Learn from the Life of Lord Krishna – भगवान कृष्ण के जीवन से सीखें – अच्छी बातें – What lesson do we learn from lord Krishna कृष्ण भगवान जी भगवान विष्णु के अवतार थे. वैसे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जब धरती पर पाप बहुत बढ गए थे तब भगवान विष्णु ने.. धरा को पापियों से मुक्त करवाने के लिए कृष्ण रुप में अवतार लिया.. भादो महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माता देवकी और वसुदेव के यहां जेल में आधी रात को जन्म लिया.
इस दिन फूलो की होली खेली जाती है.. दही हांडी खेल खेला जाता है.. झाकियां निकलती हैं.. मंदिर सजाए जाते हैं नटखट बाल गोपाल को झूला झुलाया जाता है और रास लीला की जाती है..
मेरी एक जानकार का दिल्ली से फोन आया कि उनके बेटे के कॉलिज में जन्माष्टमी पर प्रोग्राम है और कुछ बोलना है कृष्ण जी के बारे में.. पर कहानी भी नही चाहिए क्योकि बहुत दोस्त इस बारे मे सुना रहे है.. कुछ अलग पर बहुत प्रेरक.. मैंनें उसे बोला कि शाम तक कुछ सोच कर बताती हूं.. और सोचने लगी कि क्या हो सकता है… मैंनें कृष्ण भगवान जी की फोटो खोल ली और उसे ध्यान से देखने लगी… फोटो बहुत ही खूबसूरत थी… उनके चेहरे पर हल्की सी स्माईल थी.. जिसे देख कर कर मुझे भी स्माईल आ गई.. एक फोटो सुदामा के साथ थी एक फोटो में वो गाय चरा रहे हैं.. एक फोटो में वो राक्षसी से लड रहे हैं.. उन्हें देखते देखते मुझे लगा कि भगवान जी से हम जमाष्टमी के शुभ अवसर पर कुछ सीख ले सकते हैं.. जो बातें मैंने उन्हें नोट करवाई वही आपसे भी शेयर कर रही हूं कि भगवान कृष्ण से हम क्या सीख ले सकते हैं
क्या क्या शिक्षा ले सकते हैं हम सभी भगवान जी से.. सबसे पहले तो वही
1 मुस्कुराहट
भगवान कृष्ण के चेहरे पर हमेशा स्माईल रहती थी.. चाहे कितनी भी प्रोब्लम आ जाए.. मुस्कुराते हुए सामना किया.. ये हम सभी ने सीरियल्स में या मूवी में देखा ही है.. ये सीख लेनी चाहिए. आज के समय में ये कही गायब हो गई है… ये रहनी चाहिए
शान्त स्वभाव रखना
बेशक, कृष्ण बचपन में बहुत शरारती थे फिर भी वह बेहद शान्त स्वभाव के थे. जेल में जन्म हुआ.. बचपन गोकुल में बीता. कंस मामा मारने को हमेशा तत्पर रहे और वही राक्षस राक्षस मारने का षडयंत्र रचते रहे… पर फिर भी कभी माथे पर बल नही आए.. शांत स्वभाव रखा.. और समय आने पर कंस के हर प्रहार का मुंह तोड़ दिया
दयालु स्वभाव.. केयरिंग नेचर
सभी को एक समान रुप से देखते और सभी की मदद करने को तत्पर रहते.. गोकुल में रहते हुए पशु पक्षियों से भी बहुत प्रेम हो गया था.
साधारण जीवन जीना
भगवान श्रीकृष्ण एक अच्छे बड़े घराने से संबंध रखते थे फिर भी वे गोकुल के अन्य बालको की तरह ही रहते, घूमते और खेलते रहते थे। गाय चराने जाना तो उन्हें बेहद प्रिय था.. उनकी नजरों में सब एक समान थे.. कोई छोटा बडा नही था.. उन्होंने कभी भी किसी में कोई अंतर नहीं रखा। उनमें राज घराने का कोई घमंड नही आया हमेशा उनके चहेरे पर सरल भाव रखते थे। बचपन भले ही गोकुल में बीता पर जब सच्चाई पता चली और वो मथुरा चले गए पर वहां भी घंमड नही किया.. प्रजा का हाल चाल जानते और उन्हीं के साथ मिलजुल कर रहते..
माता-पिता के प्रति सेवा भाव
बेशक, जन्म देवकी ने दिया पर लालन पालन यशोदा ने किया. पता लगने के बाद उनके मन में जरा सा भी फर्क नही आया.. और दोनो माता पिता को बराबर का आदर मान दिया.. को बराबरी का स्थान दिया. उन्हें पूरी इज्जत और मान दिया.
भाई के लिए कृष्ण का प्यार
बेशक अपने भाई बलराम से कहीं ज्यादा बलशाली थे और बुदिमान थे। परंतु फिर भी उन्होंने कभी खुद को अपने बडे भाई बलराम से श्रेष्ठ नहीं समझा। बचपन में कृष्ण और बलराम दोनों ने कई कठिनाइयों का सामना किया। इसी कारण दोनों एक दूसरे की क्षमताओं को बहुत अच्छे से जानते थे। कृष्ण अपने बडे भाई का बहुत आदर करते थे।
जिस भी रिश्तें में रहे ईमानदारी से निभाया
भगवान श्री कृष्ण सुदामा की दोस्ती को कौन नही जानता.. आज भी लोग उनकी दोस्ती की कसमें खाते है। सुदामा, कृष्ण के बचपन के मित्र थे। वह बहुत ही गरीब व्यक्ति थे, लेकिन कृष्ण ने अपनी दोस्ती के बीच कभी धन व हैसियत को नहीं आने दिया
वे अर्जुन के भी बहुत अच्छे मित्र थे न सिर्फ युद्द में अर्जुन के रथ का सारथी की भूमिका निभाई.. बल्कि मुश्किल परिस्थिति में, वक्त में पांडवो का साथ भी दिया
और द्रौपदी के भी बहुत अच्छे सखा थे।.. चीरहरण के समय उन्होनें ही आगे बढ कर उनकी लाज बचाई
चाहे वो राधा के प्रति प्रेम हो या गुरू के लिए प्रति प्यार
भगवान विष्णु का अवतार रूप होने के बावजूद भी कृष्ण जी के मन में अपने गुरुओं के लिए बहुत सम्मान था.. जिस साधु संत से में मिले सम्मान दिया..
धरती के प्रति प्रेम
धरती पर बढते अन्याय को समाप्त करने के लिए उन्होनें धरती पर अवतार लिया था। इससे स्पष्ट है, कि वे धरती मां से कितना प्यार करते थे। महाभारत का युद्ध ना हो इसके लिए उन्होंने पांडवों की मांग को दुर्योधन के सामने रखा था। श्री कृष्ण से हमें भी सीखने को मिलता है, यह धरती हमारी मां हैं और हमें इसकी रक्षा के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
अपने शौक से हमेशा प्यार किया.. अहमियत दी
बचपन में चाहे गाय चराते थे या बडे होकर जब द्वारिकाधीश बने फिर भी बांसुरी से मोह नही छोडा. बांसुरी हमेशा उनके साथ ही रहती…
कर्तव्य को निभाया.. जब पता चला कि वो कौन है तो उन्हें मथुरा जाना पडा.. गोकुल का सब कुछ त्याग कर वो मथुरा चले गए.. क्योकि वहां उन्हें अपने कर्तव्य को निभाना था.. उनकी अब प्राथमिकता यही थी..
कभी हार न मानना संदेश
भगवान श्रीकृष्ण ने कभी भी हार न मनाने का संदेश दिया था। व्यर्थ की चिंता नही करनी चाहिए.. .. अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए, भले ही परिणाम हमारे पक्ष में क्यों न हो बजाय हार की वजहों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए. समस्याओं का सामना करें. एक बार डर को पार कर लिया तो फिर जीत आपके कदमों में होगी.
हर चीज हद में अच्छी लगती है पर तुम बेहद अच्छे लगते हो.. कान्हा जी…
तो आप सभी को भी जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई..
तुलसी इस संसार में सबसे मिलिए धाय ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाए।।
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