Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 18, 2015 By Monica Gupta

समय ही नही मिलता

books of monica gupta

समय ही नही मिलता

 

समय ही नही मिलता… नाटक संग्रह है. इसमे लगभग सभी नाटक वो हैं जिनका आकाशवाणी जयपुर और आकाशवाणी रोहतक से झलकी रुप मे प्रसारण हो चुका है. उन्ही नाटक़ों को समय ही नही मिलता नामक किताब में पिरों दिया है. किताब का प्रकाशन सन 2009 में जयपुर के श्याम प्रकाशन द्वारा किया गया. इसमे कुल 91 पेज हैं और 14 नाटक है. नाटक संग़्रह को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अनुदान मिला.

नाटको मे पति पत्नी की नोंक झोंक है… मम्मी बेटे का वार्तालाप है कही हाय तौबा है यो कही प्यार का एक्सीटेंट …

आईए एक छोटी सी झलक पढें … नाटक ( झमेला नाम का)

ट्रिन ट्रिन
श्री मलिक- हैलो…. यस…. आर्इ.एम. मलिक….. स्पीकिंग
अरे….. आप रोर्इये मत….. हाँ…..हाँ……हाँ….. मैं अख़बार देखता हूँ….. (पन्ने पलटने की आवाज़) हाँ सेठ जी, पेज तीन पर दूसरा कालम…….हाँ…..हाँ……. ये तो आपका ही साक्षात्कार छपा है……..लेकिन……. हाँ…….. आप रोर्इये मत……. मैं आपको पढ़ कर सुनाता हूँ……… सेठ दीन दयाल की फैक्टरी ने लाखों का मुनाफ़ा कमाया। इस अवसर पर उन्होंने पार्टी आयोजित की…… सेठ जी……. यह तो सारा ठीक…… हाँ……. हाँ…….. पढ़ रहा हूँ………. हाँ……. उन्होंने पार्टी आयोजित की और डुगडुगी के एडिटर को बताया कि हर सफल आदमी के पीछे किसी और औरत का हाथ होता है……………………….
मलिक- हे भगवान …… ये क्या कर दिया एडिटर ने……….. और शब्द ग़लती से छप गया। सेठ जी…. आप रोर्इये मत……… मैं ………..मैं माफ़ी माँगता हूँ…….. क्या…….. सेठानी जी से …… हाँ…….. हाँ……. मैं उनसे भी माफ़ी माँग लूँगा…….. कल……… कल…….. मुझे खेद है कालम में मैं आपकी खबर दुबारा दूँगा कि हर सफल आदमी के पीछे किसी औरत का हाथ होता है और सेठ जी की सफलता के पीछे उनकी पत्नी का विशेष योगदान है। सेठ जी प्लीज रोर्इये मत…..
(फ़ोन रखता है) (खुद से) ये सम्पादक का बच्चा तो डुगडुगी की डुगडुगी बजवा कर ही रहेगा……!!
(दरवाज़े की घंटी बजती है)
श्री मलिक- ओह…. अब कौन आया !! मालिक…… ज़रा देखना……..!
मालिक- साहब……..! मैं आटा गूंथ रहा हूँ………. आप ही देख लो
(दूर से आवाज़ आती है)
श्री मलिक- गुस्से में…….. हूँ……. मैं रसोर्इ में जाकर देखता हूँ……… ये हमेशा आटा ही गूंथता रहता है…… जब भी देखो…… आटा गूंथ रहा हूँ…….. अरे……. तू यहाँ बैठा चाय पी रहा है…….. और मुझे कह रहा ……. मैं आटा गूंथ रहा हूँ……..
मालिक- अब साहब…… आप भी तो कितनी बार खाना खा रहे होते हैं और फ़ोन आने पर कहते हैं कि कह दे, साहब बाथरूम में हैं…… तो मैंने भी…..
श्री मलिक- चल….. बस….. अब चुप कर……. मैं ही खोल देता हूँ दरवाज़ा…..
श्री मलिक- अरे…….. चाची आप……..!!
चाची- हाय-हाय…….. ग़जब हो गया……… तेरा भार्इ यानि मेरा बेटा…… ये देख….. टेलिग्राम आया है……… पढ़ तो इसे…….
श्री मलिक- ऐ मेरे वीर, मेरे प्रिय, सीमा तुम्हे बुला रही है। दोनों बाँहे फैलाएं तुम्हारा स्वागत करती है तुम कब आओगे…. लेकिन चाची अपूर्व तो छुट्टियों में यहीं आया हुआ है ना……
चाची- हाँ…..हाँ….. अब इसके लछन तो देख…… हम यहां इस जवान के लिए लड़की देख रहे हैं और ये किसी सीमा से (ज़ोर से रोती है) अ ह ह ह…
इतने में बेटा आता है………।
माँ……माँ…….. पिताजी ने बताया कि फ्रंट से पत्र आया है……. जरा दिखाओ तो….. और…… तुम…… रो क्यों रही हो !
चाची- अपूर्व…… ये सीमा कौन है……!
श्रीमती मलिक- चाची………पूछो…….पूछो…….. इसके साथ अपने लाड़ले मलिक बेटे से ये भी पूछो कि यह रचना कौन है जिसे लेकर पूरे दिन दफ़्तर में बैठे रहते हैं (जोर से रोती है)
नौकर- मालकिन, हम धनिया को लेने जा रहा हूँ।
श्रीमती मलिक – ठीक है, जल्दी आ जाना।
श्री मलिक- अरे…….आर.यू……..ये तुम्हे क्या हो गया। कम-से-कम मुझसे तो पूछ लेती……•
(इतने में पी.के. की पत्नी भी आ जाएगी)
चाची- अपूर्व…. तुमसे तो मैं बाद में बात करती हूँ। आर्इ.एम. ये……..ये…….. मैं क्या सुन रही हूँ…….. कौन है ये रचना।
श्रीमती मलिक- चाची पता है……… पता है…….. पी.के. बहके साहब का भी कोर्इ चक्कर है किसी कल्पना के साथ (फिर ज़ोर से रोएगी)
श्री मलिक- गुस्से से……… चुप……… चुप……… बिल्कुल चुप……..।
यहां बैठो…….. आर.यू…. मैं क्या काम करता हूँ।
श्रीमती मलिक- आप सम्पादक हैं………. (नाक से सांस लेकर)
संपादक का काम होता है लेख यानि आर्टिकल, रचना को पढ़ कर उसे प्रकाशित करना……. ये कोर्इ वैसी रचना नहीं है जो तुम समझ रहे हो….
चाची का बेटा- और माँ……..मैं आपको भी बता दूँ कि यह सीमा हमारे देश की सीमा है, जिसके लिए हम जान लुटा देते हैं………. ना कि कोर्इ मेरी गर्लफ्रैंड़…. सीमा….
श्रीमती मलिक- ठीक है……… पर पी.के. बहके साहब की वो लड़की……..
श्री मलिक- कौन लड़की…….. ओ…….. कल्पना…….. अरे बुद्धु, कल्पना……. यानि सोच, इमेजीनेशन……… समझी।
क्या ? ? हाँ……
श्रीमती मलिक- मुझे क्षमा करें अब मैं शक नहीं करूंगी और प्रेम के साथ रहूँगी।
श्री मलिक- क्या ? ? ”प्रेम अब तुम मुझे छोड़ कर किसी प्रेम के साथ रहोगी……..।
श्रीमती मलिक- ये वो वाला प्रेम नहीं बलिक प्यार वाला प्रेम है।
(सब हँसतें हैं)
(दरवाज़े की घंटी बजती है)
श्रीमती मलिक- ये लड़की कौन है…….
मालिक- जी……… ए ही है हमार धनिया……..
श्रीमती मलिक- क्या ? ? ……..
(दोबारा घंटी)
श्रीमती मलिक- मालिक…….. ज़रा देखना……. कौन आया है……..
मालिक- मालकिन…….. हम ज़रा धनिया को काम समझा रहा हूँ….. आप ही देख लो ना।

ऐसे की कुछ मजेदार नाटकों का संग्रह है … समय ही नही मिलता

ISBN 978-93-80018-11-9

 

 

June 18, 2015 By Monica Gupta

अब मुश्किल नही कुछ भी

ab mushkil nahi kuch bhi by monica guptaअब मुश्किल नही कुछ भी

बच्चे हैं तो पढार्इ है, पढार्इ है तो किताबे हैं, और अगर किताबे प्रेरक, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक हैं तो कहना ही क्या।
वाकर्इ में, ऐसी किताबो से हमें बहुत कुछ सीखने और जानने का मौका मिलता है। असल में,  देखा जाए तो हम सभी मे कोर्इ ना कोर्इ हुनर छिपा होता है पर कर्इ बार अपने माहौल, रहन सहन या परवरिश से हम खुद को कम आकंने लगते हैं और हमारे अंदर छिपी प्रतिभा वही दम तोड़ देती है जबकि इसी छिपी प्रतिभा के माध्यम से हम अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हो सकते हैं.
आज भी समाज में हमें अपने आस पास ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिल जाएगें जिनके जीवन से प्रेरित हो कर हम बहुत कुछ सीख सकते है। उनको आदर्श मान कर उनका अनुकरण कर सकते है पर उसके लिए जरुरी है कि हम उनके बचपन और जीवन के बारे मे जाने कि ऐसा क्या है उनमे जो आज वो अपनी अलग पहचान बनाए हुए है।
इन्ही सब बातों को ध्यान मे रख कर मैं कुछ चुनिंदा प्रतिभाओ से रुबरु हुर्इ। उनके बारे में विस्तार से जाना और यह जान कर बहुत हैरानी हुर्इ कि उन सभी ने हमारी तरह ही साधारण परिवारो में जन्म लिया। साधारण जीवन जीया पर अपने जीवन के मूल्यो को असाधारण बनाए रखा और आज उसी वजह से वो एक अलग मुकाम हासिल किए हुए हैं।

अब मुश्किल नही कुछ भी  …
बेशक, यह किताब मैने बच्चो को प्रेरणा और सीख देने के लिए लिखी है पर मैने भी इन सभी शखिसयतो से मिलकर बहुत कुछ सीखा है। लिम्का बुक आफ रिकार्डस की सम्पादिका श्रीमति विजया घोष, काटूर्निस्ट संकेत गोस्वामी, माऊंट ऐवेरेस्ट फतह करने वाली सुश्री ममता सोढा, भारतोलन मे अर्जुन एर्वाड विजेता श्रीमति भारती सिंह, जिला उपायुक्त और रक्त दान के क्षेत्र मे अलग पहचान बनाने वाले डा0 युद्धवीर सिंह ख्यालिया , निर्माता, निर्देशक सिनेमेटोग्राफर और गायक श्री मनमोहन सिंह, मैनेजेमैंट फंडा के गुरू और लेखन के प्रति समर्पित श्री नटराजन रघुरामन, सुप्रसिद्ध कवि, लेखक प्रोफेसर अशोक चक्रधर, मशहर टेलीविजन अदाकारा सुश्री नेहा शरद जोशी, एक पैर से मैराथान मे हिस्सा ले रहे जाने माने पहले भारतीय ब्लेड रनर  और जाबांज  मेजर देवेन्द्र पाल सिहं।

अब मुश्किल नही कुछ भी   प्रेरणादायक बाल साहित्य है.सन 2008 में प्रकाशित पुस्तिका को हरियाणा साहित्य अकादमी की तरफ से  अनुदान मिला.

ISBN -978-93-82197-47-5

 

June 18, 2015 By Monica Gupta

Figure Conscious

 

maniquines photo

Photo by Irene2005

कुछ देर पहले एक खबर पढी कि   Figure conscious Barbie switches from heels to flats…खबर पूरी पढी. वैसे कोई शक नही कि आज के समय में  हम सभी  Figure Conscious हो गए हैं.  बडे तो है ही पर बच्चे भी बहुत Conscious हो गए हैं . पहले ऐसा नही हुआ करता था.  कुछ समय पहले एक परिवार से मिलना हुआ. उनका बच्चा बहुत गोलू मोलू चीकू मूच्चू सा था. उसके गाल पकडने में बहुत मजा आ रहा था और बच्चा  भी खूब मुस्कुरा रहा था. मैने 5 महीने के बच्चें को  दस मिनट गोद मॆ लिया और मेरा हाथ ही थक गया ( आप अंदाजा लगा सकते हैं).  सभी माता पिता का यही सपना होता है कि उनका बच्चा जब पैदा हो तो खूब मोटू हो ताकि जो भी देखे वाह वाह कर उठे और कई बार जब बच्चे पतले दुबले (पर एक्टिव) पैदा होते हैं तो माता पिता, दादा दादी नाना नानी सब अपने अपने अनुभव बताने लग जाते हैं कि बच्चा गोलू मोलू कैसे बनें. उसके लिए टोनिक या कुछ भी लगातार बच्चे को दिया जाता है … फिर बच्चा बडा होता है.

फिर शुरु होता है आज के समय का  दूसरा फेज … ह हा हा पहले हंसी कंट्रोल कर लू… रुक ही नही रही… वो क्या हुआ कि मैं अपने जानकार के घर गई हुई. उस दिन उनकों स्कूल जाना था. बच्चे की पेरेंटस टीचर मीटिंग थी. पर वो नही गए क्योकि बच्चा लिखवा कर ले गया कि वो दोनों शहर से बाहर गए हुए हैं. जब मैने झूठ बोलने का कारण जानना चाहा तो उन्होनें बताया कि असल में, उनके बच्चे के सभी दोस्तों के मम्मी पापा पतले पतले से हैं और वो दोनों मोटे है अगर वो स्कूल आएगें तो बच्चे को शर्म आएगी क्योकि दूसरे बच्चे देख कर हसेंगें. माता पिता ये बात गम्भीरता से बता रहे थे और मेरी हंसी ही नही रुक रही थी..

वही एक तो और भी मजेदार बात सुनी कि एक बच्चा जो अब कालिज में  है . वो अपने मम्मी पापा से नाराज चल रहा है कारण कि बचपन में उसे इतने टानिक पिलाए गए.. इतने टानिक पिलाए गए  कि अब उसकी चर्बी कम ही नही हो रही. जिम भी ज्वाईन कर लिया और उसका ट्रैनर हर रोज उसे गुस्सा करता है कि बचपन से अपना ख्याल क्यों नही रखा और वो सारा गुस्सा घर आकर निकालता है.

 

Figure Conscious Barbie Switches From Heels To Flats

Times have certainly changed, as now Barbie will be stepping out in flats for the first time in 56 years.According to Cosmopolitan, Mattel is giving the iconic doll a makeover with their Barbie Fashionista line, by changing the shape of their feet and ankles, which were previously designed to fit only heels.

Kim Culmone, vice president of design for Barbie said in an interview that Barbie was never designed to be realistic, and was always meant to be easy for girls to dress and undress them. See more…

कोई शक नही आज के बच्चे बहुत figure conscious गए हैं इसलिए बस कोशिश करिए कि जब वो पैदा हों तो तंदुरुस्त हो मोटे नही अगर  मोटे हुए तो आपकी खैर नही … ह हा हा !!! वैसे हाई हील देखने में जरुर अच्छी लगती है पर कई बार पावं और  एडी को नुकसान दे जाती है इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि heels को कम ही पहनें… बाकि आप खुद ही समझदार है .. जी क्या कहा … बहुत समझदार हैं … ह हा हा !! जी मैं सहमत हूं आपसे और आपकी समझदारी से 🙂

June 17, 2015 By Monica Gupta

टूथपेस्ट में चाट मसाला

 

toothpaste photo

Photo by ToastyKen

टूथपेस्ट में चाट मसाला

ऐसा भी होता है … एक समय था जब लोग सुबह सैर करते हुए नीम के पेड से शाख तोडते और उसको दातुन बना लेते. धूमते धूमते देसी  मंजन हो जाता … फिर समय आया .. लाल दंत मंजन और काला दंत मंजन का …फिर यह जगह फिल्मी हीरोईनों ने ले ली और वो विज्ञापन में आने लगी कि ( कही पढी और बेहद अच्छी लगी)

2008-
क्या आपके toothpaste में लौंग है ??

2010-
क्या आपके toothpaste में नमक है ??

2013-
क्या आपके toothpaste में
नमक और नीम्बू है ??
,
2015-
क्या आपके toothpaste में
नमक, नीम्बू और नीम है ??
,
2016-
क्या आपके toothpaste में
नमक, निम्बू, चाट मसाला है ?? इतना ही नही जो ब्रुश नही करता था उसे देख कर बता दिया जाता  कि फलां ने रात को भिंडी खाई या पालक पनीर … क्योंकि भोजन के कुछ अंश दांतों में लगे रह जाते और साफ नही होते थे. अब आगे का
.
.
.
2018-
Colgate dal fry special,
Colgate butter masala,
Colgate lemon tea flavor,
Colgate mix veg,
Colgate Spicy….
.
 samjh nahi aata
toothpaste hai ya dish
.
.
.
.                                     कोई शक नही अगर आपको यह सुनने को मिले
2021-
क्या आपके मुँह में दांत हैं ??

 

 

 

(टूथपेस्ट में चाट मसाला)

 

June 17, 2015 By Monica Gupta

काकी कहे कहानी

kaki kahe kahani by monica gupta

काकी कहे कहानी  नेशनल बुक ट्रस्ट , इंडिया से प्रकाशित बाल कहानी है. काकी कहे कहानी का प्रकाशन 2011 में हुआ. ये एक ही  छोटी सी कहानी है जिसके मात्र 16 पेज है. कहानी आज के बच्चें की सोच पर आधारित है.

ये मेरी पांचवी किताब है. कहानी में काकी शहर में रहने वाले  बच्चें मोहित को  मजेदार मजेदार कहानियां  सुनाना चाहती है ऐसे में क्या मोहित कहानी सुनता है या अपनी मोबाईल और टीवी की दुनिया में ही खोया रहता है या पढाई के बेहद तनाव की वजह से वो कहानी नही सुन पाता … ये सब जानने के लिए आपको पढनी पडेगी काकी कहे कहानी …

ये किताब आपको नेशनल बुक ट्रस्ट से मिल सकती है किताब का ISBN  नम्बर है 978-81-237-6234-0

 

http://www.nbtindia.gov.in/books_detail__10__nehru-bal-pustakalaya__1585__kaki-kahe-kahani-hindi-.nbt

June 17, 2015 By Monica Gupta

मैं हूं मणि

मैं हूं मणि -मोनिका गुप्ता

mai hu mani by monica gupta

मैं हूं मणि …

मैं हूं मणि, मेरी पहली प्रकाशित किताब. सन 2008 में प्रकाशित बाल पुस्तिका में 54 पेज  में  16 कहानिय़ां है. पुस्तक को हरियाणा साहित्य अकादमी से बाल साहित्य पुरुस्कार मिला.

मैं हूं मणि  के माध्यम से मैने कुछ अपना बचपन और कुछ बच्चों का बचपन सम्मलित किया है. चाहे कहानी  चाकलेट की बेटी हो या मैं हूं राजकुमारी या मुझे नही बनना मम्मी वम्मी … बच्चों के मासूम मन को दर्शाता है …!!

मेरी लिखी एक बाल कहानी …

ऐसी ही हूँ मैं…………!

सुबह का समय……! मैं यानि मणि, स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही हूँ पर मैंने जुराबें कहां रख दी मिल ही नही रही। बेल्ट भी देखने के लिए पूरी अलमारी छान मारी पर जब मम्मी मेरा स्कूल बैग ठीक करने लगी तब देखा उसी बैग में बेल्ट पड़ी थी। एक जुराब ना मिलने से अलमारी से दूसरा जोड़ा निकाल कर दिया। मेरा कमरा ऐसा हो रहा था मानो अभी-अभी भूकम्प आया हो। वैसे यह आज की बात नहीं है। मैं ऐसी ही हूँ। कमरा साफ-सुथरा रखना मेरे बस की बात नहीं………… वैसे मैं अभी तीसरी कक्षा में ही तो हूँ।

फिर पढ़ार्इ के अलावा मुझे पता है कितने काम होतें हैं….. गिनवाऊँ……… ओ.के. गिनवाती हूँ। पापा के पैरों पर खड़े होकर उन्हें दबाना, मम्मी की टेढ़ी-मेढ़ी चोटी बनाना, मटर छीलते समय उन्हें खाना ज्यादा डि़ब्बे में ड़ालना कम…….और….और…. पापा के हाथों व पैरों की उंगलियां खींचना, दादाजी की पीठ पर कंधे से खुजली करना…….ऊपर से पढ़ार्इ….पढ़ार्इ और पढ़ार्इ……….. है ना कितना काम। ओफ………..बस का हार्न बजा………… लगता है मेरी स्कूल बस मुझे लेने आ गर्इ है……….।

दोपहर के दो बजे मैं स्कूल से लौटती हूँ। उस समय मुझे अपना कमरा चमकता-दमकता मिलता है। यही हर रोज होता है।

हर सुबह मेरी तलाश, खोजबीन जारी रहती है और मम्मी मेरी हमेशा सहायता करती है क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं…..। एक दिन मम्मी को कहीं जाना था तो मम्मी ने मुझे सुबह ही घर की डुप्लीकेट चाबी थमा दी। चाबी अक्सर मैं गुम कर देती हूँ इसलिए मम्मी मेरे गले में पहने काले धागे में चाबी ड़ाल देती हैं इससे चाबी गुम नहीं होती। मैं स्कूल से लौटी तो घर पर ताला लगा था। मैंने घर खोला और अंदर से बंद कर लिया। मम्मी मुझे हिदायत देकर गर्इ थी क्योंकि हमारे शहर में चोरियां बहुत हो रही थी।

हमेशा की तरह मैंने साफ-सुथरे घर को गंदा कर दिया। स्कूल बैग जमीन पर पटका। बेल्ट कहीं, जुराबें कहीं और कौन सी ड्रेस पहनूं के चक्कर में सारी अलमारी अस्त-व्यस्त कर दी। ड्रेस मैंने निकाली पर अलमारी बंद नहीं की क्योंकि ऐसी ही हूँ मैं।

फ्रिज में से कोल्ड़ डि्ंक निकाला और ठाठ से लेट कर टीवी देखने लगी। बार-बार चैनल बदले जा रही थी क्योंकि मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या देखूं और क्या न देखूं। फिर मम्मी की ड्रेसिंग टेबल वाली दराज खोल कर बैठ गर्इ कि मम्मी की सारी चूडि़यां, बिन्दी ठीक कर के लगाती हूँ। इसी बीच घर की लाइट चली गर्इ। मैं बोर होने लगी। मम्मी अभी आर्इ नही थी। मैंने सोचा कि घर बंद करके अपनी सहेली सुधा के यहां चली जाती हूँ। फिर मैंने घर ढंग से बंद किया और सुधा के घर गुडि़या-गुडि़या खेलने चली गर्इ ।

शाम हो गर्इ थी। मम्मी को सुधा की मम्मी से कुछ काम था इसलिए वो बाजार से सीधा ही सुधा के घर आ गर्इ। मुझे वहां खेलते देख उन्होंने गुस्सा किया कि पढ़ार्इ कब करूंगी और पापा भी बेचारे दफ्तर से आ गए होंगे और बाहर ही खड़े गुस्सा हो रहे होंगे।

मैं खेल भूल कर तुरन्त मम्मी के साथ घर चल पड़ी। घर गर्इ तो बाहर पापा और उनके दोस्त परेशान से खड़े थे। पापा ने बताया कि वह पाँच मिनट से बाहर खड़े हैं। घर का ताला तो बंद है पर अंदर से हल्की-हल्की आवाजें आ रही है। पीछे की खिड़की भी खुली है। वैसे पड़ोस के जैन साहब ने बताया कि उन्हाेंने पुलिस को फोन भी कर दिया है। पापा गुस्से से मुझे ही घूरे जा रहे थे। सभी अंदाजा लगा रहे थे कि पता नहीं, भीतर कितने लोग हैं।

पुलिस भी आ गर्इ। मम्मी ने घर की चाबी पुलिस वालों को दे दी। दोनों पुलिस वालों ने दरवाज़ा धीरे से खोला और धीरे-धीरे कमरे में प्रवेश किया। भीतर वाले कमरे से हल्की-हल्की रोशनी व आवाजें भी आ रही थी। एक पुलिस वाले ने भीतर से बाहर आकर यह रिर्पाट दी।

मेरी मम्मी भी पूरी तरह से घबरा गर्इ। पता नहीं क्या हो रहा होगा। तभी दूसरे वाला पुलिस मैन बाहर अपनी बन्दूक लेने आया तो उसने बताया कि भीतर का कमरा बिल्कुल फैला हुआ है। ऐसा लग रहा है मानो पूरी खोजबीन की हो। पांव तक रखने की जगह नहीं है। मैं तो बिल्कुल ही रूआंसी हो गर्इ। पापा-मम्मी दोनों मुझे गुस्से से देख रहे थे। आसपास के पड़ोसी भी इकटठे हो गए। चारों तरफ फुसफुसाहट हो रही थी।
तभी भीतर गए पुलिस वाले ने मेरे पापा को आवाज देकर भीतर बुलवाया। पिताजी ड़रते-ड़रते अन्दर गए फिर उन्होंने मेरी मम्मी और मुझे आवाज दी। हम दोनों भी अंदर गए। अन्दर जाकर देखा तो भीतर कोर्इ नहीं था। सिर्फ पापा और दो पुलिस वाले थे और हां कमरे में टीवी जरूर चल रहा था।
मुझे याद आया कि टीवी तो मैं चलता ही भूल गर्इ थी। बिजली चले जाने के कारण मुझे टीवी को बंद करना ध्यान ही नही रहा।

पुलिस वाले अंकल पापा को कह रहे थे कि वह तो इतना बिखरा कमरा देख कर हैरान थे और सोच रहे थे कि इतना तो चोर ही चोरी करते वक्त कमरा फैला कर जाते हैं।

पापा-मम्मी मेरी तरफ घूर कर देख रहे थे। मुझे एक तरफ तो खुशी थी घर में चोर नहीं है लेकिन पुलिस वालों के आगे मुझे बहुत बेइज्जती महसूस हुर्इ क्योंकि वह सारा कमरा तो मैंने ही फैलाया था…….। पुलिस अंकल मुझ से पूछने लगे कि क्या मैंने ही यह कमरा फैलाया है।

मैं जोर से रो पड़ी और कहने लगी कि प्लीज़ अंकल आप मेरी शिकायत किसी से मत करना। सारी गलती मेरी थी। मैं ऐसी ही हूँ। स्कूल से आकर सारा कमरा फैला देती हूँ। फिर टीवी देखते-देखते लाइट चली गर्इ। मैंने खिड़की खोल दी पर…. घर पर बोर हो रही थी तो मैं बिना खिड़की, टीवी बंद किए ही सुधा के घर खेलने चली गर्इ। पर बाहर से ताला जरूर लगा गर्इ।

पुलिस वाले अंकल ने बताया कि फिर शाम हुर्इ, अंधेरा हुआ तो टीवी की हल्की-हल्की आवाज और कम ज्यादा होती रोशनी से ऐसे लगा कि घर पर कोर्इ है और खुली खिड़की देख कर तो मन का शक पक्का हो चला। मैं रो रही थी। पर मुझे सबक मिला चुका था। मैंने मम्मी-पापा और पुलिस अंकल से वायदा लिया कि मैं आगे से ऐसा नहीं करूंगी। कमरा ठीक रखूंगी। दो-तीन दिन बाद फिर वही रोज मर्रा की तरह कमरा फैलाना शुरू हो गया क्योंकि…….. ऐसी ही हूँ मैं…….. है ना!

कैसी लगी कहानी जरुर बताईएगा …. 🙂

मैं हूं मणि …

 

 

 

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