
- Photo by jinkazamah

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Education System
Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber
By Monica Gupta



By Monica Gupta

Quality Education Should Not Remain a Distant Dream
Since the last decade, Annual Report on School Education has been presenting a realistic picture of government schools. But governments apparently are not worried as the system ensures inbuilt ‘unaccountability’. In Uttar Pradesh, 72,825 teacher vacancies should have been filled in 2011, but the system remained unconcerned for all these years. It’s only now, under repeated Supreme Court directions, that things have staring moving. There are over a million vacant posts of teachers in the country. Nowhere has been a single person removed or put in jail for such a shameful situation. Even the much-hyped implementation of the Right to Education Act (RTE) was ‘successful’ only on papers, nothing changed in functional terms in sarkari schools.
Over the years, even a cursory look at annual reports of education ministries of the Union and state governments would present a very encouraging scenario. More schools, rooms and teacher positions, significant improvement in enrolments, more children covered under mid-day meal scheme, more officers, more schemes, and much more. All this positivity evaporates once one visits a few government schools anywhere—cities, towns or villages. There is a rare uniformity in the school functioning across the states. Only one inference emerges: is it really impossible to mend these schools? Private schools referred to as ‘public schools’ are mushrooming, and everyone seems to love this phenomenon. To put their child in a public school is the dream of every parent in the country, including even the illiterate families. Only those short of resources or constrained by factors like location reluctantly look towards government schools. One must concede the existence of a small percentage of good government schools and committed teachers. Even this exceptional class suffers because of the overall loss of credibility. See more…
By Monica Gupta

बाल कहानी- नानी मां
नानी के घर से मैं अपना सारा सामान समेट रही हूं। मैं आज पापा-मम्मी के साथ दिल्ली लौट रही हूं। अरे ∙∙∙! मैंने अपना परिचय तो दिया ही नहीं………। मैं हूं मणि। मेरा आठ साल पहले मसूरी के स्कूल में दाखिला हो गया था। नानी के मसूरी में रहने के कारण मैं छात्रावास में नहीं रही। अब मेरी दसवीं कक्षा की पढ़ार्इ खत्म हो गर्इ है और उससे भी बड़ी बात यह है कि नानी भी हमेशा के लिए अपने छोटे बेटे यानि मेरे मामा के पास अमरीका रहने के लिए जा रही हैं, विदेश जाने का उनका एक ही कारण है, वह है अकेलापन। वैसे वो भारत भी आएंगी, लेकिन कब……. इसका पता नहीं।
नानी पहले ही दिल्ली जा चुकी थीं। मैं मम्मी-पापा के साथ अपना सामान समेट रही हूं। चुपचाप आंसू भी छिपाने की कोशिश में हूं। मैं लगभग आठ साल से नानी के साथ रह रही हूं। मुझे वो इतनी…….इतनी प्यारी लगती हैं कि मैं सोच भी नहीं पा रहीं हूं कि मैं उनके बिना कैसे रहूंगी। इस बडे़ से घर के कमरे-कमरे में मेरी यादें बसी हैं। रजार्इ में बैठे-बैठे नानी का भीगे बादाम खिलाना, खांसी होने पर अदरक-शहद चटवाना और हर रविवार को इलायची चाय पिलाना।
सच, मेरी नानी हर काम में एकदम होशियार थीं। मम्मी भी बहुत अच्छी हैं, लेकिन जब से उन्होंने पापा के साथ व्यापार में हाथ बंटाना शुरू किया है, तब से वह बदल सी गर्इ हैं। सच पूछो तो मुझे छात्रावास भेजने का भी यही कारण रहा होगा ताकि वे बिना रूकावट व्यापार कर सकें। वो तो मैं नानी की वजह से आठ साल मजे से निकाल गर्इ। लेकिन अब मेरा दिल्ली जाने को बिल्कुल मन नहीं है।
बाहर पापा जल्दी करो की आवाज लगा रहे थे। उधर मम्मी मुख्य द्वार पर ताला लगा ही रही थीं कि मैंने प्यास का झूठा बहाना बनाया और रसोर्इ में भागी। असल में, मैं अपने आंसू मम्मी-पापा को दिखाना नहीं चाह रही थी। पानी पीते-पीते मैं रसोर्इघर की दीवारें, बर्तन सभी ध्यान से देख रही थी। नानी ने बोल दिया था कि मैं भारत लौट के नहीं आ पाऊंगी तो यह घर मेरी बेटी और उसके पति के हवाले है, चाहे वो इसे रखें या बेचें। उन्होंने सारे कागज मम्मी को थमा दिए थे। पापा, मम्मी की तो योजना बननी और उस पर लड़ार्इ होनी शुरू हो गर्इ थी। मकान बेचने में दोनों को बहुत फायदा दिख रहा था।
अचानक मम्मी की आवाज सुनकर मैंने अपने पर्स में जल्दी से कुछ रखा और बाहर आ गर्इ। पापा गुस्सा कर रहे थे कि यहां से देर से चलेंगे तो दिल्ली देर से पहुंचेंगे और अगर हम समय से नहीं पहुंचे तो नानी की फ्लाइट गर्इ तो हमें उन्हें बिना मिले ही वापस आना पड़ेगा। नानी से मिलने के शौक में मैं जल्दी से कार में बैठ गर्इ और मम्मी भी ताला लगाकर कार में बैठ गर्इ। मसूरी की गोल-गोल बनी सड़कों से गाड़ी नीचे उतर रही थी। मेरा दिल बैठा जा रहा था। बार-बार मैं अपने पर्स में झांक लेती। पर्स अपनी गोदी में ही रखा था और मैं उसे सहला रही थी। उधर, मम्मी-पापा की बहस जारी थी। पापा चाह रहे थे कि घर की लिपार्इ-पुतार्इ करके ही घर बेचा जाए, जबकि मम्मी कह रही थी कि जैसे है वैसा ही बेच देते हैं क्योंकि लिपार्इ…. आदि करवाने में खर्चा बहुत आएगा। खर्चा क्यों करें। सच, पैसा कितना दिमाग घुमा देता है, मैं आज देख रही थी। मुझे याद है कि नानी किस तरह घर का ख्याल रखती। पुराने समय का पत्थर, लकड़ी से बना इतना सुन्दर घर था कि लोग घर के सामने खड़े होकर तस्वीरें खिंचवाते थे।
नानी खुद भी बहुत हंसमुख व मिलनसार थीं। मेरी मम्मी…… बिल्कुल अलग थीं। नानी पुराने सामान को कितना सहेज कर रखती थीं। खासकर मेज, कुर्सी, रसोर्इ के पुराने बर्तन। तभी गाड़ी के ब्रेक लगे और मैं अतीत की यादों से निकल कर धरातल पर लौट आर्इ।
मैंने पुन: पर्स खोला, उसमें देखा और फिर उसे सहलाने लगी। मम्मी को कुछ शक-सा हो चला था।
उन्होंने पापा को कुछ इशारे से बताया, फिर मेरे हाथ से पर्स लेते हुर्इ मम्मी बोली, चलो, तुम सो जाओ, थक गर्इ हो। लेकिन वो पर्स मैंने उनके हाथों से खींच लिया। मम्मी भी गुस्से में आ गर्इं। मैं इतनी देर से देख रही हूं तू पर्स में बार-बार क्या देखे जा रही है। ला, दिखा तो सही, इसी छीना-झपटी में पर्स हाथों से खुल कर छूट गया। मम्मी जल्दी-जल्दी देखने लगी कि आखिर है क्या इस पर्स में……..। आखिर मैं ऐसी क्या अनमोल वस्तु लेकर जा रही हूं अपने पर्स में……। पापा गाड़ी चलाते-चलाते पूछ रहे थे कुछ मिला, मम्मी टटोल रही थी……. अचानक मम्मी का हाथ किसी से टकराया उन्होंने उसे बाहर निकाला ये क्या….. चम्मच, तू चम्मच ले जा रही थी। पापा हंसने लगे।
मेरी आंखों में आंसू डबडबा आए। मां, आपको चम्मच देखकर कुछ याद नहीं आता, अपनी मम्मी का प्यार, दुलार। यह वही चम्मच है जब नानी आपको खाना देने में जरा भी देर करतीं तो आप इसी चम्मच को मेज से ठक-ठक करके कितना शोर मचाती थीं। इस चम्मच से ही मम्मी की प्लेट से राजमा उठाती थीं। मां हैरान-सी बोली, लेकिन तुझे यह सब किसने…..? नानी ने, और किसने बताया। हम हर समय आपके बचपन की ही तो बातें करते रहते थे।
मां एकदम चुप हो गर्इ थीं। मेरा गला भी नानी का नाम लेते ही रूंध गया था। मां, नानी बहुत दूर जा रही हैं, पता नहीं, फिर कभी मिलने आए या ना…..यह चम्मच मैं नानी का हाथ समझकर ले रही हूं। इस चम्मच से अगर मैं खाना खाऊंगी तो समझूंगी कि नानी खाना खिला रही हैं। मां……..मुझे नानी की बहुत याद आएंगी।
और मैं खुल कर रो पड़ी। मम्मी की आंखें भी गीली हो चली थीं।
पापा ने गाड़ी को एक किनारे पर लगा कर रोक दिया था। वह पापा से बोलीं, हम घर को बेचेंगे नहीं, वो हमारा ही रहेगा। आज मणि ने मेरी आंखें खोल दीं। मैं तो पैसे की दौड़ में मां की ममता को ही भूल चुकी थी। शायद इन आठ सालों में मुशिकल से दो या तीन बार ही उनसे मिली थी और शायद यही कारण है कि वो भारत छोड़ कर जा रहीं हैं।
पापा बोले, अभी भी देर नहीं हुर्इ है…… अगर हम समय पर पहुंच गए तो शायद हम मम्मी जी को रोक ही लें। मेरा दिल खुशी से नाच उठा। अब मुझे हवार्इ अड्डे पहुंचने की जल्दी थी। हम थोड़ा देर से पहुंचे थे। दूर नानी जाती हुर्इ दिख रही थी। उनके नाम को बार-बार पुकारा जा रहा था। शायद वो हमारे इन्तजार में ही थीं।
मैं दूर तक उन्हें देख कर हाथ हिलाती रही किन्तु आंखों में इतना पानी भर रहा था कि वह कब ओझल हो गर्इं पता ही नहीं चला। उधर मम्मी भी बहुत उदास थीं।
पापा समझा रहे थे कि एक बार बस अम्मा को जाने दो, मैं बहुत जल्दी उन्हें वापिस लिवा आऊंगा। मैं बहुत खुश थी कि मेरी ममतामयी मां का स्नेह मुझे मिलेगा।
मम्मी मुझसे लिपट कर बच्चों की तरह रोने लगीं और मैं मम्मी की मम्मी बनी प्यार से उनके सिर को सहला रही थी।
बाल कहानी- नानी मां

Photo by vinodbahal 
By Monica Gupta
बेटी बचाओ अभियान – हर बात पर अपने विचार टवीटर पर सांझा करने वाले मोदी जी का सुषमा, वसुंधरा, पंकजा, स्मृति जी को लेकर मौन लोगों को विचलित कर रहा है ऐसे में रोष फूटना स्वाभाविक है और विपक्षी दल तो मजे ले ही रहा है … !!!
– , IBN Khabar
इस पत्र के मुताबिक वसुंधरा ने ललित मोदी को ब्रिटेन में ट्रैवल डॉक्युमेंट हासिल करने के लिए उनकी एप्लिकेशन पर हस्ताक्षर कर समर्थन किया था। बयान में लिखा था – ‘सिविल लाइंस 13 जयपुर, राजस्थान, भारत से मैं वसुंधरा राजे। मैं यह बयान ललित मोदी के लिए किसी भी इमिग्रेशन एप्लिकेशन के समर्थन में दे रही हूं, लेकिन इसके लिए एक सख्त शर्त है कि इंडियन अथॉरिटीज को पता नहीं चलना चाहिए। हालांकि वसुंधरा राजे का कहना है कि वो ललित मोदी के परिवार को तो जानती हैं, लेकिन जिन दस्तावेजों की बात हो रही है, उनके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। See more…
– BBC
महाराष्ट्र की महिला और बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे ने भ्रष्टाचार के आरोपों पर सफ़ाई दी है.
मराठी अख़बार सकाल में छपी एक ख़बर के अनुसार पंकजा मुंडे के विभाग में 206 करोड़ रुपए की ख़रीद की गई थी.
कांग्रेस का आरोप है कि ये ख़रीद नियमों को नज़रंदाज़ कर की गई और इसके लिए टेंडर नहीं बुलाया गया था.
हालांकि पंकजा मुंडे ने इन आरोपों को ग़लत बताया है. पंकजा फ़िलहाल लंदन में हैं.
पंकजा ने बयान में कहा है, “यह पैसा इसी महीने ख़र्च करना ज़रूरी था, वर्ना सारा पैसा वापस चला जाता और फिर मिलने में काफ़ी कठिनाइयां आती. इस मामले में सारे निर्णय केंद्र सरकार के डायरेक्टर जनरल ऑफ़ सप्लाइज एंड डिस्पोजल्स के नियमों के अनुसार किए गए हैं इसलिए ई-टेंडरिंग का सवाल ही पैदा नहीं होता.”
पंकजा ने ये भी कहा है कि ई-टेंडरिंग के संबंध में आदेश जारी होने से पहले यह ख़रीद की गई.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी पंकजा का बचाव किया है. उन्होंने कहा है कि पहली नज़र में इसमें कोई भ्रष्टाचार नज़र नहीं आता.
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने बीबीसी को कहा, “अब तक प्राप्त जानकारी के आधार पर हम यह कह सकते है कि मुख्यमंत्री इस मामले में लोगों को गुमराह कर रहे हैं.”
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की सरकार बनने के बाद से ये पहला मौका है जब इस पैमाने के किसी कथित घोटाले के आरोप लगे हैं. See more…
By Monica Gupta

बाल कहानी- भईया – कहानियां पढनी या सुननी हम सभी को अच्छी लगती हैं कुछ कहानियां मनोरंजन करती हैं तो कुछ कहानियां बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं तो कुछ कहानियां रिश्तों की नींव को मजबूत बनाती हैं … मेरी ये कहानी भईया दो भाईयों के प्यारे से रिश्ते की कहानी है …
दोपहर का एक बजा है। मैं चिलचलाती धूप में स्कूल से लौट रहा हूं। मेरा नाम मनन है और आठवीं क्लास में पढ़ता हूं। मेरा परिवार मध्यवर्गीय परिवारों में गिना जाता है। हमारे पास अपनी कार, घर और सुविधा का सामान है। मम्मी-पापा दोनों काम पर जाते हैं। एक भार्इ है जो कुछ दिनों पहले होस्टल चला गया है और अब उसे वहीं रह कर पढ़ार्इ करनी होगी…

बाल कहानी- भईया
अचानक साइकिल चलते-चलते भारी हो गर्इ। मैंने रूक कर देखा तो पिछला टायर पंक्चर हो गया था। पैदल ही साइकिल को लेकर चलने लगा। कुछ ही दूरी पर साइकिल की दुकान थी. पहले पहल तो मैं साईकिल पर भईया के पीछे बैठकर स्कूल जाया करता था। भर्इया साइकिल चलाते थे। लेकिन जबसे मेरे दोस्तों ने मुझे चिढ़ाना शुरू किया तो मैंने साईकिल छोड कर स्कूल बस लगवा ली थी।
भर्इया साइकिल पर जाते और मैं बस से। दोनों अलग-अलग आते और अलग-अलग जाते। आपस में कामिपीटिशन करते कि कौन पहले घर पहुंचता है। घर पहुंचकर रिमोट हथियाना होता था। फिर शुरू होता था लड़ार्इ का दौर। मम्मी-पापा समझा-समझाकर हार जाते।
हमारे लड़ने-मनाने-रूठने का क्रम जारी रहता। भर्इया के होस्टल जाने के बाद मैंने बस छोड़कर साइकिल से जाना शुरू कर दिया था। अचानक ध्यान टूटा तो देखा सामने साइकिल वाले की दुकान आ गर्इ थी। मैंने उसे पंक्चर देखने को कहा और हैंडिल से पानी की बोतल निकालकर उसे पीने लगा।
अब कितने आराम से पानी पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था और पीते-पीते सोचने लगा कि अब कितने आराम से पी रहा हूं। पहले भर्इया यह बोतल ले लेता था तो घर में तूफान खड़ा हो जाता। लेकिन अब लड़ने वाला कोर्इ नहीं है। न चाहते हुए भी मेरी आंखें गीली हो गर्इं। जल्दी से आंखें पोंछी। स्कूल से बच्चे घर जा रहे थे। कुछ के भार्इ उन्हें लेकर जा रहे थे, तो किसी की मम्मी स्कूटी पर, वहीं कुछ भार्इ-बहिन पैदल बातें करते जा रहे थे। मैं इस भीड़ में स्वयं को अकेला महसूस कर रहा था।
भर्इया जब होस्टल जा रहे थे तो मैं कितना खुश था कि अब तो पूरे कमरे, कम्प्यूटर रिमोट, कुर्सी-मेज, अलमारी और साइकिल पर सिर्फ मेरा अधिकार होगा। कोर्इ रोकने-टोकने वाला नहीं होगा। तभी साइकिल वाले ने टोका, कोर्इ पंक्चर नही है। हवा भर दी है। सच पूछो तो अगर भर्इया घर पर होता तो सारा इल्जाम मैं उसी पर लगाता कि भर्इया ने ही साइकिल की हवा निकाली होगी।
खैर, मैं दुबारा साइकिल पर सवार होकर घर चल पड़ा। मम्मी दरवाजे पर खडी इंतजार कर रही थी। मैंने मम्मी को बताया कि साइकिल की हवा निकल गर्इ थी, इसलिए देर हो गर्इ। कमरे में आकर मैं कपड़े बदलने लगा। कमरा साफ-सुथरा था। सब कुछ व्यवसिथत। मम्मी ने खाना लगा दिया। टीवी चलाते हुए मम्मी ने कहा, तुम्हारा मनपसंद कार्टून चैनल लगा दूं। मैंने कहा, कुछ भी लगा दो मेरा मन नहीं है। मम्मी हैरान थी कि कहां मैं सारा दिन लड़ार्इ करके अपनी पसंद का चैनल लगा लेता था और अब देखने का मन नहीं है।
होस्टल से भर्इया जब पहली बार घर आया तो मैंने महसूस किया कि वो कुछ कमजोर सा हो गया है। पर उसे कुछ नहीं कहा। उसे तो मैं वैसे ही चिढ़ाता रहा और महसूस नहीं होने दिया कि मैं बोर भी होता हूं और मुझे उसकी याद आती है। घर पहले की तरह लड़ार्इ से गूंज उठा। वही सुबह बाथरूम पहले जाने की होड़, फिर नाश्ते में पहला परांठा किसका होगा, इस बात पर तकरार……। दो-तीन दिन रहकर भर्इया चला गया। मैं उसे बाय कहने के लिए भी नहीं उठा। हां, अपनी घड़ी में अलार्म जरूर लगा दिया था ताकि वो समय से उठ जाए और उसकी बस न छूटे।
मैं जानता हूं कि भर्इया पढ़ार्इ के मामले में बहुत सनकी हैं। अभी तक सभी कक्षाओं में वह प्रथम रहता आया है। आधा नम्बर भी कट जाता था तो भर्इया घर आकर खाना नहीं खाता था। भर्इया के होस्टल पहुंच जाने पर फोन आया तो मैंने बात नहीं की। मम्मी ने सोचा होगा कि अपने भर्इया से आखिर मैं बात क्यों नहीं कर रहा पर सच पूछो तो मुझे भी नही पता कि भर्इया के जाने से मैं खुश हूं या उदास। कभी-कभी भर्इया का फोन मैं उठाता हूं तो रिसीवर मम्मी या पापा को पकड़ा देता हूं। भर्इया होस्टल में बीमार भी हो गया था, पर मैंने उसकी तबियत नहीं पूछी। मुझे याद है पहले जब मुझे बुखार होता था तो रात को भर्इया मेरा माथा टटोलता कि बुखार ज्यादा तो नहीं हो गया।
खाना खाकर मैं पढ़ने बैठ गया। बहुत देर से एक सवाल हल नहीं हो पा रहा था। अब किसी पर गुस्सा भी नहीं कर सकता कि भर्इया पढ़ने नहीं दे रहा। हालांकि भर्इया चुटकियों में सवाल हल कर देता था। मैं किताब बंद करके लेट गया। मम्मी भी मेरे पास आकर लेट गर्इ। मम्मी की आंखों में मैंने बहुत बार आंसू देखे हैं, पर कभी कुछ नहीं बोला…….।
मम्मी ने अब काम पर जाना कम कर दिया है। शायद मेरी वजह से कि कहीं मुझे अकेलापन खलने न लग जाए। पापा हमेशा की तरह काम में व्यस्त रहतें हैं। हां, मेरे लिए खाना खाते समय मुझसे बातें करते रहते हैं। पर मेरा ध्यान उस समय टेलीविज़न में ही होता है।
भर्इया की पांच साल की होस्टल की पढ़ार्इ है। चाहे मैं बाहर से लड़ाका या गुस्सैल या जैसा भी हूं, पर मेरा ध्यान हरदम मेरे भर्इया में रहता है। शायद मम्मी-पापा इस बात को नहीं समझेंगे। मेरे दिल से सारी शुभकामनाएं मेरे भर्इया को हैं। वो अब भी हर साल प्रथम आए और जो बनना चाहता है वो बने। लेकिन मुझे भर्इया की याद आ रही है, भर्इया घर कब आएंगे……..। मैं आज भी अपने मुंह से कुछ नहीं कहूंगा…..। और मैं दुबारा उठकर सवाल हल करने में जुट गया कि भर्इया हल कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं………….।
बाल कहानी- भईया
ये कहानी बाल कहानी- भईया दिल के बहुत नजदीक है पता नही लिखते हुए कितनी बार आंंखे भर आई और इसे जब भी पढती हूं तो भी आखें नम हो जाती है … !!! सच बताना कि आपको कैसी लगी???
बाल कहानी- भईया
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ऑडियो- कहानी – पसंद नापसंद (Audio) – Monica Gupta
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By Monica Gupta


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