोचने लगा कि उसने अपनी मम्मी को क्या-क्या नहीं कहा। उसे बहुत ही शर्म आ रही थी।

मम्मी के कदमों की आहट सुनते ही उसने तुरन्त सब फोटो और कागज थैली में ड़ाल दिए और सोने का उपक्रम करने लगा। मम्मी उसके तकिए के सिरहाने बैठ कर उसका माथा दबाने लगी। किन्तु इस बार मनु अपना रोना रोक नहीं पाया और वह मम्मी से लिपट कर रोने लगा।

मम्मी ने सोचा कि शायद इसके बहुत दर्द है। वह, डाक्टर को फोन करने के लिए उठने लगी पर, मनु ने मना कर दिया।

उधर मम्मी लिफाफे से झांकती तस्वीरें देख कर समझ गई थी कि मनु को उनके बारे में पता चल गया है। वह मनु की पीठ थपथपाने लगी और बोली कि अपने बच्चों को उन्नति के पथ पर बढ़ाने के लिए ऐसे छोटे-छोटे झूठ तो बोलने ही पड़ते हैं।

पर उस दिन मनु ने मन ही मन कसम ले ली थी कि वो भी अपनी मम्मी की तरह ही प्रथम आया करेगा और आज वही Report Card हाथ में थी।

monica gupta sabak

बाल कहानी- सबक

कैसी लगी आपको ये कहानी … जरुर बताना 🙂

June 28, 2015 By Monica Gupta

ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ

महापुरुषों की कहानियाँ

ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ – बच्चों, समय हमेशा चलता ही रहता है, कभी नहीं रूकता। हमारे जीवन का चक्र भी ठीक वैसे ही घूमता रहता है। पहले हम छोटे-छोटे नन्हें बच्चे होते हैं फिर धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं। बच्चों, जीवन के इस क्रम में अनेंकों घटनाएं घटती रहती हैं लेकिन कुछ एक बातें ऐसी होती हैं जो हमारे जीवन पर विशेष प्रभाव छोड़ जाती हैं या यूँ कहिए कि उनसे हमारा जीवन ही बदल जाता है।

 

ऐसा था इनका बचपन

ऐसा था इनका बचपन

Photo by symphony of love

ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ

बच्चों, मोहन दास कर्मचंद गांधी जिन्हें सभी बापू बुलाते हैं। पंडि़त जवाहर लाल नेहरू जोकि बच्चों के प्रिय चाचा हैं या फिर गोपाल कृष्ण, मदन मोहन मालवीय, इंंदिरा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, देशरत्न डा़0 राजेन्द्र प्रसाद और भी ना जाने ऐसे कितने महान लोग हुए जिन्होंने ना सिर्फ देश में बलिक विदेशों में भी अपना नाम कमाया। आज हम कुछ महान हस्तियों के बचपन में झांक कर देखते हैं कि क्या इनका बचपन भी हमारे-आपके जैसा था या कुछ हट कर था।

ऐसा था इनका बचपन – स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ड़ा0 राजेन्द्र प्रसाद

सबसे पहले हम बात करते हैं स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ड़ा0 राजेन्द्र प्रसाद के बचपन की। यह उन दिनों की बात है जब स्कूल के मुख्याध्यापक परीक्षा फल सुनाने के लिए खड़े हुए। उन्होंने सभी विधार्थियों के नाम बोले लेकिन एक विधार्थी अचानक खड़ा होकर बोला कि श्रीमान मेरा नाम तो नहीं बोला गया। इस पर अध्यापक बोले तुम जरूर फेल होगें। तभी तुम्हारा नाम लिस्ट में नहीं है। असल में, परीक्षा से पूर्व वह बालक मलेरिया से पीडि़त था। लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि मेरा नाम तो इसमें होना ही चाहिए। अब अध्यापक को भी गुस्सा आ गया। उन्होंने उसे बोला, तुम जितनी बार बोलोगे, उतना ही तुम्हें जुर्माना देना पड़ेगा।  लेकिन वह बच्चा बोलता ही रहा कि इसमें मेरा नाम तो होना चाहिए। जुर्माने की राशि 5 रू0 से 50 रू0 तक पहुंच गर्इ। बात जब बढ़ रही थी तभी  लिपिक दौड़ता हुआ आया और उसने मुख्याध्यापक को बताया कि उससे गलती हुर्इ है। असल में, यह बालक कक्षा में प्रथम स्थान पर है और पता है यह बालक थे राजेन्द्र प्रसाद जोकि स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।

मदन मोहन मालवीय  का बचपन
बच्चों, मदन मोहन मालवीय के दिल में लोगों और जानवरों के प्रति बचपन से ही दया और करूणा थी। एक बार की बात है बचपन में उन्होंने देखा कि एक कुत्ता  (जानवर) दर्द से कराह रहा है वह उसे तुरन्त जानवरों के ड़ाक्टर के पास ले गए किन्तु ड़ाक्टर ने कहा कि जो इसके कान में चोट लगी है ऐसे दर्द में तो कुत्ता पागल भी हो जाते हैं तो वह इन बातों में ना पड़े। किन्तु मालवीय ने ड़ाक्टर से दवा लेकर खुद ही उसे लगाने की सोची। दवा लगाते ही कुत्ता बैचेन हो उठा तब बालक मालवीय ने दवा का कपड़ा लकड़ी के साथ बांधा और दूर बैठे-बैठे ही वह उसे दवा लगाने लगे। दवा उसे को बैचेन तो कर गर्इ लेकिन धीरे-धीरे उसे आराम आने लगा। बड़े होने पर भी मदन मोहन मालवीय मानते थे कि प्राणिमात्र की सेवा ही भगवान की सच्ची पूजा है।

लौह पुरूष सरदार वल्लभ भार्इ पटेल का बचपन 

एक ऐसा ही किस्सा लौह पुरूष सरदार वल्लभ भार्इ पटेल का है। उनके बचपन में एक बार उन्हें चोट लग गर्इ। वह जगह पक गर्इ और अनेकों घरेलू उपचार करने पर भी वह चोट ठीक ही नहीं हुर्इ। अन्त में एक वैध को दिखाया गया। पता है उन्होंने कहा कि अगर हम इस फोड़े पर गर्म करके लोहे को लगाऐंगे तो यह ठीक हो जाएगा। घर के सभी सदस्य तो ड़र गए लेकिन बालक वल्लभ ने हिम्मत नहीं हारी पता है वह सीधे लुहार के पास गया और उसे कहा कि गर्म-गर्म लोहा उसे लगा दे ताकि उसका फोड़ा दब जाए। लेकिन लुहार ने यह सोच कर मना कर दिया कि बहुत दर्द होगा और यह तो अभी बच्चा है। वल्लभ ने दो-तीन जगह और पूछा लेकिन सभी ने गर्म लोहा लगाने से इंकार कर दिया। पता है तब उस बालक ने क्या किया। बड़े साहस से गर्म लोहे की सलाख उठा कर अपने फोड़े पर लगा ली। इस बालक के साहस को देख कर सभी हैरान रह गए। यही बालक आगे चलकर प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बना। स्वतंत्रता मिलने पर यह देश के प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधान मंत्री बने। तो बच्चों ये थे सरदार वल्लभ भार्इ पटेल।

गोपाल कृष्ण गोखले का बचपन 
अब मैं आपको गोपाल कृष्ण गोखले के बचपन की घटना सुनाती हूं। यह बात उन दिनों की है जब गोपाल विधालय पढ़ने जाते थे। आचार्य जी ने उन्हें गणित का गृह कार्य करने को दिया। बालक गोपाल ने एक-दो प्रश्न के इलावा सभी हल कर लिए। अब बच्चों, जो आपसे सवाल नहीं निकलते तो आप अपने दोस्तों  से पूछते हो। बस, इन्होंने भी अपने दोस्तों से पूछ कर हल कर लिए। अगले दिन विधालय में टीचर ने जब देखा कि ये तो सभी सवाल सही हैं तो उन्होंने बालक गोपाल की बहुत प्रशंसा की। इस पर गोपाल रोने लगे और पूछने पर उन्होंने सारी बात सच-सच बता दी कि यह उन्होंने स्वयं नहीं किए हैं, मित्र की सहायता से किए हैं। इस पर अध्यापक बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने सच बोलने पर बालक को शाबाशी दी। पता है, यही गोपाल कृष्ण गोखले महान देशभक्त और महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरू भी बने।

सुभाष चन्द्र बोस का बचपन 

अच्छा बच्चों यह तो बताओ कि जय हिन्द का नारा किसने दिया था। सुभाष चन्द्र बोस ने। तो आओ अब मैं इन्हीं के बचपन का किस्सा सुनाती हूं। एक बार की बात है कि यह रात को सोने जब जा रहे थे तो पलंग की बजाय जमीन पर ही लेट गए। मां हैरान, उन्होंने पूछा कि क्या हुआ जमीन पर क्यों लेट गए। इस पर बालक बोला कि हमारे गुरू ने बताया है कि हमारे पूर्वज भी जमीन पर सोते थे।

मैं भी ऋषि, मुनि की तरह कठोर जीवन जीऊंगा। जब पिता ने यह बात सुनी तो उन्होंने कहा कि बेटे, सिर्फ जमीन पर सोने से ही कोर्इ महान नहीं बनता। खूब पढ़ार्इ करना और समाज की सेवा करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। बस, यह बात बालक को इतनी जम गर्इ और बहुत मेहनत से उन्होंने आर्इ0ए0एस0 की परीक्षा पास की।

और बड़ा अफसर बनने का मौका मिला तो उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं चाहिए अंग्रेज़ो की नौकरी। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपना लक्ष्य तो बचपन में तय कर चुके थे। कठोर जीवन, उच्च शिक्षा, देश सेवा इन तीनों को कर दिखाया सुभाष चन्द्र बोस ने। बचपन में किए मजबूत संकल्प को इन्होंने खूब निभाया।

चन्द्रशेखर वैंकटारमन का बचपन 
बच्चों अब मैं चन्द्रशेखर वैंकटारमन के बचपन की घटना बताती हूं। वैंकटारमन को वैज्ञानिक अनुसंधान के परिणामस्वरूप प्रकाश भौतिकी में नए अविष्कार करने के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला।
त्रिचनापल्ली का एक सीधा सा छात्र चन्द्रशेखर जब विधालय में दाखिला लेने पहुंचा तब उसकी भी परीक्षा ली गर्इ। विधालय के सभी अध्यापक उन्हें देखकर हैरान थे क्योंकि उन्होंने सभी जवाब सही दिए थे।

सभी अध्यापक और मुख्याध्यापक ने यह सोचा कि इस बालक को तो महाविधालय में दाखिला मिलना चाहिए। इस पर चन्द्रशेखर ने कहा कि वह एक-एक सीढ़ी चढ़ कर ही उन्नति के उच्चतम छोर तक पहुंचना चाहते हैं। छलांगे नहीं लगाना चाहते। वह पग-पग यानि कदम-कदम से ही आगे बढ़ना चाहतें हैं। उनकी बात सुनकर सभी हैरान रह गए। तो देखा ऐसे थे चन्द्रशेखर वैंकटारमन।
बच्चों, बचपन से ही कोर्इ महान नहीं हो जाता। सच्चार्इ के रास्ते में कांटे ही कांटे होते हैं। हां, अगर उन्होंने कंटीले रास्ते को पार कर लिया तो उन्हें खुशियां रूपी फूल ही फूल मिलते हैं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बचपन 

अच्छा बच्चों यह बताओ  हे राम, भारत छोड़ो किसने कहे थे। जी……राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने। लेकिन पता है बचपन में वो भी बुरी संगति में पड़ गए थे। बीड़ी पीना, चोरी करना, झूठ बोलना और मांस खाना उनकी आदत बन चुकी थी। लेकिन कहीं ना कहीं उनके दिल में छिपी अच्छार्इयों ने उन्हें यह सब छोड़ने को मजबूर कर दिया।

मां से तो उन्होंने सारी बात कर ली। लेकिन पिताजी के बीमार होने के कारण उनकी हिम्मत ही नहीं हुर्इ कि वह अपनी सारी गलितयाें की माफी मांग लें। उन्होंने पिताजी को पत्र लिख कर दिया। पत्र में उन्होंने सारी बातें लिख ड़ाली और पिताजी को पकड़ा दिया।

पिताजी पत्र पढ़कर रोते रहे किन्तु उन्होंने मोहन को कुछ नहीं कहा। बाप-बेटे का सारा गिला शिकवा आंसूओं में बह गया। और गांधी जी का नाम ना सिर्फ भारत में बलिक पूरे विश्व में आदर सहित लिया जाता है और लिया जाता रहेगा।

आइन्सटीन का बचपन 

बालक आइन्सटीन जब जर्मनी के विधालय में पढ़ते थे तब अध्यापक उन्हें पढ़ा-पढ़ा कर हार जाते थे लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता था। उनकी अक्सर पिटार्इ भी होती थी। सभी उन्हें बु़द्धु कहते थे। एक बार तो कक्षा में उनकी इतनी पिटार्इ हुर्इ कि अध्यापक ने कहा कि भगवान ने तो इन्हें दिमाग हीं नहीं दिया है। बस, उस दिन उन्होंने स्कूल ही छोड़ दिया और घर पर रहकर खूब पढ़ार्इ की। मन को एकाग्र करके यह स्वयं पढ़ने लगे और इन्होंने गणित के नए-नए सिद्धांत खोजे। यही बालक बड़े होकर आइन्सटीन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन जैसा कोर्इ संसार में गणितज्ञ ही नहीं हुआ।

अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का बचपन 

एक ऐसा ही किस्सा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का है। वह बचपन से ही बेहद परोपकारी थे। एक बार की बात है सुबह-सुबह का समय था। एक स्त्री रो रही थी उसका बच्चा नदी में गिर गया था। इतने में बालक जार्ज दौड़ता हुआ आया और छपाक से पानी में छलांग लगा दी। बहुत मेहनत के बाद वह बच्चे को निकालने में सफल हुए। और उस बच्चे को बहाव से बाहर निकालने में सफल हुए।

और उस बच्चे को पीठ पर बैठाकर उसे किनारे पर ले आए। महिला ने बालक को शाबासी दी। वही बालक बड़े होकर जार्ज वाशिंगटन के नाम से मशहूर हुए।

राष्ट्रपति गारफील्ड़ का बचपन 

बच्चों, अमेरिका के एक अन्य राष्ट्रपति गारफील्ड़ भी हुए हैं। उन्होंने बचपन से बेहद गरीबी देखी। वह गांव से लकड़ी काट कर शहर बेचने जाते थे लेकिन पढ़ने की धुन सवार थी।

पता है, उन्हाेंने पुस्तकालय में सफार्इ कर्मचारी के रूप में भी काम किया लेकिन पढ़ने के शौक को कभी नहीं छोड़ा। स्कूली पढ़ार्इ, पुस्तकालय के अध्ययन, लग्न, परिश्रम से उन्हें दूसरी नौकरी भी मिल गर्इ। प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए यह अमेरिका के राज्य सभा के सदस्य चुने गए और अगले चुनाव में लोगाें के प्यार ने इन्हें राष्ट्रपति बना दिया।

ड़ा. हरगोबिंद खुराना का बचपन 

9 जनवरी, 1922 में जन्में ड़ा. हरगोबिंद खुराना जोकि नोबेल पुरस्कार विजेता रहे। वह अपने पांच भार्इ-बहनों में सबसे छोटे थे। पढ़ार्इ में तेज होने के कारण उन्हें तीसरी कक्षा से छात्रवृति मिलनी शुरू हो गर्इ थी। पता है, जब उनकी माता जी रोटी बनाती थी तो वह रेस लगाते थे,  देखते हैं मां, तुम्हारी रोटी तवे से पहले उतरती है या मेरा सवाल पहले हल होता है।

उड़नपरी पी.टी.का बचपन 
उड़नपरी पी.टी. उषा को कौन नहीं जानता। खेल-मैदान की रानी उषा ने बचपन से बहुत मेहनत की। जब वह केवल ग्यारह वर्ष की थी तो वह खेल-कूद प्रतियोगिता में भाग लेने की खूब मेहनत कर रही थी। प्रतियोगिता शुरू होने के तीन दिन पहले ही उनके पांव में चोट लग गर्इ।

लेकिन चोट की चिंता किए बिना वह लगातार अभ्यास करती रही। अपनी कक्षा की सबसे दुबली-पतली ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया जब वह प्रथम आर्इ।

उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और भारतीय खेलों में चमकता सूरज बन कर उभरी।
तो बच्चों, ऐसा था इनका बचपन। मेहनत, लग्न, जोश और परिश्रम से भरा। बस, मन में काम की लग्न हो और आंखों में सपने हो तो कोर्इ भी रास्ते में रूकावट नहीं बन सकता। बस……….अपने जीवन में एक लक्ष्य रखना चाहिए और उसी को पाने के लिए जुट जाना चाहिए। फिर देखना सफलता आपके कदमों में होगी।

ऐसा था इनका बचपन – आपको कैसी लगी कहानियां … जरुर बताईगा !!

June 28, 2015 By Monica Gupta

बचपन वैज्ञानिकों का

बचपन वैज्ञानिकों का

बचपन वैज्ञानिकों का – बच्चों, आचार्य जगदीश चन्द्र बोस का नाम तो आपने सुना ही होगा। जी हां, इन्होंने पता लगाया था जैसे हम गर्मी, सर्दी, दर्द का अनुभव करते हैं वैसे ही पौधे भी अनुभव करते हैं।

बचपन वैज्ञानिकों का

प्रो0 जगदीश चन्द्र बोस  ने पौधो की सजीवता देखने और मापने के बेहद संवेदनशील यंत्र बनाया जिसका नाम क्रेस्कोग्राफ था। पता है, इसकी मदद से यह तक जाना जा सकता था कि पौधा हर सैंकिंड़ में कितना बढ़ता है।

30 नवम्बर, 1858 को बंगाल के मैमन सिंह जिले के फरीदपुर गांव में इनका जन्म हुआ। इस बालक के पिता फरीदपुर के डि़प्टी मैजिस्ट्रेट थे। इनकी शिक्षा गांव में ही हुर्इ। पांच वर्ष की आयु से ही यह घोड़े पर बैठ कर विधालय में पढ़ने जाते थे। यह साहसी बहुत थे। पता है,

बचपन में इनका नौकर इन्हें रोमांचक, साहसी कहानियां सुनाता था। इनका नौकर पहले ड़ाकू था। किन्तु जेल से लौट कर आने के बाद यह सुधर गया और वसु को साहसी बनाने में इनके नौकर का योगदान रहा।

जब यह नौ वर्ष के हुए तो यह पढ़ार्इ के लिए कलकत्ता चले गए। वहां इनके दोस्त तो कोर्इ बने नहीं इसलिए पौधाें को उखाड़-उखाड़ कर इनकी जड़ो को देखा करते। यह तरह-तरह के फल-फूल उगाने के भी बेहद शौकिन थे। बस तब से बसु पौधों की दुनिया में इतने लीन हो गए कि इनके अनुसंधानों से पूरी दुनिया हैरत में पड़ गर्इ। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है।वे विज्ञानकथाएँ भी लिखते थे और उन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है।

बचपन वैज्ञानिकों का

बचपन वैज्ञानिकों का

श्री निवास रामानुजम

मद्रास के तंजौर जिले के  इरोद नामक छोटे से गांव के स्कूल में शिक्षा पार्इ श्री निवास रामानुजम ने। इसी बालक को रायल सोसाइटी ने अपने फ़ैलो बनाया जोकि स्वयं में ही बहुत बड़ा सम्मान था और सम्पूर्ण एशिया में सम्मानित होने वाले यह प्रथम व्यकित थे। रामानुजम गणितज्ञों में शिरोमणि कहे जाते हैं। इनके बचपन की एक से सौ तक की संख्या का जोड़ निकालने को बोला और अध्यापक निशिचंत होकर बैठ गए कि सभी विधार्थी आराम करेंगे लेकिन बालक रामानुजम अध्यापक के आराम में खलल ड़ाल दिया उन्होंने असाधारण तरीके से इसका जोड़ निकाला। जिसे देखकर अध्यापक हैरान ही रह गए। बचपन से श्रीनिवास की गणित के प्रति बेहद रूचि थी। अपनी किताब की तो फटाफट पढ़ार्इ कर लेते और फिर अगली कक्षा की गणित लेकर पढ़ार्इ करते।

 

ड़ा0 हरगोविंद सिंह खुराना

ड़ा0 हरगोविंद सिंह खुराना का जन्म 9 जनवरी, 1922 को पंजाब के छोटे से गांव रायपुर में हुआ। यह पांच भार्इ-बहन थे। पता है, यह बचपन से ही बहुत तेज थे। तीसरी कक्षा से ही इन्हें छात्रवृति मिलनी शुरू हो गर्इ थी। सारा दिन यह पढ़ते ही रहते थे। अपनी मां से पता है यह किस तरह रेस लगाते थे। इनकी मां तवे पर रोटी ड़ालती और दूसरी तरफ यह तरफ यह सवाल हल करना शुरू करते। दोनों में होड़ रहती थी कि पहले रोटी सिकेगी या फिर सवाल हल होगा।

 

गैलेलियो गैलिलार्इ

विज्ञान के महारथी गैलेलियो गैलिलार्इ (1564-1642) को कौन नहीं जानता। इन्होंने ही इस बात का खंडन किया था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर नहीं घूमता बलिक पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। सूर्य तो ब्रह्राांड़ का केन्द्र है। यह बचपन से ही खोजी प्रवृति के रहे। इनका जन्म 15 फरवरी, 1564 को टस्कनी राज्य के इटली (पीसा नगर) में हुआ। इनके पिता संगीत व गणित के विद्वान थे। बांसुरी बजाना, चित्रकारी के अतिरिक्त इन्हें पढ़ार्इ का बेहद शौक था। गैलिलयो के पिता इन्हें ड़ाक्टर बनाना चाहते थे। ड़ाक्टरी पढ़ने के लिए इन्हें पीसा विश्वविधालय में दाखिल करवाया गया लेकिन इनका मन धार्मिक कार्यों में नहीं लगता था। मजबूरन इन्हें गिरजाघर जाकर थोड़ी देर खड़ा रहना पड़ता था। पता है, यही पर एक खोज ने जन्म लिया। एक बार गिरजाघर में खड़े-खड़े तांक-झांक कर रहे थे कि इन्होंने एक लालटेन देखी वो रस्सी से लटकी इधर-उधर झूल रही थी। हवा धीमी होने पर लालटेन की झूलने की दूरी तो कम हो गर्इ इधर-उधर चक्कर काटने में उसे इतना समय लगा। गैलिलयो ने अपनी नब्ज़ की धड़कन से यह निरीक्षण किया और बस, पेंडुलम के सिद्धांत के आधार पर यही यांत्रिक घडि़यां बनीं। इन्होंने दूरबीन भी बनार्इ और उसका रूख आकाश की ओर रखा। गैलिलयो की खोजे ही आगे चलकर न्यूटन की खोजों का आधार बनी।

न्यूटन

न्यूटन ने भी गैलिलयो के बारे में कहा कि वह एक दिग्गज थे, इन्हीं के कन्धों पर चढ़कर मैंने दुनिया देखी। सर आइजक न्यूटन (1642-1727) को कौन नहीं जानता। गिरते सेब को देखकर इन्हीं के मन में ख्याल आया कि यह सेब नीचे कैसे गिरा ऊपर क्यों नहीं गया। इसी समस्या पर विचार करके उन्होंने गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत की स्थापना की।

प्रिसीपिया न्यूटन द्वारा रचित महान ग्रंथ है। लेकिन बचपन में इनके जीवन में दुख के सिवाय कुछ नहीं था। जब न्यूटन पैदा हुए तो इनके पिता चल बसे। मां ने दुबारा विवाह कर लिया और नानी ने इनकी देखभाल की। गांव से छ: मील दूर ग्रैथम के स्कूल में यह शिक्षा के लिए जाते थे। पढ़ार्इ में यह तब कमजोर थे। एक बार लड़ार्इ में इन्होंने एक बच्चे को हरा दिया।

बस, उसी दिन से उन्होंने सोच लिया कि जब वह लड़ार्इ में हरा सकते है तो पढ़ार्इ में क्यों नहीं। देखते ही देखते पढ़ने की लगन ने इन्हें सबसे प्रतिभाशाली बालक बना दिया। न्यूटन ने अनेंको खोजे की। नम्र स्वभाव वाला न्यूटन समाज के सम्मानित  व्यक्तियाें में से एक थे।

मार्इकल फैराड़े

मार्इकल फैराड़े (1797-1867) महान वैज्ञानिक थे। पता है, बचपन में वह जिल्दसाज थे। कापी, पुस्तकों में जिल्द चढ़ाते थे और पता है जिल्द चढ़ाते-चढ़ाते वह उन पुस्तकों को ध्यान से पढ़ते थे। फैराड़े का मुख्य कार्य विधुत और चुम्बक पर था। उन दिनों की बात है जब रायल इंस्टीटयूट के अध्यक्ष सर हंफ्री डेवी ने अपनी पुस्तक जिल्द के लिए दी। जब वह जिल्द वाली पुस्तक लेने पहुंचे तब उन्होंने देखा कि वह बालक पुस्तक पढ़ रहा है। वह हैरत में पड़ गए। पता है उन्होंने फैराडे़ की उस पुस्तक से परीक्षा भी ली और उन्होंने सभी उत्तर ठीक दिए। यही बालक महान वैज्ञानिक बनकर रायल इंस्टीटयूट का निदेशक बना।

आंइस्टाइन

उल्म के दक्षिण जर्मन में आंइस्टाइन का जन्म हुआ। वह कहते थे कि मेरा मस्तिष्क ही मेरी प्रयोगशाला है। लेकिन यह महान वैज्ञानिक बचपन में एकदम नालायक थे। इनके अध्यापक ने तो यहां तक कह दिया था कि इन जैसा नालायक उन्होंने आजतक नहीं देखा। फिर उन्होंने स्वयं ही घर पर पढ़ार्इ की और पढ़ार्इ में जबरदस्त निपुणता हासिल की।

आंइस्टाइन के चाचा इंजीनियर थे। गणित में उन्होंने ही आंइस्टाइन को पढ़ार्इ करवार्इ और ज्यामिती उनका प्रिय विषय बन गर्इ। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अलबर्ट काक इजराइल लोगों ने उन्हें राष्ट्रपति बनाना चाहा। लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया। वह जीवन भर शांति के लिए प्रयास करते रहे और वह राष्ट्रपिता गांधी से बहुत प्रभावित थे।

डॉ0 अवुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम

चमत्कारिक प्रतिभा के धनी डॉ0 अवुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम भारत के ऐसे पहले वैज्ञानिक हैं, जो देश के राष्ट्रपति (11वें राष्ट्र पति के रूप में) के पद पर भी आसीन हुए। वे देश के ऐसे तीसरे राष्ट्र्पति (अन्य दो राष्ट्र पति हैं सर्वपल्लीन राधाकृष्णन और डॉ0 जा़किर हुसैन) भी हैं, जिन्हें राष्ट्रीपति बनने से पूर्व देश के सर्वोच्च‍ सम्मा्न ‘भारत रत्न’ से सम्मा‍नित किया गया।

अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तामिलनाडु के रामेश्वरम कस्बे के एक मध्‍यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुल आब्दीन नाविक थे। वे पाँच वख्त के नमाजी थे और दूसरों की मदद के लिए सदैव तत्पर रहते थे। कलाम की माता का नाम आशियम्मा था। वे एक धर्मपरायण और दयालु महिला थीं। सात भाई-बहनों वाले पविवार में कलाम सबसे छोटे थे, इसलिए उन्हें अपने माता-पिता का विशेष दुलार मिला।

पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वमरम के प्राथमिक स्कूल में कलाम की शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। उनकी प्रतिभा को देखकर उनके शिक्षक बहुत प्रभावित हुए और उनपर विशेष स्नेह रखने लगे। एक बार बुखार आ जाने के कारण कलाम स्कूल नहीं जा सके। यह देखकर उनके शिक्षक मुत्थुश जी काफी चिंतित हो गये और वे स्कूल समाप्त होने के बाद उनके घर जा पहुँचे। उन्होंने कलाम के स्कूल न जाने का कारण पूछा और कहा कि यदि उन्हें किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, तो वे नि:संकोच कह सकते हैं।

कलाम का बचपन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा। वे प्रतिदिन सुबह चार बजे उठ कर गणित का ट्यूशन पढ़ने जाया करते थे। वहाँ से 5 बजे लौटने के बाद वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते, फिर घर से तीन किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से अखबार लाते और पैदल घूम-घूम कर बेचते। 8 बजे तक वे अखबार बेच कर घर लौट आते।

उसके बाद तैयार होकर वे स्कूल चले जाते। स्कूल से लौटने के बाद शाम को वे अखबार के पैसों की वसूली के लिए निकल जाते। कलाम की लगन और मेहनत के कारण उनकी माँ खाने-पीने के मामले में उनका विशेष ध्यान रखती थीं। दक्षिण में चावल की पैदावार अधिक होने के कारण वहाँ रोटियाँ कम खाई जाती हैं।

लेकिन इसके बावजूद कलाम को रोटियों से विशेष लगाव था। इसलिए उनकी माँ उन्हें प्रतिदिन खाने में दो रोटियाँ अवश्य दिया करती थीं। एक बार उनके घर में खाने में गिनी-चुनीं रोटियाँ ही थीं। यह देखकर माँ ने अपने हिस्से की रोटी कलाम को दे दी। उनके बड़े भाई ने कलाम को धीरे से यह बात बता दी। इससे कलाम अभिभूत हो उठे और दौड़ कर माँ से लिपट गये।

प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया। वहाँ की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, त्रिची में प्रवेश लिया। वहाँ से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बी.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्ना्लॉजी (एम.आई.टी.), चेन्नई का रूख किया। वहाँ पर उन्होंने अपने सपनों को आकार देने के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया।

 

indian APJ kalam photo

Photo by indianexponent.com

 

बचपन वैज्ञानिकों का… तो बच्चों बताना  की आपको ये लेख कैसा लगा …

 IBN Khabar

एपीजे अब्‍दुल कलाम : भारत के पूर्व राष्‍ट्रपति और भारत रत्‍न एपीजे अब्‍दुल कलाम भारत में मिसाइल मैन के नाम से भी जाने जाते हैं। 1962 में वे ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ में शामिल हुए। कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल है। 1980 में कलाम ने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। उन्‍हीं के प्रयासों की वजह से भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया। खास बात यह है कि इन्‍होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया।

जयंत विष्‍णुनार्लीकर : महाराष्‍ट्र के कोल्‍हापुर में जन्‍में प्रसिद्ध वैज्ञानिक जयंत विष्‍णुनार्लीकर भौतिकी के वैज्ञानिक हैं। उन्‍होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बिग बैंग की थ्‍योरी के अलावा नये सिद्धांत स्थायी अवस्था के सिद्धान्त (Steady State Theory)पर भी काम किया है। उन्‍होंने इस सिद्धान्त के जनक फ्रेड हॉयल के साथ मिलकर काम किया और हॉयल-नार्लीकर सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। कई पुरस्‍कारों से सम्‍मानित नार्लीकर ने विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञान साहित्‍य में भी अपना अमूल्‍य योगदान दिया।

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बचपन वैज्ञानिकों का… तो बच्चों बतानाकी आपको ये लेख कैसा लगा … अगर आप भी किसी वैज्ञानिक के बारे मे कुछ जानते हों तो भी जरुर बताना

प्रतिभा हम सभी में छिपी रहती है हमें जरूरत है थोड़ी सी हिम्मत, मेहनत, लग्न और आत्मविश्वास की। हो सकता है हम भी बड़े होकर महान लोगों में अपना नाम शामिल कर लें।

ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ – Monica Gupta

ऐसा था इनका बचपन बचपन से बडे बडे लोगों की जीवनी और उनके बचपन को पढने का बहुत शौक था. अगर बच्चे इन्हें पढे तो प्रेरणा ले सकतें है महापुरुषों की कहानियाँ पढ क read more at monicagupta.info

 

बचपन वैज्ञानिकों का

June 27, 2015 By Monica Gupta

Education System


class room photo
Photo by jinkazamah

Education System

आज भोपाल के स्कूल की खबर दिखा रहे थे कि चैनल वाले स्कूल जाकर अंग्रेजी की कुछ स्पैलिंग पूछ रहे थे टीचर्स से और वो उसका जवाब नही दे पा रहे थे वो स्पैलिंग थी grammar की और वो ज्यादातर grammer यानि er लगा कर बोल रहे थे. यहां तक की स्कूल के मुख्य अध्यापक ने भी गलत बताया.

ऐसी ही एक खबर पिछ्ले दिनों भी दिखाई थी जब  यूपी बोर्ड के पेपर चैक हो रहे थे और जो चैक कर रहे थे उन्हे स्पैलिंग का ही ज्ञान नही था ऐसे में क्या तो वो पेपर चैक करेंगें और क्या वो बच्चो को मार्क्स देंगें. मेहनत करने के बाबवूद भी बच्चे गर्त में चले जाते हैं और  कई बच्चे तो डिप्रेशन में  भी चले जाते हैं

इस बात से मुझे अपनी उस सहेली की याद आ गई जो स्कूल और कालिज में बहुत नालायक हुआ करती थी और रो पीट कर  म्यूजिक प्रैक्टिकल में सिफारिश से पूरे अंक ले लिए   और आज वो सिफारिश के बल पर  ही टीचर बनी घूम रही है … ऐसे मे क्या तो वो पढाएगी और क्या बच्चों का भविष्य होगा.

पहले तो मुझे लगा कि शायद अब उसमे सुधार आ गया होगा और अच्छी टीचर बन कर बच्चों को पढा रही होगी पर उसी स्कूल के कुछ बच्चों से जब बात करके पता चला तो बेहद दुख हुआ कि इसमें बच्चों का क्या कसूर कसूरवार हमारा सिस्टम है और ऐसे सिस्टम का लाभ उठाते हैं कुछ सिफारिशी लोग… ये तो एक उदाहरण है ऐसे न जाने कितने उदाहरण होंगें जो  education System को खराब कर रहे हैं ऐसी न जाने कितनी कहानियां होगी जोकि   गति अवरोधक का काम कर रहीं हैं. बहुत जरुरी है इसे सुधारना अन्यथा … 🙁

June 27, 2015 By Monica Gupta

हैप्पी मौनसून

Happy Monsoon sir … monsoon    हैप्पी मौनसून   सब यही कह रहे हैं कि मोदी जी ललित मोदी के बारे में बोल क्यों नही रहें हैं कुछ ने तो उन्हे मनमोहन सिह जैसा ही बोल दिया कि वो भी मौन रहते थे और आप भी मौन…

हैप्पी मौनसून     वही देखिए monsoon का बहाना लेकर इन्हे कैसे wish किया जा रहा है … वैसे मौनसून प्रवेश कर चुका है

 

India floods: Monsoon rains cause havoc in Gujarat – BBC News

Authorities in India’s Gujarat state say incessant monsoon rains have caused widespread damage to public and private properties.

Air force helicopters have been dropping food in affected areas after more than 70 people were reported to have died in flood-related incidents.

More than 10,000 people have been moved to higher ground, including 1,000 who were airlifted to safety.

India regularly witnesses severe floods during the monsoon season.

Heavy rains have triggered house collapses in the worst-affected Saurashtra region with some reports saying these are the worst floods in 90 years.

The coastal district of Amreli is the worst affected, where more than 600 villages have been affected.

Farmers are among the worst hit with crops over a large area damaged, Gujarat Health Minister Nitin Patel told BBC Hindi’s Ankur Jain in Ahmedabad.

Rescue and relief work is on, he added.

The defence ministry said on Thursday that air force helicopters carried out 23 sorties to drop food packets to those stranded.

There have been reports of lions coming out of their habitat in the Gir forest in Junagadh – the only home to Asiatic lions – which has also been hit by rains.

Meanwhile, flood warnings have been issued in Indian-administered Kashmir state where floods killed about 300 people last year.

In the northern state of Uttarakhand, authorities have halted pilgrimage to Kedarnath and other Hindu holy sites due to heavy rains.

India receives 80% of its annual rainfall during the monsoon season, which runs between June and September.

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हैप्पी मौनसून

June 26, 2015 By Monica Gupta

टेंशन दाखिले की

टेंशन दाखिले की

इंजिनियरिंग का रिजल्ट आने के बाद से बेहद गहमागहमी है कि दाखिला कहां लेंगें. कुछ को अच्छा कालिज मिलने की उम्मीद है तो कुछ मायूस है. ऐसे में एक मित्र के बेटे के ज्यादा अच्छे नम्बर नही आए हैं और उसने इस साल ड्राप करने निर्णय लिया है.

हालाकि पिछ्ले साल भी वो बाहर कोचिंग ले रहा था पर उसके इस निर्णय से उसके पेरेंटस खुश नही हैं वो चाहते है कि साल खराब नही करना चाहिए और जिस कालिज मे दाखिला मिल रहा है उसमे ले ले. मैने भी यही कहा क्योकि काम्पीटिशन इतना बढ गया है कि अगले साल का रिस्क नही लेना चाहिए और जिस संस्थान में दाखिला मिल रहा है वहां ले कर उसमे खूब मेहनत करें हो सकता है वहां स्लाईडिंग ही हो जाए पर वो सुनने को तैयार नही.

एक साल बहुत मायने रखता है बहुत बच्चे ऐसे भी देखे हैं जो बहुत अच्छा लिखाने के चक्कर में  पूरे साल बहुत तनाव में रहते हैं और टेंशन की वजह से अच्छा नही कर पाते और कुछ में काम्पलेक्स भी आ जाता है जब वो अपने से जूनियर को आगे आते देखते हैं. कई बार एक दूसरे की देखा देखी भी बच्चे ऐसा फैसला कर लेते हैं

फिर भी टेंशन इसी बात की है कि एक साल ड्राप करना या नही करना चाहिए.. कैसे समझाए उसे . बहुत टेंशन है

अगर आपके पास भी कोई सुझाव है तो उसका स्वागत  है 🙂

टेंशन दाखिले की

Some news of IIT

  LiveHindustan.com

देशभर के 18 आईआईटी व आईएसएम धनबाद में एडमिशन के लिए आईआईटी मुंबई की ओर से देशभर के तमाम बोर्डों का टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ जारी कर दिया गया है। इसके तहत इस बार बिहार बोर्ड से12वीं में 342 या इससे अधिक अंक पाने वाले जनरल के छात्रों को ही आईआईटी में दाखिला मिल पाएगा। ओबीसी के लिए 333, एससी के लिए 325, एसटी के लिए 322 और नि:शक्तों के लिए 322 अंक कटऑफ निर्धारित किया गया है। सीबीएसई बोर्ड के छात्रों के लिए जनरल का कटऑफ 440 अंक निर्धारित किया गया है। ओबीसी का 428, एससी का 410, एसटी का 389 और नि:शक्तों का कटऑफ 389 अंक तय किया गया है। इससे कम अंक पाने वाले छात्रों का दाखिला आईआईटी में नहीं हो पाएगा, चाहे वे जेईई एडवांस में भी सफल क्यों न हों। जेईई एडवांस में सफल होने के बाद सिर्फ उन्हीं छात्रों का दाखिला आईआईटी में होगा, जो अपने 12वीं बोर्ड के रिजल्ट में टॉप-20 परसेंटाइल में शामिल होंगे या उन्हें बोर्ड में 75 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त हुए हों। 75 प्रतिशत अंक वाले भी शामिल इस बार आईआईटी में एडमिशन के लिए नई व्यवस्था लागू की गई है। इसके अनुसार इस बार अपने बोर्ड में 75 प्रतिशत या इससे अधिक अंक लाने वाले जनरल व ओबीसी के छात्रों को भी आईआईटी में दाखिला मिलेगा। एससी-एसटी और नि:शक्तों का दाखिला 70 प्रतिशत या इससे अधिक अंक पर होगा। परीक्षा विशेषज्ञ आनंद जायसवाल ने बताया कि इसका फायदा बिहार बोर्ड के छात्रों को नहीं मिल पाएगा, क्योंकि 75 प्रतिशत के कटऑफ से कम टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ है। इसलिए बिहार बोर्ड के छात्र टॉप-20 परसेंटाइल के कटऑफ पर ही एडमिशन लेंगे। सीबीएसई का 75 प्रतिशत का कटऑफ 375 अंक और 70 प्रतिशत का कटऑफ 350 अंक निर्धारिक किया गया है। ऐसे में सीबीएसई के छात्रों को इसका काफी लाभ मिलेगा। क्योंकि इसका टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ 440 अंक है। जिन छात्रों का 440 अंक नहीं होगा वे 75 प्रतिशत वाले कटऑफ यानि 375 अंक पर भी दाखिला ले सकते हैं। पिछले दो वर्षों से सभी बोर्ड अपना टॉप-20 परसेंटाइल का कटऑफ जारी करते थे। इसमें काफी गड़बड़ियां होती थी। 2014 में ही बिहार बोर्ड और जेईई की ओर से जारी किए गए कटऑफ में अंतर हुआ था। इसे देखते हुए इस बार तमाम बोर्ड से डाटा मंगाकर आईआईटी मुंबई ने खुद कटऑफ जारी किया है। पिछली बार से बढ़ा है कटऑफ बिहार बोर्ड का कटऑफ वर्ष 2015 श्रेणी कटऑफ सामान्य 342 ओबीसी 333 एससी 325 एसटी/नि:शक्त 322 बिहार बोर्ड का कटऑफ वर्ष 2014 श्रेणी कटऑफ सामान्य 304 ओबीसी 300 एससी 289 एसटी/नि:शक्त 292 सीबीएसई का कटऑफ 2015 श्रेणी कटऑफ सामान्य 466 ओबीसी 451 एससी 432 एसटी/नि:शक्त 427 सीबीएसई का कटऑफ 2014 श्रेणी कटऑफ सामान्य 416 ओबीसी 410 एससी 370 एसटी/नि:शक्त 366 See more…

A Village of Bihar Masters of IIT JEE Since 1992 –

बिहार के गया जिले में एक गांव है, पटवा टोली। राज्य के अन्य गांवों की तरह यह भी एक सामान्य गांव जैसा ही है। लेकिन इस गांव की एक खासियत है। पिछले 23 सालों से इस मामूली गांव के छात्र वह करिश्मा करते आ रहे हैं, जो सुविधा संपन्न शहरों के स्टूडेंट भी नहीं कर पाते हैं। जी हां, पटवा टोली के छात्र पिछले कुछ सालों में बड़े पैमाने पर आईआईटी पहुंचे हैं। 2015 में भी गांव के 18 छात्रों ने जेईई एडवांस्ड क्लीयर कर आईआईटी में दाखिला सुनिश्चित किया है। बता दें कि इसमें एक लड़की दीपा कुमारी भी शामिल हैं, जो आईआईटी में पढ़ाई करेंगी। पिछले साल 13 छात्रों ने जेईई एडवांस्ड क्लीयर किया था। अब तक करीब 300 छात्र गांव में पढ़ाई करके आईआईटी और एनआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थानों में पहुंच चुके हैं। कभी नक्सल और जातीय हिंसा से प्रभावित रहे गया जिले का यह गांव पटवाओं की टोली है। यहां के पटवा बुनकरी का काम करते हैं। ये अन्य पिछड़ी जाति में शामिल हैं। 1992 से ही इस गांव के छात्रों के लिए आईआईटी क्लीयर करना सामान्य बात साबित हो रही है। हालांकि, आईआईटी जाने वालों की संख्या कभी कम या कभी ज्यादा हो जाती है। लेकिन पिछले 23 सालों में यह सिलसिला कभी नहीं टूटा। दिलचस्प यह भी है कि आईआईटी जाने वाले अधिकांश बच्चों के माता-पिता या तो कम पढ़े-लिखे हैं या फिर निरक्षर हैं। उन्हें आईआईटी का मतलब भी नहीं पता है। ग्रुप स्टडी है सफलता का राज, पहली बार जितेंद्र पहुंचे थे आईआईटी यहां के छात्रों की सफलता का राज, ग्रुप स्टडी है। गांव के छात्र मिलकर साथ में पढ़ाई करते हैं और एक-दूसरे से सब्जेक्ट्स की गुत्थियां सीखते हैं। 1992 में इस गांव से पहली बार जितेंद्र आईआईटी पहुंचे थे। फिलहाल वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में सेटल्ड हैं। गौरतलब है कि गांव के सैकड़ों आईआईटियन देश-दुनिया में अच्छी जगहों पर सेटल्ड हैं। गांव वाले बताते हैं कि जो छात्र सेटल्ड हो चुके हैं, वे गांव के अन्य छात्रों की मदद करते हैं। सहयोग की इसी भावना के चलते बुनकरों का यह गांव आज आईआईटी हब के रूप में पहचान बना चुका है। 12 देशों में काम करते हैं गांव के इंजीनियर पटवा टोली के इंजीनियर करीब 12 देशों में कार्यरत हैं। सबसे ज्यादा 22 लोग अमेरिका में हैं। जबकि गांव के कई इंजीनियर सिंगापुर, कनाडा, स्विट्जरलैंड, जापान, दुबई आदि देशों में काम कर रहे हैं। people  talking photo… Read more…

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