Monica Gupta

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August 14, 2017 By Monica Gupta Leave a Comment

भक्त और भगवान की कहानी – भगवान को कैसे प्रसन्न करें

भक्त और भगवान की कहानी – भगवान को कैसे प्रसन्न करें  – वातावरण पूरी तरह से धार्मिक हो रहा है लाऊडस्पीकर से भी भजन की आवाज .. मंदिरों में खूब भीड … कुल मिला कर वातावरण भक्तिमय हो रहा है और यही सोच कर मैंनें नेट ऑन कर लिया और मिली बहुत ही खूबसूरत कहानी …

भक्त और भगवान की कहानी – भगवान को कैसे प्रसन्न करें

एक बार एक सेठ था उसके पास एक व्यक्ति काम करता था..  सेठ उस व्यक्ति पर बहुत विश्वास करता था जो भी जरुरी काम हो वह सेठ  हमेशा उसी व्यक्ति से कहते … वो व्यक्ति भगवान का बहुत बड़ा भक्त था.

एक दिन उस वक्त ने सेठ से तीर्थ यात्रा करने के लिए कुछ दिन कहा … छुट्टी  मांगी तो   सेठ  ने  उसे   छुट्टी   देते   हुए   कहा कि मैं   तो   हूं   कामकाजी  आदमी  हमेशा  व्यापार   के  काम  में  व्यस्त  रहता  हूं  इस  कारण  कभी  तीर्थ   नहीं जा पाता…

तुम  जा  ही  रहे  हो  तो  यह  लो  100   रुपए  मेरी  और    से   प्रभु   के  चरणों   में  समर्पित  कर   देना..    भक्त  सेठ   से   सौ  रुपए   लेकर  यात्रा  पर  निकल  गया  और मंदिर पहुंचा.

वहां खूब भक्तिमय माहौल था … भक्त  भी वहीं रुक कर  हरिनाम संकीर्तन का आनंद लेने लगा । तभी उसने देखा कि कुछ लोग भगवान का जाप कर रहे हैं वो बहुत कमजोर और भूखे प्रतीत हुए पेट धसा हुआ है..
उसने  सोच  क्यों  ना  सेठ  के   सौ  रुपए  से  इन  भक्तों  को  भोजन  करा  दूँ

उसने उन सभी को उन सौ रुपए में से भोजन  की  व्यवस्था   कर  दी । सबको  भोजन कराने  में
उसे   कुल   98 रुपए  खर्च  करने  पड़े… उसके पास दो रुपए बच गए उसने सोचा चलो  अच्छा  हुआ  दो  रुपए  भगवान जी  के  चरणों

में  सेठ  के  नाम  से  चढ़ा  दूंगा। जब  पूछेगा  तो  मैं  कहूंगा  वह  पैसे  चढ़ा  दिए  । सेठ  यह  तो नहीं  कहेगा  100 रुपए  चढ़ाए । सेठ  पूछेगा  पैसे  चढ़ा  दीजिए । मैं  बोल  दूंगा  कि  पैसे  चढ़ा दिए । झूठ  भी  नहीं  होगा  और  काम  भी  हो  जाएगा ।
दर्शनों  करने के बाद 2 रुपए चरणो  में  चढ़ा  दिए । और  बोला  यह  दो  रुपए  सेठ   ने  भेजे  हैं..

उसी  रात  सेठ  के  पास  स्वप्न  में  भगवान जी  आए  आशीर्वाद  दिया  और  बोले  सेठ तुम्हारे  98  रुपए  मुझे  मिल  गए  हैं  और अंतर्ध्यान  हो  गए..
सेठ  जागे और   सोचने  लगे  कि मेरा  नौकर  तौ  बड़ा  ईमानदार  था पर  अचानक   उसे  क्या जरुरत  पड़  गई  थी  उसने  दो  रुपए  भगवान  को  कम  चढ़ाए ?  उसने   दो   रुपए  का   क्या  खा  लिया ? उसे  ऐसी  क्या  जरूरत  पड़ी  ?  ऐसा  विचार  सेठ  करता  रहा जब बाद  भक्त  वापस आया  और  सेठ  के  पास  पहुंचा।  सेठ  ने  कहा   कि मेरे पैसे चढ़ा  दिए  थे ?  भक्त  बोला  हां  मैंने  पैसे  चढ़ा  दिए ।
सेठ  ने  कहा  पर  तुमने  98  रुपए  क्यों  चढ़ाए  दो  रुपए  किस  काम  में  प्रयोग  किए तब  भक्त ने सारी बात बताई
की  उसने  98  रुपए  से  भूखे लोगों को  को  भोजन  करा  दिया  था  । और  प्रभु  जी  को  सिर्फ  दो  रुपए  चढ़ाये  थे..

सेठ  सारी  बात  समझ  गया  व  बड़ा  खुश  हुआ  तथा  भक्त  के  चरणों  में  गिर  पड़ा  और  बोला  आप  धन्य  हो
आपकी  वजह  से  मुझे  प्रभु के  दर्शन हो  गए… 
भगवान  को  आपके  धन  की  कोई  आवश्यकता  नहीं  है  । भगवान  को  वह  98   रुपए  स्वीकार  है  जो  जीव  मात्र  की  सेवा  में  खर्च   किए   गए   और  उस   दो  रुपए   का  कोई  महत्व  नहीं   जो   उनके   चरणों   में  नगद  चढ़ाए  गए…

वैसे मैंने पढा भी था कि

तुलसी या संसार में सबसे मिलिए धाय
न जाने किस वेश में नारायण मिलि जाय…

अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य इस संसार में तू किसी से भी मिले तो उससे प्रेम से मिल मैत्री  से मिल क्योकि न जाने तेरी परीक्षा लेने के लिए भगवन किस वेश में आ जाये और उस समय वो तेरे प्रेम भावः को देख कर तुझे अपना ले तुझे अपने गले से लगा  लेंं…

भक्त और भगवान की कहानी – भगवान को कैसे प्रसन्न करें

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