Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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October 2, 2015 By Monica Gupta

रक्तदान और महिलाए

रक्तदान और महिलाए

रक्तदान और महिलाए – बेशक जागरुकता का अभाव है पर फिर भी बहुत महिलाएं हैं जो रक्तदान  के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही हैं…

आज  जिस महिला से आपकी मुलाकात होगी वो ठेठ गांव की अनपढ महिला है.उम्र 50 से भी उपर हो चुकी है पर अगर रक्तदान की बात करें तो उसमे वो हमेशा ना सिर्फ सबसे आगे रहती है बल्कि लोगो को रक्तदान के प्रति अपने ठेठ मारवाडी अंदाज मे  प्रेरित भी करती हैं. अभी तक वो 21 बार  से ज्यादा बार रक्तदान कर चुकी हैं.

रक्तदान और महिलाए

इस जागरुक महिला का नाम है श्रीमति बिमला कासंवा. इनका जन्म राजस्थान के गांव खारा खेडा मे हुआ. अपने 6 भाई बहनो मे ये सबसे बडी थी. अपनी मां के साथ घर का सारा काम करवाना फिर अपने छोटे छोटे भाई बहनो की भी देखभाल करना. बस इन्ही सब कामो मे बचपन कैसे निकल गया पता ही नही चला.

blood donor

blood donor

 

उन्होने बताया उस समय लडकियो को पढाने पर जोर नही दिया जाता था. घर के काम काज मे ही लगा दिया जाता था. वो भी इसी कामकाज मे व्यस्त हो गई.  पर ऐसा  भी नही था कि उनका मन पढने का या स्कूल जाने का नही करता था. जब बच्चे सुबह सुबह स्कूल मे प्रार्थना करते तो उनका मन भी करता कि वो भी जाए पर यह सम्भव ही नही हो पाया और वो अनपढ ही रह गई.

 

समय बीता और उनकी शादी हो गई. अपने नए जीवन का स्वागत उन्होने बहुत खुशी खुशी किया. ईश्वर ने उन्हे प्यारी सी बेटी और एक बेटा दिया. यहां भी वो अपने घरेलू कामो मे ही व्यस्त रही. तभी अचानक एक दिन उनकी जिंदगी मे एक यादगार दिन बन गया.

 

10 जनवरी 1997 को हरियाणा के सिरसा में  एक रक्तदान मेला लगा. उनके पति श्री भगीरथ जी ने बस एक बार कहा कि रक्तदान मेला लगा है .यहां रक्तदान करके आते हैं. उन्हे रक्तदान की जरा भी समझ नही थी पर वो अपने पति के साथ चली गई. वहां इन्होने रक्तदान किया और रक्तदान करके बेहद खुशी मिली. बस उस दिन के बाद से इसके बारे मे सारी जानकारी ले कर इन्होने मन बना लिया कि ये हर तीन महीने बाद  रक्तदान करेगीं.

 

रक्तदान के दौरान इन्हे यह भी पता चला कि इनका ब्लड ग्रुप बी नेगेटिव है . डाक्टर ने बताया कि इसकी मांग बहुत है इसलिए जब भी जरुरत होगी वो उन्हे बुला लिया करेगें. उसके बाद काफी बार इन्होने इमरजैंसी मे भी रक्तदान दिया.

 

एक वाक्या याद करते हुए उन्होने बताया कि एक बार रात को एक बजे  फोन आया कि रक्तदान के लिए उनकी जरुरत है और डाक्टर ने उनके लिए  एबूलैस भेज दी.इतनी देर रात गाडी आई तो पडोसी भी जाग गए. पर तब जल्दी थी इसलिए वो फटाफट उसमे सवार होकर चली गई. सुबह आकर वो अपने रोजमर्रा के कामो मे जुट गई. वही पडोसी आकर पूछ्ने लगे कि रात को क्या हुआ. इस पर उन्होने हंसते हुए बताया कि कुछ नही हुआ बस रक्तदान करने गई थी.

 

बिमला जी  हो इस बात का दुख जरुर है कि उन्हे पहले इसकी जानकारी नही थी पर अब जब उन्हे इसकी अहमियत का पता चला तो उन्होने अपने दोनो बच्चो को भी रक्तदान का पाठ पढाया. आज इनका सारा परिवार नियमित रुप से रक्तदान करता है. बिमला जी समय समय पर रक्तदान से सम्बंधित वर्कशाप मे जाकर रक्तदान के प्रति जनता को जागरुक भी करती रहती है.

 

यकीनन आज बिमला कांसवा  सभी लोगो के लिए एक प्रेरणा से कम नही है.

रक्तदान और अमिताभ बच्चन

रक्तदान और महिलाए

 

October 2, 2015 By Monica Gupta

राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस

आईएसबीटीआई ( मोनिका गुप्ता)

 

 

राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस

राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस की हार्दिक शुभकामनाऎं…

 खुशी का विषय यह है कि आईएसबीटीआई यानि इंडियन सोसाईटी आफ ब्लड ट्रांसफ्यूजनएंड इमयोनोहीमेटोलोजी  ने ही इस दिवस की शुरुआत सन 1976 में की थी.  आईएसबीटीआई पिछ्ले चालीस सालों से रक्तदान से जुडी गैर सरकारी संस्था है और स्वैच्छिक रक्तदान के क्षेत्र  मे अभूतपूर्व कार्य कर रही है. स्वैच्छिक रक्तदान के प्रति पूरी तरह समर्पित आईएसबीटीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. युद्द्बीर सिह खयालिया एक ही दृष्टि कोण  लेकर चल रहें  हैं  कि जनता में स्वैच्छिक  रक्तदान के प्रति इतनी जागरुकता आ जाए कि सुरक्षित रक्त मरीज की इंतजार करे  ना मरीज रक्त की. डाक्टर ख्यालिया का  मानना है कि इसके लिए शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान की भावना का होना बेहद जरुरी है और ऐसी जागरुकता जन जन मे कैसे लाई जाए. अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए आईएसबीटीआई दिन रात कार्यरत है. इन्ही सब बातों को ध्यान मे रखते हुए  जगह जगह ट्रैंनिग करवाई जाती है. स्कूल कालिजो मे क्विज, पोस्टर बनाना तथा अन्य माध्यमों से जागरुकता लाई जाती  है. भिन्न भिन्न रक्तदान के  खास अवसरो पर जैसाकि विश्व रक्तदान दिवस, स्वैच्छिक रक्तदान दिवस आदि कुछ  खास दिनों में प्रतियोगिताए भी आयोजित करवाई जाती  है.

 रक्तदान से जुडे होने के कारण अक्सर मेरे पास भी रक्त की जरुरत के लिए फोन आते रहते हैं.यथा सम्भव मदद करने की कोशिश तो करती हूं पर जहां तक हमारी पहुंच ही नही है वहां मदद करना या किसी को कहना बहुत मुश्किल हो जाता है. दिल्ली में डाक्टर संगीता पाठक Sangeeta Pathak, सोनू सिह  Sonu Singh Bais , राजेंद्र माहेश्वरी (भीलवाडा, राजस्थान) मंजुल पालीवाल, रोहतक हरियाणा से , मुम्बई से दीपक शुक्ला जी,  ब्लड कनेक्ट की पूरी टीम नई दिल्ली से और चंडीगढ में डाक्टर रवनीत कौर को जब भी मैंने वक्त बेवक्त फोन किया  और रक्त  की जरुरत के बारे मे बताया तो उन्होनें तुरंत एक्शन लिया और एक ही बात कही कि चिंता नही करो आप उन्हे मेरा नम्बर दे दो. कोई फिक्र नही. परेशानी मे पडे एक अंजान के लिए ऐसी बात कहना बहुत बडी बात है. मैं उनका अक्सर खुले लफ्जों में और कई बार दिल ही दिल मॆ बहुत धन्यवाद करती हूं और फिर विचार आता है कि क्यों ना ऐसे शानदार और समर्पित व्यक्तित्व पूरे देश भर में हो. हमारे पास देश भर में कही से भी फोन आए. हम किसी को रक्त की कमी से न मरने दे.

अगर डाक्टर या ब्लड बैंक से जुडे लोग हों तो बहुत बेहतर है या फिर कोई ऐसे जो स्वैच्छिक रक्तदान से जुडे हों और समाज के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ करना चाहते हों. उनका स्वागत है. यह बात पक्की है कि आपके सहयोग के बिना यह कार्य सम्भव नही है और यह बात भी पक्की है कि इस लक्ष्य को हम जीत सकते हैं. अगर आप ऐसे किसी भी व्यक्ति को जानते हैं या आप खुद ही हैं तो नेक काम मे आगें आए. अपना नाम और पता monica.isbti [at]gmail.com पर भेज दीजिए….. !!!!

आईएसबीटीआई ( मोनिका गुप्ता)

ISBTI monica gupta 1

September 30, 2015 By Monica Gupta

Rotary Blood Bank

Rotary Blood Bank

 

आईएसबीटीआई की दिल्ली में कांफ्रेस के दौरान बहुत से ऐसे लोगों से मिलना हुआ जो रक्तदान पर बहुत जबरदस्त कार्य कर रहे थे. किसी की संस्था है तो कोई संस्था के साथ मिलकर रक्तदान जैसे सामाजिक कार्य में निस्वार्थ भावना से कार्य कर रहें हैं. लक्ष्य और उद्देश्य सभी का एक है कि देश में शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान हो.

इसी कार्यक्रम में आई रोट्ररी ब्लड बैंक दिल्ली की सीएमओ अंजू वर्मा  और चीफ टैक्निकल आफिसर आशा बजाज जी से मिलना हुआ. बेहद मिलनसार और सबसे अच्छी बात ये कि रक्तदान के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं. आशा जी ने बताया कि  वो और अंजू वर्मा जी जब से रोट्ररी ब्लड बैंक शुरु हुआ वो तभी से यानि 2001 से इसके साथ जुडी हैं.

रोट्ररी ब्लड बैंक का मिशन यही है कि दिल्ली और दिल्ली के आसपास रहने वालों की रक्त की कमी से कभी जान न जाए. इसलिए उनकी संस्था कभी कालिज, कभी स्कूल कभी किसी संस्थान में तो कभी कैम्प के माध्यम से रक्त एकत्र करने के साथ साथ जागरुक भी करते हैं. स्कूल में पेरेंटस टीचर मीटिंग के दौरान कैम्प लगाते हैं क्योकि अगर टीचर या माता पिता रक्तदान करेंगें तो निसंदेह  बडे होने पर बच्चे भी आगे आएंगें.

उन्होने बताया कि ब्लड बैंक में किसी भी तरह से रिप्लेसमैंट नही है और 24 घंटे खुला रहता है. जिसे जब भी जरुरत हो वो फोन करके या मिलकर विस्तार से  जानकारी ले सकता है. दिल्ली मे तुगलकाबाद में उनका रोट्ररी ब्लड बैंक है और  टेलिफोन नम्बर 01129054066- 69 तक नम्बर हैं.

आशा जी ने यह भी बताया कि थैलीसिमिया  का टेस्ट भी यहां होता है. इस बारे में भी वो लगातार जागरुक करते रहतें हैं कि शादी से पहले थैलीसीमिया टेस्ट जरुरी होता है ताकि शादी के बाद किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पडे.

आजकल बहुत ज्यादा व्यस्तता है क्योंकि डेंग़ू की वजह से प्लेटलेटस  और रैड ब्लड सैल की बहुत मांग है. उन्होनें बताया कि ब्लड बैंक का सारा स्टाफ स्वैच्छिक रक्तदाता है और हर तीन महीने बाद रक्तदान करता है.

मेरे पूछने पर कि एक महिला होने के नाते महिलाओं की खून की कमी के बारे में क्या कहना चाहेंगी इस पर वो मुस्कुरा कर बोली कि एनीमिया प्रोजेक़्ट पर भी उनका  ब्लड बैंक जुटा हुआ है और समय समय पर चैकअप कैम्प लगाए जाते हैं और जागरुक किया जाता है.

रही बात आज के समय कि तो उन्होनें बताया कि बहुत बदलाव आया है और आ भी रहा है. बहुत अच्छा लगता है जब स्वैच्छिक रक्तदान के लिए ना सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाए भी आगे आती हैं. हालाकि यूरोपिय देशों की तुलना में तो बहुत कम है पर फिर भी ऐसी जागरुकता होना एक शुभ संकेत है.

आशा जी ने बताया कि वो लगभग 30 सालों से इस क्षेत्र से जुडी है. जब भी कोई परेशान, दुखी व्यक्ति रक्त के लिए आता है और उसे वो मिल जाता है तो उसके चेहरे की खुशी देख कर एक ऐसी आत्मसंतुष्टि मिलती है जिसे शब्दों मे व्यक्त नही किया जा सकता.

मीटिंग का अगला सैशन शुरु हो गया था इसलिए मुझे अपनी बात को यही रोकना पडा. जिस सच्चे मन से उनकी संस्था कार्य कर रही है उसके लिए पूरी टीम बधाई की पात्र है… शुभकामनाएं !!!

यकीनन देश में अगर हम शत प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान देखना चाह्ते हैं तो हम सभी को मिल कर सांझा प्रयास करना होगा.

Rotary Blood Bank

Rotary Blood Bank

 

 

Rotary Blood Bank

 

September 29, 2015 By Monica Gupta

रक्तदाता

 रक्तदाता

अक्सर हम रक्तदान पर बढ चढ कर बात करते हैं पर जब रक्त देने की बात आती है तो कुछ लोग ऐसे भी होते है…

हुआ ये कि एक सहेली ने बताया कि उनके करीबी रिश्तेदार को डेंगू हो गया और अचानक प्लेट्लेट की जरुरत पडी. उसने मुझे फोन किया. मैने कहा कि अभी कुछ करती हूं बात को 5 मिनट भी नही हुए थे कि उसका दुबारा फोन आया कि रहने दीजिए एक रक्तदाता मिल गए हैं और वो प्लेटलेटस देने आ रहे हैं . मैने भी भगवान शुक्र अदा किया कि अब मरीज जल्द ठीक हो जाएगें.

असल में,  उन्होने उसने अपने  जानकार को  फोन किया और उसने कहा कि वो अभी आ रहें हैं. इसी बीच मेरी सहेली रिलेक्स हो गई पर आधा घंटा बीतने पर भी वो नही आए. सहेली ने दुबारा उन्हें फोन किया पर अब फोन ही नही  मिल रहा था. अब परेशानी शुरु हो गई क्योकि मरीज की हालत लगातार बिगडती जा रही थी. आनन फानन दो चार् लोगो से फोन किया और बिल्कुल अंत मे एक अंजान व्यक्ति रक्तदान के लिए आगे आया.

 दुख इस बात का है कि अगर ऐसे समय मे वो मित्र पहले ही  मना ही कर देते कि मै नही दे सकता तो शायद इतनी परेशानी ना होती पर जिस तरह से उन्होने लटकाए रखा और ना ही फोन किया और ना ही खुद आए तो  ये तो बहुत ही गलत बात की. इस वजह से उनके मरीज की जान भी जा सकती थी.

यह बात  आपके साथ इसलिए  शेयर कर रही हूं अगर कभी भी ऐसी बात हमारे सामने आए तो या मना कर दें या फिर आगे आए. परेशान व्यक्ति को और ज्यादा परेशानी मे ना डाले…!!  प्लीज !!

रक्तदाता

 

man thinking photo

September 28, 2015 By Monica Gupta

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा
रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा – रक्तदान पर मैनें दिल्ली रोहिणी  क्राऊन प्लाजा में ट्रास्कान 2015 के दौरान अपने विचार कुछ ऐसे व्यक्त किए. विषय था….सोशल मीडिया के मद्देनजर युवा रक्तदाताओं को कैसे जोडे …

monica gupta 3 speech

रक्तदान और युवा

Recruiting Young Donors- Focus on Social Media

“वसुधैव कुटुम्बकम” बहुत समय पहले सुना करते थे  अर्थात पूरी धरती एक परिवार है मैं अक्सर सोचती थी कि सारी धरती एक परिवार कैसे हो सकती है दुनिया इतनी बडी है कोई कहां तो कोई कहां ऐसे में  एक ही परिवार कैसे हो सकता है  पर जब से  सोशल मीडिया फेसबुक, टवीटर, गूगल सक्रिय हुआ और देश क्या विदेश की भी सभी जानकारी मिलने लगी. विचार सांझा होने लगे. तब लगा कि अरे वाह, जो हमारे पूर्वजो ने  उस समय कहा था वो तो आज साकार हो रहा है.

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा

 सोशल मीडिया से हमारा जुडे रहना और भी सार्थक हो जाता है अगर हम नोबल cause के लिए जुडे … और रक्तदान जैसा कोई नोबल cause और हो ही नही सकता.

ये सच है कि रक्तदान पुण्य का कार्य है पर सोचने वाली बात ये है कि युवाओं को इससे कैसे जोडे. यूथ इसलिए भी क्योकि वो सोशल नेट वर्क पर बेहद सक्रिय है और दूसरी वजह ये भी है कि वो समाज के लिए कुछ करना चाहता है.

अब जरुरत इस बात की है कि हम कुछ हट कर करें जिससे युवाओं में एक नया जोश पैदा हो… वैसे हट करने से याद आया आपने सैल्फी विद डोटर तो सुना ही होगा. बेटी बचाओ, बेटी पढाओ के अंतर्गत एक और अभियान चला कि गांव की जो बेटी सबसे ज्यादा पढी लिखी होगी वो 15 अगस्त को झंडा फहराएगी और मुख्यातिथि भी होगी उसके साथ आए माता पिता के लिए अलग बैठने की व्यवस्था की जाएगी.

इस अभियान को इतना पसंद किया गया कि अब तो गांव के वो लोग भी जो लडकियों को पढाना सही नही समझते थे उनकी मानसिकता भी बदल गई है. वो ज्यादा से ज्यादा लडकियों को पढाने के लिए आगे आ रहे हैं.

नेट के माध्यम से रक्तदान से जुडी  खबर हट कर हों  उनका उदाहरण सामने रखे तो भी जागृति आ सकती है… जैसा कि एक खबर पढी कि अहमदाबाद के रोहित उपाध्याय  ने 100 बार रक्तदान किया.. शायद आपको इस खबर में कोई नयापन न लगे पर अगर मैं आपको कहूं कि वो रिक्शा चलातें है तो शायद कुछ हट कर  लगे लेकिन अगर मैं आपको ये बताऊ कि वो मरना चाहते थे इसलिए रक्तदान करने गया था तो शायद आप भी चौंक़ जाएगें.

असल में, अहमदाबाद के राहुल उपाध्याय रिक्शा चलाते हैं वो अपनी जिंदगी से बहुत परेशान  हो गए थे और सुसाईड करना चाहते थे उन्हें लगता था कि रक्तदान करने पर आदमी मर जाता है इसलिए रक्तदान करने गए थे पर रक्तदान करके जब यह पता चला कि  उन्हें तो कुछ हुआ नही और उन्होनें किसी की जिंदगी बचाई है तो उनकी सोच बदल गई और लगातार रक्तदान करने लगे…

रक्तदान और युवा

रक्तदान और युवा

एक अन्य उदाहरण है इंदौर के निवासी अशोक नायक का. पेशे से दर्जी हैं लोगो के कपडे सिलते हैं. रक्त के क्षेत्र मे नायक बनकर उभरे हैं. जब इनका अपना एक दोस्त खून न मिलने की वजह से दुनिया छोड गया तो इन्होने ये बात दिल से लगा ली और अपने छोटे से घर में, छोटा सा ब्लड काल सेंटर खोल लिया और  नेट वर्क तैयार किया और उसी के माध्यम से लोगो को खन उपलब्ध करवाने लगे  .

मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता जैसे महानगरों में इनकी अपनी रक्तदाताओं की सूची है और जैसे ही जरुरतमंद का फोन आता है रक्तदाता वहां हाजिर हो जाता है. अब इन्होने प्रशासन की मदद से रक्तदाता वाहिनी सेवा भी शुरु की है जो की खास तौर पर महिलाओ के लिए है. तो है ना ये मिसाल.

देश में ननद भाभी का झगडे अक्सर हम सुनते हैं पर भाभी की जान बचाने के लिए ननद ने किया रक्तदान भी एक मिसाल बन सकता है राजस्थान के बासवाडा के हमीरपुर गांव में ये मिसाल देखने को मिली जब गर्भवती भाभी की जान बचाने के लिए ननद ने रक्तदान किया.

शादी जैसे पावन दिन पर भी दुल्हे का रक्तदान करना युवाओ के लिए मिसाल बन सकती है. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर निवासी अमर सिह ने शादी वाले दिन कुछ हट कर करने की ठानी और शादी के दिन  कुछ मीठा हो जाए सोच कर शादी वाले दिन ही रक्तदान किया और  मिसाल कायम की.

युवा हीरो को बहुत फोलो करते हैं आमिर खान, अमिताभ बच्चन साहब या जान एब्राहिम आदि अगर इनकी फोटो या खबर दिखा कर उन्हें मोटिवेट किया जाए तो यकीनन सकारात्मक असर पडेगा.

विभिन्न धर्मों के लोग जब रक्तदान करते हैं तो प्रेरणा बन जाते हैं. श्वेताम्बर जैन साध्वी का रक्तदान करना अपने आप में एक मिसाल है.11901637_10203274005931532_876266951_o

युवा शक्ति को तरह तरह के इवेंट के माध्यम से भी प्रोत्साहित किया जा सकता है जिसमें एक है युवाओ को लेकर विशाल रक्त बूंद यानि ब्लड ड्राप बनाना  जैसाकि आईएसबीटीआई द्वारा किया गया विशाल आयोजन था.

 

drop blood

युवाओं को खास दिन पर रक्तदान के लिए प्रेरित किया जा सकता है जैसाकि होली, 15 अगस्त, कुछ लोग दिन खोजते है तो कई लोग कोई न कोई दिन खोज निकालते हैं रक्तदान करने के लिए अब जैसाकि आदिवासी दिवस शायद हमने कभी सुना भी नही होगा पर देखिए बढ चढ कर रक्तदान हुआ इस दिन भी…

एक अन्य मिसाल अपना खून नेगेटिव होते हुए सोच पोजेटिव रखी और नेगेटिव ब्लड ग्रुप की लिस्ट तैयार कर ली जोकि हरदम रक्तदान के लिए तैयार रहते हैं .. जज्बा हो तो ऐसा

negetive blood donor

जिन मरीजों को लगातार रक्त की जरुरत पडती है अगर वो ही अपना संदेश दें कि रक्तदान कितना अमूल्य है तो भी युवा प्रभावित हो सकते हैं. जैसाकि जम्मू में रहने वाले हीमोफीलिया से पीडित जगदीश कुमार जिन्हे अभी तक लगभग 200बार खूब चढ चुका है या थैलीसीमिया की मरीज संगीता वधवा ,मुम्बई में रहती है

अभी तक  800 बार खूब चढ चुका है और ना सिर्फ थैलीसीमिया पर काम कर रही है पर खुद भी जीने की इच्छा छोड चुकी  संगीता उन लोगो की कांऊसलिंग करती है जिन्होनें जिंदगी से हार मान ली है. संगीता आजकल थैलीसिमिया को खत्म करने के लिए Face , Fight और  Finish पर जबरदस्त काम कर रही है.

सोशल मीडिया पर  भी सोशल मीडिया के माध्यम से भी प्रेरित किया जा सकता है एक मेरी युवा जानकार थी. फेसबुक पर ज्यादा समय रहती थी पर कमेंट कम मिलते थे. बहुत मायूस थी और बातों बातों में उसने अपनी प्रोब्लम बताई.

मैने उससे पूछा कि  रक्तदान कराते हुए की फोटो डालो बहुत कमेंटस मिलेगें उसने बोला कि रक्तदान तो कभी किया नही तो मैने कहा कि कर के देख लो … दो दिन बाद जब मैने उसका प्रोफाईल देखा तो 100 लाईक्स थे और पचास से ज्यादा कमेंटस थे और तो और फैंड रिक्वेस्ट भी आनी शुरु हो गई थी. अब उसने ये अभियान नियमित करने की ठान ली है.

युवाओ को बैट्ररी का उदाहरण देकर भी समझाया जा सकता है कि जिस तरह मोबाईल की बैट्टरी डाऊन हो जाती है और हमे चार्ज करना पडता है ठीक वैसे ही इंसानो की बैट्री भी कभी कभी डाऊन हो जाती है और चार्जर रुपी खून से उसमे जान डालनी पडती है..

प्रधान मंत्री मोदी जी ने भी युवा शक्ति को रक्तदान के लिए प्रेरित किया और विश्व रक्तदाता दिवस पर टवीट किया कि रक्तदान समाज की बडी सेवा है आज हम रक्तदान के महत्व के बारे में अपने संकल्प को दोहराते हैं मेरे युवा मित्रों को इस सम्बंध में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए.

W H O जैसी बडी संस्थाए भी प्रेरणा बन सकती हैं जैसाकि हाल ही में विश्व रक्तदाता दिवस पर कैम्पेन लांच किया गया जिसका थीम था

( मेरे जीवन को बचाने के लिए धन्यवाद )Thank you for a saving my life.

thanks for saving my life

जो इस क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहे हैं उनकी सराहना होनी भी बहुत जरुरी है ताकि उनका मनोबल बना रहे. जैसाकि डाक्टर संगीता पाठक, डाक्टर रवनीत कौर, सोनू सिह, ब्लड  कनेक्ट की पूरी टीम, श्री राजेंद्र माहेश्वरी, श्री दीपक शुक्ला, श्री मंजुल पालीवाल जब मैने इनको रक्त की जरुरत के लिए फोन किया समझिए टेंशन खत्म हो गई और मरीज को नया जीवन मिल गया.

जनता को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए प्रेरित करते रहना चाहिए और यह डर निकाल देना चाहिए कि अकेले हम से नही हो पाएगा…. और फिर भी  हिम्मत हार जाए तो दशरथ मांझी को याद करिएगा जिन्होने अकेले अपने दम पर पूरा पहाड तोड  कर रास्ता बना लिया था. उनके किए कार्य की तुलना आज ताजमहल से हो रही है.

majhi

तो जैसे मैने आरम्भ मे ही कहा था वसधैव कुटुम्बकम सारी धरती एक परिवार है और हमे हमें अपने परिवार की रक्षा करनी है मिलजुल कर कदम बढाने होंगें और उनके लिए एक ही बात कहना चाहूंगी कि “

“मंजिल मिले या न मिले  ये तो अलग बात है

पर हम कोशिश भी न करें ये तो गलत बात है ”

जय रक्तदाता

मोनिका गुप्ता

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September 24, 2015 By Monica Gupta

रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व

रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व

रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व  – सबसे पहले मैं आप सभी से यह जानना चाहूगीं कि अपनी बात को दूसरो तक पहुचाने के कौन कौन से साधन होते हैं. फोन, मोबाईल , कम्प्यूटर, अखबार, टीवी…

जी बिल्कुल, और इसके साथ साथ एक और है और वो है किसी महिला को बता दें यानि tell a women    बात अपने आप दूर बहुत दूर तक चली जाएगी.

मोनिका गुप्ता

मोनिका गुप्ता

 रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व

डाक्टर इटेलिया ने मुझे महिला होने के नाते अपनी बात कहने का मौका दिया मैं उनका बहुत धन्यवाद करती हूं.

तो बात हो रही है महिलाओ की. आज हर क्षेत्र मे महिलाए आगे हैं. अगर रक्तदान की बात करें तो महिलाएं उसमे भी आगे हैं. बढ चढ कर आगे आती है पर जब होमोग्लोबिन चैक होता है तो नतीजा शून्य. अगर सौ महिलाए भी रक्तदान के लिए आती हैं तो मात्र 5 या 7 ही रक्तदान कर पाती हैं बाकि एनिमिक होती हैं. अक्सर रक्तदान कैम्प में यह देखने को मिल ही जाता है और अगर आकंडो की बात करे तो दुनिया भर में 818 मिलीयन महिलाएं एनीमिया की मरीज हैं और जिसमे से 520 बिलीयन एशिया की महिलाएं हैं.

अखबार में आए एक सर्वे से यह पता लगा है कि  देश की आधी महिलाए और 70% बच्चे एनीमिक है. उतर प्रदेश, बिहार, उडीसा, राजस्थान  और झारखंड  में तो हालत और भी ज्यादा खराब हैं.

ये एक कडवा सच है जिसे हमे स्वीकार करना ही पडेगा कि रक्तदान को लेकर जितनी जागरुकता आनी चाहिए वो नही आ पा रही है.

उफ!! महिलाए! बच्चे !!! कडवा सच !!!

वैसे कडवा सच पर एक प्रसंग भी याद आ रहा है. आप कहें तो मैं सुनाऊ. एक आदमी की पत्नी की मृत्यु हुई और उसने दूसरे शादी कर ली. उसका छ साल का एक बेटा था. शादी के कुछ समय बाद उसने अपने बेटे से पूछा कि नई मां कैसी लगी. इस पर बेटा बोला कि नई मां सच्ची है और पहले वाली मां झूठी. यह सुनकर पिता को हैरानी हुई. उन्होने जिज्ञासा वश पूछा कि वो कैसे तब बेटे ने बताया कि पहली वाली मां जब वो शरारत करता तो वो डाट्ती और गुस्से मे कहती कि खाना नही देगी. पर थोडी देर बाद गोद मे बैठा कर प्यार से पुचकार कर वो खाना खिलाती. नई मां भी उसकी शरारत पर यही कह्ती है गुस्सा होती है और कहती है कि वो खाना नही देगी और वो सच बोलती है वाकई में,  वो खाना नही देती आज दो दिन हो गए मुझे खाना नही दिया.

बच्चे ने सच बोलना पर उसे सुनना और निगलना मुश्किल हो गया है ना !!

तो बात हो रही थी कडवे सच की. सोचने की बात यह है कि ऐसा क्या करें!!! ऐसा क्या तरीका अपनाए कि लोग रक्तदान की महत्ता को समझे और ज्यादा से ज्यादा आगे आए.

ये भी नही है अखबारो मे आ गया कि देश की आधी महिलाए एनिमिक हैं तो यह सुन कर हम सब रक्तदान करने लगेगें या फिर कांफ्रेस या मींटिंग मे सुनेगें कि रक्तदान जरुरी है करना चाहिए इससे शरीर भी स्वस्थ रहता है तो हम सब रक्तदान करने लगेगें.

हां, पर एक बात जरुर हो सकती है कि अगर रक्तदान की अपील ऐसा व्यक्ति करे जिसे लगातार रक्त की आवश्यकता पडती रहती हैं या उनका कोई रिश्तेदार संदेश के माध्यम से अपनी बात कहे तो जरुर एक बदलाव आ सकता है. कुछ दिनो पहले नेट के माध्यम से मैने  कुछ मरीजो से बात की और उनके संदेश ब्लाग और सोशल नेट वर्किंग साईट पर डाला तो उनकी दिल से निकली बात का असर सीधा दिल पर हुआ और बहुत लोग उनका संदेश सुनकर रक्तदान के लिए तैयार हो गए. आप सुनना चाहेंग़ें.

पहला संदेश है संगीता वधवा का

35 साल की संगीता  मुम्बई में रहती हैं अपनी पढाई पूरी करके यह आजकल हशू अडवाणी मैमोरियल फांऊंडेशन हैल्थ एड केयर थैलीसिमिया सेंटर में PRO  और Counseller की भूमिका निभा रही हैं.संगीता थैलीसीमिया मेजर की मरीज हैं.

संगीता ने बताया कि जब वो 5 साल की हुई तब  समझ आना शुरु हुआ  कि कुछ समझ नही आ रहा कि यह हो क्या रहा है. संगीता की बहन भी मेजर की मरीज थी. उनके मम्मी पापा और भईया कभी एक अस्पताल तो कभी दूसरे अस्पताल खून के लिए भागते रहते. लोग आटा चीनी मांगने एक दूसरे के घर जाते है पर वो खून मांगने लोगो के घर जाते थे. एक समय ऐसा आया जब रिश्तेदार भी कतराने लगे कि कही खून के साथ साथ पैसा भी न मांग लें क्योकि खर्चा भी बहुत हो जाता था. जब दूसरे बच्चे पिकनिक पर जाते थे तब वो लोग ब्लड ट्रास्फ्यूजन के लिए होस्पीटल जाते. पढने की इच्छा होती तो लोग दबे स्वर मे पेरेंट्स को कहते कि क्या फायदा पढा के मर तो जाना ही है इन्हें … वो अक्सर पापा से पूछ्ती कि वो ही क्यो? तब पापा उसे समझाते कि वो भगवान के स्पेशल बच्चे हैं और भगवान हमारा टेस्ट ले रहा है. बिना धबराए उस टेस्ट मे हमें खरा उतरना है.

5 साल के बाद से और आज तक लगभग 700 बार खूब चढ चुका है. अगस्त 2010 में जब बडी बहन की डेथ हुई तब अचानक ऐसा महसूस होना शुरु हुआ कि सही जानकारी न होने के अभाव से उसकी डेथ हुई है. बस तब से एक जुनून एक आग सी दिल में भर गई कि कुछ भी हो जाए जनता को इसके बारे मे जागरुक करना ही करना है. एक संस्था बनाई FACE,  FIGHT ,  FINISH के नाम से.

आज वो संगीता जो जीने की इच्छा खो चुकी थी आज उन लोगों की काऊंसलिंग कर रही है जो जीने की इच्छा छोड चुके हैं.तो क्या हम भी एक पहल ………………………………….!!!! .

अगला संदेश है जम्मू निवासी जगदीश कुमार का.

50 वर्ष  के जगदीश कुमार जम्मू में रहते हैं. सीनियर लेक्च्चर हैं. हीमोफीलिया से पीडित जगदीश कुमार ने सन 94 में हीमोफीलिया सोसाईटी बनाई और उन्होने सैकेडो ऐसे मरीजो को गोद लिया हुआ है और उनकी देखभाल मे अपनी आधी तन्खाह खर्च करते हैं.

जगदीश कुमार ने बताया कि जब वो 9 साल के थे तब से उन्हे महसूस हुआ कि उनके शरीर के साथ कुछ न कुछ जरुर असामान्य है. 34 साल के होते होते उन्हें  अपनी बीमारी का पता चल गया. इसी बीमारी के चलते उन्हें अपने तीन बेहद करीबी  प्रियजनों को खोना पडा.

उनका कहना है

कि रक्त का कोई विकल्प नही. आज हम सब आपकी दया के मोहताज है. हमारे जीवन को चलाने के लिए आपके सहयोग की आवश्यकता है. अगर  आज वो संदेश भेज पा रहे हैं तो उसके पीछे वो 248 लोग हैं जिनका खून इनकी रगो मे दौड रहा है. यू तो वर्ष चलते चलते रुक जाते हैं आपका खून मिले तो दौड लगाते हैं. कुदरत की देन कहे या कोई करिश्मा. बस आपके सहयोग से जीवन चला रहे हैं. अब आपको स्वैच्छिक रक्तदान की महत्ता  समझनी होगी ताकि हम जैसे अनेको घरों के चिराग बुझने से बच जाए. दिल से निकली बात सीधा दिल पर ही लगती है. इसलिए जीवन मृत्यु के बीच मे झूलते ऐसे मरीज एक उदाहारण बन सकतेहैं.

इसके अतिरिक्त On line Competition भी करवा सकते हैं किसी तारीख विशेष पर यह प्रतियोगिता करवा कर जनता का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है.Colourful posters बना कर भी आकर्षित किया जा सकता है.

अपना या अपनी संस्था का अच्छा सा प्रोफाईल बना कर भी लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है. ताकि जनता को लगे कि सही मायनो मे कौन किस तरह से और कितना काम कर रहा है और अगर वो भी इस कार्य का हिस्सा बनना चाहे तो बन सकें. उसमे अपनी उपलब्धियां और विस्तार से जानकारी होनी चाहिए.

एक ऐसी ही जानकारी को मैने भी कम्पाईल किया है. आईएसबीटीआई के स्वर्णिम 40 साल एक झलक.

जनता मे रक्तदान को लेकर भ्रांतियां बहुत हैं. डाक्टर आदि के साथ रुबरु वार्ता करवा कर या उन्हे ब्ल्ड बैंक का दौरा करवा कर उनकी भ्रांतियां दूर की जा सकती है.  उपहार स्वरुप कुछ रक्तदान से जुडी समृति चिन्ह दें ताकि वो उसे हमेशा याद रखें.

दसवीं, बारहवीं के तथा कालिजो के छात्रो के बीच मे विभिन्न प्रतियोगिताए जैसे स्लोगन, निबंध या क्विज आदि करवा कर बच्चो को रक्तदान के प्रति आरम्भ से ही जागरुक किया जा सकता है.

होली इत्यादि पर रक्तदान करके लोगो का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है.

अखबार में  अच्छे कलरफुल लेखों के माध्यम से जागरुक किया जा सकता है और रक्तदान से सम्बंधित कार्टून बना कर भी लोगो मे जागरुकता लाई जा सकती है.

किसी की प्रशंसा करके भी उसे प्रोत्साहित किया जा सकता है. जैसाकि ट्रांस्कान 2013 की इतनी खूबसूरत साईट बनाई है. इतनी मेहनत की गई है. वाकई मे पूरी टीम बधाई की पात्र है. किसी को उत्साहित करके भी हम  …. !!!

जागरुक करने के लिए कोई ईवेंट कर सकते हैं , कुछ हट कर कर दिखा सकते हैं ताकि जनता के मन मे जिज्ञासा बनी रहे. जैसाकि पिछ्ले साल अखिल भारतीय तेरापंथी युवक परिषद ने रक्तदान कैम्प लगाया था.जो कि अपने आप में ही एक रिकार्ड है.

आईएसबीटीआई ने 12 अगस्त को एक विशाल ब्लड ड्राप बना कर एक कीर्तिमान कायम किया. आईएसबीटीआई सोच मे था कि कुछ नया कुछ हट कर किया जाए तभी उनकी मुलाकात ब्लड कनेक्ट एनजीओ से हुई. इसे आईआईटी दिल्ली के छात्रोने शुरु किया था. उन्होने सुझाया कि एक विशाल ब्लड् ड्राप बनाते हैं  जिसमें युवाओ को खडा करेगे. इससे पहले यह वर्ड रिकार्ड साउथ कोरिया के नाम था. जिसमे 3000 लोग खडे थे. बस तब से संस्था  इस ईवेंट मे जुट गई और यह सफल रहा. लाल कैप और लाल टीशर्ट पहने हरियाणा के कुरुक्षेत्र की ऐतिहासिक धरती पर इस विशाल ड्राप मे 3069 युवा खडे हुए जिन्होने या  तो रक्तदान किया था या फिर रक्तदान प्रेरक के रुप मे काम कर रहे हैं.

अच्छा तो तब लगा जब यह ईवेंट खत्म हुआ और बाद मे भी बहुत लोग आ आकर पूछ्ने लगे कि रक्तदान कैम्प कहां लगेगा हम भी रक्त दान करके विशाल ड्राप का हिस्सा बनना चाह्ते हैं.

कोई शक नही कि आज हमारे सामने सोशल नेट वर्किंग का विशाल क्षेत्र खुला पडा है. फेसबुक, ब्लाग, ट्वीटर , गूगल प्लस वेब साईट ना जाने कितने आपशन है पर जरुरी है कि उसका इस्तेमाल कैसे किया जाए और उससे भी ज्यादा जरुरी है कि अपने भीतर की आग को, कुछ करने के जज्बे को जगाया जाए. खुद को उत्साहित किया जाए.

क्योकि ….

जीत की खातिर जनून चाहिए / जिसमे उबाल हो ऐसा खून चाहिए/ ये आसमां भी आएगा जमी पर / बस इरादों मे जीत की गूंज चाहिए!!!

धन्यवाद

जय रक्तदाता

मोनिका गुप्ता

(ये मेरी पीपीटी के अंश हैं जोकि सूरत ट्रांस्कान 2013 में बोली गई)

रक्तदान सोशल मीडिया और हमारे दायित्व  कैसी लगी?? जरुर बताईगा !!

 

 

 

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