रक्तदान और महिलाए – बेशक जागरुकता का अभाव है पर फिर भी बहुत महिलाएं हैं जो रक्तदान के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही हैं…
आज जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी वो ठेठ गांव की अनपढ महिला है.उम्र 50 से भी उपर हो चुकी है पर अगर रक्तदान की बात करें तो उसमे वो हमेशा ना सिर्फ सबसे आगे रहती है बल्कि लोगो को रक्तदान के प्रति अपने ठेठ मारवाडी अंदाज मे प्रेरित भी करती हैं. अभी तक वो 21 बार से ज्यादा बार रक्तदान कर चुकी हैं.
रक्तदान और महिलाए
इस जागरुक महिला का नाम है श्रीमति बिमला कासंवा. इनका जन्म राजस्थान के गांव खारा खेडा मे हुआ. अपने 6 भाई बहनो मे ये सबसे बडी थी. अपनी मां के साथ घर का सारा काम करवाना फिर अपने छोटे छोटे भाई बहनो की भी देखभाल करना. बस इन्ही सब कामो मे बचपन कैसे निकल गया पता ही नही चला.
blood donor
उन्होने बताया उस समय लडकियो को पढाने पर जोर नही दिया जाता था. घर के काम काज मे ही लगा दिया जाता था. वो भी इसी कामकाज मे व्यस्त हो गई. पर ऐसा भी नही था कि उनका मन पढने का या स्कूल जाने का नही करता था. जब बच्चे सुबह सुबह स्कूल मे प्रार्थना करते तो उनका मन भी करता कि वो भी जाए पर यह सम्भव ही नही हो पाया और वो अनपढ ही रह गई.
समय बीता और उनकी शादी हो गई. अपने नए जीवन का स्वागत उन्होने बहुत खुशी खुशी किया. ईश्वर ने उन्हे प्यारी सी बेटी और एक बेटा दिया. यहां भी वो अपने घरेलू कामो मे ही व्यस्त रही. तभी अचानक एक दिन उनकी जिंदगी मे एक यादगार दिन बन गया.
10 जनवरी 1997 को हरियाणा के सिरसा में एक रक्तदान मेला लगा. उनके पति श्री भगीरथ जी ने बस एक बार कहा कि रक्तदान मेला लगा है .यहां रक्तदान करके आते हैं. उन्हे रक्तदान की जरा भी समझ नही थी पर वो अपने पति के साथ चली गई. वहां इन्होने रक्तदान किया और रक्तदान करके बेहद खुशी मिली. बस उस दिन के बाद से इसके बारे मे सारी जानकारी ले कर इन्होने मन बना लिया कि ये हर तीन महीने बाद रक्तदान करेगीं.
रक्तदान के दौरान इन्हे यह भी पता चला कि इनका ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव है . डाक्टर ने बताया कि इसकी मांग बहुत है इसलिए जब भी जरुरत होगी वो उन्हे बुला लिया करेगें. उसके बाद काफी बार इन्होने इमरजैंसी मे भी रक्तदान दिया.
एक वाक्या याद करते हुए उन्होने बताया कि एक बार रात को एक बजे फोन आया कि रक्तदान के लिए उनकी जरुरत है और डाक्टर ने उनके लिए एबूलैस भेज दी.इतनी देर रात गाडी आई तो पडोसी भी जाग गए. पर तब जल्दी थी इसलिए वो फटाफट उसमे सवार होकर चली गई. सुबह आकर वो अपने रोजमर्रा के कामो मे जुट गई. वही पडोसी आकर पूछ्ने लगे कि रात को क्या हुआ. इस पर उन्होने हंसते हुए बताया कि कुछ नही हुआ बस रक्तदान करने गई थी.
बिमला जी हो इस बात का दुख जरुर है कि उन्हे पहले इसकी जानकारी नही थी पर अब जब उन्हे इसकी अहमियत का पता चला तो उन्होने अपने दोनो बच्चो को भी रक्तदान का पाठ पढाया. आज इनका सारा परिवार नियमित रुप से रक्तदान करता है. बिमला जी समय समय पर रक्तदान से सम्बंधित वर्कशाप मे जाकर रक्तदान के प्रति जनता को जागरुक भी करती रहती है.
यकीनन आज बिमला कांसवा सभी लोगो के लिए एक प्रेरणा से कम नही है.
रक्तदान और महिलाए