अहोई अष्टमी कथा – अहोई माता का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। माताओ के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माताएं दिन भर उपवास रखती हैं होई का पूजन करती हैं और तारों को अर्ध देती हैं
अहोई अष्टमी कथा – अहोई अष्टमी व्रत कथा और महत्व
अहोई अष्टमी कथा – इस साल अहोई माता का व्रत देश भर में 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा. कार्तिक कृष्ण पक्ष को मनाए जाने वाला होई का त्योहार किसी उत्सव से कम नही होता. जैसे महिलाओ के लिए करवा चौथ एक उत्सव की तरह मनाया जाता है ठीक वैसे ही अहोई माता का व्रत भी किसी उत्सव से कम नही होता. दीवाली से एक सप्ताह पूर्व मनाए जाने वाला ये त्योहार संतान की सुख शांति और खुशहाली के लिए माताओं द्वारा रखा जाता है
सुबह सवेरे नहा धो कर पूजा की जाती है निर्जला उपवास रखा जाता है और तारों को देख कर व्रत खोला जाता है. दीवार पर माता का चित्र बनाया जाता है. मान्यता है कि अहोई माता संतान की रक्षा करती हैं और उन्हे शुभ आशीर्वाद देती हैं.
अहोई अष्टमी की कहानी
अहोई अष्टमी की कथा कुछ ऐसे है. प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से साही का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। जाते समय रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वो सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।
अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। मान्यता ये भी है कि कहानी सुनने के बच्चे थाली में रखे फल, पैसे, मिठाई उठा कर भागते हैं और बच्चों की खिलखिलाहट से घर संसार महकता रहता है आप सभी को अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं !!
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