माँ
सुखद अहसास है माँ
जिसमे रुई की सी कोमलता
शहद की सी मिठास
तेल की धार जैसा सतत बहता प्यार
लेकिन एक दिन
अचानक
मायने बदल गए
शादी के बाद
माँ के माँजी होते ही वो सुखद अहसास हवा हो गए
क्योकि उस “जी” मे छिपी थी
कठोरता, कडकपन और पराएपन की सी अनबुझी दीवार
यौवन पर था ईर्ष्र्या का ज्वार भाटा
वक्त बेवक्त कुछ तलाशती पैनी निगाहें
दिल मे मचा रही थी अजीब हलचल,
ऐसा क्यू होता है
सच
“जी” लगाते ही आखिर क्यो बदल जाते हैं मायने
क्यो खत्म हो जाता है अपनापन
मानो “ज़ी” की खडी हो गई हो इक दीवार
जिसमे ना कोई खिडकी ना ही रोशन दान
है तो बस घुटन ही घुटन
काश
हमेशा के लिए हट जाए “जी”
माँ माँ ही बनी रहे
“ज़ी” को जमीन निगल जाए
और माँ बरसात की पहली फुहार जैसे
सौंधी सौंधी महक लिए
तन मन को महका जाए
बस , माँ के दोनो ही रुप
अथाह स्नेह सागर बरसाए
क्योकि सुखद अहसास है माँ
आपको कविता कैसी लगी ?? जरुर बताईएगा !!