Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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August 6, 2015 By Monica Gupta

Entertainment

cartoon politics by monica

Entertainment

बड बोले बयान मे हम आगे… काम न करने में हम आगे … धरना देने मे हम आगे … चैनलो पर अब तो सास बहू से भी ज्यादा लडाने भिडाने में हम आगे, टीआरपी बटोरने में हम आगे…. बोलो फुल्ल टू एंटरटेनमैंट Entertainment करते है या नही … बताओ करते हैं या नही … बोलो करते हैं या नही !!!

अब भई फिल्मों का तो पता नही कि एंटरटेनमैंट से चलती है या नही पर इतना पक्का है कि हमारी राजनीति में एंटरटेनमैंट के सभी गुण हैं और यही वजह है कि ये आज के समय मे सभी सास बहू सीरियल को हटाती हुई टीआरपी के मैसान में सबसे आगे चल रही है … कोई शक या सवाल ???

August 3, 2015 By Monica Gupta

पहला कदम पहली मुस्कान – एक अविस्मरणीय अनुभव

कहानी -थकावट ( मोनिका गुप्ता)

पहला कदम पहली मुस्कान – एक अविस्मरणीय अनुभव

टेलिविजन पर एक विज्ञापन आता था. वो पहला कदम पहली मुस्कान…. जिसमे मम्मी अपने नन्हे से  बच्चे को चलना सीखाती है और एक दिन उसे उसी के नन्हे नन्हे पैरो से डगमगाते हुए चलते देख कर भावुक हो जाती है.

सच मे समय ऐसे ही बदलता रहता है.आज जो बच्चे थे वो अब बडे हो रहे हैं और वो अपने बडो को भी सीखा रहे हैं अब आप सोच रहे होगें कि बच्चे क्या सीखाएगे. हैरान होने की जरुरत नही अब आप खुद ही देखिए अगर कुछ नेट पर,मोबाईल पर मैसेज या फोटो कैसे लेनी है या कुछ भी पूछना है तो बच्चो को सारी जानकारी होती है इसलिए यह सब हम बच्चो से ही तो सीखते हैं.

escelator photo

अब देखिए ना बडे बडे शहरो मे मैट्रो चलने लगी हैं. शापिंग माल, पीवीआर इत्यादि खुल गए हैं. अब वो इतने बडे यानि बहुमंजिला होते हैं  कि  उसमे लिफ्ट भी होती है और ऐस्कीलेटर भी.ये भी सब नए जमाने की तकनीक है और हमे इनके साथ भी चलना चाहिए पर कई बार डर भी लग जाता है.

मेरी सहेली मणि ने बताया कि उसका बडा बेटा गुडगाव मे सर्विस कर रहा है जब वो उससे मिलने गए तो उन्होने पिक्चर का प्रोग़ाम बना लिया. उस पीवीआर और शापिगं माल पर ऐस्कीलेटर था. पता नही पर मणि  को उससे बहुत डर लगता था तो  बस उसने  ऐलान कर दिया कि वो किसी भी हालत मे इस पर नही जाएगी और वो सभी बिना पिक्चर देखे वापिस जाऐगे.

ऐसे मे मणि का बेटा पहले तो मम्मी को समझाता रहा फिर उसने बहुत प्यार और नर्मी  से मम्मी का हाथ पकडा और मासूमियत से बोला कि बस जैसे मै कहू वैसे ही करते रहना. मणि की दिल की धडकने बढे जा रही थी और पैर कापें जा रहे थे. लाख मना करने के बावजूद बेटा नही माना और बडो की तरह समझाते हुए उस ऐस्कीलेटर पर पहला कदम रखने को कहा. जब मणि की  एक ना चली तो उसने हिम्मत दिखाई और कुछ ही पलो मे वो ऊपर की ओर जा रहे थे.

ऐसी ही हिम्मत बढाने के लिए उसने दो तीन चक्कर और लगवाए इससे मणि का  पूरा डर खुल गया. उसने मुझे बहुत भावुक होते हुए बताया कि उसे वो समय याद आ गया जब बचपन मे वो बेटे को  चलना सीखाती थी और  जब वो चलते चलते  जमीन पर गिर जाता था था तो कभी झूठ मूठ से फर्श की पिटाई करती और कभी कहती ओ देखो ये तो चींटी मर गई आपके नीचे आकर. आज बातो बातो मे बॆटे ने भी बहुत सारे कारण देकर उसका ध्यान बांटा  और उसके अंदर छिपे हुए डर को चुटकियो मे भगा दिया. तो बताईए परिवर्तन अच्छे ही हुए ना.

मणि की बातो ने, सच मे, सोचने को मजबूर कर दिया कि समय के साथ हमेशा मिलकर चलने मे ही भलाई है.कोई बडा छोटा नही होता.सभी से मिलकर दोस्त बन कर रहना चाहिए.हम सभी एक दूसरे के काम आते है और यही तो है परिवार.बात यह भी नही है कि बेटी बेटे की बजाय ज्यादा ध्यान रखती है यह हमारी अपनी सोच है जैसा आप परिवार मे माहौल देंगे आपको वैसा ही मिलेगा.

कल आपने बच्चे को उंगली पकड कर चलना सीखाया आज वो आपकी आप उंगली थाम कर चल रहे हैं. किसी ने सच ही कहा है कि रिश्ते हथेली पर मिट्टी की तरह होते हैं यदि ढीले से पकडेगें तो वो रहेगे और अगर कस कर पकडेगे तो आपकी ऊगलियोँ मे से निकल जाएगे. अपना छोटा सा संसार सहेज कर रखे आपको यह परिवर्तन प्यारा लगेगा.

पहला कदम पहली मुस्कान – एक अविस्मरणीय अनुभव  को लेकर अगर आपकी कोई राय या अनुभव हो तो जरुर बताईएगा

परवरिश       भी जरुर पढिएगा

 

कैसा लगा आपको ये लेख … जरुर बताईएगा 🙄

August 3, 2015 By Monica Gupta

जब कार चलाना सीखा

car drive photo

 

जब कार चलाना सीखा

मुसीबत मोल ली मैने ..

जी हां … आजकल समय ही ऐसा चल रहा है.चारो तरफ टेंशन,परेशानी ही दिखाई देती रहती है. आमतौर पर हम इन तनाव या मुसीबत से छुटकारा पाना चाह्ते है पर दूसरी तरफ एक उदाहरण मै हू जोकि मुसीबत को खुद ही न्यौता दे आई और वो भी पूरे जोश के साथ पर अब कहने को कुछ नही बचा. बस चारो तरफ गहन अंधकार ही अंधकार है. खैर, इससे पहले आप माथे पर बल डाल कर ज्यादा सोचने पर मजबूर हो जाए मै आपको दुख भरी दास्तान सुनाती हूं.

बात ज्यादा पुरानी नही है बस पिछ्ले महीने ही ही है.एक दिन बाजार जाते समय मुझे एक सहेली मिली वैसे स्कूल टाईम मे वो नालायक नम्बर वन थी.पर पता नही आजकल उसे क्या हो गया है इतनी स्मार्ट इतनी स्मार्ट हो गई है कि बस पूछो ही मत.बाल कटवा लिए है धूप का चश्मा पहनने लगी है और सबसे बडी बात की कार चलाती है. बस यही मेरी दुखती रग है.

असल मे, मुझे कार चलानी नही आती. आज के समय मे कार ना चलाना आना हैरानी का विषय ना बने इसलिए मैने उसी समय घर आकर घोषणा कर दी कि कल से मै गाडी चलाना सीख रही  हूं. जो चाहे सो हो. छोटे बेटे ने तुरंत अग़ूंठा दिखा कर मेरा समर्थन किया जबकि 90% परिवार जनो की राय थी कि रहने दो क्या फायदा.

पर मै एक बार जिद कर जाती हू तो फिर अपने आप की भी नही सुनती बडे स्टाईल से डायलाग बोल कर इतराने लगी और कहा कि ठान लिया तो बस ठान लिया और अगले ही दिन ब्यूटी पार्लर मे जाकर छोटे छोटे बाल कटवा लिए और गोगल भी खरीद लिए. अब  भई स्टाईल भी तो मारना जरुरी होता है .जल्दी ही खोज शुरु हुई कार सीखाने वाले की और 15 दिन मे मै फराटे से  कार चलाना सीख गई हालाकि दो चार बार बहुत बुरी तरह बची भी हूं.अब सारी बाते क्या बतानी. आप खुद भी समझदार है….  है ना.

अब आप सोच रहे होंगे कि भई इसमे दुख भरी बात कहा है तो वही बताने तो जा रही हू.कि मुसीबत मोल ली मैने. छोटे छोटे कामो के लिए अब सब मेरा ही मुंह देखते है कि ग़ाडी भी है और ड्राईवर भी.चाहे बाजार से आधा  किलो आलू लाने हो कपडे प्रैस करवाने हो या राशन का सामान हो लाना हो .सब मेरे सिर पर ही आ गया कि कार है ना . पहले दुकान वाले  सामान  आदमी के हाथो भिजवा देते थे पर अब उनका एक ही जवाब होता है कि कार है ना आप ही आ जाओ. आदमी नही ना है. दुकान बंद करके आना पडेगा.वगैरहा वगैरहा.

घर पर किसी के जूते मे मोची से जरा सी कील ही ठुकवानी हो तो भी कार है ना. और तो और जो मेहमान सालों से हमारे यहां नही आए थे जबसे उन्हे पता चला कि मैने कार सीख ली है वो आने को तैयार है.हफ्ते दस दिन का कार्यक्रम बना कर आ रहे है. पहले उन्हे रेलवे स्टेशन लेने जाओ फिर आवभगत,जायकेदार व्यंजन बनाओ,सेवा करो और  फिर अलग अलग जगह सुबह से शाम तक  दिल्ली दर्शन  करवाओ शापिंग करवाओ और फिर रात को लजीज व्यंजन से स्वागत करो ताकि वो नाराज ना हो जाए.

पहले तो मात्र घर ही सम्भालती थी पर अब जबसे कार चलाना सीखा है बस मानो मुसीबत ही मोल ले ली है मैने.अब तो दोहरी भूमिका हो गई है.घर पर सब निश्चिंत होकर बैठे है और सभी खुश है कि अब तो दिक्कत की कोई बात ही नही है.पर मै सिर पकड कर बैठी हूं कि क्यो मैने कार चलाना सीखा और अपने पैरो पर खुद कुल्हाडी मार ली.बेटे ने जो उस दिन अगूंठा दिखा कर मेरी बात का समर्थन किया था  मुझे वो थम्स अप की बजाय  ठेंगा लग रहा है. कुछ भी कहो  इसमे अब कोई मेरी मदद नही कर सकता क्योकि यह मुसीबत खुशी खुशी मैने ही मोल ली थी… अब तो इसे भुगतना तो पडेगा ही पडेगा….

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य … जरुर बताईएगा 🙂

जब कार चलाना सीखा

August 3, 2015 By Monica Gupta

मौन व्रत

cartoon by Monica gupta

मौन व्रत

कई बार खबरों की वजह से विचारो की गहमा गहमा इतनी ज्यादा हो जाती है कि मौन रहना ही सर्वोतम है

August 2, 2015 By Monica Gupta

नया साल और संकल्प

satire by monica gupta

satire by monica gupta

 

( व्यंग्य )

नया साल और संकल्प

 

उफ्फ …!!! आखिरकार नए साल मे मैने क्या संकल्प लेना है सोच ही लिया .अब आपसे क्या छिपाना …हर साल जब भी नवम्बर समाप्त होने लगता और दिसम्बर जी का आगमन होता. मन मे अजीब सी बैचेनी करवट लेने लगती कि नए साल मे नया क्या क्या करना है और क्या क्या नही करना है.बस इसी उधेड बुन मे पूरा समय निकल जाता पर भगवान का लाख लाख शुक्र है कि इस साल यह नौबत ही नही आई और समय से पहले ही डिसाईड हो गया.

पता है, पिछ्ले साल मैने यह सोचा था कि सच बोलना शुरु कर दूगी. अरे नही.. नही … आप गलत समझ गए.असल मै, वैसे मै, झूठ नही बोलती पर ना जाने क्यू टीवी पर सच का सामना देख कर डर सी गई थी इसलिए बोल्ड होकर यह निर्णय लिया कि यह आईडिया ड्राप.फिर सोचा था कि कुछ भी हो जाए पतली हो कर दिखाऊगी पर पर पर .. सर्दियो के महीने मे ऐसा विचार मन मे लाना जरा मुश्किल हो जाता है.सरदी की गुनगुनी धूप हो,रजाई हो और गर्मा गर्म पराठे हो और उस तैरता और पिधलता मखन्न.मन भी पिधलना शुरु हो जाता अब ऐसे मे भला खाने पर कैसे ब्रेक लग सकती है.चलो इसे भी सिरे से नकार कर यह सोचा कि सुबह शाम की सैर ही शुरु कर दी जाए. इस पर तुरत अमल करना भी शुरु कर दिया था पर दो ही दिन मे यह मिशन फेल होता सा प्रतीत हुआ. असल मे , ऊबड खाबड सडके, सडको पर मस्ती मे धूमते आवारा बैल,और गंदगी के ढेर के साथ साथ सीवर के ढक्कन गायब.अब बताईए ऐसे मे हाथ पैर तुडवाने से अच्छा है कि कुछ और सोचा जाए.

वैसे सोचा तो मैने यह भी था कि नए साल मे किसी पर गुस्सा नही करुगी.चेहरे पर स्माईल रखूगीं. पिछ्ले साल 31 की रात सबसे यही कह कर सोई कि सभी 1 जनवरी को सुबह सुबह मंदिर चलेगे .मै तो सुबह सुबह तैयार हो गई पर कोई सुबह उठने को तैयार ही नही था. मुस्कुराते मुस्कुराते उठाती रही पर रात को देर से सोने के चक्कर मे सभी गहरी नींद मे थे. इतने मे काम वाली बाई आ गई. उसे पता नही क्या हुआ. बर्तनो को जोर जोर से शोर करते हुए धोने लगी .एक तो देर से आई ऊपर से मुहं बना रखा था इसने. मैने खुद को संयत किया कि मोनिका स्माईल … कंट्रोल कर… कहती हुई ताजा हवा लेने के लिए खिडकी पर जा खडी हुई कि अचानक मेरी नजर पडोसियो की नई चमचमाती कार पर पडी शायद कल ही के लर आए थे.बस आगे आपको बताने की जरुर नही कि ….. !!!!

इस साल भी यही विचार चल रहा था कि नए साल मे क्या संकल्प लिया जाए कि पूरा भी किया जा सके. घर के एक बडे बुजुर्ग ने सुझाया कि हम लोगो को तीर्थ यात्रा करवा दिया करो हर चार महीने मे एक बार. पुण्य मिलेगा.बात जमी नही और मै बच्चो के कमरे मे गई तो बच्चे कहते कि छोडो मम्मी… हर महीने हमे पिक्चर और पिकनिक पर ले जाया करो.काम वाली बाई भी कहा पीछे रहने वाली थी बोली कि मेरी पगार बढा दो और छुट्टी भी बढा दो. बाहर निकली तो ये बोले कि तुम फुलके पतले नही बनाती जरा श्रीमति ऋतु से सीख लो इतने पतले,मुलायम और गोल गोल चपाती बनाती है और कृष्णामूति से डोसा बनाना भी सीख लो … खश्बू से ही मुहं मे पानी आ जाता है.वो बात कर ही रहे थे कि इतने मे मेरी सहेली मणि का फोन आ गया उसने राय दी कि दो चार किट्टी पार्टी ज्वायन कर ले. थोडी सी चालाक बन बहुत भोली है तू.!!! अगले साल ही तुझे सोसाईटी की सैकट्ररी ना बनवा दिया तो मेरा नाम मणि नही!! मैने कोई बहाना कर के तुरंत फोन रख दिया.उफ्फ !!!किस की सुनू किस की ना सुनूं… देखा कितना टेंशन था.

 

अब आपको भी टेंशन हो रही होगी कि आखिर इस साल मैने क्या सकंल्प लिया है. तो सुनिए … पिछ्ले दो तीन सालो के अनुभव को देखते हुए… बहुत सोच विचार के मै इस नतीजे पर पहुंची हूँ कि चाहे कुछ भी जाए बस बहुत हुआ. अब और नही इसलिए इस साल … इस साल … इस साल … नए साल के लिए कोई सकंल्प ही नही लूगी.इसलिए मै खुश हू और बहुत ही खुश हूं ..

कैसा लगा आपको ये व्यंग्य     नया साल और संकल्प   जरुर बताईगा 🙂

दैनिक भास्कर की मधुरिमा मे प्रकाशित

August 2, 2015 By Monica Gupta

उफ ये मुस्कुराहट

satire-monicagupta-bhasker

(व्यंग्य)

                                           उफ ये मुस्कुराहट        

इस तनाव भरे माहौल मे अगर कोई कहे कि मुस्कुराओ तो बहुत ही अजीब सा लगता है वैसे ऐसा मेरा मानना है पर पिछ्ले दो चार दिन से कुछ ऐसा हुआ कि मुझे अपने विचार बदलने पडे और मै भी हंसने मुस्कुराने के मैदान मे कूद पडी. वैसे आपको एक सच बात बताऊ कि हँसने खिलखिलाने का शौक तो मुझे बचपन से ही था पर बडे होते होते कुछ ऐसा होता चला गया कि हँसी भी कही दब कर रह गई. दो दिन पहले मेरी सहेली मणि आई उसने बताया कि मुस्कुराहट तो अनमोल गहना है इसे हमेशा धारण करना  चाहिए. वही बाजार मे खरीददारी करते एक अन्य दोस्त ने बताया कि जब 2 सैंकिंड की मुस्कान से फोटो अच्छी आ सकती है तो मुस्कुराने से जिंदगी भी तो अच्छी हो सकती है कि नही. पता नही क्यो पर मुझे बात जम गई. और बस सोच लिया कि अब जो हो सो हो. हमेशा हसंना और मुस्कुराना ही है और अपनी अलग पहचान बनानी है.

अगली सुबह मे बहुत अच्छे मूड मे सो कर उठी और सैर को निकल पडी. एक दम शांत माहौल मे मैने एक पेड चुना और वहाँ हाथ ऊपर करके ठहाका लगा कर जोर जोर से हंसने लगी. इतना ही नही बीच बीच मे ताली भी बजा रही थी इस बात से बिलकुल बेखबर कि सामने ही एक मोटी लडकी व्यायाम करने के लिए रस्सी कूद रही थी और वो गिर गई थी. पता तब चला जब शायद उसकी मम्मी आग्नेय नेत्रो से मुझे धूरने लगी और उसके पास खडा आज्ञाकारी कुत्ता भी मुझ पर बेहिसाब भौकने लगा. इससे पहले मै अपनी सफाई मे कुछ कहती उनकी लडकी और जोर जोर से रोने लगी और मैने चुपचाप खिसकने मे ही भलाई समझी. उफ!! मैने ठंडी सासं ली और धडकते दिल के साथ  घर लौट आई.

घ्रर लौटी तो हमारी पडोसन मिक्सी मांगने आई हुई थी. पर पता नही क्यो आज उसे देखकर मुझे हसीं आ गई. असल मे, वो क्या है ना कि वो डकारे बहुत लेती है. पहले तो मै कुछ नही कहती थी पर जब से हंसना अनमोल गहना है और जिंदगी हंसने से बेहतर बनती है तो सोचा कि आज हंस ही लूं इतने  दिनो बाद खिलखिलाकर हँसी तो शायद उसे बुरा लगा. उसने हसंने का कारण पूछा  तो मैने भी हंसते हुए बता दिया कि उसकी डकार सुनकर मुझे बहुत हंसी आती है. इस पर वो बहुत नाराज हुई और बाहर चली गई. मै एकदम चुप हो गई. इतने मे वो फिर आई और गुस्से मे वहाँ रखी मिक्सी ले गई.मै चुपचाप उसे देखती रह गई.उफ ये मुस्कुराहट!!!

अगले दिन किसी कवि सम्मेलन मे जाना था. वहां एक महोदय बहुत देर से कविता पे कविता सुनाए चले जा रहे थे. मेरे साथ बैठी महिला मुहं पर रुमाल रख कर धीरे धीरे  हसें जा रही थी. मैनें इधर उधर नजरे घुमा कर देखा तो कोई उबासी ले रहा था तो कोई सिर खुजला रहा था तो कोई मोबाईल पर मैसेज भेजने मे जुटा था यानि कुल मिलाकर माहौल मे सन्नाटा था. मैने कनखियो से एक दो बार उस महिला को  देखा तो  भीतर ही भीतर वो इतनी हंस रही थी इतनी हंस रही थी कि उसके आंसू निकल रहे थे.बस फिर क्या था. बोर तो मै भी हो रही थी पर उसे देख कर हंसने वाली बात याद आ गई और उसे देख कर मै जोर से खिलखिला कर हंस पडी. उसके बाद आपको ज्यादा बताने की जरुरत नही क्योकि आप सभी बहुत समझदार है. मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और मै चुपचाप बाहर आ गई.उफ!! बहुत महंगी पडी ये मुस्कुराहट.

समझ नही आ रहा था कि आखिर गलती हो कहाँ रही है.खैर रुआसी होकर घर लौट आई. शाम को बेटा हंसता मुस्कुराता घर आया और उसने मुझे उसका नया पासपोर्ट दिखाया. मै खुशी खुशी देखने लगी पर पासपोर्ट की फोटू मे उसकी मुस्कान ही गायब थी. मेरे पूछ्ने पर उसने बताया कि आजकल पासपोर्ट पर फोटो खिचवाते समय  चेहरे पर कोई भाव नही आना चाहिए…!! यही नियम है.

मुझे लगा कि मेरे लिए भी यही ठीक होगा और फिर मैनें अपने को पहले की तरह बनाने मे ही भलाई समझी और चुपचाप बिना मुस्कुराए काम मे जुट गई….

कैसा लगा ??? जरुर बताईगा??

ये व्यंग्य दैनिक भास्कर की मधुरिमा पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.

 

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