एन. रघुरामन- मैनेजमेंट फंडा – एक शख्सियत
एन. रघुरामन- मैनेजमेंट फंडा – एक शख्सियत
N Raghuraman Management Funda in Dainik Bhaskar
कुछ साल पहले मैनें बच्चों को प्रेरित करने के लिए एक किताब लिखी थी अब मुश्किल नही कुछ भी और सोच विचार उन नामों पर था जिन्होनें अपना बचपन बेहद साधारण रुप में यापन किया और आज आसाधारण प्रतिभा बन कर हम सभी का मार्ग दर्शन कर रहे हैं अपनी किताब के लिए मैने जिन आसाधारण प्रतिभाओं का साक्षात्कार लिया उनमें से एक हैं एन रघुरामन.. हम हमेशा उन का लिखा मैनेजमैंट फंडा पढते हैं पर आज पढिए रघु जी के बारे में…
एन रघुरामन
कहते है कि एक अच्छी किताब सौ दोस्तो के बराबर होती है पर एक अच्छा उत्साहित करने वाला दोस्त हो तो वो तो पूरी की पूरी लाइ्रब्रेरी ही होता है।
जी हॉ, अब जिस शख्सियत से आपकी मुलाकात होगी वो हजारो प्रेरक प्रंसगो और जागरूक करने वाले फंडो की चलती फिरती लाइब्रेरी से कम नही है। मैनेजमैंट फंडा के जनक श्री एन रघुरामन आज किसी परिचय के मोहताज नही है। लेखन के प्रति समर्पित नटराजन रघुरामन मध्य प्रदेश दैनिक भास्कर के स्टेट एडिटर है और समस्त सिटी भास्कर के मुखिया है।
मैनेजेमैंट फंडा के नाम से दैनिक भास्कर में नियमित रूप से कालॅम लिखने वाले रघु जी से जब मिलने का समय लिया तो उन्होने तुरन्त अपने व्यस्त कार्यक्रम से कुछ समय निकाल लिया और फिर शुरू हुआ बातो का सिलसिला। बाते शुरू करने से पहले एक बात मैने महसूस की कि रघु जी सादगी की जीती जागती मिसाल है जिससे भी मिलते है उसे अपना बना लेते है और ऐसा महसूस होने लगता है कि इन्हे तो हम बहुत पहले से ही जानते है।

13 मई 1960 को तमिलनाडू के तंजौर जिले के कुम्भाकोणम् मे इनका जन्म हुआ। इनकी मॉ जी श्रीमति जय लक्ष्मी गृहणी और पिता श्री वैकेटारामन नटराजन् वर्धा रेलवे स्टेशन जोकि गांधी आश्रम के पास था। उसी रेलवे में कार्यरत थे। रघुजी के दादाजी के भाई डा0 शंंकरन् महात्मा गांधी जी के तमिल टीचर थे।
वाह !! हैरानी से सारी बात सुने जा रही थी। उन्होने बताया कि इस कारण उनको भी आश्रम मे जाने का और गांधी जी से सम्बधित चीजो को पास से देखने का सुअवसर मिला। बताते बताते उनकी आंखो मे एक अलग सी चमक आ गई। निश्चित तौर पर यह बात किसी के लिए भी गर्व का विषय हो सकती है.
रघुजी ने बताया कि दिनचर्या मे अकसर वो स्कूल जाने से पहले गांधी आश्रम की झाड़पोछ करते और खुद को भाग्यशाली समझते। सैलानियो के लिए आश्रम आठ बजे खुलता था। तब तक उनके स्कूल जाने का समय हो जाता।
वो बता रहे थे कि बचपन में घर मे आर्थिक रूप से बहुत तंगी थी इसलिए उन्होने 14 साल की उम्र से ही अपने घर का खर्चा चलाने के लिए छोटा मोटा पढाने का काम करने लगे पर पढाई साथ में जारी रही। मैं हैरानी से उनकी बाते सुन रही थी। उन्होनें बताया कि समय ऐसे ही बीत रहा था। कुछ समय बाद गॉव में अच्छा स्कूल ना होने की वजह से उनका परिवार नागपुर जा कर बस गया और स्कूली शिक्षा नागपुर से हुई। मेरे मन मे प्रश्न् उठ रहा था कि कम उम्र में ही उन्होने घर का खर्चा चलाने के लिए काम भी करना शुरू किया पर आखिर लेखन की तरफ कैसे और कब आकर्षित हुए।
इस पर वो मुस्कुराते हुए बोले कि इसको भी अलग ही कहानी है असल में, 1978 में यानि जब वो 18 साल के थे तब उन्होने रोची प्रोडेक्ट में मशीन संचालक के रूप मे कार्यभार सम्भाला। जो सैरीडोन दवाई बनाते थे। मैने फिर बीच मे पूछा कि लेखनी…….। इस पर वो बोले कि वो उसी बात पर आ रहे है काम के दौरान एक बार सैरीडोन दवाई का पैकेट जल गया तो वहा के जी0एम0 श्री डा0 काशीनाथ कॉल ने कहा कि लिख कर सारी जानकारी दो कि ये जला कैसे। जब उन्होने लिख कर दिया तो सारी बाते भूल कर वो उनकी लेखनी से बहुत प्रभावित हुए और उसके बाद लेखन के क्षेत्र मे आगे हो बढ़ते गए।
फ्री प्री जनरल उनका पहला पेपर ग्रुप था जिसमे उन्होने काम करना शुरू किया। बचपन से एक ऐसा माहौल देखा था कि मन मे आता था कि कुछ ऐसा लिखूं की आमजन तक उनकी आवाज पहुचे। इसी बीच लेखन के साथ साथ पोस्ट ग्रेजूएशन की और एम0बी0ए0 की डिग्री मुम्बई से प्राप्त की।
सन् 2000 में दैनिक भास्कर समाचार पत्र में मैनेजेमैंट गुरू के नाम से कालॅम लिखना शुरू किया और हर दिन लेखो की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिलती रही जिससे हर रोज कुछ नया कुछ अलग लिखने की भावना आती रही। उनके लेख ना सिर्फ पंसद किए जाते बल्कि पाठक उनसे प्रेरणा भी लेने लगे। इसके लिए उन्होने विशेष रूप से दैनिक भास्कर का धन्यवाद किया क्योकि उसके माध्यम से वो निरन्तर अपनी बात रख रहे है।
मै उनकी बाते बहुत ध्यान से सुन रही थी और मैं कुछ पूछने को ही हुई थी कि उनका फोन आ गया और वो दो मिनट का समय लेकर बात करने मे व्यस्त हो गए।
फोन रखने के बाद मेरा प्रश्न तैयार था कि बहुत लोग आपको अपना गुरू या आर्दश मानते है क्या आपके भी कोई प्रेरक है? इस पर वो मुस्कुराते हुए बोले कि जिससे भी चाहे वो बच्चा हो या बडा सीखने को मिले वो उनका गुरू है। वैसे वो श्री सी0के0 प्रहलाद जोकि जाने माने मैनेजेमैण्ट एक्सपर्ट है उन्हे बहुत पंसद करते है क्योकि जमीन से जुडे उनके लेख आम आदमी को बहुत प्रभावित करते है।
इसी बीच फिर से उनका फोन आ गया और वो किसी से बात करने लगे। मेरा अगला प्रश्न तैयार था। फोन रखते ही मैने पूछा कि आपके बचपन की कोई ऐसी धटना जिसे आप कभी ना भूल पाए। उस पर वो बोले कि बाते तो बहुत है पर एक धटना बहुत बड़ी सीख दे गई थी।
एक बार गॉव मे मेला लगा हुआ था। मॉ ने 5 पैसे दिए। मेरी गो राऊड (गोल घूमने वाला) झूले में तीन पैसे का एक चक्कर था। एक चक्कर लगाने के बाद झूले वाले ने कहा कि दो पैसे में वो एक चक्कर और लगवा देगा। वो खुश हो गए और एक चक्कर और लगा लिया। घर लौट कर जब मॉ जी की बताया कि झूले में 5 पैसे लगा दिए दो पैसे बेवजह खर्च करने पर तो बहुत नाराज हुई कि 2 पैसे खर्च करने का अधिकार किसने दिया इसके परिणाम स्वरूप उन्हे 6 धण्टे धूप मे खडे रहने की सजा मिली। बुखार भी हो गया और डाक्टर का खर्चा हुआ वो अलग। पर ये बात बहुत बडा सबक दे गई कि ऐसे ही फिजूल खर्च नही करने चाहिए और बात भी सही है जब तक हम कमाते नही है तब तक इसकी कीमत भी नही पता लगती।
उन्होने बताया कि आज के समय मे जहॉ बच्चे 100-200 रूपये तो ऐसे खर्च कर देते है वहा 2 पैसे की बात सुनकर उन्हे हॅसी ही आऐगी। पर ये भी एक सच है ऐसा लगा कि वो बाते बताते बताते कही खो गए मैने बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा कि बचपन की और क्या बात बहुत याद आती है उन्होने बताया कि मॉ जब अपने हाथ से खाना खिलाती थी तो वो समय बहुत याद आता है। काश वो समय दुबारा आ जाए कहते-कहते वो संजीदा हो गए।
मैने बात बदलते हुए पूछा कि चलिए खाने की बात चली है तो खाने मे क्या-क्या पंसद है । तो उन्होने बताया दही, चावल अचार बहुत पंसद है और अगर पूरे साल सिंर्फ यही मिले तो भी वो बहुत शौक से खा सकते है बताते हुए उनके चेहरे पर मुस्कान दौड गई। मैने जानना चाहा कि उनकी दिनचर्या कैसी रहती है तो उन्होने बताया कि सुबह 5.30 बजे उठाना और 6 बजे से 8 बजे तक अखबार पढ़ना और सैर करना रहता है और इसी बीच विचारो की उथल पुथल होती रहती है और वही समय लेखन के लिए उपयुक्त होता है।
मैने मुस्कुराते हुए पूछा कि हम अपने मनोरंजन और ज्ञानवर्धन के लिए आपके लेख पढ़ते है पर आप इसके लिए क्या करते है कोई फिल्म वगैरहा या इस पर वो बोले कि फिल्मो मे तो ज्यादा रूचि है नही पर लेखन के लिए फिल्म देखनी पड़ती है और पसंदीदा गाना पूछने पर उन्होने बताया कि एम0एस0 सुब्बालक्ष्मी का भजन भज गोविंदम् प्रार्थना है। जब कभी भी सुनते हैं तो रोंगटे खडे हो जाते है और बार बार सुनने का मन करता रहता है।
मेरे पूछने पर कि आप दक्षिणी भारतीय है कौन सी जगह भारत की पसंद है उन्होने मुस्कुराते हुए कहा कि सभी जगह उन्हे बहुत पसंद है फिर मेरे एक प्रश्न पूछ्ने पर कि जिंदगी में हमेशा उतार-चढाव और टेंशन आती रहती है। तनाव के वक्त खुद को कैसे कूल रखते है… उन्होने सहज होते हुए कहा कि टेंशन होने पर टेंंशन मे रहने से कोई नतीजा नही निकलता।
उन्होने बताया कि अब इस समय उनकी बेटी अस्पताल मे भर्ती है तबियत ठीक नही है और वो उसके पास नही है पर टेंशन लेने से ना तो वो ठीक हो जाऐगी और न ही वो ठीक रह पाऐगें। हां इतना जरूर है कि उन्होने सभी अपने डाक्टर मित्रो को बोल दिया है और वो लगातार उनसे फोन पर सम्पर्क बनाए हुए है और उसकी तबियत की जानकारी दे रहे है।
सच पूछो, तो अब मैं थोड़ी असहज हो गई क्योकि मुझे लगा कि शायद ये सही समय नही है उनसे बात करने के लिए। तो उन्होने कहा कि कोई दिक्कत ही नही है आप अपना अगला प्रश्न पूछिए।
मैने मुस्कान लाते हुए पूछा कि बचपन मे आपने कोई सपना देखा था। उन्होने बताया कि बचपन में बहुत गरीबी देखी थी इसीलिए बस यही सपना देखता था कि बडे होकर आराम की जिंदगी जीउ, इसीलिए बचपन से ही दिन रात मेहनत शुरू कर दी। 14 साल की उम्र से काम मे लग गया। आज ईश्वर की कृपा है कि उन्होने मेरी प्रार्थना सुन ली और उनके बच्चे को वो सब नही देखना पडा जो उन्होने देखा।
अब बच्चे का भविष्य खुद बच्चो पर निर्भर है कि वो अपना आने वाला कल कैसे बनाते है। बिल्कुल सही बात है। मै उनकी बात से सहमत थी।
मै जानना चाह रही थी कि उनके परिवार में और कौन कौन है और परिवार को कितना वक्त दे पाते है इस पर वो बोले कि उनकी पत्नी प्रेमा है, प्यारी सी बिटिया है और पिक्सी नाम की डॉगी है पर जहॉ तब वक्त देने की बात है.
सच मे, व्यस्तताएॅ इतनी ज्यादा है कि वो ज्यादा समय परिवार को नही दे पाते। पर जब भी समय मिलता है तो उनका सारा समय परिवार के साथ ही बीतता है और कहते कहते मुस्कुराने लगे।
मेरा अगला प्रश्न भी तैयार था कि भविष्य को लेकर आपका क्या सपना है इस पर वो मुस्कराते हुए बोले कि अच्छा सवाल है वो अक्सर सोचते है कि उनके इस दुनिया से अलविदा कहने के बाद जब लोग आएगे तो क्या बात करेगे कि अच्छा हुआ एक बुरा आदमी दुनिया से चला गया । बहुत दुख हुआ। उन्होने बच्चो और बड़ो से बहुत ज्ञान बांंटा पर अब शून्य ही रह गया ।
फिर खुद ही मुस्कुराते हुए बोले कि वो जानते है कि अभी वो उस रास्ते से कोसो दूर है जब लोग उनके बारे मे अच्छा बोलेगे पर इतना यकीन है कि वो कम से कम सही रास्ते पर तो है।
इसमें कोई शक नही कि अपने लेखन से वो पाठको को हर रोज कुछ ना कुछ नया सन्देश दे रहे है। सन्देश से मुझे याद आया और मैं पूछ बैठी कि बच्चो को क्या संदेश देना चाहते है तो वो कुछ सोचने की मुद्रा मे बोले कि आज के बच्चे बहुत समझदार है उनके सपने वो जानते है कि उन्हे क्या करना है पहले साधन नही थे। आज उनके पास सभी साधन और सुविधाए है बस उसका इस्तेमाल सही ढ़ग से करना होगा। सीधे शब्दों मे कहे तो चीनी, चावल उनके पास है खीर कैसे बनानी है यह उन्हे सोचना होगा।
नींव उनके पास उस पर महल कैसे खडा करना है उन्हे विचारना होगा ताकि आने वाली पीढी के लिए रास्ता खुला रहे। हम सभी को उन्हे प्रोत्साहित करना होगा, पीठ थपथपानी होगी ताकि वो मीलो आगे जा सकें। बस अपने से बडो का आदर मान कभी नही छोडना चाहिए। जो बच्चे अपने अभिभावको का आदर करते है देख कर बहुत खुशी होती है उन्होने सभी बच्चो को शुभकामनाए दी और कहा कि अपने माता पिता बडे बुर्जगो की सेवा करते, आशीर्वाद लेते अपने लक्ष्य की ओर बढो फिर देखो सफलता आपके कदमो मे होगी।
फिर उनका फोन आ गया और वो फोन पर बात करने मे व्यस्त हो गए और मैं भी अपने कागजो को समेटने लगी क्योकि बहुत सारी जानकारी उनसे ले ली थी। बस एक आखिरी प्रश्न पूछना रह गया था कि उनकी भविष्य मे क्या योजनाए है फोन पर बात करने के बाद वो समझ चुके थे कि मैं कुछ पूछना चाह रही हॅू प्रश्न सुनने के बाद वो बोले कि वो दिन रात इसी प्रयास में जुटे है कि लेखन के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगो के बीच मे रह कर उन्हे जागरूक और प्रेरित करते रहे।

चार किताबे भी लिखी है और दूसरी किताबो पर काम चल रहा है इसी सिलसिले ने ना सिर्फ देश के अन्य शहरो मे बल्कि विदेशो में भी दौरे लग रहे है और लोगो के स्नेह देखकर वो भी बहुत उत्साहित है मुझे जाने के लिए उठता देख उन्होनें कहा कि आपके बिना प्रश्न पूछे एक बात का मैं जवाब देना चाह्ता हूं कि उनकी बिटिया अब ठीक है अभी फोन पर बात हुई है । उनकी बात सुनकर मै मुस्कुरा उठी।
मैने उन्हे सुनहरे भविष्य की ढेर सारी शुभकामनाए दी और वहा से रवाना हो गई ।जाते जाते मैं सोच रही थी कि सादा जीवन उच्च विचार रखते हुए रघु जी आज निसन्देह एक चमकते सूरज के समान अपनी किरणो रूपी बातो और लेखो से हम सभी में एक नई स्फूर्ति भर रहे है। यही सोचते सोचते मै आगे बढ़ गई।
कैसा लगा आपको उनका ये साक्षात्कार ?? जरुर बताईएगा !!




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