अच्छे काम के लिए चीयर्स – पर ढिंढोरा पीटना मना है -खामोशी से भी काम होते हैं मैने देखा है पेड़ों को छाया देते हुए… अच्छे या नेक काम करते रहना चाहिए पर उसका ढिंढोरा नही पीटना चाहिए कि मैने किया है किसी की भावनाएं आहत हो सकती हैं. गरीब हो या अमीर, बुजुर्ग हो या बच्चा किसी को ठेस लग सकती है…
अच्छे काम के लिए चीयर्स – पर ढिंढोरा पीटना मना है
आज नेट पर मैं सुबह नेकी की दीवार के बारे में पढ रही थी कि अलग अलग शहरों में नेकी की दीवार बनी है. तभी मेरी एक जानकर का फोन आया उसने पूछ कि किसी गरीब जरुरतमंद को जानते हो तो मुझे बताना हम मदद करेंगें …
मैने कहा अरे वाह !! ये तो बहुत ही अच्छी बात है किसी की मदद करना … कोई निगाह में आया तो जरुर बताऊंगी उसका फोन रखते ही माली आ गया … मुझे याद आया कि उसने बताया था बच्चे को साईकिल खरीद कर देनी है …
तो मैने उसे बताया कि एक है वो मदद करना चाह्ते है साईकिल दिलवा देंगें… वो भी खुश हो गया मैने उसे उनका नाम पता बताया तो एक दम से बोला अरे … वो अरे नही … बिल्कुल नही … बहुत दिखावा करते है सौ रुपये की चीज देते हैं और दस जगह अपना प्रचार करते फिरते है बडा बुरा लगता है
ढिंढोरा पीटना
वो बता रहा था कि उसके पडोसी के बच्चे को स्कूल के काले बूट दिए और दस जगह फोटो डाल दी कि गरीब बच्चे की मदद की … उसके स्कूल के दोस्त उसके जूते का ही मजाक बनाने लगे …
वैसे कई बार समझ नही आता हम अपने किए काम की पब्लिसिटी क्यो करते है चुपचाप भी तो काम किए जा सकते हैं ढिंढोरा पीटना की क्या जरुरत
तभी मुझे ख्याल आई एक कहानी जो नेट पर पढी थी कि एक आदमी दूसरे शहर जाता है उस शहर मे उसने सुना था उस शहर में कि सभी खुशहाल हैं उसे समझ नही आया कि खुशहाल कैसे रहते हैं …
उस शहर मे पहुंचता है वहां कॉफी की दुकान होती है तो वो वहा चला जाता है एक आदमी शॉप में आया और उसने दो कॉफ़ी के पैसे देते हुए कहा दो कप कॉफ़ी , एक मेरे लिए और एक उस दीवार पर
व्यक्ति दीवार की तरफ देखने लगा लेकिन उसे वहाँ कोई नज़र नहीं आया , पर फिर भी उस आदमी को कॉफ़ी देने के बाद वेटर व्यवहार दीवार के पास गया और उस पर कागज़ का एक टुकड़ा चिपका दिया , जिसपर “एक कप कॉफ़ी ” लिखा था .
व्यक्ति समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है . उसने सोचा कि कुछ देर और बैठता हूँ , और समझने की कोशिश करता हूँ .
थोड़ी देर बाद एक गरीब मजदूर वहाँ आया , उसके कपड़े फटे -पुराने थे पर फिर भी वह आत्म -विश्वास के साथ शॉप में घुसा और आराम से एक कुर्सी पर बैठ गया .
व्यक्ति सोच रहा था कि एक मजदूर के लिए कॉफ़ी पर इतने पैसे बर्वाद करना कोई समझदारी नहीं है …तभी वेटर मजदूर के पास आर्डर लेने पंहुचा .“ सर , आपका order please !”, वेटर बोला .“ दीवार से ek cup कॉफ़ी .” , मजदूर ने जवाब दिया .
वेटर ने मजदूर से बिना पैसे लिए एक कप कॉफ़ी दी और दीवार पर लगी ढेर सारे कागज के टुकड़ों में से “एक कप कॉफ़ी ” लिखा एक टुकड़ा निकाल कर dustbin में फेंक दिया .
व्यक्ति को अब सारी बात समझ आ गयी थी . कसबे के लोगों का ज़रूरतमंदों के प्रति यह भावना देखकर वह खुश हो गया … सचमुच लोगों ने मदद का कितना अच्छा तरीका निकाला है जहां एक गरीब मजदूर भी बिना अपना आत्मसम्मान कम किये एक अच्छी सी कॉफ़ी -शॉप में खाने -पीने का आनंद ले सकता है .
अब वह शहर की खुशहाली का कारण जान चुका था और
हम पडे रहते हैं दिखावे में …
खामोशी से भी काम होते हैं मैने देखा है पेड़ों को छाया देते हुए…..!!!
चिंता मत करो, मैं हूँ ना – जादुई शब्द (एक कहानी) – Monica Gupta
चिंता मत करो, मैं हूँ ना – जादुई शब्द (एक कहानी) अपना ख्याल रखना, मैं हूँ ना, जादुई शब्द , तुम चिंता मत करो, मैं हूं ना, टेक केयर , सब ठीक हो जाएगा रिलेक्स,
चिंता मत करो, मैं हूँ ना – जादुई शब्द (एक कहानी) – Monica Gupta
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