आईना – लघु कथा है जोकि दैनिक भास्कर की मधुरिमा में प्रकाशित हुई. कहानी में मा बेटे और नौकरी पेशा बहू का यथार्थ चित्रण है काम काजी महिलाओ को आईना दिखाती है..
आईना – लघु कथा
आमतौर पर कामकाजी महिलाएं अपने ऑफिस और काम में इतनी डूब जाती है कि घर परिवार उनका बहुत पीछे छूट जाता है और बाद में जब उन्हें समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है यही सब दिखाने की कोशिश की है कहानी आईन में …
लीजिए पढिए एक नई कहानी कोट
कोट
स्कूल यूनीफार्म का कोट था। बड़े के छोटा हुआ तो दो साल छोटे ने पहन लिया। पर छोटा बडे़ से ज्यादा लंबा हो गया और उसके लिए नया कोट सिलवाना पड़ा। अब रीटा मौसी सोचने लगीं कि वो कोट जब बनवाया था, तब सात सौ का बना था… इसीलिए उसने सोचा कि इस साल तो किसी को नहीं दूँगी, उसे सहेजकर ट्रंक में रख लिया। अगली सर्दी में फिर ट्रंक खुला। कोट को उलट-पुलट करके फिर उसमें नीम के पत्ते और फिनाइल की गोलियाँ डालकर वापस रख दिया, क्योंकि वो अभी भी नया जैसा लगता था। एक साल फिर बीतने पर उसने हिम्मत करके ट्रंक से कोट बाहर तो निकाला, पर किसी को देने का मन बना ही नहीं पाई। पूरे साल बेचारा ट्रंक में पड़ा रहा।
आज रीटा मौसी ने आखिरकार, पाँच साल बाद सोच लिया कि कोट को किसी-न-किसी को जरूर देना है…. पर हाय… अब कोट दिखने में मैला और पुराना लगने लगा। एक बार तो रीटा मौसी ने बर्तन वाली को दिखाया वो भी नाक-मुँह चढ़ाकर बोली कि इसके तीन गिलास ही मिलेंगे, लेना है तो बोलो…. और घर की ओर झाँकती हुई बोली, कुछ नया और अच्छा नहीं है क्या….। रीटा मौसी ने बिना मोल-भाव किए उसे भगा दिया। अब रीटा मौसी किसी गरीब-फटेहाल को ढूँढ रही हैं जो वो कोट पहन ले…।
एक शाम एक गरीब-फटेहाल बच्चा आया, उसने फटाफट कोट निकालकर उसे दे दिया। उसने कोट तो पहन लियाए फिर बोला कि कोट गर्म नहीं है, कोई टोपी या दस्ताने हों तो… रीटा मौसी ने उसे भगा दिया…और दरवाजा बंद करके यही सोचने लगी कि काश… पाँच साल पहले ही यह कोट किसी जरूरतमंद को दे देती तो कितना अच्छा होता! क्योंकि आज कोट देकर भी न दिए के बराबर जो हो गया था।
कैसी लगी कहानी जरुर बताईएगा ..
मां शैलपुत्री – क्या है कहानी – Monica Gupta
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की कहानी देवी दुर्गा के नौ रूप हैं. पहले स्वरुप मां शैलपुत्री की क्या है कहानी सुनिए या पढिए 3 मिनट 9 सैकिंड का ऑडियो read more at monicagupta.info