Raising a Son and a Daughter – Differences between Raising a Son and a Daughter – Gender Inequality in India – Monica Gupta – Differences between Raising a Son and a Daughter – A lot of writers are writing more about something we have noticed in raising a son and a daughter… sexism hurts everyone. कल एक जानकार के घर गई हुई थी. उनकी बेटी 5 क्लास में है वो वही बैठी होमवर्क कर रही थी.. और बेटा 8 क्लास में है वो वही बैठा हमारी बातें सुन रहा था…
Raising a Son and a Daughter – Differences between Raising a Son and a Daughter – Gender Inequality in India
उसने अपनी बेटी को दो बार आवाज देकर बोला मीनू पानी ले आओ आंटी के लिए… उसी बीच में उनका बेटा भी बोला हां , मेरे लिए भी पानी ले आना… मेरी जानकार भी हंसने लगी कि अपने पापा जैसा हुक्म चलाता है… वो पढाई में जुटी हुई थी.. वो जैसे ही उठने को हुई मैंने मना किया कि नही चाहिए आप पढो, पर मेरा ध्यान इस बात पर था कि बजाय अपने बेटे को पानी लाने के लिए कहने के वो उसे स्पोर्ट कर रही हैं…
हम अकसर कहते तो हैं कि दूसरे बच्चों से तुलना नही करनी चाहिए पर ये अंतर या भेदभाव जो हम कर रहे हैं उसका क्या…
बच्चों की परवरिश में बचपन से ही माता पिता को इस बात का ख्याल रखना बहुत जरुरी होना चाहिए… वैसे कई बार अगर पिता अपनी बेटी को बोल्ड बनाने की कोशिश करते हैं मम्मी ही टोक देती हैं कि क्या कर रहे हो लडकी है… तो इस चीज से बाहर निकल ही होगा.. या फिर अगर मम्मी पापा दोनों बेटा बेटी में फर्क नही करते तो कई बार घर के बडे बुजुर्ग लडकी का वास्ता देकर चुप करवा देते हैं.. सोच बदलनी होगी.. male dominate सोसाईटी की सोच से बाहर निकलना होगा…
बचपन से ही अगर ये भेद भाव हम उनके मन में डाल देंगें तो बडे होते होते तो उनकी सोच वैसी ही हो जाएगी. बडे होकर एक बहुत बडी दीवार बन जाएगी..
मैं कुछ उदाहरण बताती हूं जो आमतौर पर देखने में आते हैं..
एक तो यही कि घर के काम बेटे से करवाने में शर्म लगती है… जबकि ये सोच सही नही है
बेटी होने पर नजरें झुक जाती है.. और जहां दो या तीन बेटिया हो जाएं तो खुद को ही कोसने लगती हैं.. ये तभी हुआ है जब हम भेदभाव करते है.. अभी दो दिन पहले ही खबर देखी कि 6 महीने की बच्ची सडक पर पडी मिली. और ये भेदभाव ही वजह है.. और ये खबरें आम है..
बेटे को स्कूटर , कार सीखा देंगे बेटी को नही सीखाएंगे कि इसने कौन सा बाहर जाना है..
अकसर बेटे के लिए बोलेंगें ये है मेरा शेर बेटा… और बेटी ने कितना भी बहादुरी का काम क्यो न किया हो उसे शेर बच्चा नही बोलेगें… वो गुडिया ही है… और फिर बेटा बहुत चुटकी लेता है कि दीदी तो छुई मुई है… दीदी से कुछ नही हो सकता…
स्कूल की पिकनिक होगी तो भी बेटे को तुरंत पैसे निकाल कर दे देंगें और बेटी को साफ मना कर देंगें कि नही जाना…
बेटा किसी बात पर रोएगा तो झट से बोल देंगें क्या लडकी ही तरह रो रहे हो… जब हम खुद ही कमजोर बना कर रखेंगें तो लडकी को बोल्ड कैसे बनाएंगें..
बेटी को पढाई तो करवा देंगें पर जब नौकरी की बात आएगी तो नही … नौकरी नही करनी बस घर के काम सीख…
20 22 की होते ही बोझ समझने लगते हैं… बस कैसे भी करके विदा करो लोग क्या कहेंगें… पता नही क्या कमी है कि शादी नही हो रही…
अगर घर में बेटा एक बेटी है या बेटियां ही हैं उन्हें बचपन से ही बोल्ड बनाना चाहिए… लिंग भेद नही करना चाहिए.. दोनो को समान रुप से प्यार और समान अधिकार देने चाहिए ये तभी होगा जब माता पिता अंतर नही करना सीखाएगें.. समान समझेंगें … !! तभी हमारा समाज एक अच्छा समाज बनेगा… शुरुआत अपने घर से करनी होगी…
Raising a Son and a Daughter – Differences between Raising a Son and a Daughter – Gender Inequality in India – Monica Gupta –
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