Public Speaking
कुछ समय पहले रक्तदान पर एक सेमिनार मे जाना हुआ. असल में, वहां मेरा भी lecture था. स्वाभाविक है कुछ पेट में butterflies, टेंशन और धबराहट थी. मुझे lunch के बाद का समय मिला था. इसलिए लंच का मन ही नही किया. लंच टाईम में मैं उसी कक्ष में आ गई जहां मुझे बोलना था.
दो बजे और लगभग कक्ष पूरा भर गया. मेरा नम्बर सात वक्ताओं के बाद का था और सभी को दस दस मिनट मिले. वक्ता एक एक करके बोले जा रहे थे और यकीन मानिए इक्का दुक्का को छोड कर बस बोले जा रहे थे. उन्हें दर्शकों से कोई लेना देना नही था. इतना ही नही मेरे साथ बैठी महिला के खर्राटे मैं आराम से सुन पा रही थी. कोई मोबाईल पर लगा था तो कोई टेक लगा कर आराम से AC hall मे उंघ रहा था शायद सभी को दिन में भोजन के बाद सोने की आदत होगी. मैं सोच रही थी कि मेरी मेहनत तो बेकार ही जाएगी जब कोई सुनने वाला ही न हो … हां सुनने वाले तीन लोग तो जरुर थे पहली जो स्टेज पर आने का निमंत्रण दे रहीं थीं. दूसरे जो स्टेज पर थे और तीसरे जो certificate या मोमेंटो आदि देने की तैयारी कर रहे थे. वक्ता के बोलने के बाद ताली भी ऐसे बजा रहे थे खुद की ताली की आवाज अपने ही कानों को न सुनाई दे. बस एक्शन ही था ताली का.
…. और मेरा नम्बर भी आ गया. मेरे साथ बैठी खर्राटे लेती महिला भी उठ चुकी थी और उनकी नजरे दरवाजे की तरफ थी कि कब चाय आए और वो फ्रेश हो जाए. खैर. मैने स्टेज पर जाकर अभिवादन किया और पूछा कि स्टेज पर यहां खडे होकर वक्ता को एक बात से बहुत डर लगता है. क्या आप बता सकते हैं? दर्शक थोडे उत्सुक हो गए . किसी ने कहा कि भूलने का डर तो किसी ने कहा अपना पेपर ही न लाए हो अलग अलग आवाजे आ रही थी पर मैं सभी की बाते बेहद विश्वास से मना करती जा रही थी फिर मैने कहा डर इस बात का लगता है कि सामने सीट पर बैठे लोग सो न रहे हो…लंच टाईम से पहले तो लोग लंच की इंतजार में जागते हैं पर लंच के बाद हालत गम्भीर हो जाती है और एक आध झपकी … !! ठहाके से कक्ष गूंज उठा. मैने विनती की कि प्लीज आप मत सोईएगा क्योकि आपको सोता देख मुझे भी नींद आ गई तो … !!! खैर, मैं अपना lecture शुरु कर चुकी थी और दस बारह मिनट बाद में समाप्त करके वापिस अपनी सीट पर जा रही थी. बेशक, बाद में बहुत लोग मिले. Visiting cards भी दिए. तारीफ भी की और अन्य सेमिनार के निमंत्रण भी मिले पर सोचने की बात ये है कि हम वक्ता के रुप में क्या बोले कि दर्शक बिना सोए और आराम से सुने. वैसे नेताओ को तो हम समय समय पर सुनते ही रहते है. कुछ पढ कर बोलते है कुछ बिना पढे बोलते है बिना पढ कर बोलने वालो को दर्शक ज्यादा पसंद करते हैं. विभिन्न सेमिनार में मेरा जो बोलने का अनुभव रहा है उसी के आधार पर मैं कुछ बातें शेयर करना चाह्ती हूं.
Public Speaking
कुछ लोग तो बहुत बोलते हैं बस माईक मिला नही कि आधा आधा घंटा बस बोलते रहते बोलते रहते हैं … ये भी ठीक नही. कम बोलिए और काम का बोलिए.
बेशक speaker को बोलने से पहले थोडा डर रहता है और होना भी चाहिए. कई बार अति आत्मविश्वास भी ठीक नही होता. बस मन ही मन खुद को तैयार करना है और लम्बे गहरे सांस लेने हैं और अगर पानी की आवश्यकता हो तो जरुर पी लें ताकि गला न सूखे और हो सके तो पानी की छोटी वाली बोतल पर अपने पास रख लें.
इस बात को भी मन मे बैठा लें कि जो सामने बैठे हैं ये भी सभी वक्ता हैं और आपकी तरह ही है अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
आरम्भ में आप दर्शकों को अपना कोई उदारण दे कर बताएगें कि मेरे सामने बहुत माननीय लोग बैठे हैं अगर बोलने में हकला जाउं घबरा जाऊ या कोई गलती हो जाए तो क्षमा कीजिएगा तो इससे आप भी रिलेक्स हो जाएगें और दर्शक भी आराम से आपकी बात सुनेंगें.
अगर बोलते वक्त आप कोई PPT यानि Power Point Presentation दे रहे हैं तो और और भी अच्छा है आपका ध्यान स्क्रीन और लोगो की तरफ बराबर रहेगा और भूलने वाला कोई सीन ही नही होगा क्योकि आप अगली स्लाईड करके आराम से देख सकते हैं और इसी बीच बोलने में एक ठहराव भी ला सकते हैं जोकि जरुरी भी है.
कई बार वक्ता हाथ बहुत हिलाते हैं हाथों के हाव भाव होने चाहिए पर बहुत ज्यादा हाथ हिलाना कई बार मजाक का कारण बन जाता है. कई बार वक्ता बस पेपर रीडिंग ही करते रह जाते हैं जोकि बिल्कुल भी सही नही है ऐसे में तो दर्शको का सोना या उंघना पक्का होता है या फिर समय अवधि बहुत ज्यादा हो तो भी दर्शकों को नींद आ जाती है.
एक बार मंच संचालन के दौरान मैने देखा कि बहुत लोग सुस्त हो रहे हैं जी हां सही पहचाना वो भी लंच के बाद का सैशन था. एक व्यक्ति बार बार घडी देख रहा था. जैसे बहुत बोर हो रहा हो और दूसरा अपनी घडी हिला हिला कर देख रहा था. मेरे पूछ्ने पर उसने बताया कि वो ये देख रहा कि घडी रुक तो नही गई. चल तो रही है ना … !!! इस पर लोग थोडा हंस भी दिए और प्रोग्राम मे थोडी जान भी आ गई. कई बार छोटी छोटी बाते पूछ कर मनोरंजन करते रहना चाहिए. चाहे चुटकुला हो या प्रेरक प्रसंग या अपना कोई उदाहरण. पर सार्थक होना चाहिए यानि बातों बातो से ही निकलना चाहिए. जैसाकि इस बात पर मुझे एक बात याद आई … !!!
एक मुख्य बात यह भी की मुस्कान जरुर रखनी चाहिए. ना बहुत ज्यादा न बहुत कम. इससे दर्शकों को अच्छा लगता है. रोता मुंह या उदास मुंह कोई पसंद नही करता.
बातें और और भी बहुत है पर अगर ये लेख लंबा हो गया और आपको नींद आ गई तो तो तो … इसलिए अभी के लिए इतना ही… बाय बाय !
वैसे जाते जाते एक जरुरी टिप्स … रात को अच्छी नींद लीजिएगा ताकि अगले दिन अच्छी तरह से बोल पाए…
वैसे अगर कुछ टिप्स आपके पास भी हो leadership Speaking की तो जरुर दीजिए आपका स्वागत है … Public Speaking skills ,Public Speaking tips , Public Speaking course हो या आपका अपना अनुभव आपका स्वागत है …