Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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June 17, 2015 By Monica Gupta

मेहमान नवाजी

अतिथि कब आओगेंguests  photo
सुन कर बहुत अजीब लग रहा होगा कि कब आओगे…पर यह सही और सच लिखा है ..आमतौर पर हम किसी के आने से खुश नही होते… इसके ढेर सारे कारण है…. सारे तो बताने सम्भव नही पर कुछ इस प्रकार हैं…  एक तो घर की दिनचर्या बिगड जाती है .. अगर कामकाजी महिला है तो डबल दिक्कत …घर पर अगर ज्यादा छोटे बच्चे हैं तो तीन गुणी दिक्कत और घर मे कोई बीमार है तो चार गुणा दिक्कत .. महेमान आने पर स्टोर से बर्तनो का सैट निकालना पडता है .. बिस्तर निकालने पडते है. नमकीन मीठा और शरबत ज्यादा मगँवा कर रखना पडता है..इत्यादि .. ..इत्यादि इत्यादि… अब भाई… इतने नुकसान है तो फायदा क्या है.
तो जनाब फायदा यह है कि बहुत दिनो से गंदे घर की सफाई हो जाती है रसोई घर साफ हो जाता है.स्नान घर मे पिचके हुए 3-4 टूथपेस्ट और शैम्पू के 5-7 रैपर और छोटे छोटे साबुन और साबुन दानी तुरंत साफ कर दी जाती है.

अलमारी भी साफ की जाती है कि कही महेमान गलती से खोल ना ले… बैठक के कमरो की भी सफाई की जाती है सोफे के गदे के नीचे जो अखबार बिल या फिल्मी किताबे पडी होती हैं साफ की जाती हैं. रद्दी दे दी जाती है.

आगंन के गमलो मे गुडाई की जाती है .. नए पौधे लगाए जाते हैं मानो सारे पर्यावरण की हमे ही चिंता है.

खुद को घर एक दम साफ साफ लगता है. हां …  वो बात अलग है कि जब महेमान वापिसी की टिकट साथ लेकर आता है तो मन खुशी से नाच उठता है लेकिन जब टिकट भी नही हो और वो जम ही जाए तो बेचारा मन जाने अनजाने बोल उठता है… कब जाओगे अतिथि …
आप मेरी बात से सहमत है या नही .. जरुर बताना ..जल्दी बताना .. क्योकि आजकल छुट्टियां ही चल रही है … और टिग टांग … ओह मेरे घर की घंटी बजी … अरे बाप रे बाप … आज सुबह से ही लिखने का काम कर रही हूं घर इतना फैला हुआ है कि ध्यान ही नही दिया … कही कोई मेहमान वेहमान आए गए तो … नही ….. !!!

June 17, 2015 By Monica Gupta

एक पत्र चोर के नाम

एक पत्र चोर के नाम

बाल साहित्य लेखन बच्चे की तरह  बहुत  मासूम होता है और इसे लिखते वक्त बाल मन मे उठने वाली सभी भावनाओ को पिरोना होता है… बाल साहित्य लिखना किसी चैलेंज़ से कम नही…

बच्चे का पैगाम, चोर के नाम

समझ नहीं आ रहा कि तुम्हें किस नाम से सम्बोधन करूँ प्रिय, तो तुम हो ही नहीं सकते क्योंकि तुमनें घर में मेरे मम्मी-पापा और बूढ़े दादा-दादी को बहुत रूलाया है। अन्य कोर्इ आपत्त्तिजनक सम्बोधन मैं कर नहीं सकता क्योंकि मेरे परिवार से मुझे ऐसे संस्कार ही नहीं मिले। लेकिन एक बात तो तय है कि तुम बुरे हो…………बहुत बुरे हो।

child photo

कल ही की तो बात है सुबह से हम कितने खुश थे। मुझे पता लगा था कि हमारे घर नन्हा-मुन्हा मेहमान आने वाला है। मम्मी भी कितनी प्यारी लग रही थी, भगवान जी के सामने हाथ जोड़कर वह कितनी देर तक लक्ष्मी माँ को निहार रही थी और सुबह से ना जाने कितनी बार मेरा माथा चूम रही थी।

शाम को मैंने ही जिदद की थी कि हम होटल में खाना खाने जाऐंगे, मम्मी का भी चटपटी चीज खाने को मन था। अत: पापा भी दफ्तर से जल्दी छुटटी लेकर आ गए थे। वह सरकारी नौकरी में हैं, पहले मेरे दादू भी सरकारी नौकरी में थे पर रिटायर होने के पश्चात वह गाँव में रहने लगे। मम्मी की खुशखबरी सुनकर वह और दादी भी बधार्इ देने आए थे।

अगले महीने मेरे चाचा की शादी होनी थी तो खूब खरीददारी भी चल रही थी। मैंने घोड़ी पर चाचा के साथ बैठना था इसलिए मेरी अचकन, पगड़ी और बहुत बड़ा मोतियों का हार लाए थे। मम्मी ने सब सम्भाल कर अपनी अलमारी में रखा हुआ था। माँ ने भी अपने पसन्द की सुन्दर साडि़यां खरीदी थी और पापा ने भी ढ़ेर सारी खरीददारी की थी।
चोर, तुम तो जानते ही हो, र्इमानदारी से सरकारी नौकरी करने वाले की आय क्या होती है। वैसे, मेरे पापा ने हमें किसी भी चीज़ की कभी तंगी नहीं होने दी। वह सिर ऊँचा करके चलते और कभी भी गलत बात सहन नही करते थे। अच्छा तो मैं बता रहा था कि शाम को होटल से खाना खाकर जब हम निकले तो सोचा अगर सिनेमा के टिकट मिल जाते हैं तो शो ही देख लेंगे। भाग्यवश कहो या दुर्भाग्य वश टिकट मिल गए और हम रात को बारह बजे घर पहुंचे।
पापा को घर पहुंचते ही कुछ गड़बड़ लगी। पापा लार्इट जला कर जेब से चाबी निकाल ही रहे थे कि दरवाजे का ताला टूटा पड़ा था। पापा स्वयं को संयत करके दादू का हाथ पकड़ कर घर के अन्दर दाखिल हुए तो घर खाली-खाली सा नजर आ रहा था। टी.वी., टेप-रिकार्डर  और दीवार घड़ी कहीं नजर नहीं आ रहे थे।
पूरे घर को इस तरह से उलट-पुलट कर रखा था मानों अभी-अभी भूचाल आया हो। मम्मी की अलमारी से सारे कपड़े जमीन पर बिखरे पड़े थे और उसमे रखा नकदी और जेवर सब गायब था। वैसे मुझे पता नहीं मम्मी के पास क्या-क्या था पर इतना पता है कि मम्मी एकदम सन्न होकर पलंग पर गिर पड़ी थी और पापा ने मुझे पानी लाने के लिए दौड़ाया।
रसोर्इघर के पास ही हमारा छोटा सा मंदिर है उस लक्ष्मी गणेशजी के मंदिर में रखा सारा चढ़ावा भी ले गए और हनुमान जी की गुल्लक को जमीन पर फैंक कर उसे तोड़ कर उनकी रोजगारी भी ले गए। मुझे परसों ही कक्षा में प्रथम आने पर सोने का तमगा (गोल्ड़ मैड़ल) मिला था जोकि मैंने गणेश जी की मूर्ति गिरा कर ले गए।
हर कमरे का ताला टूटा हुआ था। कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। पडोसी भी सब घर पर इकटठा हो रहे थे। सदा मुस्कुराने वाली मेरी मम्मी को देख कर मेरी आँखों से आँसू बहे ही जा रहे थे। मम्मी की नर्इ साडि़यां, मेरी शादी के लिए तैयार की गर्इ अचकन भी ले गए। हमारे ही घर का सामान, हमारी ही अटैची और बैग में भर-भर कर ले गए।
पता नहीं, तुम कितने लोग आए थे और क्यों आए थे। आखिर हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था। मुझे पता है कि पापा ने किस तरह रूपया-रूपया जोड़कर छोटा सा रंगीन  टेलिविज़न खरीदा था और मेरी मम्मी कालोनी के बच्चों को घर पर पढ़ाती ताकि मैं सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ संकू।
लेकिन आज मैं बहुत उदास बेबस और मायूस महसूस कर रहा हूँ

और चोर, तुमको पत्र लिख रहा हूँ। पापा मेरे आँसू पोंछते हैं लेकिन खुद के दस-दस आंसू टपक जाते हैं, मुझे हिम्मत देते हैं और खुद………… कमजोर पड़ जाते हैं। अचानक मम्मी को रात ही को अस्पताल ले जाना पड़ा मुझे नहीं पता क्या बात है पर दादी ने बताया कि अचानक उनकी तबियत खराब हो गई अब वह कल वापिस घर आऐंगी। मुझे ज्यादा समझ तो नही पर इतना जरुर कह सकता हूं कि कोई न कोई बात मुझसे जरुर चिइपाई जा रही थी क्योकि अस्पताल से आने के बाद सभी दबी आवाज में कुछ बातें कर रहे थे.
घर में पुलिस भी आर्इ। उन्होंने हमारे बयान  भी लिखे पर सामान कब मिलेगा और मिलेगा या नहीं इसका किसी को नहीं पता। पर इतना पता है आज खुशी हमारे घर से दो सौ मील दूर भाग गर्इ हैं। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि वह समय के साथ सब ठीक कर देगा और मेरी मम्मी भी अस्पताल से जल्दी ही वापिस आ जाएगी।
चोर, अगर जाने-अनजाने तुम मेरा यह लेख पढ़ रहे हो तो मैं तुम्हारे सामने आँसू भरी आँखें और हाथ जोड़ कर विनती करता हूँ कि प्लीज़, चोरी करना छोड़ दो। इस महंगार्इ के समय में हर आदमी तिनका-तिनका जोड़ कर अपना आशियाना बनाता है तुम उसे एक झटके में मत ले जाओ…….. मत ले जाओ…….. मत ले जाओ……..

एक बच्चे का चोर के नाम पैगाम आपको कैसा लगा ??? जरुर बताईएगा !!!

June 17, 2015 By Monica Gupta

बाल कहानी अहसास

 

 writing on paper photo

बाल कहानी अहसास

प्रिय मम्मी,

मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपको क्या और कैसे लिखूं पर मुझे माफ कर दो। मेरी उन गलतियों की जोकि मैंने की और आपको तंग किया। आप आज अस्पताल में मेरी ही वजह से हैं, लेकिन सच मानो, मेरा न तो कोर्इ गन्दा दोस्त है और न ही मैं इंटरनेट या टी.वी. देखकर बिगड़ा हूं। मुझे खुद भी नहीं पता कि मैं ऐसा क्यों हो रहा हूं। वैसे तो मैंने बहुत गलतियां की हैं पर कुछ एक के लिए मैं ………………!आपको याद होगा कि एक दिन आपने मुझसे बार-बार पूछा था कि चुप-चुप क्यों हूं। असल में मैंने जानबूझ कर अनिल को बाल मारी थी। उसे आँख के नीचे सात टांके लगे थे। नोटिस मिला कि आपको बुलाया है तो मैंने झूठ-मूठ अपनी तरफ से ही लिख दिया कि मैं बीमार हूं इसलिए आ नहीं सकती। आपके सार्इन भी कर दिए थे। झूठ के हस्ताक्षर किये थे ना इसलिए डर रहा था कि सच्चार्इ पता लगेगी तो मैं फँस ही ना जाऊँ। एक बार जब आपने मेरी पसन्द का खाना नहीं बनाया तो मैं मुंह फुला कर अपने कमरे में चला गया था।

सन्नी लिख ही रहा था तभी दरवाजे की घंटी बजी। सन्नी ने फटाफट अपनी चिठ्ठी तकिए के नीचे छिपा दी और दरवाजा खोलने चला गया। बाहर सन्नी के दादा जी खड़े थे। वो अन्दर आ गए और बोले कि उसकी मम्मी को ग्लूकोज लग रहा है, ब्लड़ प्रेशर बहुत कम है। एक घण्टे में उसके पापा खिचड़ी लेने आएंगे। चाची बनाकर तैयार रखेगी। सभी ने हामी की मुद्रा में गर्दन हिला दी। चाची मम्मी की बीमारी के कारण कुछ दिनों के लिए यहां आर्इ हुर्इ हैं, पर चाची को अपने बेटे नमन के अलावा कोर्इ दिखता ही नहीं, सन्नी से तो वो सीधे मुंह बात ही नहीं करती। कल मैगी बनार्इ और चाकलेट केक बनाया तो सारा अकेले ही नमन ही खा गया। सन्नी सोच रहा था कि मम्मी होती तो उसका कितना ख्याल रखती। सन्नी ने दादाजी को बताया कि उसकी चाची अभी बाजार गर्इ हुर्इ है। आने वाली होगी।

दादाजी अपना न्यूज चैनल लगा कर बैठ गए। सारा घर कितना गंदा हो रहा था। उसकी मम्मी सारा दिन घर कितना साफ रखती थी। सन्नी अपनी बात मम्मी तक चिठ्ठी के माध्यम से पहुंचाना चाह रहा था। उसे डर लग रहा था कि वो जल्दी से चिठ्ठी लिखे, और वो उड़ कर उसकी मम्मी तक पहुंच जाए और मम्मी उसको माफ करके ठीक होकर जल्दी से घर आ जाए।
सन्नी की मम्मी सन्नी को बहुत प्यार करती थी। पर जबसे सन्नी आठंवी क्लास में आया है तभी से कुछ बदल गया है। सीधे मुंह बात नहीं करता, उलटे सीधे जवाब देता, मम्मी कोर्इ घर का काम कहती तो साफ मना कर देता। मम्मी ने कर्इ बार प्यार से तो कर्इ बार गुस्से से समझाया पर उसने कभी समझने की कोशिश नहीं की। लेकिन आज शायद मम्मी को अस्पताल तक ले जाने का दोषी शायद वो खुद ही है।
सन्नी जल्दी से चिठ्ठी लिख कर मम्मी तक पहुंचाना चाहता था। वो चाह रहा था कि जब अस्पताल में मम्मी के लिए खिचड़ी जाए तो वो चिठ्ठी भी चली जाए। उसकी चाची भी बाजार से आ गर्इ थी और बर्तनों की उठा-पटक तेज हो गर्इ।
सन्नी अपने कमरे में गया और तकिए के नीचे से चिठ्ठी निकाली ………….. कमरे में चला गया था। उसने आगे लिखना शुरू किया …………. मम्मी, आपने बहुत मनाया और रात को होटल से खाना मंगवाने का वायदा भी किया पर मैं मुँह बना कर ही पड़ा रहा और उसी शाम मैंने आपके पर्स से पाँच सौ रूपये चुरा लिए थे। आप तो मेरे ऊपर शक कर ही नहीं सकती थी और काम वाली बाई तुलसी को आपने काम से निकाल दिया। वो बेचारी रोती रही कि उसने चोरी नहीं की ……….। उसके बाद आपने दूसरी कामवाली भी नहीं रखी और मैंने भी आपको सच्चार्इ नहीं बतार्इ। एक बार संजय अंकल आए थे तो मैंने उनकी सिग्रेट भी पी थी पर थोड़ी सी।
जब आप हर रोज सुबह मुझे स्कूल जाने के लिए उठाती, मुझे दूध देती और मेरे बालों को सहलाती तो मुझे बड़ा गुस्सा आता कि क्या है, सुबह-सुबह मेरी नींद खराब कर देती हैं ……….. काश मम्मी की तबियत ही खराब हो जाए ताकि न मुझे दूध पीना पड़े और न ही स्कूल जाना पड़े। सारा दिन घर पर मजे से बैठ कर टी.वी. देखूं। पर मम्मी, सच, आज आपको अस्पताल गए चार दिन हो गए हैं। लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है कि चालीस दिन हो गए हैं।

मम्मी, आपकी बहुत याद आ रही है अब प्लीज, घर आ जाओ। मेरी सारी गलतियों की सजा पिटार्इ करके दे दो। सन्नी के लिखे अक्षर धुंधले हो गए। पर वो जल्दी से चिठ्ठी लिखकर उसे मम्मी तक पहुंचाना चाह रहा था इसलिए उसने फटाफट आँसू पोंछे और लिखना जारी रखा।
मम्मी, मैं आपसे माफी मांगता हूं और वायदा करता हूं कि जितना प्यार से आप मुझसे बात करती हो उससे भी ज्यादा प्यार से रहूंगा आपका कहना मानूंगा और आपके हाथ से सुबह-सुबह दूध पी पीऊंगा। मम्मी पता है आज मैं मंदिर भी गया था वहां से चरणामृत पीकर आपकी तबियत की भगवान से विनती की कि हे भगवान जी, मेरी मम्मी को फटाफट ठीक कर दो।
तभी आवाज आर्इ कि उसकी चाची ने सारा सामान टोकरी में रख दिया है। सन्नी के पापा भी घर आ गए थे बोले कुछ तबियत ठीक है। उसने फटाफट कागज मोड़ कर उस पर ‘सिर्फ मम्मी के लिए लिख दिया और प्लेट के नीचे नैपकिन के ऊपर अपनी चिठ्ठी को धड़कते दिल से रख दिया। मम्मी का हँसता चेहरा बार-बार उसे नज़र आ रहा था।
पापा जल्दी में थे और चले गए। सन्नी डर रहा था। मम्मी पढ़ेगी तो क्या सोचेगी ……….. अगर उस चिठ्ठी को किसी और ने पढ़ लिया तो ……….!!
पर अब कुछ नहीं हो सकता था चिठ्ठी जा चुकी थी। सन्नी को खुद पर गुस्सा आने लगा कि उसने इतनी जल्दी में चिठ्ठी क्यों दे दी। ना नीचे ढ़ंग से अपना नाम लिखा। बिना खाना खाए अपना कमरा ठीक करके वो चुपचाप सो गया। चाची एक बार उससे खाने का पूछने आर्इ लेकिन उसके मना करने पर उन्होंने दुबारा उससे पूछा नहीं। बस, अब सन्नी मन ही मन चाह रहा था कि मम्मी जल्दी घर आ जाए …………. तो वो कभी भी मम्मी को तंग नहीं करेगा। उधर उसे चिठ्ठी का भी डर लग रहा था कि मम्मी उसके बारे में क्या सोचेंगी। वो मन ही मन चाहने लगा कि मम्मी वो कागज देखे ही नहीं और खाना वापिस आने पर वो उस चिठ्ठी को फाड़ कर फैंक देगा। और हमेश के लिए अच्छा बच्चा बन जाएगा। यह बात भी बिल्कुल सच है कि उसकी मम्मी बहुत प्यार करती थी और जब वो बतमीजी से बोलता, कहना नहीं मानता तो वो उसकी बातें दिल से लगा लेती उधर से काम वाली बार्इ के जाने के बाद वो सारा काम खुद करने लगी। टैन्शन और काम के बोझ से अचानक उनकी तबियत बिगड़ गर्इ और अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा। आज सन्नी को महसूस हो रहा था कि वो मम्मी के बिना  कुछ भी नहीं। पापा तो काम में ही व्यस्त रहते हैं और दादी-दादा गाँव में रहते हैं चाची-चाचा दूसरे शहर में रहते हैं।
यहीं सोचते-सोचते वो सो गया। शाम को आँख खुली तो पापा की आवाज आ रही थी कि अस्पताल में उन्होंने खाना नहीं खाया। पर तबियत बेहतर है शायद कल घर ही आ जाए। सन्नी उठ कर बाहर भागा। उसने टोकरी में देखा तो चिठ्ठी वैसी ही रखी मिल गर्इ शायद किसी ने पढ़ी ही नहीं थी। सन्नी ने फटाफट टोकरी से वो चिठ्ठी निकाल कर उसे अपनी अलमारी में छिपा दिया। सोच कि समय मिलने पर फैंक दूंगा।
मम्मी कल घर आ जाएगी तो आज घर का माहौल कुछ हलका था। सन्नी सभी से बात कर रहा था और चाची के साथ घर की सफार्इ भी करवा रहा था। उसमें एक नया जोश भरा था।
बड़ी मुश्किल से दिन बीता। दोपहर को मम्मी घर आ गए। वो बहुत कमजोर लग रही थीं। सन्नी ने मम्मी को फल काट कर दिए। शाम को मम्मी के पास ही लेटा रहा था। एक-दो दिन में चाची और दादा जी भी चले गए थे। मौका मिलते ही उसने वो चिठठी भी फाड़ कर फैंक दी थी। मम्मी अब काफी ठीक होने लगी थी।

पर एक बात सन्नी को कभी पता नहीं लगेंगी कि उस दिन मम्मी ने उसकी चिठ्ठी पढ़ ली थी लेकिन सन्नी को महसूस तक नहीं होने दिया ताकि उसे दुख न हो कि उनके बेटे ने कितने गलत काम किए हैं। पर अब उसने गलती सुधार ली है और वायदा किया है तो उनके लिए यही बहुत था। उस दिन अस्पताल में चिठ्ठी पढ़ने के बाद उनसे खाना नहीं खाया गया और सन्नी की बाल सुलभ भावनाओं को समझते हुए चिठ्ठी उसकी जगह पर रखकर उन्होंने वापिस भिजवा दी थी। घर में ये बात किसी को भी पता नहीं चली।
अब सब ठीक है। सन्नी अच्छा बच्चा बन गया है। मम्मी का कहना मानता है और स्कूल में किसी से झगड़ा नहीं करता। सन्नी खुश है कि मम्मी ने उसकी चिठ्ठी नहीं पढ़ी और मम्मी खुश है कि सन्नी ने चिठ्ठी में अपनी सारी गलितयों को मानकर माफी माँग ली है और अब वो सुधर रहा है। तुलसी ने भी काम पर आना दुबारा से शुरू कर दिया। सन्नी ही उसे लेकर आया। मम्मी के पूछने पर सन्नी ने बताया कि जब आपकी तबियत बिल्कुल ठीक हो जाएगी तब दुबारा हटा देना। मम्मी ने सब जानते-बूझते उससे कुछ नहीं कहा और मेरा अच्छा बेटा कहकर उसे बाँहों में ले लिया।

बाल कहानी अहसास …. कहानी आपको कैसी लगी… आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार है 🙂

June 17, 2015 By Monica Gupta

अब तक 35

ab tak 35 by monica                                               अब तक 35

कई बार हम पूरा लेख लिख देते हैं पर उसका टाईटल समझ नही आता. कई बार टाईटल दिमाग में आ जाता है पर लेख क्या लिखे ये समझ के बाहर होता है. इस व्यंग्य को लिखने के बाद माथा पच्ची शुरु हुई कि क्या नाम दिया जाए. बहुत घोडे दौडाए पर जब बिल्कुल भी समझ नही आया तब टीवी चला लिया उन दिनों अब तक 56 फिल्म बहुत प्रचार मे थी. बस … मुझे भी नाम मिल गया … क्योंकि 35 व्यंग्य थे इसलिए नाम दे दिया “अब तक 35”

“अब तक 35”  में मेरे लिखे 35 हास्य व्यंग्य हैं. ये मेरी चौथी किताब है. इसमें अधिकतर राष्ट्रीय समाचार पत्र जैसे “दैनिक भास्कर” के राग दरबारी कालम,  “दैनिक जागरण “आदि तथा कुछ आकाशवाणी जयपुर और हिसार  में प्रसारित हुए हैं. उन सभी को मिला कर इसे पुस्तक का रुप दिया है. सन 2009 में दिल्ली के शिल्पायन द्वारा प्रकाशित किताब में 103 पेज हैं.

उसी में से एक हास्य व्यंग्य आपके समक्ष है …

एक्सीडेंट हो गया ……!!!
जुल्फी मियां घबराए हुए चले आ रहे थे । चेहरा सुर्ख लाल, हाथ-पांव कांपते हुए मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि मियां, आज तो एक्सीडेंट हो गया .  यार-दोस्त उनकी हालत देखकर घबरा गए । छोटू को चाय आर्डर किया और उन्हें कुर्सी पर बैठाकर खैर-खबर जाननी चाही कि आखिर हुआ कैसे कि इतने में सतीश बोल पड़ा, यार सड़क पर इतने गड्डें हैं, कोर्इ हाल है क्या, वहीं उलझ गए होंगे और एक्सीडेंट हो गया हेाना है ।

मनप्रीत ने अपनी राय रखी, ओये! तेनू की पता …. ऐ लोकल बसैं होन्दी हैं ना उसदे ऊपर लटक-लटक के जान्दें ने लौकी ……. मैं तां कहदां हां की जुल्फी मियां भी किसे बस इच लटक के जा रहे होंगे तैं उदैं विचों डिग पए होणगे ।

तभी रोनी ने टोका, हे मार्इप्री, मनप्रीत गुस्से से बोला, ओए नां ठीक लया कर … अंग्रेजी दा पुत्तर …….गल करदा है … मैंने बात गिड़ते देख उनकी सुलह करवार्इ और रोनी से पूछा तो उसने बताया कि वेरी सिम्पल, द ओनली रीजन इज मोबाइल यार ! पीपल टाक टू मच वार्इल ड्रार्इविंग, आर्इ थिंक दिस इस द ओनली रिजन आफ एक्सीडेंट ।

तभी तार्जन अपनी तातली आवाज में बोला, मु…….. मुझे पता है……… तोर्इ गाय तामने अचानक आ दर्इ होगी । औल तुल्फी मियां चलक पल गिल पले होंदे। तभी खुद को हीरो समझने वाला शहिद बोला, ओ कम ओन यार, यू नो, ये सब दोस्ती का चक्कर है । मोटरसाइकिल और स्कूटर या साइकिल चलाते समय एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते हैं और गाना गाते सड़क पर अपना दुपहिया भगाते हैं । आर्इ थिंक, दिस इज द रिजन, फ्रेंडस ।

तभी कमल हकलाता हुआ बोला …..त ….त……त…..तुम…..स…. सब गलत हो…….! इ…….इतना ….स…. स….. सारा काफिला च…. च….. चलता ……. है ……. ब …..ब ….बस ……. किसी …….. ग….. ग….. गाड़ी…… ने ठोक दि…. दि…. दिया होगा ! बे…. बे…. बेचारे ….. जु….. जु…. जुल्फी मियां ……..! तभी मेरा ध्यान जुल्फी मियां की तरफ गया । चाय उनके हाथ में ज्यों की त्यों रखी थी और चाय में काली मलार्इ जम चुकी थी ।

किसी गहरी सोच में डूबे जुल्फी मियां ने फिर बताया कि उनका एक्सीडेंट हो गया । मैंने भी पूछा क्या कोर्इ शराब पीकर गाड़ी चला रहा था जो उसने टक्कर मार दी । उन्होंने न की मुद्रा में सिर हिलाया । इसी बीच में छोटू गर्म चाय का नया गिलास देकर चला गया था । मैंने फिर पूछा कि कहीं बंद फाटक के नीचे से तो नहीं निकल रहे थे कि ट्रेन आ गर्इ हो । उन्होंने फिर से न की मुद्रा में सिर झटक दिया । हम सब हैरान परेशान हो चुके थे पर जुल्फी मियां हमारी किसी भी बात से सहमत ही नहीं थे । हम आपस में बातें करने लगे कि आजकल बस या जीप के ड्रार्इवर के पास लाइसेंस तो होता नहीं है बस ड्राइवर बन जाते हैं और छोटे-छोटे बच्चे धड़ल्ले से स्कूटी, कार, मोटरसाइकिल चलाते हैं ।

तभी जुल्फी मियां ने चाय का गिलास मेज पर रखा और चिल्लाते हुए बोले नहीं, अम्मा यार, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । वो तो ….. वो तो….. राह से गुजरते वक्त चश्मेबददूर  बानो हमें मिल गर्इ थी । हमारी उनसे और उनकी हमसे ….नजरें इनायत हुर्इ… और फिर चार हुई … बस समझो कि ऐसा एक्सीडेंट हुआ कि….. बस…..!! ये कहते हुए खुदा हाफिज करते हुए, मुस्कुराते हुए बाहर निकल लिए और हम सब अपना सिर पकड़ कर बैठ गए ।

 

कैसा लगा ??? आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है … 😆

June 16, 2015 By Monica Gupta

स्वच्छता एक अहसास

स्वच्छता एक अहसास

sawacchta  book by monica gupta

स्वच्छता एक अहसास…

2009 में प्रकाशित हुई ये मेरी तीसरी किताब है. 56 पेज की है तो ये छोटी सी किताब पर इस किताब में आसाधारण गांव के लोगों की जागरुकता का वर्णन है कि कैसे मात्र 90 दिन में उनमें जागरुकता आई और हरियाणा के सिरसा के 333 गांवों को स्वच्छ बना दिया.

स्वच्छता एक अहसास

पुस्तक को लेकर आपके मन में ढ़ेरो सवाल उठ रहें होंगें कि आखिर इस पुस्तक के माध्यम से स्वच्छता का अहसास कैसे करवाया जा सकता है। सच पूछो तो, हम सभ्य समाज के सभ्य नागरिक हैं, पढे़- लिखे और समझदार भी हैं लेकिन सही मायनों में देखा जाए तो अनपढ़ और असभ्य की श्रेणी में आते हैं क्योंकि जिस समाज में हम रहतें हैं उसी को गंदा कर रहें हैं।

यहां बात भ्रष्टाचार की नहीं बलिक उस कूडे़- कर्कट की है जो हमारें चारों तरफ फैला है और कूडेदान एक तरफ खडे़- खडे़ गंदगी का मुँह ही ताकते रह जातें हैं और तो और सड़क के किनारें, दीवारों की ओट को शौचालय का रूप देकर दिन-रात गंदगी में इजाफा किया जा रहा है। सड़क पर चलते हुए थूकना और पूरी सड़क को कूडादान समझना आम बात है।

अगर यह पढ़े- लिखे सभ्य समाज को चित्रित करता है तो गाँव वालों को किस श्रेणी में रखेंगें क्योंकि वो तो वैसे भी अनपढ़, सीधे-साधारण गरीब, किसान और मज़दूर होतें हैं।
स्वच्छता एक अहसास
भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत गाँव वासियों की सोच में एक ऐसा बदलाव, ऐसी जागरूकता देखने को मिली जिसकी सपनें में भी कल्पना नहीं की जा सकती थी। बस, यहीं मुझे पुस्तक लिखने का मकसद मिल गया कि आज जो अहसास इन गाँव वासियों को हो रहा है उसकी महक उन लोगों तक भी पहुँचे जो अभी तक इससे अछूते हैं।

मैनें अपनी तरफ से पुस्तिका में स्वच्छता और उससे आए बदलाव के बारे में जानकारी देने की पूरी कोशिश की है और मुझे उम्मीद ही नही पूरा विश्वास है कि इसको पढ़ने के बाद आप भी और लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने में मदद करेंगें।

स्वच्छता एक अहसास  …

स्वच्छ भारत मिशन …

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) पंचायतीराज विभाग, भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही एक महत्वपूर्ण योजना है जिसका पूर्व में नाम निर्मल भारत अभियान था। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के निम्न उद्देश्य हैं:-
1. ग्रामीण क्षेत्रों के सामान्य जीवन स्तर में सुधार लाना।
2. समस्त ग्राम पंचायतों को निर्मल एवं स्वच्छ बनाना।
3. ग्रामीण क्षेत्र के समस्त शासकीय विद्यालयों को स्वच्छता सुविधाओं (स्वच्छ स्कूल शौचालय जलापूर्ति सहित) से आच्छादित करना साथ ही छात्र-छात्राओं को स्वास्थ्य, शिक्षा एवं साफ-सफाई की आदतों को बढ़ावा देना।
4. ग्रामीण क्षेत्र के समस्त आंगनवाड़ी केन्द्रों को स्वच्छता सुविधाओं से आच्छादित करना।?
5. सामान्य पर्यावर्णीय स्वच्छता हेतु ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबन्धन अर्थात् कूड़े कचरे एवं बेकार पानी की उचित निकासी पर कार्य करना।
मानव मल एवं पर्यावरण में इधर-उधर पड़े कूड़े-कचरे एवं बेकार पानी के कारण विभिन्न प्रकार के रोग जैसे डायरिया, मलेरिया, कालरा, जापानी इन्सेफ्लाइटिस, पोलियो जैसी भयानक बीमारियों की रोकथाम हेतु, जल स्रोतों को सुरक्षित रखने हेतु, पर्यावर्णीय स्वच्छता हेतु यह योजना अत्यन्त आवश्यक है।हमारे प्रधान मंत्री जी द्वारा आरम्भ किया गया

महात्मा गांधी ने जिस भारत का सपना देखा था उसमें सिर्फ राजनैतिक आजादी ही नहीं थी, बल्कि एक स्वच्छ एवं विकसित देश की कल्पना भी थी। महात्मा गांधी ने गुलामी की जंजीरों को तोड़कर मां भारती को आजाद कराया। अब हमारा कर्त्तव्य है कि गंदगी को दूर करके भारत माता की सेवा करें। मैं शपथ लेता हूं कि मैं स्वयं स्वच्छता के प्रति सजग रहूंगा और उसके लिए समय दूंगा।

हर वर्ष 100 घंटे यानि हर सप्ताह 2 घंटे श्रमदान कर के स्वच्छता के इस संकल्प को चरितार्थ करूंगा। मैं न गंदगी करूंगा न किसी और को करने दूंगा। सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मुहल्ले से, मेरे गांव से एवं मेरे कार्यस्थल से शुरुआत करूंगा।

मैं यह मानता हूं कि दुनिया के जो भी देश स्वच्छ दिखते हैं उसका कारण यह है कि वहां के नागरिक गंदगी नहीं करते और न ही होने देते हैं। इस विचार के साथ मैं गांव-गांव और गली-गली स्वच्छ भारत मिशन का प्रचार करूंगा। मैं आज जो शपथ ले रहा हूं, वह अन्य 100 व्यक्तियों से भी करवाऊंगा। वे भी मेरी तरह स्वच्छता के लिए 100 घंटे दें, इसके लिए प्रयास करूंगा। मुझे मालूम है कि स्वच्छता की तरफ बढ़ाया गया मेरा एक कदम पूरे भारत देश को स्वच्छ बनाने में मदद करेगा।

 

राजस्थान सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों को अब घरों में शौचालय बनाना अनिवार्य कर दिया है.

राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों को अब घरों में शौचालय बनाना अनिवार्य होगा. सरकार से पचास हजार का कर्जा लेने वाले काश्तकारों के लिए भी कर्ज लेने के लिए इस शर्त को पूरा करना होगा.

राज्य सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन योजना के तहत मार्च 2018 तक प्रदेश को खुले में शौच से मुक्त करने के अनूठे कार्यक्रम में ऐसी कई शर्तें जरूरी की गई है.

खास यह कि कर्मचारियों को 20 जून तक शर्त की पालना के लिए निर्धारित प्रपत्र में उद्घोषणा करनी होगी। इसके आधार पर ही उन्हें जुलाई माह में होने वाली वार्षिक वेतन वृद्धि, मानदेय,ऋण आदि स्वीकृत के लाभ दिए जाएंगे. इस कार्यक्रम की निगरानी मुख्यमंत्री कार्यालय कर रहा है. : , – Regional News – Samay Live

June 15, 2015 By Monica Gupta

काश मैं अध्यापक होता

काश मैं अध्यापक होता

 

cartoon arvind kejriwal by monica gupta

काश मैं अध्यापक होता

वैसे बचपन से सपने सभी देखते हैं कि मै बडा होकर ये बनूगां या वो बनूगां. तो जनाब, मेरा भी बचपन से सपना था कि काश मैं अध्यापक बनूं इसलिए नही कि मै पढने मे बहुत होशियार था. असल मे, आप से क्या छुपाना. मैंं पढाई मे बहुत कमजोर था पर दिक्कत की कोई बात नही थी क्योकि हमारे सर जी टयूशन मे पूरी मदद करते थे और हम भी समय समय पर उनके घर का छोटा मोटा काम करके जैसे कि जन्मदिन पर उपहार ले जाना, कपडे प्रैस करवा करवाना, जूता ठीक करवाना ,दर्जी से कपडे लाना या गैस बुक करवाना और अक्सर अपना गैस सिलेंडर ही दे आना वगैरहा वगैरहा करके उन्हे खुश रखते और हमे जाने अनजाने पेपर की जानकारी हो जाती और बिना पढे ही पास हो जाते और तो और कई बार तो ऐसा भी हुआ कि जब पेपर चैक होने आते तो वो हमे पास बुला कर चुपचाप सारा पेपर लिखवा देते यानि पूरा सहयोग दोतरफा रहता.

शिक्षक की भूमिका

अब सर जी के इतने ऐशो आराम देख कर मन मे बचपन से ही इच्छा हिलोरे मारने लगी थी कि अगर कुछ बने तो टीचर ही बने और पूरी जिन्दगी आराम से बिताए क्योकि उन्हे ना तो स्कूल जाने की टेंशन और ना पैसो की क्योकि ट्यूशन से भरपूर कमाई थी.

क्या कुछ नही था उनके घर मे.सुख सुविधाओ का सारा सामान था.बच्चे अच्छे स्कूल के होस्टल मे पढ रहे थे . बस यही सब बाते दिल को छू गई और जब मैने अपनी दिल की बात सभी घर वालो को बताई तो घर के सभी लोग मेरा निणर्य सुन कर फूले नही समाए और जुट गए उसे पूरा करने मे.

अजी नही नही … पढाई और अच्छे अंक नही.बल्कि अच्छे सिफारिशी और खाऊ पीऊ नेता की तलाश में. बहुत जल्दी तलाश खत्म भी हो गई और कुछ सालो बाद मेहनत रंग लाई और मेरा सपना पूरा हुआ. पांच लाख रुपए देकर बात पक्की हो गई और मेरी पहली पोस्टिंग शहर से बहुत दूर के गांव मे सरकारी स्कूल के अध्यापक के तौर कर दी गई.

मै खुशी मे फूला ना समाया और अपना बोरिया बिस्तर लेकर नए सपने लिए गांव पहुंचा. सोचा था गांव के लोग स्वागत मे खडे होग़ें पर ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि कुछ लोग इस इंतजार मे खडे थे कि कब मास्टर आए और पढाना शुरु करे. खैर पहला दिन था ना सोचा धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा.

अगले दिन कक्षा लेते हुए मैने ट्यूशन का जिक्र क्लास मे कर दिया कि कोई भी आ सकता है. अगले दिन पूरा गांव स्कूल मे इक्क़ठा हो गया और धमकी भी दे डाली कि खबरदार आगे से ट्यूशन का नाम भी लिया.जो पढाना है जितना पढाना है स्कूल के समय मे पढाओ और फिर भी नतीजा अच्छा ना आया तो आपकी खैर नही….!

मैने बडी मुश्किल से थूक गटका और कक्षा मे चला गया. पढाते पढाते मै सोचने लगा कि शायद पिछले कुछ सालो मे समय बहुत बदल गया है. खैर मैने हिम्मत नही हारी. अगले सप्ताह मैने धोषणा कर दी कि आने वाली 16 को मेरा जन्मदिन है पर हाय रे यहां भी किस्मत ने साथ नही दिया.कक्षा मे खडे होकर सभी बच्चो ने ताली जरुर बजा दी पर किसी एक बच्चे की तरफ से उपहार ….अजी मतलब ही नही.

खैर, एक दिन मैने एक बच्चे से कहा कि अपने घर का 5 किलो शुद देसी घी लेकर आना क्योकि शहरो मे तो मिलावट होती है ना. लडका सुबह सुबह घी ले आया और पीछे पीछे उसके पिता डंडा ले कर पहुंच गए कि घी के पैसे अभी दे दो क्योकि अक्सर बाद मे उन्हे याद नही रहता. मेरा तो सिर ही घूम गया. मरता क्या न करता. उसी समय रुपए देने पडे वो भी शहरी रेट से ज्यादा. मेरे पूछ्ने पर वो बोले कि शुद्द घी है खालिस है तो पैसे तो यकीनन ज्यादा लगेंगे ही.

उधर स्कूल मे स्टाफ ना के बराबर था. लगभग 200 बच्चो के स्कूल मे एक मैं और एक दूसरे अध्यापक और एक चपडासी था. अक्सर सरकारी काम कभी गणना तो कभी किसी दूसरे काम से हमारी डयूटी लग जाती तो दूसरे टीचर की क्लास भी लेनी पडती और कई कई बार तो चपडासी भी बनना पडता.

कभी गलती से किसी बच्चे से पीने के लिए पानी मंगवा लिया तो अगले दिन पूरा गांव इक्ट्ठा हो जाता कि हमारे बच्चे यहां पढने आते है ना कि यहां के चपडासी हैं. मै स्कूल मे 5 मिनट कभी देरी से पहुंचता तो गांव वाले गेट पर ताला लिए खडे रह्ते कि ऊपर शिकायत करगें कि मास्टर देरी से आते है और धमकी देते कि अगर आगे देरी से आए तो स्कूल को ताला ही लगा देगें.

मेरे तारे पूरी तरह गर्दिश मे चल रहे हैं.कभी किसी बच्चे ने अच्छा काम किया और मैने प्यार से सिर पर हाथ फेर दिया तो गांव वाले भडक लाते है कि बच्चे को छेड दिया. मास्टर का करेक्टर सही नही है और अगर किसी बच्चे ने सही काम नही किया और मैने गुस्सा कर दिया तो भी मुसीबत खडी हो जाती कि मास्टर पिटाई करता है.

कुल मिला कर मै हैरान परेशान हूं कि मैने टीचर बनने का सपना क्यो देखा. बार बार खुद को चिकोटी काट रहा हूं कि काश यह सब सपना ही हो पर अफसोस यह सच है सपना नही.

अब मुझे कैसे भी झेलना ही पडेगा. काश मैं अध्यापक होता … की बजाय यह कहना ज्यादा सही है कि काश मै अध्यापक “ना” होता.

काश मैं अध्यापक होता

काश मैं अध्यापक होता  आपको कैसा लगा … जरुर बताईएगा !!

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