Once upon a time
एक समय था जब हम Once upon a time कह कर अपनी कहानी की शुरुआत करते थे. चाहे वो परियों की हो या शैतान जादूगर की. आज मैं अपनी बात भी उसी बात से शुरु कर रही हूं पर दुख इस बात का है कि ये काल्पनिक नही हकीकत है…
वक्त नही है … समय बहुत कम है … मेरे पास चंद मिनट ही शेष हैं…आपके पास बस दस सैंकिंड हैं … .बाते बहुत हैं पर क्या करुं समय इजाजत नही दे रहा …!!! ऐसा, लगभग, सभी चैनल्स पर, बहस के दौरान न्यूज एकंर बोलते मिल जाते हैं !!! क्या वाकई और तेज, फटाफट सुपर फास्ट खबरें …. !!!
सुनते तो हम अकसर है और इन दिनों ब्रेकिंग न्यूज पर देखने को भी मिल रही है. अक्सर तुरंत या जल्दी दिखाने के चक्कर मे चैनल रिपोर्टरों की situation हास्यास्पद हो जाती है. ( दो चार बार खुद भी अनुभव लिया है) ब्रेकिंग न्यूज देने के लिए सबसे आगे हम के चक्कर में बाईट लेने के लिए ऐसे उतावले हो जाते हैं कि धक्का मुक्की या गुस्सैल शब्दावली से भी परहेज नही करते.. !!!
चाहे कोर्ट से निकलते वकील की हो, नेता की हो या अन्य …!!!!और अगर वो पत्रकारों की मारामारी लाईव हो गई तो … !!(जोकि अकसर हो जाती है) ! बस यही मुहं से निकलता है !!! हे भगवान !!!
Once upon a time जब पत्रकार को बहुत सम्मान के साथ देखा जाता था. पत्रकार होना बहुत गर्व की बात होती थी पर आज के संदर्भ मे बात करे तो ….. !!! एक पत्रकार या रिपोर्टर चार चार पांच पांच चैनल की कवरेज कर रहा है. मुद्दा बस खबर देना है. बात की गहराई तक जाना या न जाना उसका सरोकार नही. किसी खबर की कवरेज के लिए जाने पर जनता को एक शकां रहती हैं वो कौन सी राजनीति पार्टी से हैं किसी कार्यक्रम मे मात्र उसे मुख्य अतिथि या सम्मानित इसलिए किया जाता है ताकि अगले दिन उस कार्यक्रम की खबर मुख्य रुप से छ्प सके. ऐसी बात नही है कि अच्छे पत्रकार नही रहे वो बिल्कुल हैं पर अच्छाई पर बुराई इतनी ज्यादा हावी हो चुकी है कि अच्छे भले पत्रकार भी खुद को पत्रकार कहलाने से कतराने लगे हैं. उफ !!!
Once upon a time जब चैनल पर कोई बहस में आने वाले लोग शालीनता रखते थे और बिना किसी की बात काटे सभ्य ढंग से बात करते थे पर आज …. !!!
आधे धंटे के बहस ऐसे ही खत्म हो जाती है आमंत्रित मेहमान एक साथ बोलते हैं और कौन क्या क्या बोल रहा है किसी का सुर समझ नही आता इससे भी ज्यादा दुख और हैरानी की बात तब होती है जब एंकर भी किसी व्यक्ति विशेष के पक्षपात में बोलता है और हंसी भी आती है जब आमंत्रित मेहमान एंकर को ही चुप करवा देते हैं कि आप ने ही बोलना है तो हमे किसलिए बुलाया है !!! एक बार तो सुनने मे आया था कि हाथापाई भी हो गई थी( हालाकिं ये मैं नही देख पाई)
कुल मिला कर ये जो भी हो रहा है ठीक नही हो रहा. कम से कम न्यूज एंकर को अपनी भावनाओ पर, अपने हाथ की भंगिमाओं पर विशेष ख्याल रखना होगा अन्यथा वो खबर बनाते बनाते कही खुद ही खबर बन गए तो ???
तभी तो मैं कह रही हूं कि Once upon a time जब सही पत्रकारिता हुई करती थी !!




So let’s explore the money lines in our palm… The Money Lines 3 Some markings and configuration of lines present on your palm are very helpful indicators of your financial fate.



