चुनाव नतीजा
Blood donation camp and Ladies
Blood donation camp and Ladies
बेशक,रक्तदान का क्रेज महिलाओं में भी बहुत देखने को मिलता है पर अगर blood donor से पहले blood owner बनें इस बात की जागरुकता हो तो ज्यादा अच्छा हो
रक्तदान और महिलाएं सिरसा जिले के ऐलनाबाद ब्लाक में कुछ साल पहले एक रक्तदान शिविर लगा.
चूकि शिविर गांव में लगा था इसलिए गांव की महिलाओ ने बढ चढ कर भाग लिया.
ये वो ही महिलाए थीं जिन्होनें स्वच्छता अभियान में भी बढ चढ कर हिस्सा लिया था. गांव की महिलाए आई रक्तदान के लिए थी पर जब हीमोग्लोबिन कम निकला और डाक्टर ने रक्तदान के लिए मना कर दिया तो वो सभी अड गई और बोली कि हमे नही पता हमने आज दान करके ही जाना है …. कुछ भी कहो… हम सब यही बैठी हैं
ये जज्बा है गांव की औरतों का … !!! रक्तदान और महिलाए !!!
लेख- ई कचरा
लेख- ई कचरा
घर के बाहर कबाडी वाला जा रहा था मुझे देख कर पूछने लगा कि कुछ है ??? तो मैने कहा कि अभी रद्दी अखबार नही है तो वो बोला तो कोई पुराना कम्प्यूटर, पुरानी कार, UPS, फ्रिज, वाशिंग मशीन या AC या कूलर होगा … अरे … मैने पूछा कि ये सब भी लेते हो ??? वो बोला और क्या, अब अखबार रद्दी कबाड कहां होता है पर पुराना टीवी, कम्प्यूटर, एसी, कसरत करने वाली मशीन जैसी बहुत चीजे कबाड हो गया है… और आवाज लगाते हुए निकल गया. मुझे याद आया कि बहुत समय पहले पडोसी की fiat कार का अति खस्ता हाल हो गया था. किसी ने नही ली तो कबाडी को बुलाया तो वो बोला कि इसके तो उठवाने के भी पैसे लगेंगें …
हे भगवान !!! समय वाकई बदल रहा है और हमारा कबाड भी ई कचरे मे परिवर्तित हो रहा है 🙂 🙁
ई कचरा
भारत में यह समस्या 1990 के दशक से उभरने लगी थी . उसी दशक को सुचना प्रौद्योगिकी की क्रांति का दशक भी मन जाता है . पर्यावरण विशेषज्ञ डॉक्टर ए. के. श्रीवास्तव कहते हैं, ” ई – कचरे का उत्पादन इसी रफ़्तार से होता रहा तो 2012 तक भारत 8 लाख टन ई – कचरा हर वर्ष उत्पादित करेगा .” राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के पूर्व निदेशक डॉ श्रीवास्तव कहते हैं कि ” ई – कचरे कि वजह से पूरी खाद्य श्रंखला बिगड़ रही है .” ई – कचरे के आधे – अधूरे तरीके से निस्तारण से मिट्टी में खतरनाक रासायनिक तत्त्व मिल जाते हैं जिनका असर पेड़ – पौधों और मानव जाति पर पड़ रहा है . पौधों में प्रकाश संशलेषण कि प्रक्रिया नहीं हो पाती है जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन के प्रतिशत पर पड़ रहा है . इतना ही नहीं, कुछ खतरनाक रासायनिक तत्त्व जैसे पारा, क्रोमियम , कैडमियम , सीसा, सिलिकॉन, निकेल, जिंक, मैंगनीज़, कॉपर, भूजल पर भी असर डालते हैं. जिन इलाकों में अवैध रूप से रीसाइक्लिंग का काम होता है उन इलाकों का पानी पीने लायक नहीं रह जाता.
ई कचरा
पीसी ही क्यों, मोबाइल, सीडी, टीवी, रेफ्रिजरेटर, एसी जैसे तमाम इलेक्ट्रॉनिक आइटम हमारी जिंदगी का इतना अहम हिस्सा बन गए हैं कि पुराने के बदले हम फौरन लेटेस्ट तकनीक वाला खरीदने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन पुरानी सीडी व दूसरे ई-वेस्ट को डस्टबिन में फेंकते वक्त हम कभी गौर नहीं करते कि कबाड़ी वाले तक पहुंचने के बाद यह कबाड़ हमारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि पहली नजर में ऐसा लगता भी नहीं है। बस, यही है ई-वेस्ट का साइलेंट खतरा। लोगों की बदलती जीवन शैली और बढ़ते शहरीकरण के चलते इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का ज्यादा प्रयोग होने लगा है मगर इससे पैदा होने वाले इलेक्ट्रोनिक कचरे के दुष्परिणाम से आम आदमी बेखबर है . See more…
ई कचरा
ई-कचरा फैलाने में भारत दुनिया के शीर्ष पांच देशों में एक है। अमेरिका और चीन इस मामले में पहले दूसरे नंबर पर है। संयुक्त राष्ट्र यूनिवर्सिटी (यूएनयू) की ओर से ‘वैश्विक ई-कचरा निगरानी-2014’ पर जारी रिपोर्ट से यह बात सामने आई है। अगले तीन वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से फैलने वाले कचरे में 21 फीसदी तक की वृद्धि का अनुमान जताया गया है।
भारत में पिछले साल 17 लाख टन ई-कचरा पैदा हुआ था। इस मामले में भारत का नंबर अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद आता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन और अमेरिका में 32 फीसदी ई-कचरा पैदा होता है। वर्ष 2014 में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा एक करोड़ साठ लाख टन (प्रति व्यक्ति 3.7 किलोग्राम) ई-कचरा एशिया में जमा हुआ।
Facebook Fever
Facebook Fever
हे भगवान !!! आज के बच्चों को पढाई की चिंता नही चिंता इस बात की है कि उन्हें आज फेसबुक facebook पर कितने लाईक likes और कमेंट comments मिलेंगें !!!
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