एनीमिया रोग – महिलाओं में खून की कमी- महिलाएं घर की धुरी होती हैं वह पूरे परिवार की जिम्मेवारी को बखूबी निभाती हैं, पर जब खुद की सेहत की हो तो अपना ध्यान ही नहीं रखती… अपनी सेहत के प्रति बिल्कुल लापरवाह होती है…
एनीमिया रोग – महिलाओं में खून की कमी
नारी, महिला, औरत, नारायणी, शक्ति, दुर्गा न जाने कितने नामों से स्त्री को सम्बोधित किया जाता है, लेकिन दुःखद पहलू यह है कि आज यही नारायणी एनीमिया की गिरफ्त में है।
शक्ति को शक्तिहीन करता एनीमिया
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि एनीमिया का नाम सुनते ही हमारे जहन में महिलाएं ही आती हैं, क्योंकि ज्यादातर महिलाएं ही इसका शिकार होती हैं। महिलाएं घर की धुरी होती हैं। वह पूरे परिवार की जिम्मेवारी को बखूबी निभाती हैं, पर दुःख की बात है कि परिवार की देखभाल में वह खुद पर ध्यान नहीं दे पातीं। यही वजह है कि अपने पोषण के प्रति ज्यादातर समय वे लापरवाह ही बनी रहती हैं और इस वजह से एनीमिया Anemia) का शिकार बन जाती हैं।
एनीमिया क्या है
शरीर के खून में लाल रक्त कणों का सामान्य से कम होना ही एनीमिया कहलाता है। चिकित्सीय भाषा में हीमोग्लोबिन की कमी को एनीमिया कहा जाता है। ये लाल रक्त कण शरीर के सभी अंगों में जीवनदायक ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करते हैं। लाल रक्त कणों की कमी होने पर ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, जिससे थकान और कमजोरी का अहसास होने लगता है। रक्त में लौह तत्व की कमी होना एनीमिया का प्रमुख कारण है। साधारणतः पुरुषों में हीमोग्लोबिन का स्तर 13-5 तथा महिलाओं में 12 ग्राम@100 मिली ग्राम आरबीसी (रेड ब्लड सेल) होना चाहिए।
एनीमिया विश्व की खतरनाक बीमारियों में से एक है। विश्व में दो बिलियन से अधिक लोग एनीमिया से पीड़ित हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं इस समस्या से अधिक ग्रस्त हैं। पिछले दशक में भारत सहित विश्व में एनीमिया पीड़ितों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है।
इस बारे में अधिक जानकारी के लिए हमने डॉक्टर गिरीश चौधरी संपर्क किया। उन्होंने बताया कि एनीमिया होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें ज्यादा खून बहना, RBC (Red blood cells) का बहुत ज्यादा नष्ट होना या इनका नया न बनाना, आयरन से भरपूर भोजन न करना या शरीर में आयरन (Iron) का ठीक से अवशोषण न होना शामिल है। इसके अलावा अन्य कारण भी हैं, जिनकी वजह से एनीमिया (Anemia) की समस्या बढ़ जाती है।
महिलाओं मे खून की कमी के कारण
सामान्यतः यह बीमारी महिलाओं में इसलिए भी अधिक पाई जाती हैं क्योंकि भारतीय समाज में लड़कियों की परवरिश पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना दिया जाना चाहिए। इस वजह से उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता और उनमें खून की कमी होने लगती है। राष्ट्रीय पोषण मॉनिटरिंग ब्यूरो के अनुसार कि 13 से 15 वर्ष की लड़कियों को हमारे देश में 1620 कैलोरी वाला भोजन ही मिलता है, जबकि उन्हें 2050 कैलोरी वाले की आवश्यकता होती है। पर्याप्त मात्रा में कैलोरी नहीं मिल पाने के कारण लड़कियां कुपोषण का शिकार हो जाती हैं और इससे खून की कमी भी हो जाती है।
यह कमी गर्भधारण के बाद और प्रसव के समय अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है। यही वजह है कि यह बीमारी महिलाओं में अधिक पाई जाती है। एनीमिया के लक्षण किसी भी युवती या महिला में बहुत साफ-साफ दिखाई दे जाते हैं। खून की कमी होने पर महिलाओं में थकान, उठने-बैठने और खडे़ होने में चक्कर आना, काम करने का मन न करना, शरीर के तापमान में कमी, त्वचा में पीलापन, दिल की धड़कन असामान्य होना, सांस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द रहना, तलवों और हथेलियों में ठंडेपन के साथ ही सिर में लगातार दर्द होना शामिल है।
डॉक्टर गिरीश चौधरी ने बताया कि हैरानी इस बात की है कि एनीमिया को लोग सामान्य रूप से बीमारी नहीं मानते, जबकि यह धारणा गलत होने के साथ ही मरीज के लिए घातक भी है। यह बीमारी जानलेवा भी हो सकती है। विषेशकर गर्भवती महिला एनीमिया (Anemia) बीमारी का शिकार होती हैं, तो उनके गर्भ में पल रहे शिशु का जीवन तक खतरे में पड़ सकता है। इसी प्रकार एनीमिया से ग्रस्त महिला के प्रसवकाल में अत्यधिक रक्तस्राव होने पर उसकी मौत तक हो सकती है।
एनीमिया के उपचार
सामान्य तौर पर देखा जाए, तो एनीमिया का इलाज घर पर ही हो सकता है, क्योंकि यह सहज भी है। खाने में रेशदार पदार्थों का अधिक से अधिक मात्रा में सेवन, दूध, हरी सब्जी, फल, अनार विटामिन ए और बी, अण्डा, लाल मीट, तुअर की दाल, राजमा, चावल और फाइबरयुक्त पदार्थों का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए।
इसके साथ ही सीजन में खाने में पालक, चौलाई, गुड़-चना, गाजर, चुकंदर, केला, सेब आदि का सेवन भी करना चाहिए। यह सभी खाद्य पदार्थ आयरन से भरपूर होते हैं और शरीर में तेजी से खून का निर्माण करते हैं। तरल और सुपाच्य खाद्य पदार्थ का नियमित सेवन करने से भी एनीमिया से बचाव संभव है।
इसके साथ ही लोहे की कढ़ाही में पका खाना भी खून बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोशिश करनी चाहिए कि अधिक मात्रा में चाय और कॉफी का सेवन ज्यादा न किया जाए। आजकल बाजार में लौहतत्व और आयोडीन युक्त नमक भी उपलब्ध है। इसमें आयोडीन के साथ आयरन कम्पाउंड होते हैं, जो जो शरीर में आयोडीन के साथ आयरन की भी पूर्ति करते हैं।डबल फोर्टीफाइड नमक की निश्चित मात्रा शरीर के लिए बहुत लाभकारी होती है।
जागरुकता का अभाव
इस बारे में डॉक्टर गिरीश ने बताया कि सबसे बड़ी कमी है कि हम एनीमिया के प्रति जागरूक नहीं हैं। गांव में ही नहीं, बल्कि शहर की महिलाओं को भी एनीमिया के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। एक डॉक्टर होने के नाते उन्होंने इस बात को बहुत गम्भीरता से समझा और इस दिशा में हर सम्भव प्रयास करने शुरू किए।
सन 2009-10 में एक सरकारी योजना के तहत उन्होंने 30 गांव चुने और सभी गांवों को दो हिस्सों मे बांटा गया और महिलाओं की जांच की गई। इनमें से कुछ एनीमिया से ग्रस्त महिलाओं को चुना गया। इनमें से 15 गाव की महिलाओं को एलोपैथी, जबकि 15 गांव की महिलाओं को आयुर्वेदिक इलाज दिया गया। सभी को 15 दिन बाद दोबारा चेकअप के लिए बुलाया गया, तो उनमें 80% तक सुधार था। कुछ महिलाओं ने स्वीकार किया कि वह दवाई नियमित रूप से नहीं ले सकीं। कुल मिलाकर यह अभियान सफल रहा।
इसमें सफलता मिलने के बाद कुछ समय बाद एक दूसरी कार्य योजना बनाई गई। इस बार सरकारी स्कूल की +2 की लड़कियों को चुना गया। हरियाणा के जिले सिरसा के एक गांव कवरपुरा को चुना गया। पूरे गांव में कुल 250 घर थे। यहां जिन 60 लड़कियों को चुना गया, उन्हें पूरी तरह से ट्रेनिंग दी गई। इस दौरान एनीमिया, मलेरिया टीकाकरण आदि के बारे में विस्तार से बताया गया।
इस संबंध में एक प्रश्नावली भी तैयार की गई। छात्राएं समयानुसार हर घर में जातीं और गांव की महिलाओं को एनीमिया और मलेरिया के बारे में विस्तार से जानकारी दे कर आतीं। ऐसे में महिलाओं ने उनकी बात को बहुत ध्यान से न सिर्फ सुना, बल्कि अमल भी करना शुरू कर दिया।
यह अभियान लगभग दो महीने तक चला और महिलाओं पर असर भी छोड़ गया। इसी बारे में जब स्कूल के लेक्चरर श्री राजेश कुमार से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि लड़कियों की बातों का महिलाओं पर बहुत असर दिखाई दे रहा है।
एनीमिया रोग – महिलाओं में खून की कमी
इसका एक उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि गाँव में अक्सर दूसरे गांव के लोग बर्तन बेचने आते हैं। एक बर्तन बेचने वाले ने उनको बताया कि पता नहीं क्या बात है, इस गांव में लोग लोहे की कढ़ाही बहुत खरीद रहे हैं। यह जान कर बहुत खुशी हुई कि लोग जान गए हैं कि एनीमिया दूर करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए।
डॉक्टर गिरीश ने बताया कि इस तरह के अभियान यदि नियमित रूप से चलाए जाएं, तो वह दिन दूर नहीं जब हम एनीमिया पर विजय जरूर पा लेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि यदि जागरूक करने वाले ऐसे अभियान लगातार चलते रहें, तो हमारा समाज समाज स्वस्थ एवं खुशहाल समाज कहलाएगा।
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