Ahoi Ashtami Katha 2017 – अहोई अष्टमी व्रत कथा – अहोई अष्टमी व्रत विधि. अहोई माता की जय. अपनी इस वीडियों में मैं आपको अहोई अष्टमी के व्रत, महत्व, विधि और प्रचलित दो कहानियां सुनाऊंगी. 12 अक्टूबर, बृहस्पतिवार 2017 के दिन अहोई अष्टमी का व्रत है. यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली के ठीक एक हफ्ते पहले मनाया जाता है.ahoi ashtami katha
Ahoi Ashtami Katha 2017 – अहोई अष्टमी व्रत कथा – अहोई अष्टमी व्रत विधि
ये व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. अहोई अष्टमी का व्रत सन्तान की उन्नति, प्रगति और दीर्घायु के लिए होता है. अहोई शब्द का अर्थ होता है अनहोनी को होनी बनाना.
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
इस व्रत के पीछे परिवार कल्याण की भावना होती है। अहोई अष्टमी व्रत करने से ना सिर्फ पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है बल्कि धन और ऐश्वर्य का जीवन भी मिलता है। यह व्रत केवल संतान वाली महिलाएं ही करती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत करने से बच्चों की सुरक्षा हमेशा बनी रहती है और माता का आशीर्वाद बरसता रहता है इसलिए सभी माताएं इनकी पूजा सच्चे मन से करती हैं और इस व्रत को एक त्योहार की तरह मनाती हैं
अहोई अष्टमी व्रत विधि कुछ इस प्रकार होती है…
माताएं सुबह जल्दी उठ कर स्नान करती हैं . पूजा वाली जगह को अच्छी तरह साफ किया जाता है , एक लोटे मे जल भरकर रखा जाता है भगवान गणेश की स्थापना की जाती है और साथ ही अहोई अष्टमी माता का (चित्र) रखा जाता है माता का चित्र कुछ महिलाएं अपने हाथ से बनाती है वहीं कुछ बाज़ार से लाती हैं.
व्रत को पूरे दिन रखा जाता है और शाम को सूर्य अस्त होने के बाद जब तारे निकलने लगते हैं तब अहोई माता की पूजा प्रारंभ होती है. व्रत कथा श्रद्धा भाव से सुनी जाती है और तारों को अर्ध्य देकर व्रत खोला जाता है.
Ahoi Ashtami – अहोई अष्टमी – Ahoi Ashtmi Katha – अहोई अष्टमी व्रत कथा –
अहोई अष्टमी की दो व्रत कथाएं बहुत प्रचलित हैं..
व्रत कथा … आईए सुनते हैं पहली व्रत कथा …
प्राचीन समय की बात है. किसी स्त्री के सात पुत्रों का भरा-पूरा परिवार था. कार्तिक मास मे दीपावली से पहले वो अपने मकान की लिपाई पुताई के लिए मिट्टी लाने जंगल मे गई.
स्त्री एक जगह से मिट्टी खोदने लगी. वहाँ सेई की मांद थी, अचानक उसकी कुदालि सेई के बच्चे को लग गई और वह तुरंत मर गया . यह देख स्त्री दया और करुणा से भर गई. किंतु अब क्या हो सकता था, वह पश्चाताप करती हुई मिट्टी लेकर घर चली गई.
कुछ दिनों बाद उसका बड़ा लड़का मर गया, फिर दूसरा लड़का भी, इसी तरह जल्दी ही उसके सातों लड़के चल बसे स्त्री बहुत दुखी रहने लगी.. एक दिन वह रोती हुई पास-पड़ोस की बड़ी – बूढ़ियों के पास गई और बोली ” मैंने जान बूझकर तो कभी कोई पाप नहीं किया.. हाँ, एक बार मिट्टी खोदते हुए अनजाने में सेई के बच्चे को कुदाली लग गई थी| तब से साल भर भी पूरा नहीं हुआ, मेरे सातो पुत्र मर गएँ ”
उन स्त्रियों ने उसे धैर्य बंधाते हुए कहा तुमने लोगों के सामने अपना अपराध स्वीकार करके जो पश्च्चाताप किया है, इससे तुम्हारा आधा पाप तो धुल गया| अब तुम उसी अष्टमी को भगवती के पास सेई और उसके बच्चों के चित्र बनाकर उनकी पूजा करो..
ईश्वर की कृपा से तुम्हारा सारा पाप धुल जायेगा और तुम्हें फिर पहले की तरह पुत्र प्राप्त होंगें ”उस स्त्री ने आगामी कार्तिक कृष्ण अष्टमी को व्रत किया और लगातार उसी भांति व्रत-पूजन करती रही… मां की कृपा से उसे फिर सात पुत्र प्राप्त हुए.
तभी से इस व्रत की परम्परा चल पड़ी.
दूसरी कथा कुछ इस तरह से है
प्राचीन समय की बात है. दतिया नामक नगर में चन्द्रभान नाम का एक साहूकार रहता था. उसकी पत्नी का नाम चन्द्रिका था. चन्द्रिका बहुत गुणवान, सुंदर , चरित्रवान और पतिव्रता स्त्री थी. उनके कई संताने हुईं, लेकिन वे अल्पकाल में ही चल बसीं. संतानों के इस प्रकार मर जाने से दोनों बहुत दुखी रहते थें.
पति – पत्नी सोचा करते थे की मरने के बाद हमारी धन संपत्ति का वारिस कौन होगा… एक दिन धन आदि का मोह – त्याग दोनों ने जंगल में वास करने का निश्चय किया…
अगले दिन घर – बार भगवान के भरोसे छोड़ के वन को चल पड़े… चलते – चलते कई दिनों के बाद दोनों एक आश्रम के समीप एक शीतल कुंड पर पहुंचे और कुंड के पास बैठ कर अन्न – जल त्याग करके मरने का निश्चय किया….
इस प्रकार बैठे – बैठे उन्हें सात दिन हो गए… सातवें दिन आकाशवाणी हुई- ” तुम लोग अपने प्राण मत त्यागो … यह दुःख तुम्हे पूर्व जन्म के पापो के कारण हुआ है.. यदि चन्द्रिका अहोई अष्टमी का व्रत रखे तो अहोई देवी प्रसन्न होंगी और वरदान देने आएँगी… तब तुम उनसे अपने पुत्रो की दीर्घायु मांगना.. इसके बाद दोनों घर वापस आ गए…
अष्टमी के दिन चन्द्रिका ने विधि- विधान से श्रद्धापूर्वक व्रत किया और रात को पति पत्नी ने स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किए.
उसी समय उन्हें अहोई देवी ने दर्शन दियें और वर माँगने को कहा… तब चन्द्रिका ने वर मांगा की मेरे बच्चे कम आयु में ही देव लोक चले जाते है. उन्हें दीर्घायु होने का वरदान दे दें .
अहोई देवी ने तथास्तु कहा और अंतरध्यान हो गई… कुछ दिनों के बाद चन्द्रिका को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जो बहुत विद्वान, प्रतापी और दीर्घायु हुआ.
अहोई माता बहुत दयालु हैं माता रानी सब पर कृपा दृष्टि रखे और सबका का भला करे..
Ahoi Ashtami Katha 2017 – अहोई अष्टमी – Ahoi Ashtmi Katha – अहोई अष्टमी व्रत कथा –