हिन्दू मुस्लिम एकता पर कबूतर ने दी सीख – एक प्रेरक कहानी – Hindu Muslim ekta pe kabootar ki sikh – पशु और पक्षी हमारे मित्र हैं और पशु पक्षियों का हमारे जीवन में महत्व वाकई न सिर्फ हमारा मन बहलाते हैं बल्कि हमे शिक्षा भी दे जाते हैं और कबूतर पर तो मैने बहुत की प्रेरक कहानी भी पढी थी …
हिन्दू मुस्लिम एकता पर कबूतर ने दी सीख- एक प्रेरक कहानी
कुछ समय पहले मैं अपनी सहेली मणि के घर गई थी … वहां उसके एसी के बाहर लगे आउटडोर यूनिट पर एक कबूतर अपने परिवार के साथ रह रहा था … हर रोज कभी वहां तिनके पडे होते कभी बीट की होती और एक बार तो उसका धौंसला ही गिर गया था जिस का अंडा भी टूट गया था सारा दिन गुटर गू से बहुत परेशान हो रही थी …
हिन्दू मुस्लिम एकता पर कबूतर ने दी सीख – एक प्रेरक कहानी
पर भगाना भी नही चाह रही थी अक्सर पानी का भरा दोना किनारे पर रख देती … बहुत दिनों बाद जब घर गई तो अजीब सी शांति थी बोली एक छोटा सा बच्चा हुआ था जब उसने उडना सीखा तो वो उड गया और फिर कबूतर भी कही चले गए …
एक प्रेरक कहानी
कहानी कुछ ऐसे है कि एक मंदिर पर बहुत सारे कबूतर रहते हैं एक बार मंदिर का रिपेयर का काम चलता है तो सारे कबूतर उड कर सामने वाली मस्जिद पर चले जाते हैं … कुछ दिन वो वहां रहते हैं और देखते हैं कि मस्जिद में भी काम शुरु हो रहा है तो वो उड कर चर्च की छ्त पर अपना डेरा जमा लेते हैं …
तभी कुछ समय बाद देखते हैं जहां पहले रहते थे यानि मंदिर में वो काम पूरा हो गया और वो वापिस वहां अपने पुराने ठिकाने पर आ जाते हैं … तभी कुछ कबूतरो का ध्यान कुछ लोगो पर जाता है जोकि लड रहे होते हैं ….
एक बच्चे कबूतर ने अपनी माँ से पूछा, “ये लोग कौन हैं?”
माँ ने उत्तर दिया, “ये सब मनुष्य हैं.” बच्चे ने पूछा, “पर ये सब आपस में झगड़ क्यों रहे हैं?
माँ ने बताया, “मंदिर जाने वाले मनुष्यों को ‘हिन्दू’ कहते हैं चर्च जाने वाले मनुष्यों को ‘ईसाई’ कहते हैं और मस्जिद जाने वाले मनुष्यों को ‘मुस्लिम’ कहते हैं.”
बच्चे कबूतर ने पूछा, “ऐसा क्यों … जब हम मंदिर पर रहते थे हम कबूतर कहलाते थे, जब हम चर्च में थे हम कबूतर कहलाते और जब हम मस्जिद में थे तब भी हम कबूतर कहलाते . इसी प्रकार वे जहाँ भी जाएँ उन्हें केवल ‘मनुष्य’ के नाम से ही पुकारा जाना चाहिए.”
कहानी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर गई … हम सब सर्वप्रथम मनुष्य हैं और एक समान हैं. आइए एक दूसरे का आदर करें और एक शांत , स्नेह से संसार में एकजुट होकर रहें.
परिंदो का कोई मजहब नहीं होता, वह कभी मंदिर पर तो कभी मस्जिद पर जा बैठते हैं
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