बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न स्क्रीन राईटर – अमित आर्यन – Versatile Screen Writer – Amit Aryan – एक ऐसे लेखक जिनका सीरियल F.I.R. लगातार 9 साल चला. 1000 एपिसोड पूरे किए और 5000 से भी ज्यादा तकिया कलाम सीरियल में इस्तेमाल किए गए इस पर जल्द ही उनकी एक किताब प्रकाशित होने वाली है और इन दिनों लंदन के production house मे एक सीरियल के लेखन में व्यस्त हैं
बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न स्क्रीन राईटर – अमित आर्यन
पुलिस की बात करते ही या पुलिस स्टेशन जाने के नाम से ही हमें टेंशन हो जाती है पर एक पुलिस स्टेशन ऐसा है जहां जाने में या F.I.R लिखवाने में हमारा भरपूर मनोरंजन होता है और मन करता कि सारा समय इस पुलिस स्टेशन को ही देखते रहें …
ह ह हा … ज्यादा हैरान होने की जरुरत नही … मैं बात कर रही हूं टेलिविजन के एक जाने माने धारावाहिक F.I.R की .. खुशकिस्मती से मुझे मौका मिला F.I.R के स्क्रीन राईटर श्री अमित आर्यन जी से बात करने का …
“आईए आईए” तकिया कलाम से शुरु हुआ हमारी बातों का सिलसिला..
अमित जी का जन्म 14 मई 1977 को यूपी के बांदा जिले की अतरा तहसील में हुआ ( अगर आप F.I.R देखते रहें हैं तो अत्तरा के नाम से आप चिरपरिचित होंगें बहुत एपिसोड में इसका जिक्र हुआ है. )
अमित जी के पापा वहां हिंदी के प्रोफेसर थे और मम्मी गृहणी. इनकी दो बहनें हैं और ये सबसे छोटे और इकलौते भाई हैं. अमित जी ने बताया कि बचपन से ही पढने का शौक था क्योकि घर का माहौल ही ऐसा था.
पिता बहुत बार कवि सम्मेलन में जाते. वही उनकी मौसी जी का साहित्य जगत में बहुत नाम था. जहां बचपन में चंपक, लोटपोट पढी वहीं घर पर सरिता, मुक्ता व अन्य साहित्य से जुडी पत्रिकाएं भी आती थीं इसलिए मन के भीतर छिपा लेखक जागने लगा.
इतना ही नही, बचपन से वो अमिताभ बच्चन साहब के बहुत बडे प्रशंसक रहे और जब पांचवी क्लास में थे तब से स्कूल में उन्हीं के गानों पर perform करना शुरु कर दिया था और इसी वजह से बचपन से ही उनकी पहचान पूरे यूपी में होती चली गई और उन्हें स्टेट लेवल पर बहुत एवार्ड, सम्मान भी मिलने लगे..
अपने बचपन का एक किस्सा शेयर करते हुए उन्होनें बताया कि जब वो 6 -7 साल के थे तब घर में रंग रोगन हुआ. बैठक का रंग हलका गुलाबी करवाया गया था और वो रंग सूखा भी नही था कि उन्होनें दीवार पर नीली स्याही से बडा बडा “फिल्म” लिख दिया …
इस हरकत से बेशक, डांट बहुत पडी पर पापा समझ गए थे कि इस लडके का कुछ नही हो सकता इस पर फिल्मों का भूत सवार है बस फिर उन्हें रोका नही गया …
मैं सोचने लगी कि फिर “जा अमित जा, जी ले अपनी जिंदगी टाईप कुछ हुआ होगा और उनकी राह आसान हो गई होगी ….
तभी अमित जी की बातो से मैं ख्यालों की दुनिया से लौट आई …उन्होनें बताया कि बात सन 1995 की है वो मुम्बई चले आए और डायरेक्शन में किस्मत आजमाने लगे पर हमेशा से ये लगता कि ज्यादा रुझान लेखन की ओर है …
और इसी बीच अलग अलग विज्ञापनों में, आईफा या अन्य अवार्ड कार्यक्रमों की या फिर जिंगल की स्क्रिप्ट लिखने लगे पर इस पर भी आत्मसंतुष्टि नही हो रही थी और फिर मौका मिला सोप राईटिंग का और शुरुआत हुई सोनी टीवी के “ थोडी खुशी थोडे गम”, , ज़ी टीवी के “जब लव हुआ”, सहारा टीवी के “जारा “ सीरियल से
और फिर 2006 में मिला सीरियल F.I.R .. जिसने रिकार्ड कायम कर दिया. लोगो के दिलों में इस कदर छा गया कि लगातार 9 साल चला और इतिहास बना दिया.
F.I.R. की ना सिर्फ स्क्रिप्ट मजेदार थी बल्कि तकिया कलामों के इस्तेमाल से इसे एक नया ही रुप मिल गया… इसमे कुल मिलाकर 5000 से भी ज्यादा तकिया कलाम बोले गए और एक अच्छी बात ये भी है कि इन तकिया कलामों पर अब एक किताब बहुत जल्द आने वाली है …
तकिया कलाम का आईडिया आया कैसे के बारे में अमित जी ने बताया कि वो कुछ नया करना चाहते थे इसलिए शुरु के दो तीन एपिसोड पर इसे ट्राई किया गया और दर्शकों ने इसे बहुत ही ज्यादा पसंद किया तो फिर इसे कहानी का अहम हिस्सा ही बना लिया और जब भी कोई तकिया कलाम लिखते पात्र को ध्यान में रखते हुए लिखते कि ये तकिया कलाम फलां पात्र पर कितना सूट करेगा…
इसी बीच लेखन में और भी बहुत कुछ चलता रहा जैसा कि “लापता गंज”, “यारो का टशन”, और फिल्मों में “एबीसीडी”ABCD (Any Body Can Dance) , डू नॉट डिस्टर्ब , की कहानी भी बहुत पसंद की गई.
अमित जी ने बताया कि हाल ही में विदेश में एक नए प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है .. लंदन में एक प्रोडेक्शन हाउस में काम चल रहा है .एक लव स्टोरी है भारतीय और ब्रिटिश परिवार की जिसमे कॉमेडी भी भरपूर है.
लेखन की बात चली तो मैंने पूछा कि क्या आपको लिखते समय एक दम चुप्पी चाहिए होती है या … इस पर वो बोले कि ऐसा कुछ नही है उन्होने कितनी बार रेलवे प्लेटफार्म पर बैठ कर कहानी लिखी है.
फिर मैने पूछा कि कई बार हम विचार शून्य भी हो जाते हैं लगता है कि कोई आईडिया ही नही आरहा … क्या ऐसा कुछ आपके साथ भी होता है कभी … उन्होनें बताया कि बहुत बार ऐसा होता है कि कोई आईडिया ही नही आ रहा होता … दिमाग परेशान हो जाता है कि क्या लिखें ? ऐसे में सबसे ज्यादा जरुरी होता है मन में प्रैशर नही डालना … बस रिलेक्स हो जाना चाहिए और देखिए फटाफट आने शुरु हो जाएगें.
ऐसे में बस कही बाहर निकल जाना चाहिए और फिर देखिए.. !!
. कहने का मतलब यही है कि जितना प्रेशर दिमाग पर डालेगें उतना ही आईडिया दूर भागेगें पर जब मन को रिलेक्स छोड देंगें तो आईडिया आने शुरु हो जाएग़ें और हां, आईडिया आते ही उसे नोट कर लेना बहुत जरुरी होता है क्योकि हमें लगता है कि ये तो हमें भूलेगा नही पर अक्सर आईडिया दिमाग से गायब हो जाता है इसलिए मोबाइल पर नोट करना या या पेपर पैन हमेशा पास ही रखना सही रहता है
अमित जी ने बताया कि उनकी पत्नी जस आर्यन भी डायरेक्टर हैं और शार्ट फिल्म डायरेक्ट करती हैं और दो बच्चें हैं और कई बार बच्चे भी बहुत आईडिया दे देते हैं … उन्हें बहुत खुशी होती है जब स्कूल में उनके बेटे के दोस्त फिल्म की या सीरियल की तारीफ करते हैं तो बच्चों के चेहरे पर गर्व के भाव देखकर बहुत खुशी मिलती है..
उनका प्रयास भी यही है कि वो ऐसी साफ सुथरे फिल्म या धारावाहिक बनाते रहेंगे जिसे सपरिवार देखा जा सके …
जो इस फील्ड में आना चाहते हैं उनके लिए यही मैसेज है कि लेखन ऐसी कला है जो सिखाई नही जा सकती ये हमारे भीतर होती है. हां, पर इस कला में निखार जरुर लाया जा सकता है.
एक अच्छा लेखक बनने के लिए observer होना पडेगा … एक लेखक का observer होना बहुत जरुरी होता है अपने आस पास नजर उठा कर देखेगें तो पाएगें कि कितने तरह तरह के पात्र बिखरे पडे हैं … उन्हें देखो महसूस करो और फिर लिखो …
आज, बेशक, समय बहुत बदल गया है हमारे पास बहुत अवसर है पर उतनी ही प्रतिस्पर्धा भी बढ गई है .. बहुत होड हो गई है इसलिए पूरी तरह से तैयार होकर ही इस मैदान में उतरिए …
ताकि आपका समय और पैसा खराब न हो बेशक इसके लिए समय लग जाए कोई दिक्कत नही .. पर एक बार आईए तो बस ऐसे आईए की छा जाएं …
अपने प्रशंसकों को बहुत बहुत धन्यवाद करते हुए कहा कि ऐसे ही देखते रहिए और हंसते रहिए. यही प्रयास यही रहेगा कि वो healthy comedy बनाते रहेंगें जिसे सभी परिवार के साथ मिल बैठ कर देख सकें …
हालाकि बातें तो और भी बहुत थी पर उनकी व्यस्तता देखते हुए मैने उन्हें ढेर सारी शुभकामनाऎ देते हुए उनसे विदा ली और एक ही बात जहन में आ रही थी कि …
जो सफर की शुरुआत करते हैं , वो ही मंजिलों को पार करते हैं, एक बार चलने का हौंसला रखो, मुसाफिर का तो रास्ते भी इंतजार करते हैं …
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