रैली ( मोनिका गुप्ता)
रैली लीला
रैली का रौला .. रैली लीला है या राम लीला या महाभारत अबकी बार बहुत जल्दी शुरु हो गई है कही आग उगलते नश्तर की तरह चुभते नेताओ के बयान, कही अठ्ठाहस करती राक्षसी और पिशाच जैसी हंसी, कही जंगल राज की बात तो कही धृर्त् राष्ट्र की तरह आखॆ बंद किए बैठी कानून व्यव्स्था, तो कही नेता और मीडिया के चक्रव्यूह मे फसंती जनता …
आज के संदर्भ में यक्ष प्रश्न
आज के समय में किसे सुधरना चाहिए
नेता को ( भडकाऊ भाषणों से)
न्यूज चैनलों को (बेसिर पैर की बातों को तूल देने पर )
या जनता को कि जो ये हो रहा है होता रहेगा इसलिए अपना मन खराब न करे…
है कोई जवाब ???
24 घंटे के खबरिया चैनल, एक एक घंटे की बहस और बहस के अंत में बोलेगें कि समय नही है समय खत्म हो रहा है अरे !!!… जब इतना समय लगाया है तो कुछ समय और देकर कम से कम किसी निष्कर्ष पर तो पहुंचों.. हर रोज यही ड्रामा चलता है … दर्शकों को अधर मे छोड कर क्या दिखाना चाह्ते हो अगर, वाकई आप अपने उठाए मुद्दों के प्रति गम्भीर हैं तो हटाओ विज्ञापन जो बहस के दौरान बार बार दिखाते हो … मत लो ब्रेक… लगातार दिखाओ बहस !! पर नही !! ये न होगा आपसे !! बस दिखावा ही करो कि आप जैसा जागरुक और सजग चैनल कोई दूसरा हो ही नही सकता…!!! हुह !!
भेजा फ्राय !!!