Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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May 16, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

गर्मी का मौसम और मटके का पानी

गर्मी का मौसम और मटके का पानी

गर्मी का मौसम और मटके का पानी

गर्मी का मौसम और मटके का पानी

गर्मी का मौसम और मटके का पानी

Happiness is …

ग्लोबल वार्मिग के चलते पारा ज्यादा ही बढने लगा है.. और लोग गर्मी से हैरान परेशान हैं ऐसे मे सबसे खुशी तब मिलती है जब गर्मी के मौसम में ठंडी छांव मिल जाए और मटके का ठंडा पानी … आहा !! तृप्ति सी हो जाती है  ….

 

पेट की जलन दूर करता है मटके का पानी, जानिए और फायदे

सुबह के समय इस पानी के प्रयोग से दिल और आंखों की सेहत दुरूस्त रहती है।
 गला, भोजननली और पेट की जलन को दूर करने में मटके का पानी काफी उपयोगी होता है।  जिन लोगों को अस्थमा की समस्या हो वे इस पानी का प्रयोग न करें क्योंकि इसकी तासीर काफी ठंडी होती है जिससे कफ या खांसी बढ़ती है।

मटके का पानी read more at patrika.com

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मटके का पानी ठंडा क्यों

गरमी आते ही ठंडे पानी की जरूरत होने लगती है. ऐसे में फ्रीज और वाटर कूलर की मांग बढ़ जाती है. इनसे हमें आसानी से ठंडा पानी मिल जाता है. जब बिजली चली जाये तब क्या? तब याद आता है हमारा मिट्टी का मटका. मटके का पानी न सिर्फ ठंडा होता है, बल्कि इसके पानी में मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू भी आती है. यह गांव और प्रकृति की याद दिलाता है. क्या तुमने कभी सोचा है कि आखिर मटके में पानी ठंडा क्यों रहता है? चलो, हम तुम्हें बताते हैं.

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वैसे आपकी असली खुशी क्या है जरुर बताईएगा !!

 

May 13, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

ऑडियो – काम वाली बाई – व्यंग्य – मोनिका गुप्ता

टैटू गुदवाना और रक्तदान https://monicagupta.info/wp-content/uploads/2016/05/satire-kaam-wali-bai-by-monica-gupta.wav

क्लिक करिए और सुनिए

आप बीती

ऑडियो – काम वाली बाई – व्यंग्य – मोनिका गुप्ता

मोनिका गुप्ता का नमस्कार

आज मैं आपको व्यंग्य सुनाने जा रही हूं जिसका शीर्षक है काम वाली बाई है मेरे पास !!!! …सुनने  से पहले प्लीज ध्यान दें ….इस व्यंग्य की सारी बाते सच्ची धटना पर आधारित है और इसका किसी व्यक्ति,स्थान उम्र से अगर मेल हो तो इसे कोई हैरानी बात ना होनी चाहिए…

जी.. क्या कहा आपने, कि मै क्यो मुस्कुरा रही हूं !!! अब मुस्कुराने की तो बात है ही..!!  मेरे पास काम वाली बाई जो है. दिन मे एक बार आती है या पांच दिन में एक बार .. जी क्या .नहीकुछ नही कुछ नही मैं तो बस वैसे ही! किस समय आते है!!! अरे समय की कोई बात नही. बस आना ही बहुत है उसका.

दिन में किसी भी समय वो दरवाजा खटखटा सकती है ….जब वो आती है तो सबसे पहले मै उसका स्वागत मुस्कुरा कर करती हूं. बैठाती हू और चाय भी पिलाती हूं.फिर जरा किसी सीरियल के बारे मे बातचीत करती हूं और फिर शुरु होता है हमारा काम… ओह, आई मीन उसका काम!! इसके पीछे पीछे इसलिए धूमना पडता है कि उसकी नजर जरा कमजोर है. अक्सर या यू कहिए कि कई बार कूडा नही दिखता तो वो उसे दिखाना पडता है. फिर आजकल उसकी कमर मे दर्द चल रहा है उससे झुका नही जाता इसलिए जरा मै वहाँ झाडु करके  उसकी मदद कर देती हूं. झाड पोछ वो करती नही है इसलिए वो भी साथ की साथ मै ही करती हूंं

रसोई मे वो प्याज और अंडे  वाले बर्तन नही धोती क्योकि उसकी महक उसके सिर मे चढती है इसलिए वो बर्तन मुझे ही …इतना सब होने पर भी अक्सर समय बेसमय उसे उपहार देन पडता है.. जी क्या किसलिए ??? अरे भई ताकि वो महारानी जी टिकी रहे.

क्या करे… आजकल काम वाली बाईया मिलती ही कहां हैं!!! कम से कम फेसबुकस्टेटेस मे तो है बताने को कि मेरे पास काम वाली बाई है. स्टेटेस से याद आया फेसबुक करना मैने ही उसे सीखाया और मैं ही उसकी फैंड लिस्ट में नही हूं जब पूछा तो बोली कि आप तो सारा दिन फेसबुक पर ही लगी रहहती हो मोबाईल सारा दिन टिंग टिंग बजता ही रहता है खामखाह सिर दर्द हो जाता है इसलिए आपको फ्रैंड नही बनाया !!

आज सुबह सुबह आई और ये बोल कर गई है कि 500 रुपए बढाओ उसका खर्चा नही चल रहा है. बस जरा  बस यही सुनने के बाद सिर जरा सा दर्द कर रहा है. वैसे आपसे क्या छिपाना !! असल मे, आजकल सिर दर्द बहुत रहने लगा है और बी पी भी ज्यादा हो गया है.. वो क्या है ना काम वाली बाई को कुछ कह नही सकते कुछ कहो तो तैयार रहो सुनने के लिए कि जा रही हूं छोड कर और अगर घर पर बताती हू कि काम वाली बाई कितना तंग करती है तो वो तुरंत कह देते है कि हटा तो उसे. इतना परेशान किसलिए होना है. वो क्या है ना हटाने के बाद मुझे ही पता है कि मेरे स्टेटेस, घूमने फिरने और किटी पार्टी पर रोक ही लग जाएगी इसलिए बस चला रही हूं जैसा चल रहा है और मुझे खुशी है कि काम वाली बाई है मेरे पास !! हाय !!

व्यंग्य - मोनिका गुप्ता

व्यंग्य – मोनिका गुप्ता

कैसा लगा आपको ???

जरुर बताईएगा !!!

लघु कथा – पसंद ना पसंद (Audio)  भी जरुर सुनिए 🙂

 

 

May 10, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

स्कूली बच्चे और शारीरिक दंड

कार्टून
कार्टून

कार्टून

स्कूली बच्चे और शारीरिक दंड

मुर्गा बनाना मना है … कुछ देर पहले मेरी सहेली मणि का फोन आया वो खुशी खुशी बता रही थी कि आज 30 साल के बाद उसे वो टीचर मिली जो स्कूल में उसकी बहुत पिटाई करती थी. उन्हे  देख कर और मिलकर बहुत अच्छा लगा. आज वो जो भी है उन्ही की वजह से है क्योकि ना स्कूल में वो पिटाई करती न वो पढाई मे ध्यान लगाती और ना वो फर्स्ट डिवीजन में पास होती … !! वाकई मॆंं, थोडी बहुत सख्ती और डर जरुरी होता है मुझे भी याद आ गया जब क्लास में बोलने और गणित में सवाल हल न करने पर क्लास से बाहर दोनो  हाथ उपर खडा होने की सजा मिलती और फिर वो सवाल ऐसा याद हुए … ऐसे याद हुए कि जिंदगी भर नही भूले … मैं सोच ही रही थी तभी अखबार में एक खबर पर नजर गई कि अगर बच्चे को मुर्गा बनाया तो टीचर को होगी 3 महीने की जेल और एक लाख रुपया जुर्माना  …

 

 www.bhaskar.com

जस्टिस जुवनाइल एक्ट में हाल में ही संशोधन किया है। देश में जेजे एक्ट यानि जस्टिस जुवनाइल एक्ट को लागू हुए कई साल हो गए, लेकिन अब इसमें कई बदलाव कर नए सेक्शनों को शामिल किया है। सेक्शन 77 के तहत अध्यापक स्कूल में बच्चे को किसी तरह की सजा देता है और बच्चा उसकी शिकायत खुद जुवनाइल अदालत या जिला प्रोबेशन अधिकारी के माध्यम से अदालत में याचिका दायर करता है तो सजा व जुर्माना दोनों हो सकते हैं…..       read more at bhaskar.com

Rajasthan News | Hindi News | Latest News | Samachar

कई बार देखने में आया है कि विद्यार्थी सजा से इतने भयभीत हो जाते हैं कि काफी दिनों तक विद्यालय जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। मनोविज्ञानियों के अनुसार शारीरिक दंड का बच्चों के दिल और दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। हीन भावना से ग्रस्त बच्चे इसी वजह से पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। कई बच्चे आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं, जिसे देखते हुए किशोर न्याय अधिनियम-2015 लागू किया है। बच्चों या अभिभावक की शिकायत पर पुलिस को संबंधित शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज करना होगा। क्रूरता बरती तो 10 साल की सजा ‘आरटीई की धारा 17 के अनुसार शिक्षक द्वारा बच्चे को प्रताडि़त करने और जांच में सही पाए जाने पर कड़ी सजा का प्रावधान है। धारा 82 (1) में अनुशासन सिखाने के नाम पर यदि बच्चे जान-बूझकर शारीरिक दंड दिया गया तो पहली बार दोष सिद्ध होने पर 10 हजार रुपए जुर्माना, दूसरी बार में तीन माह की सजा तथा धारा 82 (2) में दोषी शिक्षक को बर्खास्त करने का प्रावधान है।Ó धारा 75 के तहत बच्चे के साथ शारीरिक दंड के नाम यह क्रूरता बरती गई तो आरोपित के खिलाफ 10 वर्ष तक की सजा पांच लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान भी है। read more at rajasthannews.net

इतना ही नही सेक्शन 75 के तहत अगर घर पर माता पिता बच्चे के साथ मारपीट या अभद्र भाषा बोलते हैं तो उन्हें भी 3 साल जेल और 1 लाख रुपया जुर्माना हो सकता है..

चाहे स्कूल हो या घर बच्चे में थोडा डर तो रहना ही चाहिए पर अब बच्चा बिल्कुल बेखौफ हो जाएगा जोकि कही न कही सही नही भी है वैसे आपका इस बारे मे क्या विचार है जरुर बताईएगा …

 

 

May 9, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

Twitter Abusive Language

twitter cartoon by monica gupta

Twitter Abusive Language

अगर आज की तारीख में कोई पूछे कि किससे डर लगता है तो मैं तो यही कहूंगी कि न प्यार न थप्पड से न ही किसी और चीज से डर लगता है डर लगता है तो बस टवीटर  पर जाने से… असल में,  टवीटर में भले ही 140 शब्द ही इस्तेमाल होते हैं पर अपशब्द इतने की उसे देखते ही टेंशन हो जाती है इतने अपशब्द , इतनी गाली गलौच… हे भगवान … जब आदमी टवीटर से बाहर निकलता है तो खुद को लुटा पिटा महसूस करता है

Twitter Abusive Language के बारे में आपके क्या विचार  हैं !!!

Twitter  भी जरुर देखिए

May 3, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

करियर विकल्प , बच्चे और अपेक्षा के बोझ तले युवा

करियर विकल्प , बच्चे और अपेक्षा के बोझ तले युवा

करियर विकल्प , बच्चे और अपेक्षा के बोझ तले युवा

कुछ देर पहले सडक पर एक पिता शायद अपने छोटे से बच्चे को स्कूल छोडने जा रहे थे.बच्चा स्कूल नही जाना चाह रहा रहा था इसलिए रो रहा था और उसके पिता भी उसे गुस्से मे बोल रहे थे कि स्कूल नही जाएगा तो जमादार बन जाएगा सडक पर झाडूं लगाएगा कहते कहते और जोरदार चांटे जड दिए. अब सोचने की बात यह है कि बच्चा रो किसलिए रहा है यह वजह पता लगाने की कोशिश करके हल निकालना चाहिए. ये मारपीट कोई हल नही है.

 

आज अचानक एक खबर ने चौक दिया जिसमें एक लडकी ने छ्त से कूद कर आत्महत्या इसलिए कर ली कि IIT-JEE pass करने के बाद भी वो इंजीनियर नही बनना चाह्ती थी. उसने अपने सोसाईड नोट मे लिखा कि उसकी मम्मी ने उसे साईंस दिलवा दी थी .. जबकि उसका कोई interest नही था उसमे… !!

17 year old Girl commit suicide after cracking JEE, didn’t want to be an engineer – Navbharat Times

17 year old Girl commit suicide after cracking JEE, didn’t want to be an engineer – Navbharat Times

 

कोटा जहां ज्यादातर बच्चे शिक्षा के लिए जाते हैं एक खबर के अनुसार वहां ये पाचंवी खुदकुशी है…

कई पेरेंटस तो कालिज मे आने के बाद वो विषय दिलवाते हैं जिसकी बच्चे मे कोई रुचि नही होती. फिर वजह बनती है बच्चो मे टेंशन की और बच्चा पढाई मे पिछडता चला जाता है या फिर कोई गलत रास्ता( नशा या खुदकुशी आदि) रास्ता चुन लेता है.

 

इसी बीच एक अन्य खबर राहत लेकर आई जिसमे कोटा के डीसी ने माता पिता को चिठ्ठी लिख कर मार्मिक अपील की है कि वो बच्चे पर अपनी इच्छाओं का बोझ न डालें .डीसी कोटा श्री रवि कुमार ने पांच पेज का पत्र लिखा है

Kota DC writes To Parents, Do not burden your children – Navbharat Times

कुमार ने लिखा है, ‘कोटा शहर के DC होने के नाते मैं यहां पढ़ने आए आपके बच्चों का स्वागत करता हूं। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं देश के युवा हुजूम का स्वागत करता हूं। यहां पढ़ने आए बच्चे भविष्य में सफल होकर आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभाते हैं।’ सुरपुर ने पत्र में अभिभावकों से परिपक्व व्यवहार करने की अपील की। पत्र में सुरपुर ने युवा छात्रों की खुदकुशी की घटनाओं का हवाला देते हुए लिखा कि खुदकुशी करने वाले बच्चों के माता पिता की उनसे बड़ी उम्मीदें थीं। अपेक्षाओं के बोझ तले बनावटी दुविधा में जीने के बजाय उन्होंने मौत को गले लगाना आसान समझा। यह बहुत तकलीफदेह है। उन्होंने लिखा, ‘बच्चों को बेहतर प्रदर्शन के लिए डराने धमकाने या फिर अपेक्षाओं का बोझ लादने की जगह आपके सांत्वना के बोल जरूरी हैं। नतीजों को भूलकर बेहतर करने के लिए प्रेरित करना, मासूम कीमती जानें बचा सकता है।’ DC ने पूछा, ‘क्या माता पिता को बच्चों की तरह अपरिपक्वता दिखानी चाहिए? Kota DC writes To Parents, Do not burden your children – Navbharat Times

 

कुल मिलाकर आज के बच्चो के मन को देखते हुए माता पिता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. उन्हें बच्चो को बहुत प्यार से हैंडल करने की जरुरत है अन्यथा .

करियर विकल्प , बच्चे और अपेक्षा के बोझ तले युवा के बारे में आपकी क्या राय और सोच है जरुर बताईएगा …

 

 

youth reading photo

Photo by Enokson

May 2, 2016 By Monica Gupta Leave a Comment

अजब गजब नाम और मेरे मन की बात

नाम बदलना कितना सार्थक - जब गुडगांव बना गुरुग्राम

अजब गजब नाम और मेरे मन की बात

अगर मैं क्रांति, आंदोलन, संघर्ष, भूख हडताल ,नेता की बात करुं तो आपको लगेगा कि मैं आज राजनीति की बात कर रही हूं पर नही ये एक परिवार में बच्चों के नाम हैं .. जी हां, मध्यप्रदेश के रहने वाले समाज सेवी मुन्नालाल ने अपने बच्चों के नाम बहुत खुशी खुशी रखे हैं… है ना हैरानी की बात … !!

वैसे कुछ शहर तो कुछ गांव के नाम भी अजीबो गरीब होते हैं मुझे याद है न्यूज के सिलसिले में जब अक्सर सिरसा के गांव जाना पडता था कुछ गांव के नाम ऐसे है कि बोलने मे झिझक सी महसूस होती जैसे कुताबढ, कुतियाना विचार आता था कि नाम परिवर्तन की इन गांवों को जरुरत है ना कि गुडगांव का गुरुग्राम होना …वैसे कुछ गावों के नाम प्यारे भी बहुत हैं जैसाकि दादू , मिठरी , हस्सू, कालूआना..वैसे कालूआना प्यारा नाम नही है …  😆

दैनिक भास्कर

दैनिक भास्कर

कुछ लोग चुनाव चिन्ह भी अजीबो गरीब रखते हैं तो कुछ एक दूसरे की वोट काटने के लिए एक जैसे नाम रख लेते हैं..

मैं पढ ही रही थी कि तभी मणि का फोन आया कि वो मेरे घर नही आ रही क्योकि उसकी कामवाली बाई शिमला गई है.. अरे वाह मैने कहा वाह शिमला.. क्या बात है !! इस पर वो बोली अरे वो वाला शिमला नही यही पास में एक गांव है शिमला वहां गई है… !!

अचानक मेरी नजर  उसी अखबार में छ्पी एक दूसरी खबर पर गई.. गुजरात के कुछ गांवो के नाम भूतडी, चुडैल… कैसे लेते होंगें ये लोग अपने गावों का नाम !!

गूगल सर्च और अजब वेबसाईट      भी जरुर पढिए

 

BBC

भारत में शहरों के नामों को बदलने का काम 20 साल पहले तब शुरू हुआ था जब भाजपा और शिवसेना की सरकार ने 1996 में बंबई का नाम बदलकर मुंबई रखा.

लेकिन यह गुरूग्राम से अलग मामला था, क्योंकि ज़्यादातर लोग बंबई, मुंबई या फिर बुंबई नाम का इस्तेमाल करते थे और उससे परिचित भी थे. लेकिन तब भी विरोध करने वालों का तर्क यही था कि बंबई एक ब्रांड था और उससे ब्रांड का नुक़सान होगा.

पीछे मुड़कर देखने पर और 20 साल के लंबे अंतराल पर नज़र डालने से ये नहीं लगता है कि नाम बदलने से ब्रांड का कोई नुक़सान हुआ है.

मुंबई की समस्या आधारभूत ढांचों की है. यह बाहरी लोगों को रोज़गार तो मुहैया कराता है लेकिन उनके रहने के लिए मुंबई के पास बस ख़स्ताहाल सुविधाएं ही बची हैं. read more at bbc.com

 

 

हे भगवान !! हे ईश्वर!! हे प्रभु !!

 

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