अभी तक मेरी लिखी सात पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं. जिसमें से दो नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से प्रकाशित है. किताबों मे व्यंग्य, नाटक, बाल कहानियां, स्वच्छता, प्रेरक जीवनी पढने को मिलेगीं
बच्चे और कार्टून चैनल
बच्चे और कार्टून चैनल
बहुत सारे बच्चे पार्क में खेलते हुए बतिया रहे थे कुछ स्कूल की तो कुछ होम वर्क की बाते कर रहे थे और एक बच्चों का समूह शायद थक हार कर बैठ गया था और उनके बीच शुरु हो गया कार्टून का वार्तालाप. सभी अपनी अपनी पसंद के कार्टून बता रहे थे. किसी को डेक्स्टर किसी को पावर पफ गर्ल तो किसी क शिन चैन पसंद है…
शिन चैन का नाम लेते ही मुझे याद आया कि कुछ दिनों पहले जब शिन चैन देख अतो उसकी शब्दावली ऐसी थी कि अगर बच्चे बोले तो …. अच्छा नही लगेगा. वैसे एक ये भी महसूस की कि अगर कोई मूवी डब हो हिंदी में या कार्टून हिंदी मे डब हो तो भाषा बहुत गंदी इस्तेमाल करते हैं जबकि आम बोल चाल मॆं ऐसा नही होता.
इसी की कुछ और बाते सर्च करने के लिए मैनें पर देखा.
आजकल कार्टून की दुनिया भी अपनी सोच और हास्य में बॉलीवुड फ़िल्मों की तरह हो गई है. फ़िल्मों पर ‘क़ैंची’ चलनी तो आम बात थी ही अब बच्चों के कार्टूनों पर भी क़ैंची लगने लगी है.
BBC
आजकल कार्टून की दुनिया भी अपनी सोच और हास्य में बॉलीवुड फ़िल्मों की तरह हो गई है. फ़िल्मों पर ‘क़ैंची’ चलनी तो आम बात थी ही अब बच्चों के कार्टूनों पर भी क़ैंची लगने लगी है.
जिन कार्टूनों को देखकर बच्चे हँसते हैं, ख़ुश होते हैं उन पर भी ‘कैंची’ चलने का दौर शुरू हो गया है.
भारत में पिछले एक दशक में ‘जापानी’ कार्टूनों ने अपना दबदबा बनाया है. जो बच्चे ‘टॉम एंड जेरी’ और ‘टेलस्पिन’ जैसे कार्टून देखा करते थे. वहीँ आज ‘डोरेमोन’, ‘शिनचैन’ जैसे कार्टून चरित्रों के दीवाने हैं.
बी.सी.सी.सी, यानि ‘ब्राडकास्टिंग कंटेंट कम्प्लेंट्स काउंसिल’ एक संस्था है. यहां टेलीविज़न पर दिखाए जा रहे कार्यक्रम के ‘आपत्तिजनक’ दृश्यों के विरोध में कोई भी शिकायत दर्ज करा सकता है.
हाल ही में बी.सी.सी.सी में बहुत से माता पिता ने शिकायतें दर्ज कीं. इन शिकायतों में कहा गया कि कार्टून चैनल ‘अनुचित’ दृश्य दिखा रहे हैं. बी.सी.सी.सी ने तुरंत इन कार्टून चैनलों को हिदायत दी की वे ऐसा कोई दृश्य न दिखाए जो बच्चों के लिए ठीक न हों.
अब कार्टून चैनल आपत्तिजनक दृश्यों को हटा कर उन्हें बिलकुल ही नए रूप में ढाल रहे हैं.
डबिंग इंडस्ट्री के निर्देशक या क्रिएटिव एक्सपर्ट ऐसे कार्टूनों पर अपनी पैनी नज़रें जमाए रखते हैं. उन्हें बदल कर वे ऐसे कार्टून तैयार करते हैं जिसके चाहने वाले देश भर के बच्चे होते हैं.
कार्टून किरदारों को डब करते वक़्त छोटी मोटी तब्दीलियाँ अक्सर हर विदेशी कार्टून और प्रोग्राम में करनी पड़ती है. क्योंकि उनके विचार स्थानीय दर्शकों के विचारों से मेल नहीं खाते.
पर कई बार कार्टून की तब्दीलियाँ काफ़ी अजीब और मज़ेदार होती हैं.
अलका शर्मा अरसे से शिनचैन की आवाज़ रही. ‘शिनचैन’ जापानी कार्टून है. वह एक पांच साल का बच्चा है और अपने माता पिता और बहन के साथ रहता है.
शिनचैन बेहद नटखट किरदार है और बच्चों में ख़ासा लोकप्रिय है.See more…
amitabh bachchan to play superhero cartoon in tv series: :
एक सूत्र ने कहा कि 72 साल के महानायक ने ‘एस्ट्रा फोर्स’ कार्टून के लिए एंटरटेनमेंट कंपनी ग्राफिक इंडिया और डिजनी से हाथ मिलाया है. इस सुपरहीरो की रचना अमिताभ और ग्राफिक इंडिया के सीईओ और सहसंस्थापक शरद देवराजन को करनी है. अमिताभ बच्चन के सुपरहीरो अवतार वाली इस काटूर्न सीरीज को डिजनी चैनल लॉन्च करेगा. यह कार्टून हंसी-मजाक, मारधाड़ , रोमांच और रहस्य से भरपूर बताया गया है.
अमिताभ छोटे पर्दे पर इससे पहले रियलिटी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सूत्रधार के रूप में और धारावाहिक ‘युद्ध’ में मुख्य भूमिका में नजर आ चुके हैं. Read more…
कार्टून साफ सुथरी हों प्रेरक हों तो बहुत कुछ हम इनसे सीख सकते हैं जैसाकि बचपन में हम अमर चित्र कथा पढ कर सीखते थे. अगर सुधार नही होगा हर बच्चा बहुत शान से शीन चैन जैसे किरदार बोलता नजर आएगा और हमारी आखॆ शर्म से झुकती चली जाएगी …
वैसे आपके क्या विचार हैं इस बारे में …
ना खाऊगीं न खाने दूंगी
ना खाऊगीं न खाने दूंगी
मेरी सहेली का बेटा आफिस की ओर से कुछ दिनों के लिए विदेश गया हुआ है. जब उससे फोन पर बात हुई तो वो बेहद दुखी थी उसने बताया कि उसका बेटा वहां कुछ खा नही पा रहा. बचपन से ही उसे शुद्द शाकाहारी बनाया हुआ था. ना खाऊगी और न खाने दूंगी पर टिकी हुई थी. बहुत बार बच्चे का मन होने पर भी उसे डांट दिया जाता था. घर मॆं ही नही बाहर खाने के लिए भी सख्त कानूब बना रखा था. आज उसे गए दस दिन हो गए और वो खा नही पा रहा क्योकि ज्यादातर वहां नान वेज यानि मांसा हार चलता है और सादे खाने की महक ऐसी होती है कि खाना खा ही नही पा रहा.
वैसे आज समय डांट डपट और अपने विचार थोपने का नही है मुझे याद आया कि मेरे एक आंटी बहुत ही ज्यादा सख्त थे. फरमान जारी किया हुआ था कि घर में अंडा ,प्याज नही आएगा. हालाकि उनका बेटा होटल में चोरी चोरी खा आता था. कुछ दिनों पहले जब मैं उनके घर गई तो देखा आंटी खुद आमलेट बना रहे थे. मेरे हैरानी से पूछ्ने पर उन्होने बताया कि उनके पोते को डाक्टर ने अंडा खाने के लिए बोला है.एक बार तो उन्हें अच्छा नही लगा पर सेहत से कोई समझौता नही. इसलिए खाती वो आज भी नही हैं पर बना जरुर देती हैं वो भी खुशी खुशी.
सच , बहुत अच्छा लगा था. बदलते समय के साथ बदलने मॆ ही भलाई है. हमें हमारी बेडियों से हमें आजाद होना ही होगा अन्यथा दुख उठाने पडेगें जैसाकि मेरी सहेली उठा रही है.
आप भले ही न खाओ पर नाक मुंह बना कर बंदिश भी तो न लगाओ..
Same Sex Marriage
बेशक अमेरिका में Same Sex Marriage को मान्यता मिल गई है पर हमारे देश में इसे भारी मात्रा में सही नही माना जा रहा. तभी इस कार्टून मॆं एक पिता अपनी लडकी के घर से भागने और अन्य लडकी से शादी करने पर बेहद दुखी है …
Same Sex Marriage – गे मैरिज
ओबामा ने एक विशेष संदेश में कहा- “यह अमरीका की जीत है… यह जीत इस बात की पुष्टि करती है कि लाखों अमरीकी लोग बराबर हैं और हम अधिक स्वतंत्र हो गए हैं”। अमरीका की सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों में समलैंगिक विवाह को वैध घोषित किया
बराक ओबामा ने विश्वास व्यक्त किया कि अदालत के इस फैसले से अमरीकी समाज और मज़बूत होगा जिसमें आज से “कुछ और सुधार हुआ है।”
शुक्रवार को अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि समलैंगिक विवाह करने का अधिकार संविधान के विपरीत नहीं है। अब सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के आधार पर पूरे अमरीका में समलैंगिक विवाह वैध माने जाएंगे। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के तुरंत पश्चात अदालत की इमारत के सामने समलैंगिक विवाहों के समर्थकों द्वारा एक रैली की गई।
Same Sex Marriage
american supreme court rules same sex marriage is legal: :
‘समान अधिकार देना कानून का फर्ज’जस्टिस एंथनी कैनेडी ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘सोसायटी की पुरानी मान्यताओं के चलते किसी भी समलैंगिक शख्स को अकेले रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. शादी करना उसका अधिकार है और सभी को समान अधिकार देना कानून का फर्ज है.’
Today is a big step in our march toward equality. Gay and lesbian couples now have the right to marry, just like anyone else. #LoveWins
जो भी हो पर Same Sex Marriage पर एक बार फिर से debate जरुर छिड गई है
बाल कहानी- सबक
बाल कहानी- सबक
बाल कहानी- सबक
लोटपोट में प्रकाशित बाल कहानी- सबक
बच्चों की कहानियाँ हमेशा रोचक होती है. जिसमे कुछ न कुछ नया और सीखने को मिलता है. मेरी ये कहानी लोटपोट मे प्रकाशित हुई थी.
सबक मनु का आज चौथी कक्षा का नतीजा निकला। उसे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। घर पर तथा विधालय में उसे खूब शाबाशी मिली। पर मनु को पता था कि उसके प्रथम आने के पीछे, उसकी मम्मी की सबसे ज्यादा मेहनत रही। जिसे वो पहले कभी नहीं समझ पाया था लेकिन एक दिन जो उसे सबक मिला वह शायद उसे कभी भुला नहीं पाएगा।
अपना रिपोर्ट कार्ड देखते-देखते, वह अतीत में खो गया बात पिछले साल से शुरू हुर्इ थी, लेकिन लगता है मानों कल की ही बात हो। बात तीसरी कक्षा की थी। इकलौता और नासमझ मनु बहुत ही शरारती था। उसके पापा दिन रात काम में लगे रहते। मम्मी घर का ख्याल रखती और मनु का भी बेहद ख्याल रखती। चाहे वो कितना भी जरूरी काम कर रही होती लेकिन मनु की आवाज सुनते ही वो सारा काम छोड़ कर आ जाती। मनु पर, ज्यादा ध्यान देने के कारण उन्हें मनु के पापा भी कितनी बार डांट देते कि तुम बिगाड़ रही हो। देखो, कितना मुंह फट होता जा रहा है, लेकिन मम्मी की तो मानो मनु जान ही था। हां, लेकिन एक बात अवश्य थी कि वो मनु की पढ़ार्इ पर जोर देती थी।
मनु चाहता था कि जैसे और बच्चों ने टयूशन रखी है उसकी भी रख दो। लेकिन ना जाने वो टयूशन के बहुत खिलाफ थी। वो अक्सर मनु को पढ़ाती-पढ़ाती खुद तो विधार्थी बन जाती और मनु शिक्षक। मनु एक-एक बात मम्मी को समझाता। इससे दोनों का फायदा होता। मनु को पाठ पूरी तरह से समझ आ जाता था। मम्मी तब हंस कर कहती कि अगर तुम्हारे जैसा शिक्षक मुझे मेरे बचपन में मिला होता तो मैं भी हमेशा अच्छे नम्बर लेती। मनु को अपनी मम्मी के अनुभव सुनने में रूचि होती। मम्मी बताती कि अपने स्कूल टार्इम में तो वह बहुत नालायक थी और हमेशा पोर्इंट पर ही पास होती। और जब रिपोर्ट सार्इन करवानी होती तो ना जाने कितने तरले और खुशामद वह अपनी मम्मी की करती। हिसाब में सवाल समझाने के लिए तो मनु को बहुत ही मेहनत करनी पड़ती क्योंकि उसकी मम्मी को सवाल समझ ही नहीं आता था।
अक्सर मनु के पापा घर पर स्कूल का खेल देखकर मुस्कुरा कर ही रह जाते। धीरे-धीरे मनु की पढ़ार्इ में सुधार होना शुरू हुआ। वह अक्सर अपने दोस्तों को अपनी मम्मी की पढ़ार्इ के बारे में बताता और कर्इ बार तो मजाक भी उड़ाने लगा। मम्मी आप तो बिल्कुल ही नालायक हो, पता नहीं स्कूल जाकर क्या करती थी। पर मम्मी सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाती और बोलती, मैंने तो अपने सारे साल व्यर्थ ही गवाएं पर तुम तो अव्वल आओ।
पहले जब मनु के क्लास टेस्ट में कम नम्बर आते तो वह अपनी मम्मी को ही दोष देता। कम तो आऐंगें ही, नालायक मम्मी का बेटा भी नालायक ही होगा। पर सहनशीलता की मूर्ति मम्मी चुपचाप हल्की सी मुस्कुराहट देकर काम में लग जाती। एक बार तो मनु का दोस्त स्कूल से घर आया तो उस दिन हुए क्लास टैस्ट के नम्बर मम्मी ने दोनों से पूछे तो दोनों ने मजाक उड़ाते हुए कहा, आप से तो अच्छे ही आए हैं। कम से कम हम पास तो हो गए।
समय बीतता रहा। मनु की पढ़ाई में फर्क आने लगा। लेकिन मम्मी का मज़ाक बहुत उड़ाने लगा। एक दिन मनु के सिर में बहुत दर्द उठा तो मैड़म ने उसे आया जी के साथ घर भिजवा दिया। पापा दफ्तर जा चुके थे। मम्मी अलमारी की सफाई कर रही थी और सारा सामान फैला पड़ा था।
अचानक उसे देख मम्मी सारा काम छोड़ कर उसकी देखभाल में जुट गई… उसे दवाई देकर आंखे बंद करके लेटने को कहा और चुपचाप उसका सिर सहलाने लगी।
तभी पड़ोस की आंटी ने आवाज दी और मम्मी बाहर उठ कर चली गई। मनु ने चुपचाप करवट बदली तो देखा एक लिफाफे से कुछ तस्वीरें बाहर झांक रही हैं। वह उत्सुकता वश उठा तो उन तस्वीरों को देखने लगा।
तस्वीरों के नीचे एक लिफाफा और बंधा हुआ था, तस्वीरें देखते-देखते उसकी हैरानी की सीमा ही ना रही। वह सभी तस्वीरें उसकी मम्मी की बचपन की ईनाम लेते हुए थी और जब उसने दूसरा लिफाफा खोला तो उसमे उसकी मम्मी की सारी रिपोर्ट कार्ड थी।
वह हैरान रह गया कि वह हर विषय में पूरी क्लास में हमेशा प्रथम आती रही। तो क्या सिर्फ मनु को पढ़ाने के लिए, अच्छे अंक लेने के लिए उन्होंने यह झूठ बोला। मनु सोचने लगा कि उसने अपनी मम्मी को क्या-क्या नहीं कहा। उसे बहुत ही शर्म आ रही थी।
मम्मी के कदमों की आहट सुनते ही उसने तुरन्त सब फोटो और कागज थैली में ड़ाल दिए और सोने का उपक्रम करने लगा। मम्मी उसके तकिए के सिरहाने बैठ कर उसका माथा दबाने लगी। किन्तु इस बार मनु अपना रोना रोक नहीं पाया और वह मम्मी से लिपट कर रोने लगा।
मम्मी ने सोचा कि शायद इसके बहुत दर्द है। वह, डाक्टर को फोन करने के लिए उठने लगी पर, मनु ने मना कर दिया।
उधर मम्मी लिफाफे से झांकती तस्वीरें देख कर समझ गई थी कि मनु को उनके बारे में पता चल गया है। वह मनु की पीठ थपथपाने लगी और बोली कि अपने बच्चों को उन्नति के पथ पर बढ़ाने के लिए ऐसे छोटे-छोटे झूठ तो बोलने ही पड़ते हैं।
पर उस दिन मनु ने मन ही मन कसम ले ली थी कि वो भी अपनी मम्मी की तरह ही प्रथम आया करेगा और आज वही Report Card हाथ में थी।
बाल कहानी- सबक
कैसी लगी आपको ये कहानी … जरुर बताना 🙂
ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ
ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ – बच्चों, समय हमेशा चलता ही रहता है, कभी नहीं रूकता। हमारे जीवन का चक्र भी ठीक वैसे ही घूमता रहता है। पहले हम छोटे-छोटे नन्हें बच्चे होते हैं फिर धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं। बच्चों, जीवन के इस क्रम में अनेंकों घटनाएं घटती रहती हैं लेकिन कुछ एक बातें ऐसी होती हैं जो हमारे जीवन पर विशेष प्रभाव छोड़ जाती हैं या यूँ कहिए कि उनसे हमारा जीवन ही बदल जाता है।

ऐसा था इनका बचपन
ऐसा था इनका बचपन – महापुरुषों की कहानियाँ
बच्चों, मोहन दास कर्मचंद गांधी जिन्हें सभी बापू बुलाते हैं। पंडि़त जवाहर लाल नेहरू जोकि बच्चों के प्रिय चाचा हैं या फिर गोपाल कृष्ण, मदन मोहन मालवीय, इंंदिरा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, देशरत्न डा़0 राजेन्द्र प्रसाद और भी ना जाने ऐसे कितने महान लोग हुए जिन्होंने ना सिर्फ देश में बलिक विदेशों में भी अपना नाम कमाया। आज हम कुछ महान हस्तियों के बचपन में झांक कर देखते हैं कि क्या इनका बचपन भी हमारे-आपके जैसा था या कुछ हट कर था।
ऐसा था इनका बचपन – स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ड़ा0 राजेन्द्र प्रसाद
सबसे पहले हम बात करते हैं स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ड़ा0 राजेन्द्र प्रसाद के बचपन की। यह उन दिनों की बात है जब स्कूल के मुख्याध्यापक परीक्षा फल सुनाने के लिए खड़े हुए। उन्होंने सभी विधार्थियों के नाम बोले लेकिन एक विधार्थी अचानक खड़ा होकर बोला कि श्रीमान मेरा नाम तो नहीं बोला गया। इस पर अध्यापक बोले तुम जरूर फेल होगें। तभी तुम्हारा नाम लिस्ट में नहीं है। असल में, परीक्षा से पूर्व वह बालक मलेरिया से पीडि़त था। लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि मेरा नाम तो इसमें होना ही चाहिए। अब अध्यापक को भी गुस्सा आ गया। उन्होंने उसे बोला, तुम जितनी बार बोलोगे, उतना ही तुम्हें जुर्माना देना पड़ेगा। लेकिन वह बच्चा बोलता ही रहा कि इसमें मेरा नाम तो होना चाहिए। जुर्माने की राशि 5 रू0 से 50 रू0 तक पहुंच गर्इ। बात जब बढ़ रही थी तभी लिपिक दौड़ता हुआ आया और उसने मुख्याध्यापक को बताया कि उससे गलती हुर्इ है। असल में, यह बालक कक्षा में प्रथम स्थान पर है और पता है यह बालक थे राजेन्द्र प्रसाद जोकि स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।
मदन मोहन मालवीय का बचपन
बच्चों, मदन मोहन मालवीय के दिल में लोगों और जानवरों के प्रति बचपन से ही दया और करूणा थी। एक बार की बात है बचपन में उन्होंने देखा कि एक कुत्ता (जानवर) दर्द से कराह रहा है वह उसे तुरन्त जानवरों के ड़ाक्टर के पास ले गए किन्तु ड़ाक्टर ने कहा कि जो इसके कान में चोट लगी है ऐसे दर्द में तो कुत्ता पागल भी हो जाते हैं तो वह इन बातों में ना पड़े। किन्तु मालवीय ने ड़ाक्टर से दवा लेकर खुद ही उसे लगाने की सोची। दवा लगाते ही कुत्ता बैचेन हो उठा तब बालक मालवीय ने दवा का कपड़ा लकड़ी के साथ बांधा और दूर बैठे-बैठे ही वह उसे दवा लगाने लगे। दवा उसे को बैचेन तो कर गर्इ लेकिन धीरे-धीरे उसे आराम आने लगा। बड़े होने पर भी मदन मोहन मालवीय मानते थे कि प्राणिमात्र की सेवा ही भगवान की सच्ची पूजा है।
लौह पुरूष सरदार वल्लभ भार्इ पटेल का बचपन
एक ऐसा ही किस्सा लौह पुरूष सरदार वल्लभ भार्इ पटेल का है। उनके बचपन में एक बार उन्हें चोट लग गर्इ। वह जगह पक गर्इ और अनेकों घरेलू उपचार करने पर भी वह चोट ठीक ही नहीं हुर्इ। अन्त में एक वैध को दिखाया गया। पता है उन्होंने कहा कि अगर हम इस फोड़े पर गर्म करके लोहे को लगाऐंगे तो यह ठीक हो जाएगा। घर के सभी सदस्य तो ड़र गए लेकिन बालक वल्लभ ने हिम्मत नहीं हारी पता है वह सीधे लुहार के पास गया और उसे कहा कि गर्म-गर्म लोहा उसे लगा दे ताकि उसका फोड़ा दब जाए। लेकिन लुहार ने यह सोच कर मना कर दिया कि बहुत दर्द होगा और यह तो अभी बच्चा है। वल्लभ ने दो-तीन जगह और पूछा लेकिन सभी ने गर्म लोहा लगाने से इंकार कर दिया। पता है तब उस बालक ने क्या किया। बड़े साहस से गर्म लोहे की सलाख उठा कर अपने फोड़े पर लगा ली। इस बालक के साहस को देख कर सभी हैरान रह गए। यही बालक आगे चलकर प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बना। स्वतंत्रता मिलने पर यह देश के प्रथम गृह मंत्री और उपप्रधान मंत्री बने। तो बच्चों ये थे सरदार वल्लभ भार्इ पटेल।
गोपाल कृष्ण गोखले का बचपन
अब मैं आपको गोपाल कृष्ण गोखले के बचपन की घटना सुनाती हूं। यह बात उन दिनों की है जब गोपाल विधालय पढ़ने जाते थे। आचार्य जी ने उन्हें गणित का गृह कार्य करने को दिया। बालक गोपाल ने एक-दो प्रश्न के इलावा सभी हल कर लिए। अब बच्चों, जो आपसे सवाल नहीं निकलते तो आप अपने दोस्तों से पूछते हो। बस, इन्होंने भी अपने दोस्तों से पूछ कर हल कर लिए। अगले दिन विधालय में टीचर ने जब देखा कि ये तो सभी सवाल सही हैं तो उन्होंने बालक गोपाल की बहुत प्रशंसा की। इस पर गोपाल रोने लगे और पूछने पर उन्होंने सारी बात सच-सच बता दी कि यह उन्होंने स्वयं नहीं किए हैं, मित्र की सहायता से किए हैं। इस पर अध्यापक बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने सच बोलने पर बालक को शाबाशी दी। पता है, यही गोपाल कृष्ण गोखले महान देशभक्त और महात्मा गांधी के राजनैतिक गुरू भी बने।
सुभाष चन्द्र बोस का बचपन
अच्छा बच्चों यह तो बताओ कि जय हिन्द का नारा किसने दिया था। सुभाष चन्द्र बोस ने। तो आओ अब मैं इन्हीं के बचपन का किस्सा सुनाती हूं। एक बार की बात है कि यह रात को सोने जब जा रहे थे तो पलंग की बजाय जमीन पर ही लेट गए। मां हैरान, उन्होंने पूछा कि क्या हुआ जमीन पर क्यों लेट गए। इस पर बालक बोला कि हमारे गुरू ने बताया है कि हमारे पूर्वज भी जमीन पर सोते थे।
मैं भी ऋषि, मुनि की तरह कठोर जीवन जीऊंगा। जब पिता ने यह बात सुनी तो उन्होंने कहा कि बेटे, सिर्फ जमीन पर सोने से ही कोर्इ महान नहीं बनता। खूब पढ़ार्इ करना और समाज की सेवा करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। बस, यह बात बालक को इतनी जम गर्इ और बहुत मेहनत से उन्होंने आर्इ0ए0एस0 की परीक्षा पास की।
और बड़ा अफसर बनने का मौका मिला तो उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं चाहिए अंग्रेज़ो की नौकरी। उन्होंने यह भी कहा कि वह अपना लक्ष्य तो बचपन में तय कर चुके थे। कठोर जीवन, उच्च शिक्षा, देश सेवा इन तीनों को कर दिखाया सुभाष चन्द्र बोस ने। बचपन में किए मजबूत संकल्प को इन्होंने खूब निभाया।
चन्द्रशेखर वैंकटारमन का बचपन
बच्चों अब मैं चन्द्रशेखर वैंकटारमन के बचपन की घटना बताती हूं। वैंकटारमन को वैज्ञानिक अनुसंधान के परिणामस्वरूप प्रकाश भौतिकी में नए अविष्कार करने के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला।
त्रिचनापल्ली का एक सीधा सा छात्र चन्द्रशेखर जब विधालय में दाखिला लेने पहुंचा तब उसकी भी परीक्षा ली गर्इ। विधालय के सभी अध्यापक उन्हें देखकर हैरान थे क्योंकि उन्होंने सभी जवाब सही दिए थे।
सभी अध्यापक और मुख्याध्यापक ने यह सोचा कि इस बालक को तो महाविधालय में दाखिला मिलना चाहिए। इस पर चन्द्रशेखर ने कहा कि वह एक-एक सीढ़ी चढ़ कर ही उन्नति के उच्चतम छोर तक पहुंचना चाहते हैं। छलांगे नहीं लगाना चाहते। वह पग-पग यानि कदम-कदम से ही आगे बढ़ना चाहतें हैं। उनकी बात सुनकर सभी हैरान रह गए। तो देखा ऐसे थे चन्द्रशेखर वैंकटारमन।
बच्चों, बचपन से ही कोर्इ महान नहीं हो जाता। सच्चार्इ के रास्ते में कांटे ही कांटे होते हैं। हां, अगर उन्होंने कंटीले रास्ते को पार कर लिया तो उन्हें खुशियां रूपी फूल ही फूल मिलते हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बचपन
अच्छा बच्चों यह बताओ हे राम, भारत छोड़ो किसने कहे थे। जी……राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने। लेकिन पता है बचपन में वो भी बुरी संगति में पड़ गए थे। बीड़ी पीना, चोरी करना, झूठ बोलना और मांस खाना उनकी आदत बन चुकी थी। लेकिन कहीं ना कहीं उनके दिल में छिपी अच्छार्इयों ने उन्हें यह सब छोड़ने को मजबूर कर दिया।
मां से तो उन्होंने सारी बात कर ली। लेकिन पिताजी के बीमार होने के कारण उनकी हिम्मत ही नहीं हुर्इ कि वह अपनी सारी गलितयाें की माफी मांग लें। उन्होंने पिताजी को पत्र लिख कर दिया। पत्र में उन्होंने सारी बातें लिख ड़ाली और पिताजी को पकड़ा दिया।
पिताजी पत्र पढ़कर रोते रहे किन्तु उन्होंने मोहन को कुछ नहीं कहा। बाप-बेटे का सारा गिला शिकवा आंसूओं में बह गया। और गांधी जी का नाम ना सिर्फ भारत में बलिक पूरे विश्व में आदर सहित लिया जाता है और लिया जाता रहेगा।
आइन्सटीन का बचपन
बालक आइन्सटीन जब जर्मनी के विधालय में पढ़ते थे तब अध्यापक उन्हें पढ़ा-पढ़ा कर हार जाते थे लेकिन उन्हें समझ में नहीं आता था। उनकी अक्सर पिटार्इ भी होती थी। सभी उन्हें बु़द्धु कहते थे। एक बार तो कक्षा में उनकी इतनी पिटार्इ हुर्इ कि अध्यापक ने कहा कि भगवान ने तो इन्हें दिमाग हीं नहीं दिया है। बस, उस दिन उन्होंने स्कूल ही छोड़ दिया और घर पर रहकर खूब पढ़ार्इ की। मन को एकाग्र करके यह स्वयं पढ़ने लगे और इन्होंने गणित के नए-नए सिद्धांत खोजे। यही बालक बड़े होकर आइन्सटीन के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन जैसा कोर्इ संसार में गणितज्ञ ही नहीं हुआ।
अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का बचपन
एक ऐसा ही किस्सा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन का है। वह बचपन से ही बेहद परोपकारी थे। एक बार की बात है सुबह-सुबह का समय था। एक स्त्री रो रही थी उसका बच्चा नदी में गिर गया था। इतने में बालक जार्ज दौड़ता हुआ आया और छपाक से पानी में छलांग लगा दी। बहुत मेहनत के बाद वह बच्चे को निकालने में सफल हुए। और उस बच्चे को बहाव से बाहर निकालने में सफल हुए।
और उस बच्चे को पीठ पर बैठाकर उसे किनारे पर ले आए। महिला ने बालक को शाबासी दी। वही बालक बड़े होकर जार्ज वाशिंगटन के नाम से मशहूर हुए।
राष्ट्रपति गारफील्ड़ का बचपन
बच्चों, अमेरिका के एक अन्य राष्ट्रपति गारफील्ड़ भी हुए हैं। उन्होंने बचपन से बेहद गरीबी देखी। वह गांव से लकड़ी काट कर शहर बेचने जाते थे लेकिन पढ़ने की धुन सवार थी।
पता है, उन्हाेंने पुस्तकालय में सफार्इ कर्मचारी के रूप में भी काम किया लेकिन पढ़ने के शौक को कभी नहीं छोड़ा। स्कूली पढ़ार्इ, पुस्तकालय के अध्ययन, लग्न, परिश्रम से उन्हें दूसरी नौकरी भी मिल गर्इ। प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए यह अमेरिका के राज्य सभा के सदस्य चुने गए और अगले चुनाव में लोगाें के प्यार ने इन्हें राष्ट्रपति बना दिया।
ड़ा. हरगोबिंद खुराना का बचपन
9 जनवरी, 1922 में जन्में ड़ा. हरगोबिंद खुराना जोकि नोबेल पुरस्कार विजेता रहे। वह अपने पांच भार्इ-बहनों में सबसे छोटे थे। पढ़ार्इ में तेज होने के कारण उन्हें तीसरी कक्षा से छात्रवृति मिलनी शुरू हो गर्इ थी। पता है, जब उनकी माता जी रोटी बनाती थी तो वह रेस लगाते थे, देखते हैं मां, तुम्हारी रोटी तवे से पहले उतरती है या मेरा सवाल पहले हल होता है।
उड़नपरी पी.टी.का बचपन
उड़नपरी पी.टी. उषा को कौन नहीं जानता। खेल-मैदान की रानी उषा ने बचपन से बहुत मेहनत की। जब वह केवल ग्यारह वर्ष की थी तो वह खेल-कूद प्रतियोगिता में भाग लेने की खूब मेहनत कर रही थी। प्रतियोगिता शुरू होने के तीन दिन पहले ही उनके पांव में चोट लग गर्इ।
लेकिन चोट की चिंता किए बिना वह लगातार अभ्यास करती रही। अपनी कक्षा की सबसे दुबली-पतली ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया जब वह प्रथम आर्इ।
उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और भारतीय खेलों में चमकता सूरज बन कर उभरी।
तो बच्चों, ऐसा था इनका बचपन। मेहनत, लग्न, जोश और परिश्रम से भरा। बस, मन में काम की लग्न हो और आंखों में सपने हो तो कोर्इ भी रास्ते में रूकावट नहीं बन सकता। बस……….अपने जीवन में एक लक्ष्य रखना चाहिए और उसी को पाने के लिए जुट जाना चाहिए। फिर देखना सफलता आपके कदमों में होगी।
ऐसा था इनका बचपन – आपको कैसी लगी कहानियां … जरुर बताईगा !!
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