Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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July 10, 2015 By Monica Gupta

Benefits of Eating with Hands

Benefits of Eating with Hands

Benefits of Eating with Hands

अक्सर शादी या अन्य समारोह में भीड बहुत होती है और उसका फायदा मिल जाता है.Benefits of Eating with Hands फायदा इस बात का मिलता है कि स्टाल वाली कुछ चीजों को हाथ से खाया जा सकता है मसलन, टिक्की … गरमागरम टिक्की, करारी सीधा तवे से उतरी हुई खाने का अपना ही मजा है इसकी दो वजह है एक तो टिक्की के साथ जो चमच्च मिलता है वो प्लास्टिक का होता है न जाने कब टूट जाए और दूसरा हाथ से खाएगें तो कितना गरम है अंदाजा लग जाएगा और मुंह नही जलेगा… अब इसके लिए जरुरी है भीड … ताकि सब अपने में मस्त हो और हम भी हाथ से खाने में पूरा एंजाय करें..

वैसे दक्षिण में तो ज्यादातर हाथ से ही खाया जाता है पर हमें अपने आस पास का माहौल देख कर हाथ से खाने का मन बनाना चाहिए अन्यथा हंसी के पात्र बनने में भी देर नही लगती.

 

Benefits of Eating with Hands

वैसे हाथों में है प्राण ऊर्जा- आयुर्वेद के अनुसार हमारे हाथों प्राणाधार एनर्जी होती है। इसका कारण है कि हम सब पांच तत्वों से बने हैं, जिन्हे जीवन ऊर्जा भी कहते हैं। ये पांचों तत्व हमारे हाथ में मौजूद हैं। हमारे हाथों का अंगूठा अग्नि का प्रतीक है। तर्जनी उंगली हवा की प्रतीक है। मध्यमा उंगली आकाश की प्रतीक है। अनामिका उंगली पृथ्वी की प्रतीक है और सबसे छोटी उंगली जल की प्रतीक है। इनमे से किसी भी एक तत्व का असंतुलन बीमारी का कारण बन सकता है।

जब हम हाथ से खाना खाते हैं तो हम उंगलियों और अंगूठे को मिलाकर खाना खाते हैं और इससे जो हस्त मुद्रा बनती है। उसमें शरीर को निरोग रखने की क्षमता होती है। इसलिए जब हम खाना खाते हैं तो इन सारे तत्वों को एक जुट करते हैं जिससे भोजन ज्यादा ऊर्जादायक बन जाता है और यह स्वास्थ्यप्रद बनकर हमारे प्राणाधार की एनर्जी को संतुलित रखता है

हाथ से खाने से ना सिर्फ एकाग्रता बढती है बल्कि पाचन भी सुपाच्य होता है.

और इसी के साथ साथ बचपन में जब हम बीमार पड जाते थे तो मम्मी अपने हाथ से खाना खिलाती थी और अगर और बचपन में जाए तो नानी दादी भी बच्चों के पीछे दौड दौड कर दाल चावल खिलाती थी … ये जो स्पर्श का अनुभव है ना … ये बहुत कामगर सिद्द होता है इससे आपसी प्रेम भी बढता है… कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली से बात कर रही थी  तो उसने बताया कि सबसे ज्यादा मजा करवा चौथ पर आता है जब हाथ मे मेहंदी लगा रखे होती है और पति अपने हाथों से खाना खिलाते है…

वैसे जैसे नियम कांटे छुरी से खाने के हैं इसके भी कुछ नियम होते हैं जैसे कि  सब्ज़ी खाते समय उसकी तरी को पूरी उंगलियों में नहीं लिपटने देना चाहिए और केवल उंगलितयों के पोरो का इस्तेमाल होना चाहिए ना कि पूरी की पूरी उउंगली तरी मे डूब जाए फिर यहां वहां लोगों को भी असुविधा हो…   खाते वक्त चपचप की आवाज भी न हो तो बेहतर है. इसके अलावा खाने के बाद भी हाथ धोने के लिए आमतौर पर प्रत्येक व्यक्ति को उंगलियां धोने  के लिए एक कटोरा  जिसमें गुनगुने पानी और कटा हुआ नींबू होता है दिया जाना चाहिए.

lady eating with hands photo

Photo by tanitta

बेशक हमें हाथ से खाते हुए शर्म आती हो पर बहुत विदेशी हमारे देश में आकर हाथ से खाना खाने मे गर्व महसूस करते हैं…

benefits of eating with hands hindi

हाथ (hands) से खाना खाना असल में भारत (India) में जितना कॉमन है उतना किसी और देश में नहीं है पश्चिम में लोग खाना खाने के लिए छुरी और कांटे का इस्तेमाल करते है कई जगह इसे भोजन सम्बन्धी शिष्टाचार से जोड़कर भी देखा जाता है और कुछ लोग मानते है कि हाथ से भोजन (eating with hands) करना सुरक्षित नहीं है लेकिन फिर भी कुछ भी कुछ जानकार ये मानते है कि हाथ से खाना खाने (eating with hands) का एक अलग ही मजा होता है और यह किसी भी छुरी या कांटे या किसी भी अन्य औजार से खाने में नहीं है साथ ही हाथ से खाना खाना स्वास्थ्यवर्धक (health beneficial) तो होता ही है और इसके कुछ और भावनात्मक पहलु भी है जिनपर हम थोडा गौर करते है | तो चलिए इस बारे में थोड़ी और बात करते है –

हाथ से खाने के स्वस्थ्य लाभ / benefits of eating with hands – पिछले कुछ दिनों में अमरीका के एक राज्य में कुछ लोगो के समूह ने छुरी और कांटे को छोड़कर हाथ से खाने की इच्छा जताई और इसके पीछे कई कारन है जिनमे से एक है कुछ जानकर मानते है कि हाथ से खाना खाते समय जो हाथ की अंगुलियाँ और अंगूठे की मुद्रा बनती है वो विशेष होती है और उसमे हमारे शरीर को स्वस्थ (healthy) रखने की क्षमता होती है वन्ही कुछ लोग यह भी मानते है कि जिस तरह हमारा शरीर पांच तत्वों (five elements) का बना होता है उसी तरह हमारे हाथ की पांच उंगलिया भी इसी तरह उन पांचो तत्वों की प्रतीक है इसलिए हाथ से खाना खाते (eating with hands) समय हम उन पांचो तत्वों को रोटी का कौर बनाते समय एकजुट करते है और इस से भोजन उर्जादायक बन जाता है और खाने में अतिरिक्त स्वाद भी आता है | Read more…

Benefits of Eating with Hands जो भी हो हाथ से खाने का अपना ही मजा है एक अलग  ही तरह की संतुष्टि मिलती है … तो शुरुआत हो जाए दाल चावल से … एक मेरी सहेली बता रही थी कि चाय को भी सुडप करने यानि आवाज करके पीने मे अलग ही मजा है … नही … ये नही … अभी इतना ही काफी है  😆

July 9, 2015 By Monica Gupta

कैसे कैसे अविभावक

कैसे कैसे अविभावक

indian traffic light and people photo

Photo by captain.orange

आज दोपहर कुछ बच्चे स्कूल से वापिस आ रहे थे. मौसम खराब था. रेड लाईट होने पर कुछ वाहन रुके. मेरे साथ एक स्कूटी भी रुकी जिसे शायद एक मम्मी चला रही थी और बच्चा पीछे बैठा था. फ्रूटी पीते पीते वो बता रहा था कि आज क्लास मे बहुत नकल चली . मम्मी ने पूछा तूने तो की नही होगी एक ही सत्यवादी हरिशचंद्र पैदा हुआ है हमारे खानदान मे.

बच्चे का क्या जवाब था ये तो पता नही क्योकि हरी लाईट हो गई थी पर चंद मिनट की यह बात बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर गई. मम्मी को बजाय कटाक्ष के उसकी प्रशंसा करनी चाहिए थी ताकि उसका मनोबल और मजबूत होता पर अफसोस जब पेरेंटस ही ऐसी बाते बोलेगें तो …. ????

इसी बात को अगर दूसरे  तरीके से कहा जाता तो अलग ही असर होता … आज जिस तरह से हमारी शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है ये बात  पेरेंटस को बहुत सोचने की है ….

July 9, 2015 By Monica Gupta

मुद्दे ही मुद्दे

मुद्दे ही मुद्दे

इतने सालों से सोनी चैनल पर CID चला आ रहा है हमें शायद हमें इसलिए अच्छा लगता  है कि आज क्राईम हुआ सीआईडी आई और देखते ही देखते जांच हुई और अगले ही पल रिपोर्ट सामने और फिर कैदी सलाखों के पीछे. पर हकीकत ये नही है हकीकत वो है जो हम आप हर रोज देखते है… आज मर्डर हुआ कम से कम दस दिन जांच मे लगेगें और इस बीच आरोपी पर क्या यातना बीतेगी उसकी कोई चिंता नही.

हमारे देश मे जांच टेस्ट  सैंटर इतने कम है कि रिपोर्ट  आते आते मामला ही ठंडा पड जाता है..

दूसरा नुक्स है हमारी कछुए की चाल चलती न्याय प्रणाली .. बीस बीस साल हो जाते हैं तारीख पर तारीख … बस …

तीसरा हमारी जुगाड संस्कृति … रिश्वत का कितना भी विरोध करें हम जुगाड हमेशा से ही हमे प्रिय रहा है..

चौथी बात है मीडिया … तेज और तेज खबर दिखाने के चक्कर में  भिन्नभिन्नाती मक्खियों की उपाधि मिल जाती है… पता नही वो क्यो भूल जाती है कि जरुरत उनसे ज्यादा जनता को है लेकिन मारी मारी भागी भागी दौडती भागती रहती है …

फिर बात आती है महिला सुरक्षा की … मुद्दे बहुत है जिन पर हमें,  मीडिया को, नेता को, सरकार को, प्रशासन  को उठाना चाहिए क्योंकि इन्हें दूर किए बदला  आना सम्भव नही ….

man thinking photo

Photo by taufiq @ eyecreation

 

 

July 9, 2015 By Monica Gupta

गुस्सा अच्छा है

cartoon commentator

गुस्सा अच्छा है

पता नही अकसर लोग कहते मिलते जाते हैं कि गुस्सा नही करना चाहिए. गुस्सा सेहत के लिए अच्छा नही होता वगैरहा वगैरहा. पर गुस्सा तो अच्छा है. सच में, बहुत अच्छा है.

अब घर की ही बात करें तो घर पर कई बार आपको लगता होगा कि आज चपाती बहुत मुलायम बनी है जोकि अकसर नही बनती है या आज कपडे बहुत साफ धुले है जोकि अक्सर साफ नही धुलते.ये सब गुस्से की ही महिमा है कि गुस्सा आटा गूंथते समय या कपडे धोते समय निकाला जाता है और नतीजा हमारे सामने होता है.

गुस्सा करने से सेहत अच्छी रहती है वो इसलिए कि जब हमे बहुत ज्यादा गुस्सा आता है तब खाना खाने का मन नही करता.मुहँ फुला कर चुपचाप लेट जाते है.एक तरह से उपवास ही हो जाता है. हाँ, पानी जरुर ज्यादा पी लेते है. भई, किसी तरह पेट तो भरना ही है ना.

एक बात और कि शांति बहुत हो जाती हैं.सास बहू या पति पत्नी सब चुप हो जाते है. यहाँ तक की टीवी भी बंद कर दिया जाता है नाराजगी दिखाने के लिए गुस्से में.

नाखूनो की कटाई हो जाती है क्योकि गुस्से मे हम अपने नाखूनो को चबाने लगते है.

हाँ, गुस्से मे भगवान का नाम बहुत लिया जाता है कि भगवान के नाम पर अब बस चुप करो . ओम शांति.गुस्सा जाने के बाद खुद पर हंसी बहुत आती है वो भी अच्छी बात है. सबसे बडी बात जब तक आग हमारे सीने मे नही होगी हम जीत नही पाएगे. अगर किसी ने चैंलज कर दिया को तुम डाक्टर या पत्रकार किसी कीमत पर नही बन सकते. बस यही बात एक आग बन जाती है और गुस्से मे ही सही हम वो बन कर दिखाते है.. अब आप को गुस्सा आ रहा है कि लेख अच्छा नही लगा तो आप इस पर कमेंट लिखेग़ें फिर मैं उसका जवाब  दूंगी फिर आप दुबारा लिखेगें इसी बहाने आपका लेखन भी सुधर जाएगा और आप टवीटर या फेसबुक पर लिख कर जाने माने कमेंटेटर बन सकते हैं …तो  सोचना क्या गुस्सा अच्छा है ना…

कैसा लगा आपको ये गुस्सा … मेरा मतलब ये लेख … जरुर बताईगा 🙂  और अगर इसी को लेकर आपके अपने अनुभव हो जो हमसे सांझा करना चाहे तो भी आपका स्वागत है …

July 8, 2015 By Monica Gupta

Whistleblowers

 

cartoon vyapam by monica gupta

 

Whistleblowers

व्यापम घोटाले के दौरान बार बार एक शब्द बहुत सुनने को मिला वो शब्द था ..Whistleblowers   means व्हिसल ब्लोअर्स… थोडा बहुत अंदाजा तो था कि ये कौन लोग होते हैं पर ज्यादा डिटेल नही पता थी इसलिए नेट सर्च करना शुरु किया.. तब पता चला कि

 

2010 में यूपीए-2 सरकार एक बिल लेकर आई. नाम था, पब्लिक इंटरेस्ट डिसक्लोज़र एंड प्रोटेक्शन फॉर पर्सन्स मेकिंग डिसक्लोज़र बिल 2010. संक्षेप में कहें, तो व्हिसल ब्लोअर बिल 2010. व्हिसल ब्लोअर बिल 2010 में सरकारी धन के दुरुपयोग और सरकारी संस्थाओं में हो रहे घोटालों की जानकारी देने वाले व्यक्ति को व्हिसल ब्लोअर माना गया यानी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाला. इस बिल में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को अतिरिक्त अधिकार दिए गए. सीवीसी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियां भी देने की बात कही गई. सीवीसी भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आवाज़ उठाने वालों के ख़िला़फ अनुशासनात्मक कार्रवाई रोक सकता है. भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले की पहचान गुप्त रखने की ज़िम्मेदारी सीवीसी की है. अगर पहचान उजागर होती है, तो ऐसे अधिकारियों के ख़िला़फ शिक़ायत भी की जा सकेगी.
इस विधेयक के दायरे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं. बहरहाल, इस विधेयक में सीवीसी को जितनी ज़िम्मेदारी सौंपी गई, सीवीसी उसे पूरा कर पाने में सफल होगा या नहीं, यह एक सवाल था. जैसे, क्या सीवीसी की सांगठनिक संरचना इतनी बड़ी है, जिससे वह भारत जैसे बड़े देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या से लड़ पाए? राज्यों, ज़िलों और पंचायतों में फैले भ्रष्टाचार से कैसे निबटेगा सीवीसी? यह विधेयक 2011 में ही लोकसभा से पारित हो गया था, लेकिन उच्च सदन से पारित होने में इसे लंबा समय लगा. खैर, यूपीए-2 ने अंतिम समय में जब इस विधेयक को पारित कराने के लिए राज्यसभा में पेश किया, तो भाजपा ने कुछ संशोधन पेश किए थे. यूपीए-2 सरकार ने इन संशोधनों को ज़रूरी बताते हुए स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन उच्च सदन में बहस के दौरान यूपीए ने भाजपा से इस बिल को दोबारा निचले सदन में भेजने का दबाव न बनाने का आग्रह भी किया था. संसद ने इस विधेयक को पारित कर दिया था, जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी.
राष्ट्रपति द्वारा विधेयक पर 9 मई, 2014 को हस्ताक्षर किए जाने के बावजूद सरकार ने अब तक इसे क़ानून के तौर पर लागू नहीं किया है. सवाल है कि एक साल बीतने के बाद भी इस बहुप्रतिक्षित क़ानून को (पारित किए जाने के बाद भी) लागू क्यों नहीं किया गया, जबकि पिछले कई सालों से पूरे देश के सामाजिक कार्यकर्ता सरकार से मांग करते रहे हैं कि भ्रष्टाचार के ख़िला़फ बिगुल बजाने वाले लोगों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए. एक ऐसा क़ानून बनाया जाए, जिससे इस तरह के लोगों की पहचान गुप्त रखी जा सके. अब जब क़ानून बना भी, तो उसे लागू नहीं किया गया. अब, इस क़ानून को लागू करने की जगह एक बार फिर मौजूदा केंद्र सरकार इसमें संशोधन की बात कह रही है. केंद्र की एनडीए सरकर ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को व्हिसिल ब्लोअर्स प्रोटेक्टशन एक्ट के दायरे से बाहर रखने के लिए क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा है

  CHAUTHI DUNIYA

अब सवाल यह है कि सरकार भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में किस तरह का संशोधन करना चाहती है? आ़िखर भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने से राष्ट्र की अखंडता और सुरक्षा को किस तरह से ़खतरा हो सकता है? अगर इस क़ानून में संशोधन करना ही है, तो होना यह चाहिए था कि इस क़ानून की संस्थागत संरचना पर विचार हो. यह सोचना चाहिए कि आरटीआई क़ानून के लिए तो केंद्रीय सूचना आयोग के साथ राज्य सूचना आयोग भी हैं. उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए तो ज़िला स्तर तक आयोग गठित किए गए हैं. फिर भ्रष्टाचार जैसी संवेदनशील समस्या से निपटने के लिए स़िर्फ सीवीसी ही क्यों? वह भी स़िर्फ केंद्रीय स्तर पर? यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ऐसे में सीवीसी के काम का दायरा कितना बड़ा हो जाएगा और वह अपने तीन सदस्यों के बूते कितना बोझ ढो पाएगा. देखते हैं, व्हिसिल ब्लोअर्स प्रोटेक्टशन एक्ट में अब किस तरह के संशोधन होते हैं और उनके क्या मायने निकल कर सामने आते हैं.

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अब अगर व्यापम घोटाले की बात करें तो

Whistleblowers

BBC

आशीष की भूमिका और बाद में लगातार मिलने वाली धमकियों की वजह से अदालत ने स्थानीय प्रशासन को इन्हें सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिए.

प्रशांत के बारे में जानकारों की राय है कि इन्हीं के ज़रिए मध्य प्रदेश की मौजूदा सरकार के कुछ कथित ‘बड़े लोगों’ के नाम व्यापमं घोटाले से जोड़े जाने लगे.

बताया जाता है कि ख़ुद प्रशांत संदिग्ध अधिकारियों के कंप्यूटरों की हार्ड ड्राइव से डेटा निकालने में जांच एजेंसियों का सहयोग कर रहे थे. लेकिन प्रशांत के मुताबिक़ उनकी मुश्किलें तभी से शुरू हुईं जब उन्हें खुद कुछ ऐसा डेटा (एक्सेल शीट) मिला जिसमें कई बड़े लोगों के नाम शामिल थे.

इनका दावा है कि जहाँ ये जानकारी सार्वजनिक हुई इन्हे प्रदेश की जांच एजेंसियों ने परेशान करना शुरू कर दिया. पहले इन्हें कुछ दिन हिरासत में रखा गया और बाद में इन पर आईटी एक्ट और आईपीसी की धारा 420 के तहत मामले दर्ज किए गए.

फिर प्रशांत को हाईकोर्ट से राहत मिली. इसके बाद से प्रशांत पांडे सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटा चुके हैं और इन दिनों सुरक्षा कारणों से अपना ज़्यादातर समय दिल्ली में ही बिताते हैं. Read more…

जो भी है .. आज ये मुद्दा बेहद गर्माया हुआ है…. !!!

July 7, 2015 By Monica Gupta

हिंसक होते बच्चे

हिंसक होते बच्चे

कई बार लगता है कि बच्चो की गुस्सैल और हिंसक होती प्रवृति के जिम्मेदार और कोई नही हम खुद ही है. कारण भी एकदम ठोस है. असल में, बदलते समय के साथ साथ हमारी करनी और कथनी मे फर्क आता गया जो हम महसूस ही नही कर पाए और बच्चे इस बदलाव को सह नही पाए.

 

kids fighting photo

Photo by Tony Fischer Photography

यकीनन हम बच्चो को किताबी पाठ पढाते रहे कि सदा सच बोलो . ईमानदारी का जीवन अपनाओ. बडो का आदर करो. नकल करने से जीवन मे कभी सफल नही होगे.पर हकीकत मे हम उनके आगे कुछ और ही परोसते रहे.

मसलन, अकसर झूठ बोलने पर हम ही उन्हे उकसाते हैं.पाठ ईमानदारी का पढाते हैं और आफिस से रिश्वत या तो ले कर आते हैं या उनके सुखद भविष्य के लिए दे कर आते हैं और तो और परीक्षा हाल मे बच्चो को नकल मारने के लिए सदा उत्साहित करते हैं ताकि कही अच्छी जगह दाखिला होने मे कोई दिक्कत ना आए.

जुगाड संस्कृति से हमेशा बच्चो को जोडे रखना चाहते हैं ताकि कोई दूसरा बच्चा उसको काट करके आगे ना निकल जाए. बडो का आदर करने का पाठ तो पढा देते हैं पर हम घर पर अपने ही बडे बुजुर्गो से ऊची आवाज मे बात करते हैं.

ऐसे मे अगर हम अपनी गलती मान लें तो कोई छोटे नही बन जाएगे.बच्चो का सही मार्गदर्शन हमारा पहला और आखिरी कर्तव्य होना चाहिए….

कैसा लगा आपको ये लेख हिंसक होते बच्चे …. जरुर बताईएगा 🙂

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