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December 30, 2017 By Monica Gupta Leave a Comment

Teach Kids to Accept Failures – बच्चों को सिखाएं – विफलता को स्वीकार करें – Monica Gupta

Teach Kids to Accept Failures

Teach Kids to Accept Failures – बच्चों को सिखाएं – विफलता को स्वीकार करें – Monica Gupta – Parenting Tips in Hindi – पेरेंटिंग टिप्स – बच्चों को कैसे समझाएं बच्चों की परवरिश – बच्चों की परवरिश कैसे करें – परवरिश के तरीके – बच्चों को हम पेरेंट्स क्या क्या सीखाते हैं.. लिखना, पढ़ना  खेलना, हंसना बोलना…  पर क्या हम बच्चों को फेल होने पर, असफल हो जाने पर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए सीखाते हैं ?? नही ..

Teach Kids to Accept Failures – बच्चों को सिखाएं – विफलता को स्वीकार करें

ज्यादातर पेरेंट्स नही सीखाते क्योंकि पेरेंट्स  का बस एक ही लक्ष्य होता है कि बच्चा हर चीज में फर्स्ट रहे… उससे इतनी उम्मीदे रख लेते हैं अगर बच्चा किसी काम में रह गया तो नाराज हो जाते हैं, बहुत प्रेशर डालते हैं… टीवी खाना बंद कर देते हैं वहीं बच्चा भी सफलता न मिलने पर वो उसे पचा नही पाता और टूट जाता है… जबकि हमें बच्चों को सीखाना चाहिए जीवन मे सफलता और असफलता दोनो होती रहती हैं और हमें दोनो को स्वीकार करना आना चाहिए..

ऐसा नही करना चाहिए कि बच्चे के नम्बर सबसे ज्यादा आए तो टेस्ट में चीटिंग भी करवा रहे हैं या प्रैक्टिकल है और जो examiner आए हैं उन्हें पैसे खिला कर या सिफारिश से बच्चे के नम्बर लगवा रहे हैं..

ऐसे में बच्चा हमेशा सफलता ही चाहेगा और जब उसे नही मिलेगी तो वो टूट जाएगा.. ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमे उसे ये सीखाना होगा कि हार जाना भी आना चाहिए… सफल न होने पर मायूस नही होना… अगर सफलता चाहते हैं तो असफलता का स्वाद भी चखना पडेगा..

पेरेंट्स खुद मॉडल बनें..

मॉडल तब बनेंग़ें जब अपनी उम्मीदें कम रखेंगें…

इसका बहुत प्रेशर बच्चे पर पडता है.. बहुत ज्यादा उम्मीद रखते हैं और किसी वजह से अच्छा नही कर पाया तो बुरा बर्ताव करते हैं… कुछ दिन पहले मैंने एक रिएलिटी शो में देखा कि एक बच्चे की आवाज बहुत अच्छी थी पर उसके सुर बिखर रहे थे.. गाने के बाद उसने बताया कि पापा का बहुत प्रेशर था कि अगर इसमे सेलेक्ट नही हुआ तो तेरा गाना बंद… इसलिए वो बहुत तनाव में गा रहा था… वही एक बच्चा जिसके सुर इतने अच्छे नही थे पर वो पूरी मस्ती में गा रहा था.. क्योकि उसके मम्मी पापा ने कहा था कि तुम चाहे सेलेक्ट हो या न हो हमारे लिए तो तुम हीरो हो… और वो खूब मस्ती में गा रहा था… और वो सिलेक्ट भी हो गया… ये होता है जब बहुत प्रेशर होता है… इसलिए प्रेरेंट्स को यह बात सीखनी चाहिए कि प्रेशर न डाले.

बच्चे से empathy यानि सहानूभूति रखनी चाहिए…

आमतौर पर बच्चे के असफल होने पर हम बोल देते हैं कि ठीक है अगली बार अच्छा करना… इसका मतलब हो ये हुआ ना कि बच्चे ने इस बार अच्छा नही किया … जबकि कहना चाहिए कि आप बहुत ज्यादा उदास हो … मुझे पता है आप इससे बेहतर करना चाहते थे कोई बात नहीं.. यानि उसे मोटिवेट करना है न कि डिमोटिवेट..

कई बार फेल होना एक सबक होता है..

कितनी बार जब बच्चे के कम नम्बर आते हैं तो पेरेंटस ये कहते हैं कि अच्छा हुआ.. अब सबक मिलेगा अब मेहनत करेगा… एक बात तो मैं ही बताती हूं कि दो दोस्त थे.. 9 क्लास में..  एक की english अच्छी थी दूसरे का maths दोनो ने स्कीम बना ली कि एक दूसरे को दिखाएगें… english वाले ने तो अपना पेपर दिखा दिया पर दूसरे ने अपना maths का पेपर  नही दिखाया उसने चीटिंग कर ली… वो बच्चा फेल हो गया पर अब उसमे एक नया आत्मविश्वास था कि खुद अपनी maths अच्छी करेगा.. और अगले साल वो मेहनत करके क्लास में फर्स्ट आया  इसलिए सीखाना चाहिए कि

इसे दिल और दिमाग पर हावी नही होने देना… .

ये जिंदगी का बहुत महत्वपूर्ण सबक है…  और अगर ये पेरेंटस ने बच्चे को सीखा दिया तो वो जिंदगी का सामना सहजता से करेगा और जल्दी ही उससे बाहर भी आ जाएगा..

बच्चों को उदाहरण भी दीजिए..

अगर हम गूगल सर्च करेंगें या नेट पर सर्च करेंगें बहुत सारी ऐसी प्रेरक कहानियां हैं जिनसे हम सबक ले सकते हैं कि इन्होनें भी इतनी दुख, तकलीफ उठाई पर आज देखो उससे निकल कर आ गए और सफल भी है…

एक प्रसंग कुछ ऐसे हैं कि एक बार एक व्यक्ति मंदिर से बाहर आ रहा होता है और बहुत सारे बंदर उसके पीछे पड जाते हैं तो वो आदमी डर कर भागने लगता है वही एक पंडित देख रहे होते हैं वो बोलते हैं भागो मत सामना करो…  वो वही रुक गए और सामना किया और अब बंदरों के डर कर भागने की बारी थी… हमारे सामने दो situation आती हैं पहली भाग लो या भाग लो… या तो भाग लो या सामना करो उस चैलेंज का…

असफलता ही सफलता की सीढ़ी है

ये समझाना चाहिए कि असफलता हमें सबक सीखाती है… बहुत बार ऐसा होता है कि हम अपनी हार को एक चैलेंज की तरह ले लेते हैं और फिर दुगुने उत्साह के साथ सामना करते हैं

दूसरे शब्दों में, हमारी असफलता, हमारी हार, एक opportunity ले कर आती है.. जो हमें महसूस कराती है.  हम सीखते हैं और आगे बढते हैं..

नई Field Explore होती हैं …

एक अच्छे बात ये भी होती है हम नई नई चीजे सीख जाते हैं.. कई बार हम एक ही चीज के पीछे लग जाते हैं दूसरी चीज को ट्राई ही नही देते जबकि इसी बहाने हम दूसरी चीज पर अपना ध्यान लगाते हैं और पता चलता है अरे ये तो बहुत अच्छी थी… तो एक तरह से असफलता वरदान बन कर आई.. जैसे एक बच्चा बहुत प्रैक्टिस करता है वेट लेफ्टिंग की.. पर बार बार असफल हो जाता है फिर एक बार उसे मौका मिलता है कि वो रंनिग करे और उसमे उसे गोल्ड मैडल मिल जाता है…

असफल होने पर बहुत बार ये भी देखा गया है

खुद पर विश्वास ज्यादा हो जाता है मन मजबूत कर के हम खुद को ही चैलेंज कर देते हैं..

“मैं” से बाहर निकलते हैं..  Sportsmanship बढती है..

कि मैं ही जीतूंगा मैं ही फर्स्ट आऊंगा.. इससे बाहर निकल कर दूसरों को जीतते हुए देखते हैं तो sportsmanship बढती है..

कुल मिलाकर बच्चों को असफलता का, हार का सामना करना सीखाना चाहिए.. ठोकर खाकर ही सीखते हैं हम कई बार !!

मील का पत्थर बन कर आता है ये हमारे सामने…

तो क्या सोचा.. ??

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