संतोष सबसे बड़ा धन है – Santosh sabse bada dhan hai – संतोष धन सर्वोपरि , जब आवे संतोष धन , सब धन धूरि समान , पता हम सभी को है पर मानते कितने लोग हैं कि हमें संतोष से रहना चाहिए … गौ धन गज धन बाज धन और रतन धन खान।जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान ।। जितना है उसी में खुश रहिए और ईश्वर का शुक्र मानिए
संतोष सबसे बड़ा धन है
कल जब मैं मार्किट में नारियल ले रही थी दुकानदार को मैं जानती थी मैने इनसे पूछा कि कैसे हो भईया … वो बोले शुक्र् है भगवन का … सुनकर बहुत अच्छा लगा
तभी वहां एक बडी सी कार आकर रुकी और उसमे से एक महिला उतरी मैने देखा मेरी जानकार थी वो भी नारियल खरीदने लगी …
मैने उसे हैलो किया और पूछा कि कि कैसी हो तो वो बोली क्या बस कट रही है …
मैं नारियल ले कर लौट रही थी और सोच रही थी कि एक तरफ नारियल वाला कितना संतुष्ट था … दूसरी तरफ वो जानकार जो इतनी बडी कार से आई और फिर भी बोली बस कट रह्ही है इस पर मुझे एक कहानी याद आई जो मैने नेट पर पढी थी
Shikshaprad Kahani –
एक छोटे से गाँव में महात्मा गए. सभी गांव वाले इकट्ठे हो गए और उन्होंने महंत के समक्ष अपनी फरियादें रखीं, ‘हमें हमारी परेशानियों से छुटकारा पाने में कृपया मदद कीजिए… हमारा जीवन खुशियों से तब भरेगा जब हमारी इच्छाएँ पूरी होंगीं.
महात्मा ने चुपचाप सबकी बातें सुनीं. अगले दिन उन्होंने घोषणा की- ‘इस गाँव में कल दोपहर एक चमत्कार होगा . सभी गाँव वासी अपनी सारी समस्याएँ एक काल्पनिक बोरी में बाँध लें और उसे नदी के उस पार ले जाकर छोड़ दें.
संतोष सबसे बड़ा धन है
फिर, उसी काल्पनिक बोरी में वह सब डाल लें जो आपको चाहिए….सोना, आभूषण, अन्न…और उसे अपने घर ले आयें. ऐसा करने से आपकी समस्त इच्छाएँ पूरी हो जायेंगीं.’ ये मौका एक ही बार मिलेगा …
गाँववाले हैरान !! हक्के-बक्के थे परन्तु…..उन्होंने सोचा कि हिदायत का पालन करने में कोई हानि नहीं है. अगर सच है तो जो वह चाहते हैं, वह उन्हें वास्तव में मिल जाएगा और अगर झूठी है तब भी कोई अंतर नहीं पड़ेगा. अतः उन्होंने घोषणा का पालन करने का निश्चय किया.
अगली दोपहर, सबने अपनी मुसीबतें एक काल्पनिक बोरी में बाँधीं, उन्हें नदी के उस पार छोड़ा और वह सब ले आए जो उनकी सोच के अनुसार उन्हें ख़ुशी देने वाला था….सोना, गाड़ी, घर, आभूषण, हीरे.
गाँव वापस लौटने पर सभी हैरान थे. जिस व्यक्ति को गाड़ी चाहिए थी, उसके घर के आगे गाड़ी खड़ी थी. जिसने आलीशान घर की कामना की थी, उसने देखा कि उसका घर एक शानदार घर में बदल गया था. सब अत्यंत खुश थे. उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था.
पर हर्ष व उल्लास कुछ समय तक ही कायम रह पाया. जल्द ही सब अपनी तुलना अपने पड़ोसियों से करने लगे. सब महसूस करने लगे कि उनके बगल वाला उनसे अधिक प्रसन्न व धनी था.
अतः दूसरों के बारे में और अधिक जानने के लिए सब आपस में बात करने लगे. इस व्यवहार से सबको पछतावा होने लगा. ‘मैंने एक साधारण सोने की चेन की माँग की थी परन्तु पड़ोस की लड़की ने आकर्षक सोने के हार माँगा था और उसे वह मिल गया!
मैंने केवल एक मकान की माँग की थी पर सामने के घर में रहने वाले व्यक्ति ने हवेली माँगी थी. एक कार मांगी दो मांगता …
हमें भी ऐसी वस्तुओं की माँग करनी चाहिए थी! यह एक अनोखा व सुनहरा मौक़ा था परन्तु हमने अपनी मूर्खता के कारण इसे गवाँ दिया.’
सभी गाँववाले एक बार पुनः महात्मा के पास गए और सारा गाँव एक बार फिर निराशा व असंतोष में डूब गया.
जबकि संतोष में रहना सीखना चाहिए वो कहते भी हैं कि ना कि जब संतोष आ जावे तब सब धन धुरि के समान लगते है।गौ धन गजधन बाज धन और रतन धन खान।जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान ।। खुश है जितना है खुश रहिए और ईश्वर का शुक्र मानिए तभी खुश रह सकेग़ें …
संतोष सबसे बड़ा धन है
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