Monica Gupta

Writer, Author, Cartoonist, Social Worker, Blogger and a renowned YouTuber

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December 7, 2015 By Monica Gupta Leave a Comment

अफवाह वाह या आह

 

अफवाह वाह या आह – कोई हादसा होने पर अफवाहों का बाजार गर्म हो जाता है पर अफवाह कितनी घातक हो सकती है इस बात को भी नही भूलना चाहिए..

( दैनिक जागरण में जागरुक पाठक के अंतर्गत कुछ साल पहले)

अफवाह वाह या आह

मोनिका गुप्ता

अफवाह वाह या आह

December 7, 2015 By Monica Gupta Leave a Comment

लघु कथा

मोनिका गुप्ता

मोनिका गुप्ता

लघु कथा

राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित दो लघु कथाए “मोह भंग” और “फर्ज में फर्क” …

ये बात सन 1998 की है

( क़ुछ कतरन)

December 4, 2015 By Monica Gupta Leave a Comment

नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी

नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी

और उनका निस्वार्थ सेवा भाव

kailash satyarthi photo

Photo by DFID – UK Department for International Development

सच मानिए तो कैलाश सत्यार्थी जी का नाम मैने पहली बार कल टीवी पर सुना उसके बाद जब उनके बारे मे विस्तार से जाना तो हैरानी के साथ साथ बहुत खुशी भी हुई कि इतने सालों से इतना बडा काम कर रहे हैं वो..!!!.

रक्तदान से जुडे कुछ लोग बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं कई बार जब मैं उनसे उनका साक्षात्कार या तस्वीर लेने की बात करती हूं तो वो मना कर देते हैं कि अरे नही .. हम तो बहुत साधारण से लोग है …हमारी तस्वीर किसलिए … !!! कैलाश जी भी शायद ऐसे ही रहे होंगे … निस्वार्थ सेवा भाव से जो काम किया जाता है उसका फल बहुत मीठा ही निकलता है इसलिए जो लोग समाज सेवा से जुडे हैं उनसे मेरा विनम्र निवेदन है कि बिना फोटो खिचवाए और सुर्खियों में आए बस कार्य करते रहे एक दिन आपका भी होगा !!!

शुभ कामनाएं कैलाश सत्यार्थी जी और मलाला

December 1, 2015 By Monica Gupta Leave a Comment

दिल की बात

अपना ख्याल रखिए

दिल की बात

पिछ्ले सप्ताह मेरी सहेली मणि के अंकल की अचानक तबियत खराब हो गई शायद हार्ट अटैक था. उन्हें तुरंत दिल्ली लेकर जाना पडा. मैं, जब मणि के घर मिलने गई तो वो बेहद उदास थी. मैनें समझाया चिंता मत कर. इस पर वो मुझे बोली कि तू हमेशा कहती है कि जो कुछ होता है अच्छे के लिए होता है अब उनकी अचानक तबियत खराब हुई इसमें अच्छा क्या हुआ. मैं चुप ही रही क्योकि वो मुझे पता था कि इस समय वो बहुत उदास है मेरे कुछ भी कहने का कोई फायदा नही होगा.

अभी कुछ देर पहले ही वो आई और बहुत खुश थी क्योकि उसके अंकल का आप्रेशन सफल रहा और वो वापिस लौट आए हैं. आज उसने मुझे बोला कि तूने सही कहा था कि जो होता है अच्छे के लिए होता है. मेरे पूछ्ने पर कि आखिर हुआ क्या. इस पर वो बोली कि तबियत खराब के बाद से अंकल ने सिग्रेट पीना हमेशा के लिए छोड दिया है वो दिन में तीन तो कभी चार पैकेट सिग्रेट पीते थे. तो हुआ न अच्छा.

मैं भी मुस्कुरा दी. वैसे कई बार जिंदगी में मौके ऐसे आते है कि हमारा मन चाहा नही होता ऐसे मे यही सोचना चाहिए कि मन का हो तो अच्छा और मन का ना हो तो और भी अच्छा क्योकिं अब वो होगा जो भगवान को सही लगता है.. इसलिए हर हाल में बस खुश रहिए और सकारात्मक सोचिए.

heart photo

 

December 1, 2015 By Monica Gupta Leave a Comment

भारतीय महिलाए और समाज

indian lady photo

Photo by Picture Institute- Bristol Margate Nida London

 

भारतीय महिलाए और समाज

 महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में एक महिला ने शनि महाराज को तेल चढा दिया. इसके बाद बवाल खडा हो गया क्योकि ट्रस्ट का कहना है कि 400 साल की परंपरा में पहली बार किसी महिला ने मंदिर के चबूतरे पर चढकर शनि महाराज को तेल चढाया, यहां ऎसा नहीं होता है। ट्रस्ट की ओर से रविवार को मंदिर का शुद्धिकरण किया गया. इस खबर को बहुत प्रमुखता से दिखाया गया. खबर देखते देखते मेरा मन बहुत साल पीछे उड चला. मैं उन दिनों मे पहुंच गई जब टीवी, मोबाईल या कम्प्यूटर नही हुआ करते थे.

संयुक्त परिवार होते और और नानी ,दादी के घर बिल्कुल अलग माहौल होता. रेडियों ,पत्र, पत्रिकाओ का बोलबाला हुआ करता था. पत्रिकाओं में एक पत्रिका थी सरिता. सरिता पत्रिका में एक कालम आता था हमारी बेडिया. उसे अगर आज के समय में पढे तो हैरान हो जाएगा कि महिलाओ के साथ किस किस तरह का व्यवहार किया जाता था.  किस तरह के आडम्बर और बेडिया थी समाज में.

बाहर की तो बात अलग है घर पर ही ढेरों बंधनों में रहती जैसाकि महीने के तीन दिन उसके साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाता था ( सम्भव है आज भी कुछ परिवारों में यह परम्परा हो) और अगर कोई विधवा हो गई है तो उसके लिए तो बहुत बंधन थे समाज में. लडकियों को बस रसोई घर तक ही सीमित रखा जाता. पढाई तो बहुत दूर की बात थी और अगर फिर भी पढ लिख लेती तो आठवी, दसवी करते ही रिश्ते की खोज शुरु हो जाती. इतना ही नही घरों में अपने ही लोग महिला का शोषण करते और उसे अपनी आवाज दबाने को मजबूर किया जाता और वो ये सब जुल्म सहती रहती. कुल मिला कर उस दौर को पुरुष प्रधान समाज का नाम दिया जाए तो गलत नही.

अब बात आती है आज के दौर की. जहां माता पिता लडकी को पढाना चाहते हैं. शहरों में ही नही गांवों में भी लडकी को पढाने लिखाने के मामले में मानसिकता बदली है. इतना ही नही जो कोई भ्रूण या लिंग की जांच करवाता है कि अगर लडकी है तो गिरवा दो कि भावना रखता है ऐसे डाक्टर को और अविभावकों को  सलाखों के भीतर कर दिया जाता है. महिलाए नौकरी करके कमा रही हैं और अपने पैरों पर खडी हैं आज समाज में बोलने की आजादी, लिखने की आजादी है और टीवी धारावाहिकों  सोशल नेट वर्क आदि के माध्यम से  जानकारी मिलती है कि क्या सही है क्या गलत ? अनेको एप्प मार्किट में आ गए हैं  जिससे चाहे वो बच्ची हो या महिला सचेत और जागरुक रहती है.

अचानक मेरी तंद्रा भंग हुई और देखा उसी मंदिर के पुजारी बता रहे थे कि परम्परा किसने बनाई और क्यो बनाई ये तो पता नही पर 400 साल से भी ज्यादा से यही चली आ रही है इसलिए मंदिर का शुद्धिकरण करना जरुरी था. उस महिला ने सही किया या गलत इस विषय पर बहस चालू हो चुकी है पर कुल मिला कर उन दिनों की तुलना में आज समाज में महिलाओं को लेकर बहुत परिवर्तन आया है बेशक, उन बेडियों से आजाद तो नही हुए पर राहत जरुर मिली है जोकि एक अच्छा संकेत है.

महिलाओं ने अपनी मिली स्वतंत्रता का कितना दुरुपयोग किया है … ये अलग बहस का विषय है जिसके बारे में अगली बार मुद्दा उठाएगें ..

भारतीय महिलाए और समाज के बारे में आपकी क्या राय है …

November 28, 2015 By Monica Gupta Leave a Comment

भेडचाल

भेडचाल

हम और हमारी भेड चाल यह जानते हुए थी कि ये रास्ता कही नही जाता…. 

पिछ्ले दिनों दिल्ली से लौटते वक्त, नेशनल हाई वे पर, बहुत सारी भेडें सडक इस तरह से घेर कर चल रही थीं मानों हाई वे न होकर किसी खेत की पगंडडी हो इसलिए कार की रफ्तार बेहद धीमी करनी पडी. मैने कार का शीशा नीचे करते हुए भेडो को बोला ओ भेड जी जरा कच्चे में चलो.. क्यों हमारा रास्ता रोक रखा है. मुझे पता नही कि उन्हें क्या समझ आया क्या नही पर उन्होने म म म म म की आवाज जरुर निकाली. कार आगे बढी तो देखा कि बहुत वाहन लाईन मे लगे खडे हैं पहले लगा आगे शायद रेलवे क्रासिंग होगा पर वो कोई क्रासिंग नही बल्कि जबरदस्त जाम था.  किस वजह से था ये पता नही चला. हम सोच ही रहे थे किया किया जाए तभी देखा एक कार बडी मुश्किल से मुडी और धीरे धीरे धूल उडाता चालक अपनी कार को कच्ची सडक पर ले गया उसकी देखा देखी एक और कार मुडी और फिर एक और कार… ना मालूम किसी को रास्ता पता था या नही  पर उस कार की देखा देखी, कुछ ही पलों में खेत की पगडंडी पर अनगिनत कारें दौड रही थी.

उसी भेड चाल का हिस्सा बनें हम भी कार मे बैठे यही बात कर रहे थे क्या हम ठीक जा रहे हैं ? पता नही ये रास्ता कहां जाएगा या वापिस ही लौट जाए पर वापिस लौटना भी सम्भव नही था क्योकि वाहनों की कतार बढती ही जा रही थी. तभी देखा वही भेडे अब कच्ची पगडंडी पर हमें क्रास कर रही थी और शायद चिढा रही थी कि लो शुरु हो गई तुम्हारी भी भेड चाल ….!!! और मैं निरुत्तर थी. वैसे देखा जाए तो आज हमारी भॆडचाल ही तो है चाहे सडक पर टैफिक जाम में हो या सोशल मीडिया पर किसी बात की सच्चाई जाने बस भेड चाल की तरह उसका समर्थन करते पीछे लग जाते है म म म म म करते …यह जानते हुए भी  कि ये रास्ता कही नही जाता …  

sheep photo

 भेडचाल का समर्थन न ही करें तो अच्छा क्योकि ये रास्ता कही नही जाता

 

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