अजब गजब नाम और मेरे मन की बात
अगर मैं क्रांति, आंदोलन, संघर्ष, भूख हडताल ,नेता की बात करुं तो आपको लगेगा कि मैं आज राजनीति की बात कर रही हूं पर नही ये एक परिवार में बच्चों के नाम हैं .. जी हां, मध्यप्रदेश के रहने वाले समाज सेवी मुन्नालाल ने अपने बच्चों के नाम बहुत खुशी खुशी रखे हैं… है ना हैरानी की बात … !!
वैसे कुछ शहर तो कुछ गांव के नाम भी अजीबो गरीब होते हैं मुझे याद है न्यूज के सिलसिले में जब अक्सर सिरसा के गांव जाना पडता था कुछ गांव के नाम ऐसे है कि बोलने मे झिझक सी महसूस होती जैसे कुताबढ, कुतियाना विचार आता था कि नाम परिवर्तन की इन गांवों को जरुरत है ना कि गुडगांव का गुरुग्राम होना …वैसे कुछ गावों के नाम प्यारे भी बहुत हैं जैसाकि दादू , मिठरी , हस्सू, कालूआना..वैसे कालूआना प्यारा नाम नही है … 😆
कुछ लोग चुनाव चिन्ह भी अजीबो गरीब रखते हैं तो कुछ एक दूसरे की वोट काटने के लिए एक जैसे नाम रख लेते हैं..
मैं पढ ही रही थी कि तभी मणि का फोन आया कि वो मेरे घर नही आ रही क्योकि उसकी कामवाली बाई शिमला गई है.. अरे वाह मैने कहा वाह शिमला.. क्या बात है !! इस पर वो बोली अरे वो वाला शिमला नही यही पास में एक गांव है शिमला वहां गई है… !!
अचानक मेरी नजर उसी अखबार में छ्पी एक दूसरी खबर पर गई.. गुजरात के कुछ गांवो के नाम भूतडी, चुडैल… कैसे लेते होंगें ये लोग अपने गावों का नाम !!
गूगल सर्च और अजब वेबसाईट भी जरुर पढिए
BBC
भारत में शहरों के नामों को बदलने का काम 20 साल पहले तब शुरू हुआ था जब भाजपा और शिवसेना की सरकार ने 1996 में बंबई का नाम बदलकर मुंबई रखा.
लेकिन यह गुरूग्राम से अलग मामला था, क्योंकि ज़्यादातर लोग बंबई, मुंबई या फिर बुंबई नाम का इस्तेमाल करते थे और उससे परिचित भी थे. लेकिन तब भी विरोध करने वालों का तर्क यही था कि बंबई एक ब्रांड था और उससे ब्रांड का नुक़सान होगा.
पीछे मुड़कर देखने पर और 20 साल के लंबे अंतराल पर नज़र डालने से ये नहीं लगता है कि नाम बदलने से ब्रांड का कोई नुक़सान हुआ है.
मुंबई की समस्या आधारभूत ढांचों की है. यह बाहरी लोगों को रोज़गार तो मुहैया कराता है लेकिन उनके रहने के लिए मुंबई के पास बस ख़स्ताहाल सुविधाएं ही बची हैं. read more at bbc.com
हे भगवान !! हे ईश्वर!! हे प्रभु !!
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