Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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September 15, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

बच्चों की छोटी कहानियाँ

बच्चों की छोटी कहानियाँ

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दीदी की चिठ्ठी नियमित स्तम्भ

बच्चों की छोटी कहानियाँ हो या बडी कहानियां बाल लेखन ने हमेशा मुझे प्रेरित किया है … बच्चों पर न सिर्फ कहानियां लिखी बल्कि हरियाणा साहित्य अकादमी से बाल साहित्य पुरस्कार ” मैं हूं मणि ” के लिए  भी मिला. नेशनल बुक ट्रस्ट से  बाल कहानी ” काकी कहे कहानी”  व एक अन्य बाल उपन्यास ” वो तीस दिन”  भी प्रकाशित हुआ.

बाल साहित्यकार

बच्चों की छोटी कहानियाँ लिखना भी एक आर्ट होता है एक रोमांच होता है . जयपुर से प्रकाशित समाचार पत्र ” दैनिक नवज्योति” में “दीदी की चिठ्ठी” से नियमित स्तम्भ लगभग चार साल तक हर रविवार धमाचौकडी में प्रकाशित हुआ जिसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया मिलती रही…

बच्चा बनाना और फिर लेखन करना एक अलग तरह का सुकून देता है… है ना !!! बाल केखन करने वाला कभी बूढा नही होता हमेशा बच्चा बना रहता है

 

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बच्चों की छोटी कहानियाँ

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बच्चों की छोटी कहानियाँ

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बच्चों की छोटी कहानियाँ

 

 

September 14, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

हिंदी दिवस संदेश

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हिंदी हैं हम

हिंदी दिवस आता नही कि हिंदी दिवस संदेश, हिंदी का मह्त्व, हिंदी दिवस पर भाषण शुरु हो जाते हैं पर हिंदी में समझाऊं का क्या मतलब .. ?? आज कुछ ऐसा ही हुआ … !!

आज सुबह हाईवे पर जाते हुए जहां सडके बडी और चौडी हो रही हैं बहुत अच्छा लगा पर दुख इस बात का भी हुआ कि हाईवे पर भी वाह्न चलाते वक्त लोग सीट बेल्ट नही बांधते प्राईवेट टैक्सी चालक आगे की सीट पर इतनी सवारियां बैठा लेते हैं कि पता ही नही चला कि चालक है कौन …

हिंदी में समझाऊ क्या

ज्यादा गुस्सा इस बात का भी आया कि वाहन चलाते वक्त भी मोबाईल पर बात करना नही छोडते चाहे पीछे वाला हार्न बजाता ही रह जाए … एक जगह तो लडाई ही हो रही थी. दोनो के वाहन सडक के बीचोबीच खडे थे और एक आदमी दूसरे बोल रहा समझ नही आता क्या “ हिंदी में समझाऊ क्या”

हमारी कार तो आगे बढ गई पर “हिंदी” में कैसे समझाया होगा…सोच रही हूं वैसे आपको तो हिंदी समझ आती ही होगी..

ह हा हा हा हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !!

 

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हिंदी में कैसे लिखें – Monica Gupta

सोशल नेट वर्किंग साईटस  के चलन के बाद बहुत लोग या तो अंग्रेजी में लिखते हैं या फिर अंग्रेजी में हिंदी वाली हिंदी जैसा कि Tumhara naam kyaa hai… mera naam Monica hai…  बिल्कुल इसी तरह की …!!! read more at monicagupta.info

 

 

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( तस्वीर गूगल से साभार )

September 12, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

चुनाव प्रचार के नारे

चुनाव प्रचार के नारे

चुनाव प्रचार के नारे- चुनाव जीतने के तरीके क्या हो इसके लिए  चुनाव प्रचार के नारे पर बहुत बल दिया जाता  है जैसा कि मोदी जी के समय में भी लहर चली थी … ‘अच्छे दिन आने वाले हैं, मोदी जी आने वाले हैं’ को कौन भूल सकता है …

 

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चुनाव प्रचार के नारे

किसी भी अभियान की जान होते हैं नारे…

“गरीबी हटाओ”,

“इंडिया शायनिंग”,

“जय जवान, जय किसान” जैसे नारे सदाबहार रहे

2008 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों में दिए गए बराक ओबामा के नारे “यस वी कैन” को कम ही लोग भूले होंगें

 “अबकी बार मोदी सरकार”या  हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की या फिर “कट्टर सोच नहीं, युवा जोश.” ने भी बहुत वाहवाही बटोरी.

तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बैनर्जी ने “मां, माटी, मानुष” नारे के साथ सफल प्रचार किया और  सत्ता में आईं.

जैसा पिछ्ले चुनाव में हुआ था लहर चली थी …

 

वैसे कुछ बहुत मजेदार भी थे जैसा कि जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’

कुछ लुभावने भी थे जैसा कि
सोनिया नहीं ये आंधी है, दूसरी इंदिरा गांधी है’
खैर अब सूत्रों से मिली खबर के मुताबिक प्रशांंत किशोर ने कुछ नए नारे तैयार करवाएं हैं

1) एक अनोखी पहल शुरू हो गई  गांव-गांव खाट सभा शुरू हो गई,

देवरिया से दिल्ली किसानों में उम्मीद जग गई.

2) राहुल जी के इस अभियान में
सभी किसान भाई चल रहे हैं शान में.

3) जो कभी न हुआ अब होगा, किसानों का कर्ज माफ होगा,
उत्तर प्रदेश मे विकास होगा, राहुल जी का साथ होगा.

4) अखिलेश जी आप थक चुके, अब आप से कुछ नहीं होगा, 2017 आपके लिए बाय-बाय होगा
अब आप करो आराम, किसानों का ना जीना करो हराम. किसान अब जाग गए है नेताजी की असलियत पहचान गए हैं. 

 

क्या लगता है कि दाढीवाले राहुल जी से या इन नारों से पार्टी में जान आ सकती है … ??? क्या खाट किसी की खटिया खडी कर सकती है ?? क्या … क्या  ??? बहुत क्या, कौन, कैसे हैं ??

वैसे अभी तो पार्टी शुरु हुई है … आगे आगे देखते है होता है क्या फिलहाल साफ और स्वच्छ भारत की उम्मीद मे है यूपी और समस्त देश की जनता …

September 11, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

हिम्मत न हारना

हिम्मत न हारना

हिम्मत न हारना

कभी भी हिम्मत न हारना

जिंदगी में आगे बढना है तो हिम्मत न हारना.

कल मेरी एक जानकार फेसबुक पर अपने लाईक्स और कमेंटस को लेकर बहुत दुखी थी और बता रही थी कि शायद वो ही अच्छा नही लिख पा रही इसलिए लोग पसंद नही करते …और लाईक और कमेंट नही करते … इसलिए उसे लिखना बंद कर देना चाहिए

मुझे उसे ज्यादा समझाने की जरुरत इसलिए नही पडी क्योकि एक ताजा उदाहरण मेरे सामने था.. मैने उसे बताया कि एक जानकार है उन्होनें दिन रात दिन मेहनत की और इतना अच्छा किया कि एक इतिहास ही बना दिया और फिर भी लाईक और कमेंट नही मिले तो क्या वो मेहनत करना छोड दें …

जानकार ने कहा कि नही बिकुल नही … मेहनत करते रह्नी चाहिए … पर कौन है वो जिन्होने इतिहास बनाया… मैने कहा कि कल सुबह रियो पैरालंपिक में हमारे देश के मरियप्पन थांगावेलू ने ऊंची कूद में गोल्ड जीत कर इतिहास बना दिया और इसी खेल में वरुण भाटिया को कांस्य पदक मिला…

यकीनन एतिहासिक है ये दोनो खिलाडी दिव्यांगों के लिए एक आशा की किरण बन कर आए है पर हैरानी इस बात की मेरी इस पोस्ट पर कमेंट एक भी नही मिला और लाईक भी 20 के आसपास है … जब उन्हें पता चलेगा कि किसी का कमेंट ही नही था मोनिका की पोस्ट पर तो क्या वो खेलना छोड देंगें और क्या ऐसी पोस्ट पर जब मुझे कोई कमेंट नही मिलता तो क्या मुझे भी ऐसी पोस्ट लिखना बंद कर देना चाहिए … सीधी सी बात है

मैने तो यही सबक सीखा है कि जिंदगी में अगर हमें कुछ करना है तो बहरे और अंधे बन जाना चाहिए यानि कोई कुछ बोले या न बोले या फिर कोई देख रहा है या नही सब अनसुना और अनदेखा कर देना चाहिए और बस बढते रहना चाहिए… !!

वो हैरान थी कि गोल्ड मैडल मिलने के बावजूद भी किसी ने कमेंट में बधाई तक देने की जरुरत नही समझी तो वो किस खेत की मूली है और मुझे thanks कहती हुई उठ गई कि अब वो फेसबुक पर लिखने जा रही है और लिखती रहेगी चाहे कमेंट मिले या न मिले…. 

 

September 10, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

जलपरी श्रद्धा शुक्ला का सच

जलपरी श्रद्धा शुक्ला का सच

 

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(तस्वीर गूगल से साभार)

हाथ पैर मारता लहरों में उतरता एक सच

जलपरी श्रद्धा शुक्ला का सच.  एक रियलिटी शो का सच ऐसा भी जो पूरी तरह फिल्मी बन गया…  जी हां … अक्सर हमें रियलिटी शो बहुत अच्छे लगते है  पर कई बार कुछ ऐसी कडवी सच्चाई सामने आ जाती है कि हम हक्के बक्के रह जाते है … ऐसा ही कुछ पिछ्ले सप्ताह देखने को मिला

जलपरी श्रद्धा शुक्ला का सच

एक खबर आई कि 11 साल कीश्रद्धा शुक्ला कानपुर से इलाहाबाद तक 570 किलोमीटर की दूरी गंगा को तैरकर पार करगी. इतनी कम उम्र और उफनाती गंगा की लहरें यह सब देखते हुए उसकी हिम्मत और जज्बे को देखकर उसे जलपरी नाम दे दिया गया…

जहां मीडिया आगे आया वही मुंबई से यूपी आए थे फिल्म बनाने जाने माने फिल्ममेकर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता और वरिष्ठ टीवी पत्रकार विनोद कापड़ी. वो चाहते थे कि 12 साल की श्रद्धा को बड़े पर्दे पर लोग देखें और इस प्रतिभा को एक इंटरनेशनल पहचान मिले इतना ही नही वो जलपरी की ट्रेनिंग के लिए उसका खर्चा उठाने को भी तैयार थे, लेकिन जब वो मूवी शूट करने के लिए जलपरी के साथ चले तो कैंपेन की असलियत जानकर हैरान रह गए।

विनोद कापरी के अनुसार  श्रद्धा केवल दो से तीन किमी ही हर दिन तैरती थीं। उनका रोज 80 से 100 किमी तक तैरने का दावा झूठा है

एक बार तो विश्वास ही नही हुआ फिर जब खबर विस्तार से सुनी और वीडियो देखी तो सारी बात सामने आई कि वो कानपुर से वाराणसी के गंगा अभियान के दौरान अधिकांश समय नाव पर ही बिताती या वो पानी मे उतारे गए गद्दे पर ही रहती … वह गंगा में तैराकी के लिए उसी वक्त उतरती है, जब या तो कोई घाट आने वाला होता है या आसपास लोगों की भीड़ होती है. कई बार पिता मगरमच्छ का बहाना लगा देते तो कई बार खराब तबियत का … पर जब अलग अलग घाट पर लोग आते तो वो उन्हे देवी की तरह आशीर्वाद देती और जो पैसे मिलते वो भी ले लेती…

सारी कहानी वीडियो देख कर समझ आ ही जाएगी पर दुख इस बात का है कि यह सब उसके पिता और कोच ललित शुक्ला का रचाया हुआ था.

विनोद कापड़ी ने ये भी कहा कि उनकी पूरी हमदर्दी बच्ची के साथ है और इसमें बच्ची की जरा भी गलती नहीं है। देश और मीडिया को गुमराह करने का काम सिर्फ उसके पिता ही कर रहे हैं, जिसकी जानकारी और समझ संभवत: बच्ची को नहीं होगी। वह तो अपने पिता के इशारे पर ही सब कर रही है। वीडियो में बताया गया है कि कैसे श्रद्धा के पिता ने मीडिया में लाइमलाइट पाने के लिए ये सारी कहानी गढ़ी और इतना ही  नही जब उनके पिता को पता चला कि असलियत सामने आ जाएगी तो वो बुरी तरह बौखला गए और धमकी भी देने लगे कि देख लेंगें…

जलपरी श्रद्धा शुक्ला का सच

(तस्वीर गूगल से साभार)

असल में, सारी बात का निचोड ये निकला कि अविभावक अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए  किसी भी हद तक जा सकते है जोकि बिल्कुल गलत है… बच्चों पर कोई बात थोपनी नही चाहिए जिससे उनका बचपन उनकी मासूमियत ही  खत्म हो जाए .

इसी सिलसिले में एक बात और शो की याद आई.  बात पिछ्ले साल की है  रियलटी शो-इंडियन आइडल जूनियर मे एक 7 साल का  बच्चा अपना ओडिशन देने पिछले साल भी आया था पर डर या धबराहट में कुछ गा नही सका .

पिछले साल का  वो सीन भी दिखलाया था.  क्या गाऊं क्या गाऊं कह कर बच्चा नर्वस हो गया था और बिना कुछ कर गाए वो चला गया . इस साल वो फिर आया पूरा तैयार होकर और आते ही उसने गाना  सुनाना शुरु कर दिया. अच्छा था पर थोडा लय मे नही था.  तीनों जज उसे इशारा करके रुकने को कहा  पर वो रुका नही उल्टा उन्ही को इशारे मे मना करके गाता रहा. एक जज स्टेज पर आ गए और उसे समझाया लेकिन अब उसे एक ही जिद थी कि पास कर दो … उसने पास कर दो कि रट  लगा ली. बाहर खडे बच्चे के चाची बता रही थी  कि पिछ्ली बार जब ये गा नही पाया था तो इसे इसके पापा से बहुत डांट पडी थी और शायद उसी का डर होगा कि स्टेज पर आते ही उसने गाना शुरु कर दिया और रुका नही और दूसरी बात उसका बार बार कहना कि पास कर दो .. जब तक पास नही करोगें मैं जाऊगां  ही नही… मैं यही बैठा हूं.. मन में एक दर्द सा भर गया. इतना प्रैशर बच्चे पर …!!!

मुझे भी बहुत बार माता पिता मिलते हैं और वो ये कहते है कि हम तो बन नही पाए अब हमारा सपना हमारा बच्चा पूरा करेगा … बहुत अच्छी बात है बच्चे को अपने माता पिता के सपने पूरे करने ही चाहिए पर उससे पहले बच्चे की क्या इच्छा है वो तो जान लीजिए … वो तो पूछ लीजिए.

देखा जाए तो सब गलती अविभावको की और उनकी सोच की है  और उनकी दूसरे बच्चों से तुलना करने की आदत सबसे बुरी… हर बच्चे में प्रतिभा होती है उसमे प्रतिभा खोज कर उसे उचित मंच दीजिए पर उस पर प्रैशर या दवाब डालना सरासर गलत है…

एक और बात की झूठ ज्यादा समय तक नही चलता …आज सोशल मीडिया इतना फास्ट हो गया है कि सारी बाते खोद खोद कर निकाल लेता है इसलिए सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर पूरी गम्भीरता, लग्न और जोश पर चलते जाईए सफलता जरुर मिलेगी

 

September 10, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

बेटी पढ़ाओ की बजाय मां को पढ़ाओ

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

बेटी पढ़ाओ की बजाय मां को पढ़ाओ

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के बजाय अब होना चाहिए कि बेटी की बजाय मां को पढ़ाओ वो इसलिए क्योंकि जिस तरह से कन्या भ्रूण हत्या और बच्चियों की हत्या करने के केस सामने आ रहे हैं ऐसे में माओं का शिक्षित होना ज्यादा जरुरी है…

पूत कपूत सुने है लेकिन माता नहीं कुमाता

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ या फिर  बेटी को मां से बचाओ … सुनने में जरुर अटपटा लगेगा पर आज के समय में जिस तरह की घटनाए सामने आ रही हैं मन यही कहने पर मजबूर है …गूगल सर्च पर अगर आप नजर डालेगें तो बहुत कुमाता वाली बहुत खबरे पढने को मिल जाएगी किसी ने अस्ताल की छ्त से नवजात को नीचे फेक दिया तो किसी ने नाले में भ्रूण फेक़ दिया तो किसी ने कूडेदान की भेंट कर दिया नवजात को और एक केस जो हाल ही मैं सुर्खियों में आया कि अपनी नन्ही बच्ची को चाकू से मार कर ड्रामा किया कि बच्ची गायब हो गई जबकि उसका कत्ल करके  बंद पडे एयर कंडीशनर में डाल दिया था.

वाह !! पढी लिखी और करोडपति मां के क्या कहने … शर्मनाक !!

माता कुमाता नही पर ये कहावत अब इस युग में झूठी साबित हो रही है. हर युग में लोगों की सोच बदल जाया करती है. चाणक्य ने कहा है कि समय आने पर स्त्री अपने स्वार्थ के लिए अपनी कोख से जन्म लेनी वाली संतान को भी मार डालती है  तो चाणक्य की ये बात आज 100% सच दिखाई दे रही है….

कल खबर में  जयपुर की एक मां की अपनी नन्ही बच्ची को मार कर एसी में छिपा कर रखने की खबर बार बार देखी तो सारी रात सपने में भी यही चलता रहा… मासूम सा चेहरा धूमता रहा और मैं इसी बच्ची के बारे में सोचती रही कि आखिर वो बच्ची क्या सोच रही होगी कि उसका क्या कुसूर था जो उसे इतनी बेरहमी से मार दिया गया… बेशक, हत्या का ये पहला मामला नही है ऐसी धटनाए चाहे भ्रूण हत्या हो या मासूम के कत्ल की होती रहती होगी पर हर नई घटना बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है…

एक मां थी वो मां …मां क्या होती है …

एक छोटे बच्चे को मां गुस्से में चांटा भी मार देती हैं तो सौ बार प्यार भी करती है और हजार बार सॉरी भी बोलती हैं और उन नन्हें हाथो को अपने हाथ में लेकर यह भी बोलती हैं लो आप भी मालो अपनी ममा को .. मम्मा गंदी… बहुत गंदी अपने बच्चे को माला …  पर बच्चा भी अपना हाथ खींच लेता है और मासूमियत से टुकुर टुकुर अपनी मां को देखता है उसकी आखों में झिलमिलाते  आसूंओ को देखता है

पर ये कैसे बेरहम मां निकली .. समझ के बाहर है…

मन में एक ही बात आ रही है कि पेड के पत्तों को पानी देने से कुछ नही होगा पेड उससे फलेगा फूलेगा नही बल्कि जड को सींचना होगा और जड है पेरेंटिंग यानि माता पिता को जागरुक होना होगा कि बच्चा हो या बच्ची… बच्चा स्वस्थ होना चाहिए बस …!!

बेटी पढाओ से पहले मांओ को पढाना होगा …  अविभावकों को जागरुक करना होगा.. उन्हें सीखाना होगा.

हमारे देश में पहले संयुक्त परिवार का चलन था और बच्चे ऐसे ही पल जाते थे पर आज के दौर में मां और पिता दोनों नौकरी करतें हैं और बच्चे के लिए नौकरानी या अन्य साधन अपना लेते हैं और कई बार बच्चा उन्हें बोझ सा लगने लगता है क्योकि आजादी में खलल डालता है … जबकि ये मानसिकता बहुत गलत है… !!

बेशक, एक केस को देख कर सभी अविभावको पर भी आरोप नही लगाया जा सकता पर जब समाज में एक भी ऐसा उदाहरण उठ खडा होता है तो सारा समाज शर्मसार हो जाता है…

…

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जो भी हो इस धटना ने शर्मसार करके रख दिया कुछ समय पहले मैने एक अजन्मी बच्ची पर कविता लिखी थी उसे भी झूठा साबित कर दिया … फिलहाल मन वाकई में बहुत व्यथित है गुस्सा है और रो रहा है ….

वैसे आपके क्या विचार हैं इस बारे में जरुर बताईएगा …

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