छोटी बाल कहानी – मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी – बच्चों की सोच होती है मम्मी बनना बहुत आसान है … मम्मी को काम ही क्या होता है सारा दिन टीवी देखना, तैयार होना और बच्चों को डांटना … बस … मम्मी बनना बहुत आसान है … पर क्या वाकई … !! बहुत समय पहले मैने एक कहानी लिखी थी एक लडकी की सोच होती है कि मम्मी बनना बहुत आसान है पर कहानी के अंत में कह उठती है कि मुझे नही बनना मम्मी वम्मी…
छोटी बाल कहानी – मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी
मैं हूं मणि। मैं अभी-अभी रूपा और कुणाल के घर से अपने भाई के साथ लौटी हूं। वहां हम खूब खेले। इतना खेले कि समय का पता ही नहीं चला और जब समय देखा तो सिट्टी पिट्टी गुम… मम्मी तो डाटेंगी ही और पापा भी दफ्तर से घर लौट आए होंगे। घर का गेट खोलते ही शुक्र मनाया कि पापा अभी नहीं लौटे। मम्मी टेलीविजन देख रही थी। सच, कितने मजे है ना मम्मी के। सुबह से रात तक ना कोई पढ़ाई ना कोई स्कूल की टेंशन। मेरा तो दिमाग ही घूम जाता है पढ़ाई से।
ऊपर से जबसे गणित की नई अध्यापिका आई हैं रोज पहाड़े सुनाती है वो भी बीस तक। लिखने में तो मैंने रट्टा लगा रखा है पर सुनाने में…मेरी जान निकलती है। पापा को भी अपने पांव दबवाने का अच्छा बहाना मिल गया है।
मुझे पांव पर खड़ा कर लेते हैं और बोलते हैं कि पांव पर चलते भी रहो और पहाड़े भी याद करते रहो। सच, पढ़ाई ऐसी मुसीबत लगती है कि मेरा मन करता है कि मैं भी मम्मी बन जाऊं और सारा दिन शीशे के सामने बैठी बिंदी, लिपस्टिक लगाती रहा करूं। लेकिन ऐसा अभी होने से तो रहा क्योंकि मैं अभी पांचवी कक्षा में हूं।
हे भगवान…मैं कब बड़ी होऊंगी। सोचते-सोचते मैंने गणित की पुस्तक निकाली और तीन तीया नौ याद करने लगी। पर फिर मैं ख्यालों में खो गई। सच, मम्मी बनने पर मैं आराम से आठ बजे उठूंगी। उठते ही अखबार और चाय का गिलास लेकर बैठूंगी। अखबार पढ़कर नहाने जाऊंगी और फिर टीवी के आगे बैठ जाऊंगी। जब बच्चों के आने का समय होगा…
बच्चों का, मैंने सोचा बच्चे स्कूल से तब आएंगे ना जब मैं उन्हें सोते हुए उठाऊंगी-उसके लिए तो मुझे पांच बजे उठना पड़ेगा। क्योंकि पहले मम्मी मेरे छोटे भाई के लिए दूध की बोतल उबालकर, दूध गर्म करके उसे ठण्डा करती है फिर उसमें हल्की सी चीनी डाल कर छान कर उसे अपने हाथ से पिलाती है जिसमें लगभग बीस मिनट लगते हैं।
फिर बारी आती है मुझे उठाने की। भई, इसमें शर्म की कोई बात नहीं है कि मुझे उठाने में मम्मी को पूरे दस पंद्रह मिनट तो लग ही जाते हैं। मुझे पता है कि पहले पहल तो मम्मी कितना दुलार दिखाती है उठाने में लेकिन हद होती है ना जब मैं उठूं ही नहीं तो…और उठने के बाद तो जो अशांति होती है उसका तो क्या कहना।
पहले तो उठने के साथ चप्पलें नहीं मिलती फिर घमासान युद्ध होता है कि पहले बाथरूम कौन जाएगा या फिर बाशबेसिन के आगे खड़ा होकर पहले ब्रश कौन करेगा क्योंकि पापा को भी समय से आफिस पहुंचना होता है। खैर, हमारे तैयार होने केे बाद मेरे कमरे की तुलना किसी भूकंप ग्रस्त क्षेत्र के घर से की जा सकती है। अब वो काम मम्मी का होता है। मनु भईया को गोद में लिए वो सारा काम निपटाती है। मेरे वापिस आने पर वो कमरा जो दमक रहा होता है उसमें फिर से भूूकंप के झटके लगने शुरू हो जाते हैं।
स्कूल की दिनचर्या व स्कूल बस में दिप्पी के साथ हुई सारी बातें ए टू जेड मम्मी को बतानी होती है जिन्हें वे बहुत ध्यान और धैर्य से सुनती हैं और खाना लगाते-लगाते उस सुंदर से कमरे को बिखरता देखती हैं। मम्मी को पता है कि बच्चों से बार-बार-बार करने का कि कमरा साफ रखो या चीजों को ठीक से रखो…कोई फायदा नहीं है।
करीब आधे घंटे में वो कमरा फिर से हमें साफ मिलता है। फिर स्कूल का होमवर्क, फिर मनु का किसी भी समय रोना या कुछ तोड़-फोड़ करना जारी रहता है। शाम होते ही मम्मी फिर से दूध लेकर मेरे पीछे पड़ जाती है। पिछले महीने तक तो मैं मम्मी की निगाहों से बचकर दूध बाशबेसिन में गिरा रही थी किंतु एक दिन मेरी चोरी पकड़ी गई।
अब तो मम्मी दूध खत्म होने तक मुझ पर नजरें गड़ाए रहती है। दूध पीते समय बस एक श्रृंगार रस को छोड़ कर मेरे चेहरे से सभी रस टपकते रहते हैं। खैर हर रोज मेरी पसंद और पापा की पसंद का खाना बनाया जाता है। सभी की पसंद अलग होने के बावजूद भी मम्मी सभी का ख्याल रखती है। किसी को निराश नहीं होने देती।
मनु को गोद में लिए-लिए अपने बालों का जूड़ा बनाकर सारा दिन काम में जुटी रहती है। जिस दिन काम वाली बाई नहीं आती उस दिन भी मम्मी किसी से कुछ नहीं कहती। पर फिर भी अपने लिए श्रृंगार और टीवी देखने का समय पता नहीं कैसे निकाल लेती हैं।
मुझे याद है एक दिन मम्मी को मनु को लेकर डाक्टर के पास जाना पड़ा था। मैंने घर साफ करने की कोशिश भी की थी लेकिन वो कहते है ना…जिसका काम उसी को साजे…बस, मैं कुछ नहीं कर पाई थी, हां, उस समय मैं पहाड़े लेकर जरूर बैठ गई थी याद करने और मुझे चार का पहाड़ा याद भी हो गया था।…बड़ी भूल कर रही हूं, मैं तो बच्ची ही ठीक हूं।
इतना पहाड़ जैसा काम करने से बेहतर तो यही है कि मैं पहाड़े ही याद कर लूं। सच में…मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी। पापा शायद मुझे आवाज लगा रहे हैं। मणि जल्दी आओ, जरा मेरे पांव पर खड़ी होकर मुझे जोर से पहाड़े तो सुनाओ कि कितने याद हुए। मैं किताब लेकर खुशी से पापा के पास भागी कि चलो मैं अभी मणि ही हूं…मम्मी नहीं।
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‘‘मुझे नहीं बनना मम्मी वम्मी’’
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