कार्टून की दुनिया के सम्राट हैं सुखवंत कलसी – एक मुलाकात. मेरी ये मुलाकात बहुत यादगार रही इसलिए आप सभी से शेयर कर रही हूं. बच्चों और बचपन का नाम लेते ही मन में बहुत सारी बातें उभर कर आती हैं, जैसेकि पढाई, मासूमियत, शरारतें, मस्ती और कार्टून. जी हाँ, बच्चों और कार्टून का गहरा नाता रहा है. चाहे वो टी.वी. पर देखें या बच्चों की पत्रिका में पढ़ें. खुद को तनाव रहित और रिलैक्स करने के लिए यह कार्टून वाकई में बहुत ताज़गी दे जाते हैं.
ये तो बात हुई बच्चों की, जो कार्टून पढ़ते हैं. आईए, आज आपकी मुलाकात एक ऐसी शखसियत से करवाते हैं जो अपने बचपन से ही ऐसे मनोरंजक और मसालेदार कार्टून बनाने लगे थे.
जी हाँ, उन्होंने बच्चों के साथ-साथ हर उम्र के पाठकों के लिए सौ नहीं, हज़ार नहीं बल्कि दस हज़ार से भी ज़्यादा कार्टून्स और कॉमिक्स बनाई हैं. चलिए आपको मैं हिंट देती हूँ और आप ही बताईए कि उन असाधारण प्रतिभा का नाम क्या है..?
पहला हिंट- मूर्खिस्तान… और दूसरा हिंट – जूनियर जेम्स बाँड !!!
अरे क्या !!! आप पहचान गए ??? अरे वाह !! आप तो बहुत जल्दी पहचान गए. बिल्कुल सही पहचाना.
वो दमदार कार्टूनिस्ट हैं श्री सुखवंत कलसी
सुखवंत कलसी न सिर्फ़ कार्टून सम्राट हैं बल्कि टेलिविज़न की दुनिया में भी उन्होंने एक से बढ़ कर एक लेखन कार्य किया है और उन धारावाहिकों को शीर्ष तक ले कर गए हैं.
सुखवंत जी से मिलने से पहले कई बार मन में यह बात आई कि इतने बड़े और व्यस्त कलाकार हैं, पता नहीं बात करेंगे या नहीं, समय देंगे या नहीं, पर मेरी हैरानी और खुशी की सीमा नहीं रही जब सुखवंत जी ने न सिर्फ समय दिया बल्कि अपने बचपन के बारे में भी बहुत सी बातें बताने का वायदा किया. उनसे मिलने के बाद शुरु हुआ बातों का सिलसिला.
चिर परिचित सहज मुस्कान से साथ सुखवंत कलसी जी ने बताया कि उनका जन्म 14 जुलाई को कानपुर में हुआ था. पापा इंजीनियर थे और मम्मी घर का काम सम्भालती थीं. चार भाई बहन यानि उनके एक बड़े भाई और दो बहनें हैं. वो सबसे छोटे हैं और छोटा होने के नाते वो थोड़े शरारती थे और सबके लाडले थे.
मैंने जब बात पढ़ाई की छेड़ी, तो मुस्कुराते हुए बताने लगे- “मैं पढ़ाई में बस ठीक – ठाक ही था, पर स्कूल में पढ़ते-पढ़ते मैंने स्टेज पर अभिनय, नाटक लेखन और कार्टून्स बनाने में हाथ-पैर मारने शुरू कर दिए थे.”
उन्होंने अपने बचपन को याद करते हुए बताया कि केन्द्रीय विद्यालय आई.आई.टी. कानपुर में जब उनके हाउस की डयूटी लगती थी, तो वो ब्लैक बोर्ड पर रोज़ एक कार्टून बनाकर डालते थे.
“उस समय मॉर्निंग असेंबली के बाद पूरा स्कूल उमड़ पडता था, यह देखने के लिए कि आज मैंने क्या बनाया है. मेरे दोस्तों के साथ-साथ टीचर भी बहुत खुश होते और पीठ थपथपा कर मुझे उत्साहित करते थे.”
इसके बाद मैंने इंटरव्यू का रुख पत्र-पत्रिकाओं की तरफ मोड़ा, इस पर सुखवंत जी ने हँसते हुए बताया कि उन दिनों घर में मम्मी ‘सरिता’ मैगज़ीन पढ़ा करती थीं. बस तभी यह विचार आया कि ‘सरिता’ में कार्टून भेजकर देखते हैं.
“तो क्या आपने ‘सरिता’ में कार्टून भेजा था ?” मेरा ये पूछ्ना स्वाभाविक था.
“जी हाँ, लाइफ का पहला कार्टून ‘सरिता’ में भेजा था, लेकिन वो रिजैक्ट हो गया. कार्टून के साथ एक लैटर भी था. जिसमें सम्पादक जी ने लिखा था, ‘महोदय, पहले आप अपना रेखांकन सुधारिए, सफलता अवश्य मिलेगी.’ मैंने वो कार्टून और पत्र अभी तक सम्भाल कर रखा हुआ है.”
इसके बाद सुखवंत जी ने प्रयास जारी रखा और ईश्वर की कृपा से ‘सरिता’ मैगज़ीन में कार्टून्स छ्पने शुरु हो गए.
इसके अलावा एक और भी मज़ेदार बात हुई. एक बार सुखवंत जी कार्टून बना कर जब स्वयं ‘सरिता’ के सम्पादक से मिलने गए, तो उनकी दीदी के देवर भी साथ में थे. सम्पादक महोदय कार्टून के बारे में जो भी बात कर रहे थे, वो दीदी के देवर से ही कर रहे थे. उनको लगा कि यही सुखवंत है.
बात खत्म होने के बाद देवर ने जब सम्पादक जी को बताया कि सुखवंत तो ये है, तब वो इतना हैरान हुए कि इतना छोटा बच्चा और इतने अच्छे कार्टून्स बना रहा है ! उन्हें विश्वास ही नही हुआ. उन्होंने पूछा कि आप कौन सी क्लास में पढ़ते हैं, तो मैंने कहा- नाइन्थ में. इस पर सम्पादक जी ने स्टाफ के अन्य क्रिएटिव लोगों को केबिन में बुलाकर मेरा परिचय करवाया. सब लोग मुझे देख कर हैरान भी थे और बहुत खुश भी थे.
‘सरिता’ के बाद सुखवंत जी ने उन दिनों की मशहूर पत्रिकाओं- ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिदुस्तान’, ‘माधुरी’, ‘मुक्ता’ ‘लोटपोट’, ‘दीवाना’, ‘मधु मुस्कान’ वगैरह में भी अपने कार्टून्स भेजे, लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं था. पर सुखवंत जी ने हिम्मत नहीं हारी. निरंतर प्रयास करते रहे. और एक वक़्त ऐसा भी आया जब ‘दीवाना’ में उनकी परमानेंट वीकली कार्टून स्ट्रिप ‘बात-बे-बात की’ छपने लगी. इतना ही नहीं, ‘दीवाना’ में ही उनका एक और वीकली कार्टून पृष्ठ छपने लगा था, जिसका नाम था, ‘चरणदास’. इसके बाद ‘दीवाना’ में ‘परोपकारी’ भी बनाया. इन सबकी कामयाबी के बाद सुखवंत जी को युवाओं की पत्रिका ‘मुक्ता’ में परमानेंट दो पेज मिले, जिसमें वो युवाओं से रिलेटेड कार्टून स्ट्रिप्स बनाते थे.
इसके बाद बारी आई ‘मधु मुस्कान’ की. उसमें सुखवंत जी की परमानेंट चार पेज की चित्रकथा ‘चंद्रू’ छपती थी, जो आज भी पुराने कॉमिक्स के शौकीनों को याद है.
सुखवंत जी ने बताया कि ये सारी बातें उन्होंने इसलिए डिटेल में बतायीं क्योंकि ज़्यादातर बच्चे हौंसला अफज़ाई ना मिलने से हिम्मत हार जाते हैं. वो अपनी कामयाबी का पूरा श्रेय कड़ी मेहनत और घर वालों की हौंसला अफज़ाई को देते हैं.
सुखवंत जी ने आगे बताया, “स्कूल में हायर सेकेन्ड्री तक मेरे पास साईंस विषय था. कॉलेज में आते ही मैंने साइंस छोड़ कर कामर्स को पकड़ लिया. क्योंकि मेरे लिए कॉमिक्स और साइंस एक साथ चला पाना मुश्किल था.”
बी.कॉम पास करते ही उनके लिए उसी वर्ष ‘डायमंड कॉमिक्स’ के द्वार खुल गए थे.
बकौल सुखवंत जी- “1979 में जैसे ही मैं कॉलेज से निकला, उसी साल ‘डायमंड कॉमिक्स’ लॉन्च हो गयी और मैंने ‘राजन-इकबाल’ की कॉमिक्स बनानी शुरू कर दीं. देखते ही देखते ‘राजन-इकबाल’ की कॉमिक्स सुपरहिट हो गयीं और मेरे सामने कॉमिक्स की लाइन लग गई.”
सुखवंत जी की कामयाबी का सफ़र आगे से आगे बढ़ता गया. वो आगे कहते हैं- ‘‘डायमंड कॉमिक्स’ के बाद ‘चित्र भारती कॉमिक्स’ ‘मनोज कॉमिक्स’,’त्रिशूल कॉमिक्स’, ‘चॉकलेट’ आदि के लिए मैंने बहुत सारे कामयाब करैक्टरर्स क्रिएट किये, जिनमें ‘सीक्रेट एजेंट 005 जूनियर जेम्स बाँड’, ‘भाभी जी’, ‘चाचा परोपकारीलाल’, ‘पेटूराम-लपेटूराम’. ‘चंद्रू’, और ‘तोपचंद-बन्दूकदास’ प्रमुख हैं.”
कॉमिक्स की दुनिया में कामयाबी के झंडे गाड़ने के बाद सुखवंत जी ने दिल्ली के दीवान पब्लिकेशन्स के प्रकाशक श्री आनंद दीवान जी से हाथ मिलाया और उनको एक मासिक बाल पत्रिका का आईडिया सुझाया. और इस तरह से बच्चों की सबसे लोकप्रिय पत्रिका ‘नन्हे सम्राट’ की नींव रखी गई.
1988 में शुरू हुई ‘नन्हे सम्राट’ पत्रिका के बारे में सुखवंत जी का कहना है- “मैंने जब आनंद दीवान जी को बाल पत्रिका शुरू करने की बात कही, तो उन्होंने कहा, ‘मार्केट में ऑलरेडी ‘नंदन’, ‘पराग’, ‘चंदामामा’, ‘चंपक’ और ‘सुमन-सौरभ’ जैसी कामयाब बाल पत्रिकाएं छाई हुई हैं, तो हम एक और बाल पत्रिका क्यों निकालें ? आप पत्रिका में ऐसा क्या डालेंगे, जो बच्चे हमारी पत्रिका की तरफ आकृषित होंगे ?’ इस पर मैंने कहा, ‘हमारी बाल पत्रिका में मनोरंजन ही मनोरंजन होगा.
हम बच्चों को शिक्षाप्रद कहानियाँ भी देंगे लेकिन मनोरंजन की चाशनी में डुबो कर. हमारे स्थाई स्तम्भ रोचक होंगे. हर पन्ने पर कहानियों के साथ-साथ मज़ेदार चित्र पहेलियाँ, चटपटे जोक्स, फिल्म कलाकारों के इंटरव्यूज़ और खेल वगैरह होंगे. दीवान साहब को मेरे व्यूज़ काफी पसंद आये… और इस तरह से ‘नन्हे सम्राट’ का जन्म हुआ और साथ ही जन्म हुआ आपके प्रिय कार्टून कॉलम ‘मूर्खिस्तान’ का.”
मैंने गौर किया कि ‘नन्हे सम्राट’ के बारे में विस्तार से बताते हुए सुखवंत जी काफी रोमांचित हो गए थे. खुशी की एक ख़ास चमक उनके मुस्कुराते हुए चेहरे पर साफ़ झलक रही थी.
आइये, अब नज़र डालते हैं सुखवंत कलसी जी के एक और टैलेंट पर, और वो है हास्य से भरपूर टी.वी. सीरियल्स लिखने का टैलेंट.
अपने टी.वी. के सफर के बारे में उन्होंने बताया कि 1998 में वो कानपुर से मुम्बई शिफ़्ट हो गए थे और फिर शुरु हुआ टी.वी. पर लेखन का दौर.
“मेरा पहला टी.वी. सीरियल डी.डी. मेट्रो पर टेलीकास्ट हुआ था- ‘सब गोलमाल है’. जो बस ठीक-ठाक था. इसके बाद मिला सोनी चैनल का स्टैंडअप कॉमेडी शो- ‘मूवर्स एंड शेकर्स’. इस डेली कॉमेडी शो की अपार सफलता ने मुझे मुंबई में मज़बूती से पैर जमाने का मौका दिया.
‘मूवर्स एंड शेकर्स’ ने जहाँ मुझे लीड राइटरों की श्रेणी में लाकर खड़ा किया, वहीँ मुझे एक्टिंग का मौका भी दिया. इसमें मैं ‘साइंटिस्ट खोजी सिंह’ और ‘रेडियो कवि बन कर आता था. ‘साइंटिस्ट खोजी सिंह’ अजीबोग़रीब चीज़ें खोज कर लाता था और शेखर सुमन को उनके ऊटपटांग फायदे समझाता था. इसी तरह से ‘रेडियो कवि’ दर्शकों के सवालों के जवाब हास्य कविताओं के ज़रिये देता था.”
‘मूवर्स एंड शेकर्स’ के बाद सुखवंत जी ने शेखर सुमन के लिए ‘नीलाम घर’, ‘सिम्पली शेखर’ और ‘कैरी ऑन शेखर’ लिखा. इसके बाद जॉनी लीवर के लिए ‘जॉनी आला रे’ , कपिल शर्मा के लिए ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’, राजू श्रीवास्तव के लिए ‘राजू हाज़िर हो’ तथा ‘नॉनसेंस अनलिमिटेड’ वगैरह… ‘फंजाबी चक दे’, ‘लाफ्टर चैलेंज’ और ‘कॉमेडी सर्कस’ आदि जैसे कामयाब कॉमेडी शोज़ भी सुखवंत जी ने लिखे.
सुखवंत कलसी जी ने करीब 35 साल पहले एक एक्शन कॉमिक हीरो की रचना की थी. और वो कॉमिक हीरो है, आप सबका लाडला, ‘सीक्रेट एजेंट 005 जूनियर जेम्स बॉन्ड’. एक ऐसा जासूस बालक, जो अपने चाचू बलवंत राय चौधरी के साथ मिलकर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुँचाता है. ‘सीक्रेट एजेंट 005 जूनियर जेम्स बॉन्ड’ की इसी कॉमिक सीरीज़ ने लिया है एक नया अवतार. जी हाँ, आपका फवरेट कॉमिक हीरो और उसका चाचू धमाल, मस्ती और हंगामा मचा रहे हैं ‘हंगामा टीवी’ पर. और इस एनीमेशन सीरीज़ का नाम है, ‘बुरे काम का बुरा नतीजा, क्यों भई चाचा हाँ भतीजा’.
“सुखवंत जी, टाइटल कुछ ज़्यादा ही लंबा नहीं है ?” क्योकि ये बात मुझे बहुत सोचने पर मजबूर कर रही थी.
इस पर वो हँस कर बोले- “लंबे चलने वाले सीरियल्स के नाम लंबे ही होते हैं. मसलन, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी,’ ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा,’ ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ वगैरह-वगैरह… इसी तरह से ‘बुरे काम का बुरा नतीजा, क्यों भई चाचा हाँ भतीजा’. वैसे शॉर्ट में आप ‘CB’ भी कह सकती हैं.” उनका ये जवाब लाजवाब था.
“जी ‘CB’ ठीक है. इसे कौन सा प्रोडक्शन हाउस बना रहा है ?”
“फिल्मकार केतन मेहता और दीपा साही की कंपनी ‘कॉसमॉस-माया’ डिजिटल ‘CB’ सीरीज़ को बना रही है. इसके प्रोड्यूसर हैं अनीश मेहता और डायरेक्टर हैं धीरज बेरी. मुझे ख़ुशी है कि कई हिट एनीमेशन सीरीज़ बनाने वाली कंपनी मेरे कॉमिक हीरो पर टीवी धारावाहिक बना रही है.”
“सुखवंत जी, क्या यह सच है कि आपकी बेहद लोकप्रिय कार्टून सीरीज़ ‘मूर्खिस्तान’ पर भी एनीमेशन की प्लानिंग चल रही है ?”
“जी हाँ यह सच है. करीब तीस वर्षों से ‘मूर्खिस्तान’ कार्टून सीरीज़ प्रिंट मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी काफी पॉपुलर है. फेसबुक और वॉट्सएप्प के ज़रिये मैं अपने फ्रेंड्स के साथ-साथ बॉलीवुड के कई बड़े दिग्गजों को ‘मूर्खिस्तान’ का एक कार्टून डेली पोस्ट करता हूँ, जोकि काफी सराहा जाता है. अगले साल से ‘मूर्खिस्तान’ की भी एनीमेशन सीरीज़ शुरू हो जायेगी.”
‘मूर्खिस्तान’ एनीमेशन सीरीज़ की एडवांस में बधाई के साथ ही मैंने सुखवंत कलसी जी से मुस्कुराते हुए विदा ली. वाकई ये मुलाकात बेहद यादगार रहेगी. कलसी जी को बहुत सारी शुभकामनाएं !!
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