प्रसन्न हुए भगवान
गाँव में साधु बाबा पधारे हुए थे। उन्होंने गाँव वालों के मन में यह बात ड़ाल दी थी कि मुझे भगवान ने भेजा है। वह तुम सभी से नाराज है। इसका प्रमाण भी दिखाया कि जब वह पूजा के लिए कच्चा दूध रखतें हैं तो वह स्वयं उबलने लगता है।भोले-भाले गाँव वाले उनकी बातों में आ गए। बाबा की तो चांदी हो गर्इ। वह दोनों हाथों से धन लेने लगे बहुत से लोग बाबा की सेवा भी करने लगे किसलिए? अरे भार्इ। भगवान का गुस्सा कम करने के लिए दान, दक्षिणा और सेवा का काम जरूरी था।
समय बीतता रहा। लेकिन हर रोज कच्चे दूध में उबाल आता रहा और बाबा कहते भगवान अब भी नाराज है, दान बढ़ाओ। बहुत दिन बीते बाबा वहाँ से जाने की सोचने लगे कि रूपया खूब इक्ठ्ठा हो गया अब खिसका जाए बहुत बुद्धु बना लिया यहाँ के लोगों को।
एक दिन बाबा के यहाँ झाड़ू-बुहारी करने वाले चंदू ने सफार्इ के दौरान एक थैले में ढ़ेर सारा चूना देखा। उस नासमझ ने सोचा शायद कोर्इ गलती से यहाँ रख गया होगा। भला चूने की डलियां बाबा के किस काम की। यह सोच कर वह दीवारों पर पुतार्इ करने के लिए उसने तुरन्त वो चूना भिगो दिया। पर यह क्या ? पानी में से तो बुलबुले उठने लगे। पहले तो उसने सोचा कि वह भगवान की ही नाराजगी है पर बाद में उसने सोचा कि चूना गरम होता है बुलबुले या भाप तो उठेगी ही।
अब चन्दू को बाबा की पोल समझ आ रही थी। वह समझ गया था कि चूना, बाबा ने अपनी कुटिया में क्यों रखा ? उसने असल में कुछ चीजें ताप या उष्मा क्रियाए करती है। कुछ उष्मा शोषी होती हैं। जिस कारण पानी के संयोग से ठंडी हो जाती हैं। जबकि पानी के संयोग से ठंडी हो जाती हैं। जबकि चूना उष्माक्षेपी है वह पानी के संयोग कर उष्मा देता है। चूने की डलिया पानी में डालने पर भाप निकलना इसका उदाहरण है। अब रही बात दूध उबलने की तो उस दूध में उपसिथत पानी से कि्रया कर उष्मा निकालता है और दूध उबलता हुआ प्रतीत होता है।
हर शाम की तरह इस शाम को भी बाबा की कुटिया के आगे भारी भीड़ जमा होने लगी यह जानने के लिए कि भगवान अभी प्रसन्न हुए या नाराज ही चल रहे हैं। पूजा का समय हो चला था, बाबा ने पूरी कुटिया छान मारी पर उन्हें कही चूना ही नहीं मिल रहा था। उन्होंने सोचा कि आज मैं गांव वालों को कच्चे दूध से ही पूजा करवा देता हूँ, कह दूँगा भगवान खुश हो गए और मैं यहाँ से किसी दूसरे गाँव चला जाऊँगा। पर लालच का क्या करते ? बाबा ने सोचा यहाँ तो इतना पैसा, सोना, चांदी मिल रहा है। दूसरे गाँव में मिले ना मिले। वह सोच ही रहे थे तभी उन्हें बाहर से कुछ आवाजें आती सुनार्इ दी। वो बाहर आए तो चंदू लोगों को कुछ बताकर पूजा करवा रहा था। उसने गाँव वालों को बतालाया कि किस तरह बाबा हमारी आंखों में धूल झोंक कर कच्चे पानी मिले दूध में चूने की ड़लियां ड़ालते रहे। और हमें यह कुछ ही देर में उबलता हुआ दिखने लगता।
पोल खुल चुकी थी। चारों तरफ से बाबा घिर चुके थे। मरता क्या न करता उन्होंने अपनी गलती मान ली और मुझे पुलिस के हवाले ना किया जाए यह हाथ जोड़कर निवेदन करने लगे। गाँव वालों को दया आ गर्इ।
गाँव वालों ने सारा पैसा, सोना, चाँदी, जवाहरात लौटा देने पर बाबाा को माफी दे दी और उसे गाँव से निकाल दिया गया। आखिर कुछ गलती तो उनकी भी थी। इस तरह अंधविश्वास में जीना भी तो गलत है।