हिंसक होते बच्चे
कई बार लगता है कि बच्चो की गुस्सैल और हिंसक होती प्रवृति के जिम्मेदार और कोई नही हम खुद ही है. कारण भी एकदम ठोस है. असल में, बदलते समय के साथ साथ हमारी करनी और कथनी मे फर्क आता गया जो हम महसूस ही नही कर पाए और बच्चे इस बदलाव को सह नही पाए.
यकीनन हम बच्चो को किताबी पाठ पढाते रहे कि सदा सच बोलो . ईमानदारी का जीवन अपनाओ. बडो का आदर करो. नकल करने से जीवन मे कभी सफल नही होगे.पर हकीकत मे हम उनके आगे कुछ और ही परोसते रहे.
मसलन, अकसर झूठ बोलने पर हम ही उन्हे उकसाते हैं.पाठ ईमानदारी का पढाते हैं और आफिस से रिश्वत या तो ले कर आते हैं या उनके सुखद भविष्य के लिए दे कर आते हैं और तो और परीक्षा हाल मे बच्चो को नकल मारने के लिए सदा उत्साहित करते हैं ताकि कही अच्छी जगह दाखिला होने मे कोई दिक्कत ना आए.
जुगाड संस्कृति से हमेशा बच्चो को जोडे रखना चाहते हैं ताकि कोई दूसरा बच्चा उसको काट करके आगे ना निकल जाए. बडो का आदर करने का पाठ तो पढा देते हैं पर हम घर पर अपने ही बडे बुजुर्गो से ऊची आवाज मे बात करते हैं.
ऐसे मे अगर हम अपनी गलती मान लें तो कोई छोटे नही बन जाएगे.बच्चो का सही मार्गदर्शन हमारा पहला और आखिरी कर्तव्य होना चाहिए….
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