Helping Hands are Better than Praying Lips – एक प्रेरक कहानी – सच्ची पूजा – Inspirational Story – Monica Gupta – भगवान की भक्ति पर एक खूबसूरत सी कहानी – ईश्वर की पूजा – कल मेरी एक सहेली घर आई हुई थी और बहुत जल्दी में थी … पूछ्ने पर कि हुआ क्या कि क्या हुआ.. बोली क्या बताऊं !!. हर रोज सुबह जाती हूं पर तीन चार दिन हो गए… मंदिर ही नही गई… मैंनें जब पूछा कि क्या हुआ था तो वो बोली कि उनके पडोस की आंटी बीमार हो गई थी. बेटा बाहर रहता है तो मैं उनके लिए सुबह शाम रात कभी खाना कभी चाय बना कर देती रही बस उसी में व्यस्त थी. नही तो हर रोज जाती हूं पर जा ही नही पाई… आज उनका बेटा आ गया है तो मैं फ्री हुई हूं !!
Helping Hands are Better than Praying Lips – एक प्रेरक कहानी – सच्ची पूजा – Inspirational Story –
तो मैंने उसे कहा कि वो किसी की सच्चे मन से सेवा कर रही है वो भी ईश्वर की पूजा ही है… उसने बोला नही ऐसा नही होता… तब मैंनें उसे एक कहानी सुनाई जो मैंने नेट पर पढी थी… वो ही मैं आपसे भी शेयर कर रही हूं..
एक गांव में एक मंदिर था… वहां जो पुजारी थे.. रोज मंदिर में पूजा पाठ करते… बहुत लोग आते थे वहां सुबह शाम, मंदिर में सामूहिक प्रार्थना के लिए बहुत लोग आते थे दूर दूर से…
जब प्रार्थना पूजा हो जाती, तब पुजारी लोगों को अपना उपदेश देते। उसी नगर में एक टैक्सी वाला था। वह सुबह से शाम तक अपने काम में लगा रहता। इसी से उसकी रोजी-रोटी चलती..
एक बार वो बहुत उदास हो गया और सोचने लगा कि मैं हमेशा अपना पेट पालने के लिए काम-धंधे में लगा रहता हूं, जबकि लोग मंदिर में जाते हैं और प्रार्थना करते हैं। मुझ जैसा पापी शायद ही कोई इस संसार में हो। मैं तो मंदिर आता ही नही…
जब इस बात का बोझ उसके मन में बहुत अधिक बढ़ गया, तब उसने एक दिन पुजारी के पास जाकर अपने मन की बात कहने का सोचा..
उन्होने प्रणाम किया पुजारी को और बोला पुजारी जी, मैं सुबह से लेकर शाम तक एक गांव से दूसरे गांव टैक्सी चलाकर अपने परिवार का पेट पालने में व्यस्त रहता हूं। मुझे इतना भी समय नहीं मिलता कि मैं ईश्वर के बारे में सोच सकूं। ऐसी स्थिति में मंदिर में आकर प्रार्थना करना तो बहुत दूर की बात है। ‘पुजारी ने देखा कि गाड़ीवान की आंखों में एक भय और असहाय होने की भावना झांक रही है। उसकी बात सुनकर पुजारी ने कहा-‘ तो इसमें दुखी होने की क्या बात है?’
उसने कहा कि मैं ! मैं इस बात से दुखी हूं कि कहीं मृत्यु के बाद ईश्वर मुझे गंम्भीर दंड ने दे। स्वामी, मैं न तो कभी मंदिर आ पाया हूं और लगता भी नहीं कि कभी आ पाऊंगा।’
टैक्सी चालक ने दुखी मन से कहा- ‘पुजारी जी! मैं आपसे यह पूछने आया हूं कि क्या मैं अपना यह पेशा काम छोड़कर नियमित मंदिर में प्रार्थना के लिए आना आरंभ कर दूं।’ पुजारी ने गाड़ीवान की बात गंभीरता से सुनी। उन्होंने गाड़ीवान से पूछा- ‘अच्छा, तुम यह बताओ कि तुम गाड़ी में सुबह से शाम तक लोगों को एक गांव से दूसरे गांव तक पहुंचाते हो।
क्या कभी ऐसे अवसर आए हैं कि तुम अपनी गाड़ी में बूढ़े, अपाहिजों और बच्चों को मुफ्त में एक गांव से दूसरे गांव तक ले गए हो?’ गाड़ीवान ने तुरंत ही उत्तर दिया- ‘हां पुजारी जी ऐसे अनेक अवसर आते हैं। यहां तक कि जब मुझे यह लगता है कि राहगीर पैदल चल पाने में असमर्थ है, तब मैं उसे अपनी गाड़ी में बिठा लेता हूं।’
पुजारी गाड़ीवान की यह बात सुनकर अत्यंत उत्साहित हुए। उन्होंने गाड़ीवान से कहा- ‘तब तुम अपना पेशा बिलकुल मत छोड़ो। थके हुए बूढ़ों, अपाहिजों, रोगियों और बच्चों को कष्ट से राहत देना ही ईश्वर की सच्ची प्रार्थना है। जिनके मन में करुणा और सेवा की यह भावना रहती है, उनके लिए पृथ्वी का प्रत्येक कण मंदिर के समान होता है और उनके जीवन की प्रत्येक सांस में ईश्वर की प्रार्थना बसी रहती है।
मंदिर में तो वे लोग आते हैं, जो अपने कर्मों द्वारा ईश्वर की प्रार्थना नहीं कर पाते। तुम्हें मंदिर आने की बिलकुल जरूरत नहीं है। सच तो यह है कि सच्ची प्रार्थना तो तुम ही कर रहे हो।’ यह सुनकर गाड़ीवान अभिभूत हो उठा और काम पर लौट गया।
भक्ति का अर्थ मंदिर जा कर राम-राम कहना नहीं है। वो इन्सान जो अपने एकमात्र लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित है, वह जो भी काम कर रहा है उसमें वह पूरी तरह से समर्पित है, वही सच्चा भक्त है। उसे भक्ति के लिए किसी देवता की आवश्यकता नहीं होती और वहां ईश्वर मौजूद रहेंगे। भक्ति इसलिए नहीं आई, क्योंकि भगवान हैं। चूंकि भक्ति है इसीलिए भगवान हैं।
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